डिबेंचर

यह एक ऋण का एक साधन है जिसके माध्यम से सरकार या कंपनियां धन जुटाती हैं। यह इक्विटी शेयरों से भिन्न होता है। डिबेंचर खरीदने वाला वास्तव में कर्जदाता होता है। डिबेंचर जारी करने वाली कंपनी या संस्थान गिरवी के तौर पर कुछ नहीं रखती, खरीदार उनकी साख और प्रतिष्ठा को देखते हुए डिबेंचर खरीदते हैं। डीबेंचर जारी करने वाली कंपनी या संस्थान कर्जदाताओं (डिबेंचर खरीदने वालों को) निश्चित ब्याज देते हैं।

कंपनियां शेयरधारकों को भले ही लाभांश नहीं दे लेकिन उसे कर्जदाताओं (डिबेंचरधारकों) को ब्याज देना ही होता है। सरकार द्वारा जारी किया जाने वाला ट्रेजरी बॉन्ड या ट्रेजरी बिल आदि भी जोखिम रहित डिबेंचर ही होते हैं क्योंकि सरकार इस प्रकार के कर्ज चुकाने के लिए कर बढ़ा सकती है या अधिक नोटों का मुद्रण कर सकती है।

ऑफशोर फंड (Offshore Fund)

जिस फंड के अंतर्गत म्युचुअल फंड कंपनियां विदेश से धन जुटा कर देश के भीतर विनियोजित करती हैं उसे ऑफशोर फंड कहते हैं।

वेंचर कैपिटल (Venture Capital)

नये व्यवसाय की शुरुआत के लिए जुटाई जाने वाली पूंजी को वेंचर कैपिटल या साहस पूंजी या दायित्व पूंजी कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो निवेशकों द्वारा शुरु हो रही छोटी कंपनियों, भविष्य में जिनके विकास की प्रबल संभावना होती है, को उपलब्ध कराई जाने वाली पूंजी को वेंचर कैपिटल कहते हैं। कंपनियां ऐसी पूंजी जुटाने के लिए इक्विटी शेयर जारी करती हैं।

फॉरवर्ड सौदा (Forward Contract)

नकदी बाजार (शेयरों के मामले में) या हाजिर बाजार (कमोडिटी के मामले में) में किया जाने वाला सौदा जिसका निपटारा भविष्य की एक निश्चित तारीख को सुपुर्दगी के साथ निपटाया जाता है।

डेरिवेटिव (Derivative)

वैसी प्रतिभूति जिसका मूल्य उसके अंतर्गत एक या एक से अधिक परिसंपत्तियों के ऊपर निर्भर करता है या उनसे प्राप्त किया जाता है। डेरिवेटिव दो या दो से अधिक पक्षों के बीच किया जाने वाला करार है। इसका मूल्य निर्धारण उन परिसंपत्तियों के मूल्यों में होने वाले उतार-चढ़ाव के आधार पर किया जाता है। आमतौर पर ऐसी परिसंपत्तियों में स्टॉक, बॉन्ड, जिन्स, मुद्राएं, ब्याज-दर और बाजार सूचकांक शामिल होते हैं।

डेरिवेटिव का इस्तेमाल साधारणत: जोखिमों की हेजिंग के लिए किया जाता है लेकिन इसका प्रयोग सट्टेबाजी के उद्देश्य से भी किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर एक यूरोपियन निवेशक अमेरिकन कंपनी के शेयरों की खरीदारी अमेरिकन एक्सचेंज से (डॉलर का इस्तेमाल करते हुए) करता है।

शेयर अपने पास रखते हुए उसे विनिमय दर का जोखिम बना रहता है। इस जोखिम की हेजिंग के लिए वह निवेशक विशेष विनिमय दर के मुताबिक डॉलर को यूरो में परिवर्तित करना चाहेगा। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह मुद्रा की वायदा खरीद सकता है ताकि जब कभी वह अपना शेयर बेचे और मुद्रा को यूरो में परिवर्तित करे तो उसे विनिमय दर संबंधी हानि नहीं हो।

ओपेन एन्डेड फण्ड (Open Ended Fund)

सतत खुली योजनाएंम्युचुअल फंडों की वैसी योजनाएं जिनकी कोई लॉक इन अवधि (वह पूर्व-निर्धारित अवधि जिससे पहले निवेश किए गए पैसों की निकासी की अनुमति नहीं होती है) नहीं होती है। इनके यूनिटों की खरीद-बिक्री तत्कालीन शुध्द परिसंपत्ति मूल्य (एनएवी) पर कभी भी की जा सकती है।

प्रतिभूतियां (Securities)

प्रतिभूतियां लिखित प्रमाणपत्र होती हैं जो ऋण लेने के बदले दी जाती है। इनमें जारी करने के शर्र्तों एवं मूल्यों का उल्लेख होता है तथा इनका क्रय-विक्रय भी किया जाता है। सरकार द्वारा जारी किया जाने वाला बॉन्ड, तरजीही शेयर, ऋण पत्र आदि प्रतिभूतियों की श्रेणी में आते हैं। प्रतिभूति शब्द का इस्तेमाल व्यापक तौर पर किया जाता है।

शेयर विभाजन (Stock Split)

