आम्रपाली
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आम्रपाली बौद्ध काल में वैशाली के वृज्जिसंघ की इतिहास प्रसिद्ध लिच्छवि राजनृत्यांगना थी।[1] इनका एक नाम 'अम्बपाली' या 'अम्बपालिका' भी है। आम्रपाली अत्यन्त सुन्दर थी और कहते हैं जो भी उसे एक बार देख लेता वह उसपर मुग्ध हो जाता था।[2] अजातशत्रु उसके प्रेमियों में था और उस समय के उपलब्ध सहित्य में अजातशत्रु के पिता बिंबसार को भी गुप्त रूप से उसका प्रणयार्थी बताया गया है। कुछ साहित्य में ये भी वर्णित है की अजातशत्रु पुत्र और बिंबिसार के पौत्र उदयभद्र को भी आम्रपाली से प्रणय करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।[1] आम्रपाली को लेकर भारतीय भाषाओं में बहुत से काव्य, नाटक और उपन्यास लिखे गए हैं।
आम्रपाली | |
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महात्मा बुद्ध का स्वागत करती हुई आम्रपाली | |
जन्म |
600-500 BCE वैशाली |
मौत | वैशाली |
पेशा | नृत्यांगना |
प्रसिद्धि का कारण | नगरवधू (राजनृत्यांगना) of the republic of वैशाली |
अंबपाली बुद्ध के प्रभाव से उनकी शिष्या हुई और उसने अनेक प्रकार के दान से बौद्ध संघ का महत् उपकार किया। उस युग में राजनर्तकी का पद बड़ा गौरवपूर्ण और सम्मानित माना जाता था। साधारण जन तो उस तक पहुँच भी नहीं सकते थे। समाज के उच्च वर्ग के लोग भी उसके कृपाकटाक्ष के लिए लालायित रहते थे। कहते हैं, भगवान तथागत ने भी उसे "आर्या अंबा" कहकर संबोधित किया था तथा उसका आतिथ्य ग्रहण किया था। धम्मसंघ में पहले भिक्षुणियाँ नहीं ली जाती थीं, यशोधरा को भी बुद्ध ने भिक्षुणी बनाने से मना कर दिया था, किंतु आम्रपाली की श्रद्धा, भक्ति और मन की विरक्ति से प्रभावित होकर नारियों को भी उन्होंने संघ में प्रवेश का अधिकार प्रदान किया।
प्रारंभिक जीवन
संपादित करेंआम्रपाली या अंबापली का जन्म लगभग 600-500 ईसा पूर्व अज्ञात अभिभावकों से हुआ था, और उसका नाम आम्रपाली इसलिए दिया गया था क्योंकि उनके जन्म के समय वे वैशाली के एक शाही उद्यान में एक आम के पेड़ के नीचे अनायास पाई गई थी।[3] व्युत्पत्ति के अनुसार, उनके नाम दो संस्कृत शब्दों के संयोजन से प्राप्त हुए हैं: "अमरा", जिसका अर्थ है आम और "पल्लवा", जिसका अर्थ है युवा पत्ते या स्प्राउट्स। एक युवा युवती के रूप में, वह असाधारण रूपवती थी। ऐसा कहा जाता है कि वैशाली नगरी का एक सामंती माली महानामन ने आम्रपाली को सर्वप्रथम देखा था। आम्रपाली की अप्रतिम सौंदर्य और रूप की आभा को उसने भाप लिया था। महानामन वैशाली के धिकृत कानून से वाकिफ था। इसलिए उसने वह आम्रपाली नगरी को छोड़कर अपने अम्बारा गांव आगया था। वैशाली में एक छोटा गांव था अंबारा। चुकी महानामन की पत्नी की कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने आम्रपाली को अपने पुत्री के रूप में पाला था। समय बीतता गया और अंबपाली किशोरावस्था को प्राप्त हुई। पाली की अद्वित्य सौंदर्य का पुरे गांव में चर्चा थी। लंबा कद, दूधिया रंग, एक पतली दुबली बालिका जिसके एक झलक पाने के लिए पुरुष उसके घर के आगे पीछे चक्कर लगाया करते थे। अंबपाली की सहेलियां तो काफी सारी थी परंतु मित्र एक ही था जिसका नाम पुष्पक कुमार था। दोनो एक उम्र के ही थे। पाली और पुष्पक कुमार दोनो में अच्छी मित्रता थी वे एक दूसरे को खूब पसंद करते थे यहां तक के दोनों ने जीवनसाथी बनने का भी फैसला किया हुआ था। महानामन की भी स्वीकृति थी की जब अंबपाली पूर्ण रूप से व्यस्क हो जाएगी उसका विवाह पुष्पक कुमार से कर दिया जायेगा। [2]
समय बीतता गया और आम्रपाली ने पूर्ण रूप से यौवन को प्राप्त किया। २० वर्ष की आम्रपाली एक फूल की भाती खिल चुकी थी। उसकी यौवन की खुसबी अंबारा गांव और आसपास के सभी गांव में फैल चुकी थी हार जगह आम्रपाली की ही चर्चा थी। सभी पुरुष, चाहे वृद्ध हो या युवा, आम्रपाली को अपना बनाना चाहती था। उसके घर के बाहर हमेशा लोगो का ताता लगा रहता था। उसकी सिर्फ एक झलक पाने के लिए पुरुष प्रयासरत रहते थे। [3]
