पृथ्वी से लगभग 80 किलोमीटर के बाद का संपूर्ण वायुमंडल आयानमंडल कहलाता है। आयतन में आयनमंडल अपनी निचली हवा से कई गुना अधिक है लेकिन इस विशाल क्षेत्र की हवा की कुल मात्रा वायुमंडल की हवा की मात्रा के 200वें भाग से भी कम है। आयनमंडल की हवा आयनित होती है और उसमें आयनीकरण के साथ-साथ आयनीकरण की विपरीत क्रिया भी निरंतर होती रहती हैं। प्रथ्वी से प्रषित रेडियों तरंगे इसी मंडल से परावर्तित होकर पुनः प्रथ्वी पर वापस लौट आती हें। आयनमंडल में आयनीकरण की मात्रा, परतों की ऊँचाई तथा मोटाई, उनमें अवस्थित आयतों तथा स्वतंत्र इलेक्ट्रानों की संख्या, ये सब घटते बढ़ते हैं।

वायुमण्डल और आयनमंडल का पारस्परिक सम्बन्ध

आयनमंडल की परतें

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आयनमण्डल की परतें

आयनमंडल को चार परतों में बाँटा गया है। पृथ्वी के लगभग 55 किलोमीटर के बाद से डी परत प्रारंभ होती है, जैसा चित्र में दिखाया गया है।

डी परत के बाद ई-परत है जो अधिक आयनों से युक्त है। यह आयनमंडल की सबसे टिकाऊ परत है और इसकी पृथ्वी से ऊँचाई लगभग 145 किलोमीटर है। इसे केनली हेवीसाइड परत भी कहते हैं।

तीसरी एफ-वन परत हैं। यह पृथ्वी से लगभग 200 किलोमीटर की ऊँचाई पर हैं। गरमियों की रातों तथा जाड़ों में यह अपनी ऊपर की परतों में समा जाती है।

अंत में 240 से 320 किलोमीटर के मध्यअति अस्थि एफ-टू परत हैं।

आयनमंडल की उपयोगिता

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रेडियो तरंगें (काले रंग में) आयनमण्डल से परावर्तित होकर पृथ्वी पर लौटती हैं जो अधिक दूर तक संचार करने में सहायक होता है।
 
अधिकतम प्रयुज्य आवृत्ति तथा निम्नतम प्रयुक्त आवृत्ति

रेडियो तरंगों (विद्युच्चुंबकीय तरंगों) के प्रसारण में सबसे अधिक है। सूर्य की पराबैगनी किरणों से तथा अन्य अधिक ऊर्जावाली किरणों और कणिकाओं से आयनमंडल की गैसें आयनित हो जाती हैं। ई-परत अथवा केनली हेवीसाइड परत से, जो अधिक आयनों से युक्त है, विद्युच्चुंबकीय तरंगें परावर्तित हो जाती हैं। किसी स्थान से प्रसरित विद्युच्चुबंकीय तरंगों का कुछ भाग आकाश की ओर चलता है। ऐसी तरंगें आयनमंडल से परावर्तित होकर पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर पहुँचती हैं। लघु तरंगों (शार्ट वेव्स) को हजारों किलोमीटर तक आयनमंडल के माध्यम से ही पहुँचाया जाता है।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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