कोई कंपनी अपने महंगे शेयर को छोटे निवेशकों के लिए वहनीय बनाने और उसे आकर्षक बनाने के लिए शेयरों का विभाजन करती है। अगर कोई कंपनी अपने शेयरों का विभाजन 2:1 में करती है तो उसका मतलब होता है कि शेयरों की संख्या दोगुनी कर दी गई है और उसका मूल्य आधा कर दिया गया है।

मुद्रा का विनिमय मूल्य (Exchange Value of Money)

जब देश की प्रचलित मुद्रा का मूल्य किसी विदेशी मुद्रा के साथ निर्धारित किया जाता है ताकि मुद्रा की अदला-बदली की जा सके तो इस मूल्य को मुद्रा का विनिमय मूल्य कहा जाता है। वह मूल्य दोनों देशों की मुद्राओं की आंतरिक क्रय शक्ति पर निर्भर करता है।

मुद्रास्फीति (Inflation)

मुद्रास्फीति वह स्थिति है जिसमें मुद्रा का आंतरिक मूल्य गिरता है और वस्तुओं के मूल्य बढ़ते हैं। यानी मुद्रा तथा साख की पूर्ति और उसका प्रसार अधिक हो जाता है। इसे मुद्रा प्रसार या मुद्रा का फैलाव भी कहा जाता है।

मुदा अवमूल्यन (Money Devaluation)

यह कार्य सरकार द्वारा किया जाता है। इस क्रिया से मुद्रा का केवल बाह्य मूल्य कम होता है। जब देशी मुद्रा की विनिमय दर विदेशी मुद्रा के अनुपात में अपेक्षाकृत कम कर दी जाती है, तो इस स्थिति को मुद्रा का अवमूल्यन कहा जाता है।

रेंगती हुई मुद्रास्फीति (Creeping Inflation)

मुद्रास्फीति का यह नर्म रूप है। यदि अर्थव्यवस्था में मूल्यों में अत्यंत धीमी गति से वृद्धि होती है तो इसे रेंगती हुई स्फीति कहते हैं। अर्थशास्त्री इस श्रेणी में एक फीसदी से तीन फीसदी तक सालाना की वृद्धि को रखते हैं। यह स्फीति अर्थव्यवस्था को जड़ता से बचाती है।

रिकॉर्ड तारीख (Record List)

बोनस शेयर, राइट शेयर या लाभांश आदि घोषित करने के लिए कंपनी एक ऐसी तारीख की घोषणा करती है जिस तारीख से रजिस्टर बंद हो जाएंगे। इस घोषित तारीख तक कंपनी के रजिस्टर में अंकित प्रतिभूति धारक ही वास्तव में धारक माने जाते हैं। इस तारीख को ही रेकॉर्ड तारीख माना जाता है।

रिफंड ऑर्डर (Refun Order)

यदि किसी शेयर आवेदन पत्र पर शेयर आवंटन की कार्यवाही नहीं होती तो कंपनी को आवेदन पत्र के साथ संपूर्ण रकम वापस करनी होती है। रकम वापसी के लिए कंपनी जो प्रपत्र भेजती है उसे रिफंड ऑर्डर कहा जाता है। रिफंड ऑर्डर चेक, ड्राफ्ट या बैंकर चेक के रूप में होता है तथा जारीकर्ता बैंक की स्थानीय शाखा में सामान्यत: सममूल्य पर भुनाए जाते हैं।

लाभांश (Dividend)

विभाजन योग्य लाभों का वह हिस्सा जो शेयरधारकों के बीच वितरित किया जाता है, लाभांश कहा जाता है। यह करयुक्त और करमुक्त दोनों हो सकता है। यह शेयरधारकों की आय है।

लाभांश दर (Dividend Rate)

कंपनी के एक शेयर पर दी जाने वाली लाभांश की राशि को यदि शेयर के अंकित मूल्य के साथ व्यक्त किया जाए तो इसे लाभांश दर कहा जाता है। इसे अमूमन फीसदी में व्यक्त किया जाता है।

लाभांश प्रतिभूतियां (Dividend Securities)

जिन प्रतिभूतियों पर प्रतिफल के रूप में निवेशक को लाभांश मिलता है, उन्हें लाभांश वाली प्रतिभूतियां कहा जाता है। जैसे समता शेयर, पूर्वाधिकारी शेयर।

शून्य ब्याज ऋणपत्र (Zero Rated Deventure)

इस श्रेणी के डिबेंचरों या बॉन्डों पर सीधे ब्याज नहीं दिया जाता, बल्कि इन्हें जारी करते वक्त कटौती मूल्य पर बेचा जाता है और परिपक्व होने पर पूर्ण मूल्य पर शोधित किया जाता है। जारी करने के लिए निर्धारित कटौती मूल्य के अंतर को ही ब्याज मान लिया जाता है।