आम्रपाली एक पूर्ण स्त्री करूप में आ चुकी थी। बड़े और सुडोल स्तन, पतली कमर, भारी नितंब उसके सौंदर्य को अद्वित्य बना रही थी। गांव के सभी पुरुष महानामन पर पाली के विवाह के लिय दबाव बना रहे थे। दिन प्रति दिन गांव के पुरुषों में आम्रपाली को प्राप्त करने के हेतु आक्रोश बढ़ता जा रहा था। े
वैशाली जनपदकल्याणी और राजा मनुदेव
संपादित करेंप्राचीन वैशाली में जनपदकल्याणी को बहुत गरिमा प्राप्त थी। उसे देवी समझा जता था। जनपद कल्याणी को राज्य के द्वारा अनेक सुविधाएं भी प्राप्त होती थी और उसकी पहुंच जनपद के काफ़ी बड़े व्यक्तियों के साथ होती थी। जनपद कल्याणी तक पहुंच आम लोग से दूर थी सिर्फ समाज के बड़े पदों पे आसन्न व्यक्तियों जैसे रजा एवं सामंत और धनिक सेठी ही जनपदकल्याणी के प्रणय सुख का आनंद ले सकते थे। जनपद की सर्व सुंदरी रूपवती स्त्री जिसमे गायन, नृत्य, वाड इत्यादि कलाओं से सर्व गुण संपन्न युवती को जनपदकल्याणी पद पर चयनित लिया जता था । ऐसी स्त्री पूर्ण जीवन अविवाहित रहकर जनपद के पुरुषों के लिए समर्पित होती थी क्युकी युवा लिच्छ्वियो में ऐसी रूपसी के लिए कोई कलेश ना हो इसीलिए ये धिकृत कानून वैशाली जनपद में लागू था। [4]
आम्रपाली अपनी सहेलियों और पुष्पक कुमार के संग एक बार वैशाली नगरी गई थी। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी वैशाली नगरी में फाल्गुन मास का दिव्य मेला लगा था। लोगो का ताता लगा था दूसरे जनपदों के यात्री भी आए हुए थे। इस उत्सव में अगले जनपदकल्याणी का चुनाव भी होता हैं जिसमे वैशाली जनपद एवं आसपास के सभी गांव से रूपवती युवतियां जनपद कल्याणी के पद को प्राप्त करने हेतु प्रतिस्पर्धा करती थीं। अम्रपाली ने भी उस नृत्य प्रतियोगिता में भाग लिया और नृत्य किया हालाकि वह जनपदकल्याणी के पद और दायित्व से अज्ञात थी वह तो सिर्फ नृत्य के लिए गई थी। उसको नृत्य करता देख सभी पुरुष के होश खो गए। उसकी भरे यौवन सबके मदहोश किए हुए था। उसकी मृग चाल, कशा हुआ बदन, मृगनयनी नेत्र सभी पुरुषों को मंत्रमुग्ध कर गई थी। परिणाम घोषित हुआ और अंबपाली जनपदकल्याणी के रूप में चयनित होगुई।[5]
इसमें संदेह नहीं कि अंबपाली ऐतिहासिक व्यक्ति थी, यद्यपि कथा के चमत्कारों ने उसे असाधारण बना दिया है। संभवत वह अभिजात कुलीना थी और इतनी सुंदर थी कि लिच्छवियों की परंपरा के अनुसार उसके पिता को उसे सर्वभोग्या बनाना पड़ा। संभवत उसने गणिका जीवन भी बिताया। देवी आम्रपाली ने जरूर राजगणिका एवं राजनिर्तकी का पद संभाला था लेकिन वह किसी लिच्छवी को अपने बदन को हाथ भी नही लगाने देती। वह सिर्फ राजनर्तकी की भूमिका को निभा रही थीं। राजा मनुदेव ने हर संभव प्रयास कर किया देव को अपने बाहों में भरके सहवास करने का परंतु सफलता नही मिल पा रहीं थीं। अंततः मनुदेव ने कपट से देवी अंबपाली को अपने राजभवन नृत्य करने हेतु बुलावा भेजा और जब पाली वहा पहुंची तो उसने देवी अम्रपाली को कहा की यदि आज वह अपने आप को उसके चरणों में समर्पित नही करेंगी तो वह पुष्पक कुमार को मृत्यु दंड दे देगा चुकी मनुदेव ने पुष्पक कुमार को बंदी बना के पहले से ही रखा था। पहले तो अंबपाली ने इसे मिथ्या मानकर इंकार कर दिया लेकिन जब उसने पुष्पक कुमार की आवाज़ सुनी दूसरे कक्ष से तो वह सन्न रह गई। पाली तो ये मान रही थीं की पुष्पक कुमार मृत्यु को प्राप्त हो चुका परंतु आज जब उसने पुष्पक कुमार को रोता हुआ सुना तो वह मनुदेव के सामने गिर गिराने लगी की वह पुष्पक कुमार को छोर दे चुकी वह निर्दोष हैं। मनुदेव ने इंकार कर दीया ये कहते हुए की वह पुष्पक कुमार को किसी जाली अपराध में दोषी ठहराकर मृत्यदंड देगा। देवी आम्रपाली के सामने कोई विकल्प नहीं था चुकी यदि वह मनुदेव को इंकार करे तो पुष्पक कुमार को मृत्यु से नही बचा सकती, यदि