आनुवंशिक विविधता (Genetic diversity) का आशय एक ही प्रजाति के विभिन्न जीवों के जीनों में होने वाले परिवर्तन से है। इसके कारण ही जीवों में भिन्न-भिन्न नस्लें देखने को मिलती हैं। यह विविधता ही जीवों को किसी दूसरे पर्यावरण के अनुकूल स्वयं को ढालने में सहायता करती है और विलुप्त होने से बचाती है।

कृषि में उपयोग

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जब मनुष्यों ने फसल उत्पादन का कार्य शुरू किया था, तब वे मुख्य रूप से कुछ चुनिन्दा फसलों फसलों की ही खेती कर रहा था। इस तरह से एक खेत में लगभग सारे पौधे एक ही आनुवांशिक रूप से समान होने के कारण किसी भी प्रकार की बीमारी पर वह सारे फसल को प्रभावित कर देता था, इस प्रकार सारा फसल खराब हो जाता था। इस प्रकार से यदि मनुष्य किसी खास प्रजाति का ही फसल अपने खेत में उगाया है, और कोई जीवाणु उस प्रजाति पर प्रभावी रूप से हमला करने में सक्षम है तो इससे पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी। हालांकि यदि फसलों में आनुवंशिक विविधता की स्थिति में पूरे फसल के नष्ट होने का खतरा काफी कम हो जाता है।

19वीं सदी में आयरलैंड में भी ऐसे ही एक घटना हुई थी, जिसमें फसलों में विविधता न रखना बहुत विनाशकरी सिद्ध हुआ। जैसा कि आपको पता होगा कि आलू के पौधे किसी बीज से पैदा नहीं होते, बल्कि पौधे के भाग से ही पैदा होते हैं, जिसके कारण उनमें आनुवांशिक विविधता बन नहीं पाता है। विशेष रूप से यदि पूरी फसल किसी एक आलू से तैयार की गई हो। यही कारण एक महामारी को जन्म दे देता है। 1840 के दशक में आयरलैंड के लोग मुख्य रूप से अपने भोजन के लिए आलुओं पर ही निर्भर थे। वे अपने इस भोजन के लिए आलू की एक प्रजाति "लुंपर" की खेती कर रहे थे। यह प्रजाति फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टन्स नामक एक सड़ांध पैदा करने वाले ओमीसायट के लिए अतिसंवेदनशील था। इसके परिणामस्वरूप जब इसने फसल पर हमला किया तो सारा फसल सड़ गया और दस लाख लोग भुखमरी से मरने की कगार पर आ गए थे।

बाहरी कड़ियाँ

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