  • असंगठित क्षेत्र के उद्यम (informal sector enterprises) : 10 से कम श्रमिकों की संख्या वाले निजी क्षेत्र के उद्योग।
  • अदृश्य मदें (Invisible items) : पर्यटन, जहाजरानी, वायु परिवहन, बीमा बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं, सरकारी अनुदान, ब्याज, लाभ एवं लाभांश आदि चालू खाते की मदें जो सामान्यत: वस्तु के रूप में दिखाई नहीं देती है।
  • अनारक्षण (Dereservation)  : किसी व्यक्ति या उद्योग समूह को उन वस्तुओं के उत्पादन की छूट देना जो पहले किसी व्यक्ति या उद्योग समूह के लिए आरक्षित हो।
  • अवमूल्यन (Devaluation) : मुद्रा की विनिमय दर में गिरावट आना जिसके कारण विदेशी मुद्राओं की इकाइयों के रूप में आंतरिक मुद्रा की कीमत कम हो जाती है जिससे निर्यात सस्ते व आयात महंगे हो जाते हैं।
  • अवसर लागत (Opportunity cost) : यह किसी कार्य मूल्य मान के संदर्भ में परिभाषित की जाती है और अस्वीकार किए गए विकल्प के मूल्य के समान होती है।
  • आस्कमिक दिहाड़ी मजदूरी (Casual wages Labourer) : वैसे दैनिक मजदूर जो किसी उपक्रमों या खेतों में दैनिक मजदूरी के लिए काम करते हैं।
  • अपेक्षित मुद्रास्फीति (Anticipated inflation) : व्यवसायिक इकाइयों, श्रमिक संघ के पदाधिकारियों तथा उपभोक्ता द्वारा भविष्य में घटित होने वाली मुद्रास्फीति की दर अपेक्षित मुद्रा स्थिति कहलाती है।
  • अनुषंगी हितलाभ (fringe benefit) : किसी नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारियों को दी जानेवाली वे सुविधा जो निर्धारित वेतन के अलावा प्रदान की जाती है।
  • अवस्फीति (Deflation) : किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं की पूर्ति मुद्रा की पूर्ति से अधिक होती है, तो वस्तु की कीमत में गिरावट आती है, इससे मुद्रा का वास्तविक मूल बढ़ जाता है, परंतु इस दशा में कीमतों में गिरावट होने से वस्तुओं के उत्पादन में गिरावट होती है और कम उत्पादन होने से रोजगार में भी गिरावट आने लगती है।
  • अल्पाधिकार (Oligopoly) : बाजार में फर्मों की संख्या इतनी कम होती है कि उनके बीच निर्णय संबंधी पारस्परिक निर्भरता बनी रहती है और यह निकट स्थानापन्न वस्तुओं का उत्पादन करती हैं, जिससे बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होती है।
  • अनिवासी रुपया खाता (Non resident rupee account) : इसमें अनिवासी भारतीय द्वारा वाणिज्य बैंकों में भारतीय रुपए में खाता खोला जाता है तथा इन खातों के मूलधन एवं व्याज को बिना किसी करके जमाकर्ता को उसके देश में उसकी मुद्रा में वापस कर दिया जाता है।
  • अग्रामी दर (Forward rate) : मुद्रा विनिमय की इस प्रक्रिया में कोई मुद्रा अग्रवर्ती बाजार में भविष्य में हस्तांतरण के लिए जिस दर पर खरीदी या बेची जाती है।
  • अनुदान (Subsidy)  : सरकार द्वारा किसी उद्योग या व्यापार को किया गया वह भुगतान जिससे निर्यातक उद्योग को प्रोत्साहन प्राप्त हो या उत्पादित वस्तु की घरेलू बाजार में कीमत ना बढ़े इससे उद्योग व उपभोक्ता दोनों को लाभ पहुंचता है।
  • अति इष्ट राष्ट्र (Most Favored Nation)  : किसी देश द्वारा किसी अन्य देश को आयात निर्यात के संबंध में शुल्क में रियायत तथा अन्य सुविधा प्रदान करना।
  • अनौपचारिक क्षेत्र (Informal sector) : छोटे-मोटे श्रम प्रधान स्वरोजगार में लगे हुए लोगों द्वारा अर्थव्यवस्था में अप्रत्यक्ष योगदान देने वाला क्षेत्र।
  • अनुपार्जित आय (Unearned income) : चालू वर्ष में प्राप्त व्यक्ति आय जिसका चालू वर्ष से कोई संबंध नहीं होता है।
  • अमूर्त संपत्तियां (Intangible assets) : वैसे संपत्तियां जिनका मूल्य स्वामित्व के अधिकार से जुड़ा होता है जैसे पेंटेड, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क आदि।
  • अधिकृत पूंजी (Authorized capital) : किसी कंपनी द्वारा शेयर जारी करने के संबंध में पूंजी की अधिकतम सीमा यह अधिकृत पूंजी के बराबर या उससे कम हो सकती है लेकिन उससे अधिक नहीं।
  • अनुसूचित व्यापारिक बैंक (Scheduled commercial bank) : कुछ विशेष शर्तों के अधीन रिज़र्व बैंक की दूसरी अनुसूची में शामिल वाणिज्य बैंक।