वह गण सभा में सभी के सामने मनुदेव के कपट के बारे में कहे भी तो अंबपाली को अपने और पुष्पक कुमार के रिश्ते के विषय में सभी को ज्ञात हो जाएगा, जिससे सभी लिच्छविगण पुष्पक कुमार को द्वेष भावना में मृत्यु के घाट उतार देंगे, और पाली ये भी कैसे कहे की वह राजा मनुदेव का प्रणय निवेदन नही स्वीकार रही हैं जबकि नगरबधु और राजगणिका होते हुए उसका कर्तव्य हैं की वह प्रणय निवेदन स्वीकार करे। आम्रपाली जानती थी की गणसभा में उसके पक्ष में फैसला नही होगा चुकी अंबपाली सभी सभागणो की प्रणय निवेदन को ठुकराती जा रही थी। अंततः देवी अंबपाली ने पुष्पक कुमार के प्रेम के चलते खुद को मनुदेव के चरणों में अर्पित कर मनुदेव को रात का बुलावा भेजा अपने महल में। पुष्पक कुमार को मुक्त कर दिया मनुदेव ने और पूर्ण हर्षित हो देवी के महल गया। [6]
देवी अंबपाली ने रोज की भाती सभी लिच्छविगण एवम सेठी गण के समक्ष नृत्य किया और तत्पश्चात अपने कक्ष में प्रस्थान किया। सभा के सभी सदस्यों के प्रस्थान के पश्चात राजा मनुदेव को एक दासी ने कहा की देवी उनका अपने कक्ष में इंतज़ार कर रही हैं। मनुदेव पाली के कक्ष में गए जहा सिर्फ मोमबत्तियां थोड़ी सी रौशनी कर रही थी। देवी अंबपाली प्रस्तुत हुई मनुदेव ने उन्हें पकड़ कर गोद में बिठा लिया और उनके होठ चूमे जिसपे अंबपाली ने खुद को दूर करने की कोशिश की परंतु मनुदेव ने उन्हें खींचकर पलंग पर लिटा दिया और उनकी कंचुकी उतार दी। अंधेरे भवन में मानो जैसे रौशनी फूट गई जैसे ही पाली के सुडौल स्तन नग्न हुए। मनुदेव ने अपने कपास उतार फेके और पाली के दूधिया स्तनों में स्थान पाया। पाली की यह पहली प्रणव रात्रि थी उसकी हर चुम्बन पर आह निकल रही थी। फिर क्या था सिलसिला दोनो प्रेम रस में डूब गए। शुरुआत में इंकार करती हुई पाली भी मनुदेव के प्रेम रस से अछूता ना रह पाई और मन से प्रणय निवेदन में साथ दीया राजा मनुदेव का।
मनुदेव खुद को धन्य अनुभव कर रहा था खुद पर इतरा रहा था चुकी अभी तक किसीने देवी अंबपाली के स्तन भी नही देखे और उसने तो उनसे सुरा पान किया हैं। परंतु मनुदेव की ये सौगात सिर्फ चंद पलों की थी क्योंकि १ बार ही वह देवी अंबपाली का देव दुर्लभ सानिध्य प्राप्त कर पाया और इधर राजा बिम्बिसार का वैशाली भ्रमण का न्यौता आगया और बैशाली का गण तंत्र राजा बिम्बिसार को प्रसन्न करने हेतु जुट गए।[7]
मगढ़ नरेश बिंबिसार से भेट
संपादित करेंप्राचीन मगध साम्राज्य
मगध उस काल में सबसे ज्यादा शक्तिसाली एवं विस्तृत जनपद था। मगध साम्राज्य को फैलाने में बिंबिसर का बहुत योगदान था। उसने विस्तार के लिऐ परोशी जनपदों से युद्ध जीती, काफ़ी राजकुमारियों से विवाह किए जिसके फलस्वरूप उसे कई जनपद उपहार स्वरूप मिले, इस कारण बिम्बिसार एक महत्वाकांक्षी सम्राट था। उसके रनिवास में सैकड़ों रानियां, रखेली, दासियां थीं, परंतु बिंबिसार का मन रूपसी स्त्रियों से कभी नहीं भरता था जब कभी वह किसी रूपसी मोहिनी के विषय में जानता तुरंत उसे भोगने के लिए कामुक हों उठता। उसको कई पुत्र थे परंतु सर्वश्रेष्ठ पुत्र अजातशत्रु था। हालाकि बिंबिसार ५० वर्ष होते हुए भी मगध साम्राज्य संभाले हुए था परंतु उसके पश्चात उसने अजातशत्रु को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। बिंबसार की एक रानी लिच्छवि राजकुमारी चेलना थी, और इस फाल्गुन मास के उत्सव में वैशाली गणतंत्र से मगध सम्राट को न्यौता भेजा गया था। वैशाली एवम मगध जनपद दोनो गंगा नदी के तटों पर स्थित थे। वौशाली लिच्छवी जानते थे कि उन्हे मगध साम्राज्य से मित्रता बनाकर ही रखना चाहिए क्योंकि मगध से युद्ध में लिच्छिवी नहीं जीत सकते थे, अतः लिच्छवी राजकुमारी को मगध ब्याहा था ताकी दोनों जनपदों में मित्रता बनी रहे।[8]
मगध अमात्य की खोज
