डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये (6 फरवरी 1906 - 08 अक्टूबर 1975) प्राकृत एवं जैनविद्या के विद्वान थे। उन्होंने अपने को जैन अध्ययन के लिए समर्पित कर दिया और जैनविद्या पर कई पुस्तकों की रचना की। उन्हें भारत के साथ-साथ विदेश में भी पहचान एवं सराहना मिली। 1967 में श्रवणबेलगोला में आयोजित 46वें कन्नड़ साहित्य सम्मेलन के वे अध्यक्ष थे [1]

ए०एन० उपाध्ये
जन्म 6 फ़रवरी 1906
मौत 8 अक्टूबर 1975(1975-10-08) (उम्र 69 वर्ष)
शिक्षा गिल्गिंची अर्तल हाई स्कूल बेलगाँव

प्रारंभिक जीवन

संपादित करें

उनका जन्म 2 जून 1906 को बेलगाम जिले के चिक्कोडी तालुका के सदलगा में जैन पुजारी ( उपाध्याय ) के परिवार में हुआ था। कन्नड में उनकी प्राथमिक शिक्षा उनके माता-पिता द्वारा प्रदान की गई थी। [2]

डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये ने अपनी प्राथमिक शिक्षा सदलगा में और माध्यमिक शिक्षा गिलगिंची आर्टल हाई स्कूल, बेलगाम में पूरी की। इसके बाद उन्होंने मुम्बई विश्वविद्यालय से संस्कृत और प्राकृत भाषाओं में ऑनर्स के साथ कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बाद में, वह पोस्ट-ग्रेजुएशन के लिए पुणे चले गए और भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट में शामिल हो गए। 1930 में उन्होंने उसी विश्वविद्यालय से संस्कृत और प्राकृत भाषाओं में एम॰ए॰ की डिग्री पूरी की। [3]

डॉ० ए०एन० उपाध्ये ने 1930 में राजाराम कॉलेज, कोल्हापुर में प्राकृत के व्याख्याता के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने राजाराम कॉलेज में पूरे 32 वर्ष सेवा की और 1939 में मुम्बई विश्वविद्यालय से डी०लिट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने 1939 से 1942 तक बॉम्बे यूनिवर्सिटी के स्प्रिंगर रिसर्च स्कॉलर के रूप में खुद को समर्पित किया। 32 वर्षों की निष्ठावान सेवा के बाद 1962 में वे राजाराम कॉलेज से सेवानिवृत्त हुए। बाद में, वह 1962 से 1971 तक प्रोफेसर एमेरिटस के रूप में शिवाजी विश्वविद्यालय में शामिल हुए। इस अवधि के दौरान उन्होंने कला विभाग के डीन के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने शिवाजी विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ. एजी पवार के साथ मिलकर काम किया और नवगठित विश्वविद्यालय के लिए एक मजबूत नींव रखने के लिए भी कड़ी मेहनत की। [3]

अंतिम वर्ष और मृत्यु

संपादित करें

1971 में वे मैसूर विश्वविद्यालय में संस्थापक प्रोफेसर और जैन चेयर के प्रमुख बने। इस भूमिका में, वह विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर जैनोलॉजी और प्रांकृत विभाग की स्थापना के पीछे प्रेरक शक्ति थे। उनके जीवन और कार्य को मराठी पुस्तक "चरित्र त्यान्चे पाहा जारा" में चित्रित किया गया है। [4]

मैसूर विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त होने के कुछ ही दिनों के भीतर 08 अक्टूबर 1975 को कोल्हापुर स्थित उनके घर पर दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। [3]

  1. Kannada Sahitya Sammelana India, Accessed on 11 November 2014
  2. "Dr. A.N. Upadhye - His Life And Accomplishments: 1.1 Important Stages In His Life @ HereNow4U". HereNow4U: Portal on Jainism and next level consciousness (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-08-08.
  3. Dr. A.N. Upadhye - His Life And Accomplishments India, Accessed on 11 November 2014
  4. Joharapurkar, Amit (2023). Charitra Tyanche Paha Jara. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789391708146.