  • अग्रणी बैंक (lead bank) : इस व्यवस्था की शुरुआत 1969 में की गई थी ,इसके तहत प्रत्येक जिले में किसी एक वाणिज्य बैंक को विशिष्ट कार्यक्रमों के संचालन विकास कार्य के लिए ऋण प्रदान करने वित्तीय संस्थाओं के बीच समन्वय का कार्य सौंपा जाता है।
  • आंतरिक अर्थव्यवस्था का एकीकरण (Integration of Domestic economy) : वैसी सरकारी नीति का निर्माण करना, जिसने अन्य देशों के साथ स्वतंत्र व्यापार और निवेश में वृद्धि हो सके तथा देश की व्यवस्था विश्व के संबंध में निर्भरता एवं एकता के साथ जुड़ सके।
  • आयात प्रतिस्थापन (Import substitution) : सरकार द्वारा आयात को नियंत्रित करने के लिए आयात शुल्क में वृद्धि तथा अन्य उपाय किए जाते हैं, जिस पर विदेशों से प्राप्त वस्तुओं का स्थान स्वदेश निर्मित वस्तुएं ले सकें।
  • आयात शुल्क बाधाएं (Import duty barriers) : सरकार द्वारा आयात पर लगाए गए कर।
  • आर्बिट्रेज़ (Arbitrage) : मुद्रा बाजार में किसी मुद्रा को कम मूल्य पर खरीदा जाए और उसे तुरंत दूसरे बाजार में अधिक कीमत पर बेच दिया जाए।
  • अतिरेक बजट (Surplus budget) : ऐसा बजट जिसमें सरकार द्वारा प्राप्त आय उसकी व्यय से अधिक होती है।
  • आनुपातिक कर (Proportionate tax) : एक निश्चित दर से लिया जाने वाला कर जिसकी दर में कराधान घटने व बढ़ने पर कोई परिवर्तन नहीं होता है।
  • आर्थिक समृद्धि (Economic prosperity) : किसी देश की अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि।
  • आकस्मिक निधि (Contingency fund) : भारतीय संविधान के अनुच्छेद 267 के अनुसार संसद द्वारा गठित एक निधि राष्ट्रपति की अनुमति से इसका उपयोग आकस्मिक घटनाओं के लिए होता है।
  • ऑपरेशन ट्विस्ट (Operation Twist) : अमेरिकी केंद्रीय बैंक द्वारा शुरू की गई ऐसी योजना जिसके तहत अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए दीर्घकालिक ब्याज दरों में कमी करना।
  • ऑफर डॉक्यूमेंट (Offer document) : किसी कंपनी के पंजीकरण अधिकारी तथा स्टॉक एक्सचेंज के पास जमा वैसी विवरण पुस्तिका जिसमें पब्लिक इश्यू के लिए जारी करने वाली सभी सूचना उपलब्ध होती हैं।
  • ऑडिट अकाउंट (Audit account) : स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध प्रत्येक कंपनी द्वारा अपना वार्षिक ऑडिट अकाउंट जारी किया जाता है इससे निवेशक निवेश से जुड़ी सभी सूचनाएं प्राप्त कर सकता है।
  • आर्थिक नियोजन (Economic planning) : आर्थिक संसाधनों का मूल्यांकन करना तथा योजनाबद्ध ढंग से आर्थिक विकास का लक्ष्य निर्धारित करना आर्थिक नियोजन कहलाता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरिंग सिस्टम (Electronic clearing system) : इसके तहत बैंकों द्वारा बिना पेपर चेक करते किसी व्यक्ति अथवा संस्था को धन आंतरिक किया जाता है।
  • ई गवर्नेंस (E-governance) : सभी सरकारी मंत्रालय एवं विभाग उनको कंप्यूटर आधारित नेटवर्क से जोड़ना, जिससे इन विभागों में गतिशीलता आपसी समन्वय तथा पारदर्शिता लाई जा सके।
  • ई-कॉमर्स (E-commerce) : व्यापार और वाणिज्य क्षेत्र में लेनदेन की प्रक्रिया में सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग ई-कॉमर्स कहलाता है।
  • ई-चौपाल (E-chaupal) : गांव में इंटरनेट के माध्यम से किसानों को कृषि की जानकारी बाजार की मांग विपणन एवं कृषि संबंधी नई जानकारी उपलब्ध कराता है, ई -चौपाल केंद्र की स्थापना सरकार निजी कंपनियों औद्योगिक प्रतिष्ठानों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा की जा रही है।
  • इकाई बैंकिंग (Unit banking) : अमेरिका में लोकप्रिय वैसी बैंकिंग प्रणाली जो सीमित क्षेत्र अपनी कुछ शाखा अथवा एक ही शाखा के माध्यम से अपने कार्यों का संचालन करती है।
  • उत्पादकता (Productivity) : श्रम या पूंजी की दक्षता में वृद्धि से उनकी उत्पादकता में भी वृद्धि होती है, यह शब्द परिश्रम के आगात की उत्पादकता के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है।