वैशाली जनपद की गरिमा एवं प्रसिद्धि दिन प्रतिदिन बढ़ती गई अंबपाली के जनपदकल्याणि बनने के पश्चात। वैशाली के आसपास एवं सुदूर सभी जनपदों में नगरबधु अंबपाली की चर्चा थी, दूसरे जनपदों के सामंत, सेठी गण, अमात्य, राजा ईत्यादि सर्व प्रकार के यात्री वैशाली आते और देवी अंबपाली के भवन में नृत्य एवम सुरापन करते थे। जो भी पाली को एक नज़र देखता उसका प्रेमी बन जाता और उसे भूजबंद में कैद करने के प्रयत्न करना परंतु पाली किसी को एक नज़र भी नही देखती थी। वह सभी को नृत्य से लुफ्त करती थी जिसके वह ५० कार्षापण लेती थी। कई जनपदों के राजा तो अपना सब कुछ उसके चरण में अर्पित किए हुए थे सिर्फ़ इक प्रणव रात्रि के लिए लेकिन आम्रपाली कोई भाव नहीं करती थीं। उसने अपने को समर्पण मजबूरी में सिर्फ एकबार राजा मनुदेव को किया था अपने बचपन के प्रेमी पुष्पक कुमार के प्राणों के लिए। देवी आम्रपाली तो मजबूरन इस घृणित पद को धारण किए हुए थी लेकिन मन से वह सिर्फ़ एस वैशाली नगरी एवम लिच्छ्वी पुरुष का विनाश चाहती थी ताकी उसके साथ किए गए अन्याय का हिसाब हों।[9]
मगध के एक अमात्य ने देवी अंबपाली के नृत्य देखा था, उसने देवी अंबपाली के अप्रतिम सौंदर्य को सिर्फ़ जानपद मगध की नगरसोभनी के रुप में होना चाहिए। एक बार बिंबिसर ने सभा में अपने अमात्यो से पूछा " आपने सभी जनपदों में सबसे रूपसी स्त्री किस जनपद में देखी है? मुझे बताओं ।" मगध अमात्य जिसने पाली को देखा था बोला " हे नरेश वैशाली जनपद की जनपद कल्याणी ऐसी मोहिनी हैं की उसके यौवन के समक्ष इंद्र की अप्सरा भी तेजहीन हैं। उसकी देव दुर्लभ सानिध्य तो इंद्र को भी प्राप्त नहीं हो सकती। पूर्ण स्त्री है वह, लंबा कद दूधिया रंग, बिंबाफल समान उसके सुडौल कुच, चौड़ी छाती, कटाव लिए कमर और उसके लम्बे बदन के अनुरूप आकर्षक नितम्ब। महाराज ऐसी स्त्री सैकड़ों वर्षों में एक बनाई जाती हैं विधाता के द्वारा, कोई संत, योगी, आत्मस्थित व्यक्ति भी अपने होश खो बैठे ऐसी हैं देवी आम्रपाली की यौवन। वैशाली जनपद की गरिमा एवं उनके राजकोस की वृद्धि का एकमात्र कारण हैं देवी अंबपाली। वैसे तो इनके एक इशारे पर अनेकों राजागण, सेठीगण, सामंती ख़ुद को उनके चरणों में न्यौछावर करदे परंतु देवी अंबपाली सबको तुच्छ जानकर ठुकरा देती हैं। हे नरेश, आपने अनेकों रूपसी रमणीया कामिनी स्त्रियों को भोगा हैं परंतु ऐसी अनेकों स्त्रियां मिलकर भी देवी अम्रपाली की बराबरी नहीं कर सकती। ऐसी मोहिनी मृगनयनी सिर्फ आपके भुजबंध की सोभा बनने योग्य हैं महाराज। २२ वर्षीय देवी अंबपाली बस एक वर्ष पूर्व ही बैशाली की जनपद कल्याणी बनाई गई है, कामुक लिच्छवियो ने बलात उसे इस पद पर विराजमान किया है। देवी आम्रपाली एक नगरसोभिनी होते हुए भी अक्षत्यौवना हैं नरेश। उन्होंने भले ही नगरसोभिनी पद को संभाला हुआ है परंतु उन्होंने वैशाली सभागन से वचन लिया था की कोई भी बलपूर्वक उनके साथ सहवास नहीं कर सकता। देवी आम्रपाली लिच्छ्वियो से घृणा करती हैं और सिर्फ़ अपनी मातृभूमि की एकता एवं लिच्छ्वियों में ग्रहयुद्ध ना हों इस कारण देवी आम्रपाली ने इस पद को स्वीकार्य लिया है। महाराज इससे पहले की कोई बलात या कपट से देवी अंबपाली संग समागम करे आप अपनें पौरुष से देवी आम्रपाली का कौमार्य क्षत करे। ऐसी मोहिनी, कंचन कामिनी, मृगनयनी रूपसी और किसी जनपद की सोभा नही हो सकती हैं। एकमात्र मगध साम्राज्य ही योग्य है ऐसी अमूल्य निधि का हे नरेश और एकमात्र मगध नरेश की गोद ही उचित स्थान हैं देवी आम्रपाली का " ये कहकर अमात्य अपनें आसन पर विराजमान हो गए। ऐसी विवेचना देवी आम्रपाली का सुनकर बिंबिसार का पौरूष जाग उठा, उसकी काम वासना वेग पर पहुंच गई थी। नरेश बिंबिसार हर पल एकमात्र देवी आम्रपाली का ख्याल कर रहे थे उनको देखने को बेचैन थे। आखिरकार उन्होंने अपने खास व्यक्ति वर्षकार को देवी आम्रपाली के विषय में जानकारी प्राप्त करने हेतु कहा। मगध वर्षकार मगध नरेश बिंबिसार का मुख्य अमात्य, एवम सबसे विश्वासपात्र था। वर्षकार का पिता विश्वासपात्र थे बिंबिसार के