हसन अली शाह, आगा खां प्रथम, मूल नाम हसन अली शाह, ४६वां इमाम (अरवी : حسن علي شاه آغا خان 1 जन्म: 1800, मृत्यु : 1881), शियाओं के निजरी इसमाईली मत के आध्यात्मिक नेता। वे खुद को पैगंबर मुहम्मद की बेटी फातिमा और दामाद अली तथा मिस्त्र के फातिमी खलीफाओं का बंशज बताते थे।


Bismillahir Rahmanir Rahim
आगा खां प्रथम
शियाओं के इस्मायली इमाम
His Highness

दर्जा 46वें निज़ारी इमाम
नाम हसन अली शाह
जन्म 1800
उपाधियां आगा खां प्रथम

अली · हसन · हुसैन
अस-सज्जाद • अल-बाक़िर • अस-सादिक़
इस्माइल • मुहम्मद
अहमद • अत-तक़ी • अज़-ज़क़ी
अल-मेहदी • अल-क़ायम • मन्सूर
अल-मुइज़ • अल-अज़ीज़ • अल-हाक़िम
अज़-ज़हीर • अल-मुस्तंशिर • निज़ार
अल=मुस्ता’ली • अल-अमीर • क़ासिम

आगा खां प्रथम · आगा खां द्वितीय
आगा खां तृतीय · आगा खां चतुर्थ

वे ईरान के केरमान प्रांत के प्रशासक थे और फतह अली शाह के प्रिय पात्र थे। ईरान के शाह ने 1818 में उन्हें आगा खां (मुख्य सेनापति) की उपाधि प्रदान की। मुहम्मद शाह के शासन काल में उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि उनकी पारिवारिक प्रतिष्ठा घटती जा रही है और उन्होने 1828 में विद्रोह कर दिया। वे हार गए और भागकर भारत आ गए। उन्होने प्रथम आंग्ल- अफगान युद्ध (1839-42) और सिंध की विजय (1842-43) में अंग्रेजों को मदद दी। उन्हें वजीफा प्रदान किया गया और वह बंबई (वर्तमान मुंबई) में बस गए। उन्हें अपने आध्यात्मिक अधिकार क्षेत्र के विरोध और सामुदायिक कोष पर अपने अधिकार के खिलाफ कानूनी मुकदमे के रूप में कुछ अनुयायियों का कुछ विरोध सहना पड़ा, लेकिन वे अपना मुकदमा (1886) जीत गए।[1]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. भारत ज्ञान कोश, खंड : 1, प्रकाशक: पोप्युलर प्रकाशन मुंबई, पृष्ठ संख्या : 119

देखें संपादित करें