  • उपभोग समुच्चय (Consumption Basket)  : किसी परिवार द्वारा उपयुक्त वस्तुओं सेवाओं का समूह जिसका प्रयोग जनता के उपभोग के स्वरूप का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है, भारत में राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन उपभोग समुच्चय में 19 वस्तुएं सम्मिलित है; जैसे अनाज, दाल और दूध से बनी चीजें, खाद्य तेल, सब्जियां वस्त्रादि।
  • उद्यम (Enterprise) : वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन एवं वितरण करने वाला व्यक्ति या समूह के स्वामित्व वाला उपक्रम।
  • ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of energy efficiency)  : यह अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देने तथा विद्युत अपव्यय को रोकने के लिए उपाय करने वाली एक सरकारी संस्था है।
  • उपहार कर (Gift tax) : वह प्रत्यक्ष कर जो किसी व्यक्ति संस्था द्वारा किसी व्यक्ति या संस्था को भाग देने पर उपहार प्राप्त करता को अदा करना होता है।
  • उत्पादन फलन (Production function) : किसी वस्तु का उत्पादन उत्पादन के साधनों पूंजी श्रम तकनीक भूमि उद्यमी के प्रयोग का परिणाम होता है और इन साधनों की मात्रा के बीच जो तकनीकी फलनात्मक संबंध होता है उसे उत्पादन फलन कहते हैं।
  • एकाधिकारी तथा प्रतिबंध कार्य व्यापार अधिनियम (Monopolies and Restrictive Trade Practices Act) (1969)  : इस अधिनियम को व्यापारियों के एकाधिकार तथा अन्य जनहित बाधक व्यावहारिक प्रविष्टियों का नियमन करने के लिए लागू किया गया था।
  • एंजिल वक्र (Angel curve)  : जर्मनी के सांख्यिकी विद्वान एंजेल द्वारा आय तथा उपभोग के बीच संबंध को दर्शाने के लिए एक वक्र का निर्माण किया गया था, इस वक्र के अनुसार जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है वैसे व्यक्ति भोजन पर होने वाले व्यय प्रतिशत में कमी आती है।
  • एमोर्टाइजेशन (Amortization) : इसके तहत किसी ऋण के निर्धारित ब्याज का पूर्ण भुगतान किया जाता है।
  • एम्बार्गो (Embargo) : कोई देश है या कुछ देश मिलकर किसी विशेष देश के साथ कुछ किसी वस्तु अथवा संपूर्ण व्यापार बंद कर देने की स्थिति तथा उपदेश के जहाजों को अपनी सीमा में प्रवेश करने पर रोक लगाना।
  • एंबर बॉक्स (Amber box) : किसी देश द्वारा अपने किसानों को कृषि के क्षेत्र में प्रति बिजली उर्वरक कीटनाशक आदि प्रदान करना जिससे व्यापार में विसंगति उत्पन्न होती है।
  • एकाधिकार (Monopoly) : वैसी स्थिति जब किसी वस्तु का बाजार में कोई विकल्प ना हो।
  • एडवांस डिक्लाइन (Advance decline) : किसी का खास अवधि के दौरान मूल्यवृद्धि वाले शेयर एवं मूल्य हास प्रदर्शन प्रदर्शित करने वाले शेयर की संख्या का अनुपात।
  • अंश (Equities) : किसी कंपनी की चुकता पूंजी के समान मूल्यधारी अंश।
  • कर प्रतिकर (Cascading Effect) : एक प्रकार का दोहरा कर है जो किसी वस्तु के किसी कर के कारण बढ़े हुए कुल मूल्य पर लगाया जाता है।
  • व्यावसायिक कृषि (Occupational agriculture) : बाजार के लिए कृषि उत्पादन करना न कि व्यक्तिगत उपयोग के लिए।
  • कृषि बैंक (Agricultural bank) : कृषि कार्य के लिए वित्त व्यवस्था करने वाला बैंक।
  • काला धन (Black money) : सही या गलत तरीके से अर्जित किया हुआ वह धन जिसका लेखांकन नहीं हुआ होता था जिस पर कर नहीं दिया गया हो।
  • कॉल मनी (Call money) : कोई कंपनी शेयर जारी करते समय शेयर आवेदनकर्ता से शेयर मूल्य का भाग आवेदन पत्र के साथ ही प्राप्त कर लेती है और शेष राशि शेयरधारक से एक निश्चित तिथि तक कई किस्तों में लेती है।
  • कार्बन कर (Carbon tax) : इसके तहत उन ऊर्जा स्रोतों पर कर लगाया जाता है, यह वायुमंडल कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जित कर वैश्विक तापन को बढ़ावा देते हैं।
  • कार्बन गहन समृद्धि (Carbon intensive Growth)  : यह अर्थव्यवस्था की आर्थिक समृद्धि के लिए उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा के बीच आनुपातिक संबंध को व्यक्त करता है।
  • कार्टेल (Cartel) : एक समान वस्तुओं का उत्पादन करने वाली दो फार्मो के बीच मूल्य बढ़ा कर अधिक मुनाफा कमाने के लिए किया गया समझौता है।
  • कर्ब ट्रेंडिंग (Kerb trending) : स्टॉक एक्सचेंज मार्केट के बाहर प्रतिभूतियों की अवैध खरीद-फरोख्त।* क्रेता बाजार (Buyer’s market) : वह स्थिति जब बाजार में मांग की तुलना में पूर्ति अधिक होती है। इससे क्रेता लाभ की स्थिति में होते हैं।