पिता नरेश भट्टीय के, इसीलिए वर्षकार बिंबीसार का खास बना, दोनों एक उम्र के ही हैं लगभग ५० के । वर्षकार हर परस्थिति में बिम्बिसार का साथी बनकर खरा रहा था चाहें युद्धस्थल हो कोई परिवारिक समस्या, युवराज अजातशत्रु को राजनीति एवम् कूटनीति सिखाने वाला भी वर्षकार था। अतः बिंबिसार ने वर्षकार को बुलवाकर अपने हृदय की शूल देवी आम्रपाली के विषय में बताया। वर्षकार ने आश्वस्त किया की एक दिन में वह देवी आम्रपाली के विषय में पूर्ण जानकारी लेकर बिंबिसार के समक्ष प्रस्तुत होगा। वर्षकार ने अगले दिन ही बिंबिसार को देवी आम्रपाली के विषय में पूर्ण जानकारी दी, उनके जन्म से लेकर के अभी तक सबकुछ बतला दिया। बिंबिसार ने कहा " तो जो कुछ भी अमात्य गोपाल ने बताया था सत्य था। वैशाली से न्यौता तो आया हैं फाल्गुन उत्सव का, इस तरह देवी आम्रपाली से भी भेट हो जाएगी। " वर्षकार बोला " हा नरेश, अंबपाली अद्वित्य स्त्री है, ऐसी के लिए तो वैशाली जनपद भी विजयी करनी पड़े तो भी कम हैं। कामलोलूप लिच्छवीगण इतनी आसानी से अपनी नागरवधु आपके हवाले करेंगे नहीं। पहले उन्हें भावी युद्ध से भयभीत करना परेगा ताकी वे देवी आम्रपाली को आपको अर्पित कर खुद की खैर करे। फिर आगे अगर आपको देवी पसंद आए तो उसका भी हल निकल जायेगा। " बिंबिसार ने कहा " हां सत्य है, वैशाली की जो जल के लिए नहर बनाई गईं हैं उसे भंग करवा दो।" नहर के भंग होने से वैशाली जनपद में बहुत दिक्कते होने लगी, लिच्छ्वियो ने युद्ध नही ठाना चुकी उन्हें मालूम था की वैशाली जनपद का सर्विनाश हों जायेगा क्योंकि मगध साम्राज्य सेना बल काफी शक्तिसाली थीं बनसपत वैशाली की सेना से। अतः वैशाली लिच्छवीगण ने इस समस्या पर नरेश बिंबिसार से वार्ता करने का हल निकाला गया।[10]
मगध नरेश का वैशाली आगमन
फाल्गुन मास के उत्सव में मगध सम्राट विंबिसार, रानी चेलना एवम् अमात्य वर्षकार संग आए। बैशाली राज्यसभा के सभी लिच्छ्वीगण ने उनका खूब आदर सत्कार किया। विभिन्न प्रकार के खाद्य व्यंजन, गायन नृत्य समारोह आयोजित किए गए, तत्पश्चात सुंदर रूपसी कन्याएं रात्रि में पेश की गई। लिच्छवी मगध नरेश के कामलिप्सा से ज्ञात थे इसी कारण उन्होंने देवी आम्रपाली का जिक्र भी कभी नहीं किया मगध नरेश के समक्ष, उन्हें पता था की मगध नरेश अवश्य देवी आम्रपाली को भोगना चाहेंगे जिसे लिच्छवी गण सभा ने स्वीकृति नहीं दी। इन सब आवभगत के पश्चात् जब सभा में लिच्छ्वियो ने नहर की समस्या मगध नरेश से कहा तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया और सभा से उठ कर चले गए। वर्षकार ने लिच्छ्वियो को कहा " महाराज को आपलोग प्रसन्न नहीं कर पाए लगता है" लिच्छवी गण के प्रमुख राजा मनुदेव ने कहा " परंतु हे वर्षकार हमलोग ने तो यथा शक्ति सब कुछ महाराज को भेट की। फिर महाराज को और हम क्या अर्पण कर आप ही कोइ युक्ति बतलाए?" जिसपे वर्षकार ने कहा "मनुदेव तुम किसी तुच्छ सामंत को प्रसन्न तो अवश्य कर लोगे परन्तु मगध नरेश को नहीं मत भूलो वे मगध साम्राज्य के सम्राट हैं और उनकी एक बेरुखी पे वे किसी भी जनपद को खाक में मिला सकते हैं" मनुदेव ने उत्तर दिया " हे अमात्य, आप ही बतलाए हम क्या करे?" " तुम्हारे जनपद की नगरसोभिनी देवी आम्रपाली को अर्पण करो संभवत महाराज प्रसन्न हो" " परंतु हे वर्षकार, देवी आम्रपाली तो वैशाली की नगरबधु हैं उन्हें कैसे अर्पण कर सकते हैं, क्षमा करें कोई और युक्ति बतलाए" मनुदेव किसी भी हाल में अंबपाली को अन्य पुरूष के साथ नहीं देख सकता था खासकर तब जब वह शत्रु जनपद का नृप हो। वर्षकार बोले "लिच्छवियो का जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है देवी आम्रपाली पर, यदि नहीं भेट कर सकते तो महाराज कदाचित नहर की अनुमति ना दे" कहकर अमात्य बर्षकार सभा से प्रस्थान किए। अब लिच्छवीगण विचार विमर्श कर रहे थे परंतु राजा मनुदेव हर कीमत पर देवी आम्रपाली को बिंबिसार के साथ नहीं