आती रहेंगी बहारें
आती रहेंगी बहारें हिन्दी भाषा में बनी भारतीय धारावाहिक है, जिसका प्रसारण ज़ी टीवी पर 9 सितम्बर 2002 से 26 मार्च 2003 तक हुआ था। यह धारावाहिक दोस्तों के मध्य एक अटूट रिश्ते को दर्शाता है। जिसमें सभी बिना किसी इच्छा के एक दूसरे कि सहायता को तैयार रहते हैं।
आती रहेंगी बहारें | |
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शैली | ड्रामा |
निर्माणकर्ता | सिनेविस्तास लिमिटेड और बिगशॉट प्रोडक्शन्स |
विकासकर्ता | राधेश्याम राय |
लेखक | विपुल मेहता और जयेश पाटिल |
निर्देशक | अपूर्व आचार्य और अरविंद बब्बल |
अभिनीत | दिलीप थडेश्वर, पूजा घई रावल, मुन्नी झा, रागिनी शाह, हीरालाल ठक्कर, राजीव पॉल |
प्रारंभ विषय | "आती रहेंगी बहारें" द्वारा अमित कुमार |
मूल देश | भारत |
मूल भाषा(एँ) | हिंदी |
सीजन की सं. | 1 |
एपिसोड की सं. | कुल 118 |
उत्पादन | |
निर्माता | रीना वाधवा और प्रेम किशन |
संपादक | अंशुमा गुप्ता |
प्रसारण अवधि | 22 मिनट |
मूल प्रसारण | |
नेटवर्क | ज़ी टीवी |
प्रसारण | 9 सितंबर 2002 – 26 मार्च 2003 |
पटकथा
संपादित करेंयह कहानी डॉ॰ अमर के मध्य घूमती रहती है, जो एक अमीर व्यापारी का बेटा रहता है। जिसका एक अपना कपड़े का दुकान भी होता है। उसके पिता को अपने बच्चे के कार्यों पर गर्व होता है। लेकिन उसकी माँ उसके भाई के बात में आ कर यह सोचती है कि व्यापारी का बेटा व्यापारी ही बनेगा। अमर के दो बहुत अच्छे मित्र रहते हैं। पड्डी और मिलिन्द नाम के यह दोनों मित्र उसके बचपन से साथ रहते हैं। लेकिन इसमें तब मोड़ आता है जब अमर को यह पता चलता है कि उसे एक खतरनाक बीमारी हो गई है और उसका इलाज नहीं है। इसके बाद अमर यह निर्णय लेता है कि वह उससे प्यार करने वालों अपने से दूर कर देगा जिससे उसके मरने के बाद कोई भी उसे याद न करे।