  • कौण्ट्रेरियन शेयर (Contrarian share) : बाजार के रूख के विपरीत दिशा में कार्य करने वाला शेयर।
  • कागजी सोना (Paper gold) : अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा वर्ष १९६९ में अंतरराष्ट्रीय तरलता में वृद्धि के लिए अपने सदस्य देशों की जमा परिसंपत्तियों की माप के आधार पर आनुपातिक रूप से भारांश का वितरण जो मात्र खातों में लिखी गई मात्र होती है।
  • क्लोजिंग स्टॉक (Closing stock) : वर्ष के अंत में विक्रय से बच जाने वाला माल।
  • काला बाजार (Black market) : जमाखोरी द्वारा बाजार में कृत्रिम कमी पैदा करना, जिससे मूल्य बढ़ा कर अधिक लाभ कमाया जा सके।
  • गैर शुल्क बाधाएं (Non tariff barriers) : सरकार द्वारा आयात शुल्क से अलग लगाया गया आयात प्रतिबंध।
  • गिनी गुणांक (Gini coefficient) : यह आय में पाई जाने वाली असमानताओं को कोटि की माप करता है। इसका मान 0 और 1 के बीच होता है।
  • ग्रेशम का नियम (Law of Graysam) : इस नियम के अनुसार, किसी अर्थव्यवस्था में यदि एक साथ अच्छी और बुरी मुद्रा प्रचलन में हो तो बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को प्रचलन से बाहर कर देती है।
  • गुणात्मक माल (Qualitative service) : शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं जो अर्थव्यवस्था को दक्षता के उच्चतम स्थान प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती है।
  • घाटे की वित्त व्यवस्था (Deficit financing) : सरकार का व्यय राजस्व से अधिक होना तथा घाटे की पूर्ति के लिए मुद्रा छापना।
  • चौथी दुनिया (Fourth world) : अफ्रीका एवं एशिया के वे देश जहां नगण्य औद्योगिक उत्पादन, आधारभूत संरचना की कमी, आय एवं शिक्षा का स्तर निम्न है। ये देश विदेशी सहायता एवं ऋण पर हमेशा निर्भर रहते हैं।
  • चेक कलेक्शन (Cheque collection) : इसके तहत चेक को शहर के बाहर किसी अन्य स्थान पर भुगतान के लिए भेजा जाता है। बैंक इसके लिए ग्राहक से डाक व्यय एवं कमीशन लेती हैं।
  • जोखिम पूंजी (Venture capital) : ऐसे छोटे एवं नए संस्थान में पूंजी निवेश करना जहां अधिक जोखिम होता है।
  • टोबिन टैक्स (Tobin Tax) : अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता जेम्स टौबिन ने पर्याप्त संसाधन सजन के लिए 1978 ईस्वी में विदेशी मुद्रा के समस्त लेन-देन पर कर लगाने का सुझाव दिया था।
  • टैक्स हेवंस (Tax havens) : वह देश जहां विदेशी निवेशकों से बहुत कम दर पर आय कर और निगम कर वसूला जाता है, जिसका उद्देश्य विदेशी पूंजी को आकर्षित करना होता है।
  • टपकन सिद्धांत (Trickle Down Theory) : वह सिद्धांत जिसके तहत उच्च आर्थिक विकास लाभ ऊपर से छनकर समाज में निचले पायदान पर बैठे लोगों तक भी पहुंच सके।
  • नियति संवर्धन (Export promotion) : वैसी नीति अपनाना जिससे निर्यात संबंधी बाधाओं को दूर किया जा सके।
  • निम्न संतुलन फंदा (Low Level of Equilibrium Trap) : ऐसी अर्थव्यवस्था जहां प्रति व्यक्ति आय अत्यंत ही कम तथा जनसंख्या की वृद्धि दर उच्च होती है इसलिए यह देश हमेशा कम आय स्तर पर संतुलन की स्थिति में रहते हैं।
  • निवेशक की सीमांत उत्पादकता (Marginal Efficiency of capital) : प्रतिफल की वह प्रत्याशित दर है, जो किसी पूंजी परिसंपत्ति पर दिए गए निर्देशों से ब्याज की दर को छोड़कर सभी लागतें पूरी करने के बाद प्राप्त होती है।
  • नेट बैंकिंग (Net Banking) : इंटरनेट एवं कंप्यूटर की सहायता से घर बैठे बैंकिंग कार्य करना।
  • नकद साख खाता (Cash credit account) : इसमें खाताधारी को बैंक निश्चित मात्रा तक ऋण प्रदान करती है।
  • परिणात्मक प्रतिबंध (Quantitative restrictions) : आंतरिक उद्योगो के संरक्षण और भुगतान शेष के घाटे को कम करने के लिए देश में आयात होने वाली वस्तुओं की मात्रा नियत करना।
  • प्रतिष्ठान (Establishment) : ऐसे उद्यम जिनमें वर्ष की अधिकांश अवधि में पारिश्रमिक पाने वाला श्रमिक अवश्य कार्य करता है।
  • पूंजी उत्पाद अनुपात (Capital output ratio) : एक इकाई उत्पादन के लिए पूंजी की आवश्यकता मात्रा लगानी पड़ती है, जिसे पूंजी उत्पाद अनुपात कहते हैं।