बाटना चाहता था, उसने कहा "क्या हो गया है आप सब लोगो को उस नीच कामुक कुत्ता बिंबिसार के साथ आप देव दुर्लभ देवी आम्रपाली को बाटने की बात कर रहे हैं वो भी तब जब हमलोगों में से स्वयं किसीने अभी तक देवी आम्रपाली का भोग नहीं किया है" सारे लिच्छवी मनुदेव के ओर आश्चर्य से देखने लगे और उनमें से एक ने कहा "राजन बात तो सही कह रहे हैं अभी तक हम लोगो ने खुद देवी के नग्न रूप को निहार तक नहीं पाए हैं सर्वप्रथम देवी आम्रपाली पर अधिकार हमलोगो का है" सभी सदस्यों ने हा में हा मिलाया और कहा की "देवी आम्रपाली सिर्फ हमारे उपभोग के लिऐ है सिर्फ हमारे राग की रागिनी किसी अन्य पुरूष का उनपे कोई अधिकार नहीं है।" मनुदेव का उद्देश्य सिद्ध हों रहा था वो मगध से युद्ध का जोखिम उठाने को तैयार था परन्तु देवी आम्रपाली को अर्पण नही करना चाहता था चुकी वह जानता था की देवी आम्रपाली का अभिसार तो उसे प्राप्त हों चुका था, अब वह ना तो किसी अन्य लिच्छवी को ना ही नरेश बिंबिसार को आम्रपाली का देव दुर्लभ सानिध्य प्राप्त होने देना चाहता था। तभी कुछ वृद्ध लिच्छवीगण ने कहा "आप लोग काम वेग के अंतर्गत होश खो बैठे हैं आपको सामने प्रस्तुत सर्वनाश नहीं दिखाई दे रहा है। मगध नरेश यदि अप्रसन्न लौटे तो वैशाली के लिए बहुत घातक हों सकता है। संभवतः मगध किसी भी विषय को तिल का पहाड़ बना कर वैशाली पर चढ़ाई कर सकता हैं, याद रहे बिंबिसार घोर कामुक व्यक्ति है उसकी कामवेदना वैशाली से भावी युद्ध को जन्म दे सकती हैं। अंततः उचित यही है की देवी आम्रपाली मगध नरेश को अपना अभिसार अर्पण कर प्रसन्न करे, यही पुरे वैशाली के लिए उचित रहेगा।" तत्पश्चात सभी लिच्छवीगण देवी आम्रपाली को मगध नरेश बिंबिसार संग प्रणव रात्रि की स्वीकृति दे दी, हालाकि राजा मनुदेव ने स्वीकृति नहीं दी परंतु वो कुछ नहीं कर पाया।[11]
देवी आम्रपाली का पूर्ण श्रृंगार हुआ, और वे मगध नरेश के समक्ष प्रस्तुत हुई। सर्वप्रथम नृत्य तत्पश्चात सहवास हुआ । बिंबिसार ने जो देवी आम्रपाली का वर्णन अपने अमात्य से सुना था उससे बढ़कर उसने देवी आम्रपाली को पाया। बिम्बिसार ने देवी आम्रपाली के ओस्ठ चूमने चाहें पर देवी ने वचन मांगा की " हे देव, मैं अपने इस यौवन एवं बदन को आपको एक निवेदन पर सोपूंगी।" बिंबिसार ने कहा "कैसा निवेदन गणिके?" देवी आम्रपाली कुछ देर को खामोश रही, एक टीस सी हृदय में महसूस की दरअसल उन्हें कोई गणिका कहके नहीं संबोधित किया करता इसीलिए वे चौंक गई थी। देवी आम्रपाली बोलि " हे देव, मुझ असहाय अबला को बलपूर्वक इस घिरनित पद पर चयनित कर पदस्थ करना ये लिच्छ्वियो की उदंडता और कामपिपासा हैं। मैं चाहती हु की आप इन लिच्छ्वियो का अंत कर मुझे न्याय दे। मेरे इस मनोरथ को सिर्फ़ आप सफल कर सकते हैं। कृपया इस दासी को निवेदन स्वीकार करे।" देवी आम्रपाली के नेत्र भरे हुए थे उन कवल समक्ष दौ नेत्र में अश्रु देख बिंबसर ने प्रेम पूर्वक अश्रु पोछे और कहा " हे देवी आप निर्बल नहीं आपके इस यौवन सौंदर्य रूप में तो इतना तेज हैं की इस काल के समस्त राजागण, सेठिगण इत्यादि आपके एक इसारे पर भूमि और आकाश एक करदे वैशाली जनपद क्या चीज़ है। देवी आप समस्त संसार की अद्वित्य स्त्री है जो किसी पुरूष के जन्मों के फलस्वरूप विधाता से प्राप्त होती हैं। मेरे भाग्योदय हुआ जो आपका देवदुर्लभ सानिध्य मुझे प्राप्त हो रहा है। आप निश्चिंत रहें मैं बहुत समीप काल में ही वैशाली जनपद पर आक्रमण कर आपको इन भ्रष्ट लिच्छ्वियो से मुक्त करवाऊंगा।" " कोटि कोटि धन्यवाद हे देव मैं बस इतना ही आग्रह करना चाहती हु की ये जनपद वैशाली मेरी मां की तरह है। मैंने अपनी महतारी को तो देखा नही परन्तु वैशाली नगरी ही मेरी जननी है। परंतु इन कामलोलूप भ्रष्ट लिच्छ्वियो यहां कलंक की भाती हैं। आपसे इतना आवेदन हैं की मेरी वैशाली को स्वतंत्र एवं दीर्घायु ही रहने दीजिएगा। " "ऐसा ही होगा देवी आपकी इक्षा का मान