  • प्रतिकारी शुल्क (counter vailing duty) : जब कोई देश निर्यात बढ़ाने के लिए अपने निर्यातकों को अनुदान प्रदान करता है तो दूसरा देश अपने बचाव के लिए उन वस्तुओं पर विद्यमान आयात करों में वृद्धि कर दे तो उसे प्रतिकारी शुल्क कहते हैं।
  • प्रधान ब्याज दर (Prime Lending rate) : बैंक अपने सर्वश्रेष्ठ ग्राहकों को जिस न्यूनतम दर पर ऋण देती है उसे प्रधान ब्याज दर कहते हैं।
  • पूर्ति का नियम (Law of Supply) : इस नियम के अनुसार कीमत तथा पूर्ति में प्रत्यक्ष संबंध होता है अर्थात् कीमतों में वृद्धि उत्पादकों को वस्तुओं की पूर्ति बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है तथा कीमत में कमी वस्तुओं की पूर्ति में कमी करने के लिए बाध्य करती है।
  • प्रारंभिक जमा (Primary deposit) : जमा कर्ता द्वारा जमा की जाने वाली वास्तविक मुद्रा के रूप में बैंक में जमा राशि।
  • पावक खाता चेक (Account Payee) : यह किसी चेक के बाई ओर ऊपर कोने में account pay only लिखा होता है तो उसे चेक का भुगतान केवल उसी व्यक्ति या संस्था के खाते में जमा करके हो सकता है।
  • बहुराष्ट्रीय निगम (Multinational Corporation) : जिस कंपनी के कार्य का विस्तार एक से अधिक देश में होता था। जिसका उत्पादन एवं सेवा सुविधाएं उस देश के बाहर भी संपन्न होता है।
  • ब्रिज लोन (Bridge loan) : कंपनीयों द्वारा अंतरिम अवधि के लिए बैंकों से लिया जाने वाला ऋण।
  • बैलेंस शीट (Balance sheet) : किसी व्यापारिक संस्थान का वह लिखा पत्र जिसमें किसी निश्चित तिथि को उसके समस्त आस्तियों व देनदारियों को दिखाया गया है।
  • बॉण्ड अथवा डिबेंचर (Bond or debenture) : केंद्र सरकार राज्य सरकार अथवा किसी संस्थान द्वारा ऋण लेकर जारी किया जाने वाला ऋण पत्र जिस पर संबंधित संस्थान धारक को निश्चित दर पर ब्याज भी प्रदान करती है।
  • धारक बॉण्ड (Bearer bond) : वह ऋण पत्र जिसकी परिपक्वता अवधि पर कोई भी भुगतान प्राप्त कर सकता है।
  • भागीदारी नोट्स (Participatory notes) : विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा उन निवेशकों को निर्गत किए जाते हैं, जो भारतीय पूंजी बाजार में निवेश करना चाहते हैं, किंतु अपना रजिस्ट्रेशन सेवी के पास नहीं करना चाहते।
  • म्यूच्यूअल फंड (Mutual fund) : यह शेयर बाजार में निवेश की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक मध्यस्थ संस्था छोटे निवेशकों की बचतों को अपने अनुभव तथा कुशलता के विभिन्न शेयरों में निवेश करती है, जिससे उनके बाजार जोखिम में कमी होती है तथा निवेश पर उच्च प्रतिफल प्राप्त होता है।
  • मध्य पतन व्यापार (Entrepot Trade) : लंदन तथा सिंगापुर जैसे पतन जो आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का आयात करके उन्हें उसे पुनः दूसरे देशों को पुननिर्यात कर देते हैं।
  • मार्जिन फंडिंग (Margin funding) : शेयर ब्रोकर द्वारा निवेशकों से खरीदे गए शेयर के एवज में स्टॉक एक्सचेंज से वसूली गई राशि।
  • मूर्त संपत्तियां (Tangible assets) : भूमि-भवन मशीन इत्यादि ऐसी संपत्ति जिसे देखा और छुआ जा सके।
  • मोरेटोरियम (Moratorium) : कानून द्वारा ऋणों के भुगतान को टालने की अवधि।
  • मृत्यु कर (Death duty) : उत्तराधिकारी को अपने मृत अभिभावक से प्राप्त संपत्ति के स्थानांतरण के एवज में जो पाया जाने वाला प्रत्यक्ष कर।
  • माइक्रो क्रेडिट (Micro credit) : वह छोटी सी कर्ज राशि जो गरीब लोगों को अपनी आजीविका चलाने हेतु छोटे-मोटे कारोबार शुरू करने के लिए दिया जाता है।
  • माँग जमा (Demand deposit) : इसके अंतर्गत बैंकों में चालू खाते तथा बचत खाते में जमा राशियों को रखा जाता है, जिसे खाताधारक जब चाहे तब निकाल सकता है।
  • मुक्त बंदरगाह (Free port) : आयात निर्यात के लिए सीमा शुल्क तथा अन्य प्रकार के व्यापारिक नियंत्रण से मुक्त बंदरगाह।
  • मर्चेंट बैंकिंग (Merchant banking) : औद्योगिक तथा व्यापारिक संस्थाओं को बैंकिंग सुविधा के अलावा परामर्श आदि सुविधा उपलब्ध कराना।