रखना मेरा कर्तव्य हैं। अपने जैसा कहा वैसा ही होगा देवी।" कहते हुए बिंबिसार ने अंबपाली को गोद में बिताया और उनके होठ के चुंबन लिए। तत्पश्चात उनके केश खोले जो को काले बादलों की भाती लहरा उठी। कंचुकी चुस्त इतनी की कही खुद ना पाली के वक्षस्थल को छोर जाए। बिंबिसार लगातार पाली के होंठो, गालों को अपने होटों से चूमे जा रहा था और दूसरे हाथ उसने कंचुकी पीछे से खुल दी। अंधेरे भवन में दौ दीपक जल उठे और दूधिया रोशनी फैल गई। फिर क्या था, बिंबिसार ने देवी आम्रपाली की सुडौल कुचो को और उरोज किया उधर अंबपाली मीठी मीठी सी आहे भर रही थी। समय ठहर गया, पालीऔर बिंबिसार प्रेम रस में डूब गए। कब दोनों पूर्ण रूप से नग्न हों गए खबर नही हुईं। बिंबिसार नव यौवन के रस में भीग रहा था। वो पाली के स्तनों को चूमते हुए अपने दंत भी उसमें लगा दिए पाली सिहर उठी एक मीठा सा दर्द था, अपने स्तनों को बिंबिसार के भुजबंध से आज़ाद करवाया पर बिंबिसार ने अपने होटों को उसके होटों से मिला सहवास रत होगया। देवी आम्रपाली में मगध नरेश बिंबिसार ने प्रेम के बीज बोए और आम्रपाली ने पूर्ण हृदय से अपने कोख में बिम्बिसार के बीच को धारण किया।[12]
वैशाली मगध युद्ध
मगध सम्राट वापस मगध लौट आए पर बेचैन थे। हर पल देवी आम्रपाली का वो अद्वित्य मोहिनी काया, उनकी मृगनयनी भाव भंगिमा, उनके साथ सहवास सब बिंबिसार के मन पर छाया हुआ था। उन्होंने अमात्य वर्षकार को बुलवाकर अपना हाल बतलाया। वर्षकार ने कहा " महाराज, देवी आम्रपाली को मगध लाने के साथ हमे वैशाली से निश्चित रूप में युद्ध करना होगा। संभवत लिच्छवी अपने मित्र जनपदों को भी इस युद्ध में लाएगा। हमें कौशल नरेश प्रसेनजीत से युद्ध पर विमर्श करना चाहिए। युद्ध जितने के उपरान्त देवी आम्रपाली और आधी वैशाली मगध के आधीन होंगी और बाक़ी आधी कौशल नरेश प्रसेनजीत के।" बिंबिसार बोले "हा ये ठीक हैं चुकी प्रसेनजीत जैसे व्यक्ति यदि देवी आम्रपाली को देखले तो अपने भुजबंध में कैद करले इसलिए ये पहले निश्चित करना बेहतर है।"
युद्ध हुआ और बिंबिसार की जीत हुई। अंबपाली गर्भवती थी बिंबीसार के संतान से और आस में थी की मगध साम्राज्य की वो जल्द ही रानी बनेगी। बिंबिसार उसे गरिमा वापस लौटाएंगे। परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ। राजा मनुदेव ने मृत्यु से पहले अम्रपाली के जीवन में विष घोल दिया। उसने अमात्य वर्षकार को अपने और पाली के अभिसार के विषय में बता दिया, " वो बिम्बिसार तो मेरी जूठन चाटता है। देवी आम्रपाली पे सर्वप्रथम मैने अपने वीर्य से उसके बदन पे हस्ताक्षर किए थे। उसकी अक्षत्योनी को मैंने ही क्षत किया था। उस बिंबिसार ने तो सिर्फ़ मेरी थूक चाटी हैं। जा वर्षकार बता देना अपने महाराज उस कुत्ते बिंबिसार को की उसकी सर्वप्रिया स्त्री मेरी रखैल रह चुकी हैं, मेरी कुतिया रह चुकी है।" वर्षकार ने मनुदेव का अंत किया और ये बात बिंबिसार को बता दीया। पहले तो बिंबीसार के होश उड़ गए, उसकी सारी मीठी यादें ध्वस्त होगई। वो व्याकुल हो गया अति व्याकुल विक्षिप्त सा। वर्षकार ने कहा " महाराज अब जो होगया उसे बदला नहीं जा सकता, कृपया होश संभालिए। देवी आम्रपाली अद्वित्य स्त्री है, उनके जैसा सौंदर्य तीनों लोको में ढूंढने से नही मिलेगा। मेरी मानिए तो आप देवी आम्रपाली को अपना लिजिए। उन्हे मत त्याग्ये। ये युद्ध भी तो उन्हीं के लिए किया गया है। और देवी आम्रपाली को तो कोई भी आंखे मूंदकर भी अपना ले वो तो अंधेरी रात में सुहानी चांदनी की तरह है, जलते रेगिस्तान में मीठे रस की तरह है। प्रसेनजीत तो पाश्च्याताप कर रहे हैं की वो कैसे इतनी बड़ी भूल कर बैठे, इस युद्ध के फलस्वरूप वे आपको सारी बैशाली जनपद देकर भी देवी आम्रपाली का देव दुर्लभ सानिध्य प्राप्त करने हेतु तत्पर हैं, और आप सिर्फ क्षत योनि होने के कारण उन्हे त्यागने के विषय में विचार कर रहे हैं। " बिंबिसार बोला "नही वर्षकार ये गणिका मेरी जरूरत बन चुकी हैं उसकी बदन की गन्ध हर वक्त मेरी नथनो में रहती हैं, उसकी मखमली बदन मेरे बदन की आव्यस्कता हैं। मैं उसे त्याग नहीं सकता परंतु मै उसे रानी नहीं बनाऊंगा। वो गणिका थी गणिका ही रहेगी लेकिन अबसे मगध साम्राज्य की राज गणिका जिसपे सिर्फ़ मगध नरेश का अधिकार है। वो नृत्य पहले भी करती थी आगे भी करेंगी लेकिन सिर्फ़ मगध साम्राज्य के गणों के लिए। मै उसे अपनी रानी नहीं बनाऊंगा लेकिन वो मेरी रखैल बनेगी, मेरी पालतू कुतिया की तरह।"[13]
देवी आम्रपाली मगध साम्राज्य की राज गणिका बन गई। एकमात्र अधिकार सिर्फ़ बिंबिसार का था उसपे। देवी आम्रपाली बिंबिसार से प्रेम तो आगे ना कर पाई परंतु मगध नरेश के सभी इक्षाओ का आदर किया। देवी आम्रपाली बिंबिसार से ३० वर्ष छोटी थी उन्होंने अपने जीवन काल के यौवन के महत्वपूर्ण वर्ष मगध नरेश की दासी के रूप में व्यतित किया। २४ वर्ष से लेकर ३२ वर्ष तक अंबपाली मगध नरेश के नीचे रही उनकी सभी आज्ञाओं का पालन करते हुए। इस दौरान अंबपाली ने कई पूत जने। १ पुत्र विमल कोंडान्य जो सबसे ज्येष्ठ था और ४ पुत्री भी जनि थी उन्होंने बिंबिसार के वीर्य से। हालाकि पूत का बीज तो बिंबिसार ने देवी आम्रपाली को दिए थे परन्तु कुछ ऐसी भी राते थी जब देवी आम्रपाली के पलंग पर मगध नरेश नहीं अन्य पुरुष ने अंबपाली के यौवन का रसपान किया, ये अति सौभाग्यवान पुरुष थे बिंबिसार के पौत्र उदयन, जो की पाली से १० वर्ष छोटा था , परन्तु किशोरावस्था से ही उदयन अति कामुक था। जब उसने एकबार अपने दादा बिंबिसार को देवी आम्रपाली संग सहवास करते छिपकर देखा तो उसे भी देवी आम्रपाली की सुगठित, गदराई बदन भोगने का तीव्र इक्षा उठी। परंतु बिंबिसार ने हरगिज़ इंकार कर दिया और चेतावनी दी की ऐसी सोचना भी पाप है। फिर उदयन ने अमात्य वर्षकार से सहायता मांगी। वर्षकार भी देवी आम्रपाली के आक्रशक यौवन जो कि समय के साथ और भी निखरता जा सकता था, उसे छिपकर निहारता था, वर्षकार जानता था की हालाकि देवी आम्रपाली मगध नरेश की रानी नहीं बल्कि दासी है फिर भी बिंबिसार अंबपाली को किसी के भी संग नहीं बांटेगा वर्षकार को इस बात का ज्ञान था। इसलिए वर्षकार हस्तमैथिन से काम चलाता था। जब भी मगध नरेश देवी आम्रपाली के अभिसार में होते वो छिपकर दोनो को संभोग करते देखा करता जिसके लिऐ उसने दासियों को कुछ धनराशि देनी होती थीं। अब उदयन ने जबसे हठ ठानी हैं वर्षकार चाहता था की अगर वो नही देवी आम्रपाली के बदन को भोग सकता तो वो इस किशोर उदयन को अवश्य अंबपाली के देह का स्वाद चखआयेगा और वो छिपके दोनों को देखेगा। वर्ष्कर जानता था की बिंबिसार अपने पौत्र से सर्व अधिक प्रेम करता है, जब अजातशत्रु ने देवी आम्रपाली का अभिसार मांगा था तब दोनों बाप बेटे में बहुत कहा सुनी हुईं, लेकिन अब उदयन ने यही मांग की है तो बिंबिसार ने सिर्फ हल्की सी चेतावनी दी। अत्येव वार्सकर ने उदयन को युक्ति सुझाई की की वो हठ करे अपने दादा से और खाना त्याग दे जबतक उसकी शर्त स्वीकार नही हो जाती। अंततः वार्सकर ने बिंबिसार को बुझाया की उदयन भी शाही खून हैं इसलिए उसकी इक्षा का मान रखा जाए और बिंबिसार ने उदयन को उसके जन्मदिवस पर एक प्रणव रात्रि उपहार स्वरूप दिया और इस तरह उदयन ने अपनी १८ वर्ष के आयु में देवी आम्रपाली से सहवास किया जब वे २८ की आयु की थी।[14]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "इतिहास की सबसे खूबसूरत महिला को इसलिए बनना पड़ा था वेश्या, ये है कहानी / इतिहास की सबसे खूबसूरत महिला को इसलिए बनना पड़ा था वेश्या, ये है कहानी". मूल से 6 जून 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जून 2019.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जून 2019.
- ↑ "नगरवधू से साध्वी बन गई थी, सबसे खूबसूरत महिला आम्रपाली". मूल से 7 जून 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जून 2019.