  • योजक ऋण (Bridge loan) : शेयर जारी करके पूंजी जुटाने में कंपनियों को जो वक्त लगता है, इस अवधि में कंपनी द्वारा अपनी आवश्यकता के लिए बैंकों से लिया गया ऋण।
  • यात्री चेक (Travellers cheque) : वैसा चेक जिसे जारी करते समय एवं भुगतान करते समय दोनों बार आवेदक के हस्ताक्षर कराए जाते हैं, देशभर में संबंधित बैंकों को किसी नहीं खाता से भुगतान की सुविधा के कारण यह यात्रियों में काफी लोकप्रिय है।
  • राशिपातन (Dumping) : किसी वस्तु के अतिरिक्त भंडार को विदेशी बाजार में काफी कम मूल्य पर बेचना अथवा उसे नष्ट कर देना जिससे घरेलू बाजार में मूल्य स्तर को काफी नीचे गिरने से रोका जा सके।
  • लियोन्टीफ पैराडॉक्स (Leontief paradox) : जब विकसित देशों द्वारा पूंजी प्रधान वस्तुओं का आयात किया जाता है तथा श्रम प्रधान वस्तुओं का निर्यात किया जाता है तथा श्रम प्रधान देशों द्वारा श्रम प्रधान वस्तुओं का आयात एवं पूंजी प्रधान वस्तुओं का निर्यात किया जाता है तो इस अवस्था को लियोन्टीफ पैराडॉक्स कहते हैं।
  • वाणिज्य पत्र (Commercial paper) : वह असुरक्षित प्रपत्र जो किसी संस्था द्वारा अपनी अल्पकालिक वित्तीय आवश्यकता के लिए जारी किया जाता है।
  • वेबरीज वक्र (Website curve) : जो किसी अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी के स्तर तथा रोजगार उपलब्धता के संबंध को प्रदर्शित करने के लिए खींचा जाता है।
  • वृद्धिमान पूंजी निर्गत (ICOR) : अनुपात उत्पादन की एक अतिरिक्त इकाई के लिए लगने वाली पूंजी की अतिरिक्त इकाई।
  • विमुद्रीकरण (Demonetization) : सरकार द्वारा एकाएक पुरानी मुद्रा को समाप्त कर नई मुद्रा जारी करना विमुदीकरण कहलाता है, इस सफेद धन वाले तो अपनी मुद्रा बदल सकते हैं, परंतु काले धन वाले इसके लिए साहस नहीं कर पाते परिणाम तरह कालाधन अपने आप ही नष्ट हो जाता है।
  • विक्रेता बाजार (Seller market) : मांग अधिक होने एवं पूर्ति कम होने की स्थिति में व्यापारी द्वारा अधिक लाभ कमाने के लिए मनमानी कीमत बढ़ा देना इससे विक्रेता को फायदा होता है।
  • विनिमय नियंत्रण (Exchange control) : किसी देश द्वारा विदेशी मुद्रा के स्वतंत्र बाजार को नियंत्रित करके अपनी मुद्रा की विनिमय दर को अपने अनुसार नियंत्रित करना।
  • विनिमय पत्र (Exchange letter) : किसी व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर करके किसी अन्य व्यक्ति को आज्ञा देना कि वह एक निश्चित राशि का भुगतान किसी व्यक्ति को करें।
  • व्यक्तिगत प्रतिभूति (Personal security) : किसी व्यक्ति को छोटे-मोटे ऋण प्रदान करने के लिए उस व्यक्ति या तीसरे व्यक्ति के चरित्र संपत्ति तथा क्षमता को प्रतिभूति के रूप में स्वीकार करना।
  • विदेशी मुद्रा अनिवासी खाता (Foreign currency non resident accounts) : अनिवासी भारतीय द्वारा भारतीय बैंक में कुछ चुनी हुई मुद्राओं में खोला जाने वाला खाता विदेशों से अनिवासी भारतीय किसी भी रुप में अपना नकद इस खाते में जमा करा सकते हैं।
  • व्यक्तिगत ऋण (Personal loan) : किश्तों पर वापस किया जाने वाला ऐसा ऋण जो उपभोक्ता को कार, कंप्यूटर आदि उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद के लिए प्रदान किया जाता है।
  • स्विच ऑपरेशन (Switch operation) : इसके अंतर्गत रिज़र्व बैंक द्वारा अल्प अवधि के प्रतिभूतियों का क्रय किया जाता है तथा दीर्घ अवधि के प्रतिभूतियों का विक्रय किया जाता है इसका उद्देश्य प्रतिभूतियों की परिपक्वता अवधि को लंबा करना होता है।
  • स्वीट शेयर (Sweet shares) : किसी कंपनी द्वारा अपने कर्मचारी अथवा अन्य व्यक्ति को रियायती दर पर उपलब्ध कराया गया शेयर।
  • साख संकुचन (Credit squeeze) : मुद्रा स्थिति को रोकने के लिए केंद्रीय बैंकों द्वारा कम मात्रा में धन प्रदान करना जिससे बाजार में मुद्रा की मात्रा कम हो सके।
  • स्वर्णमान (Gold standard) : किसी देश की मुद्रा का मूल्य सोने में मापा जाना फिलहाल यह व्यवस्था किसी देश में नहीं है।
  • संयुक्त क्षेत्र (joint sector) : सरकार एवं निजी क्षेत्र के संयुक्त स्वामित्व वाला उद्योग।
  • सॉफ्ट करेंसी (Soft currency) : वैसी मुद्रा जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग की तुलना में पूर्ति अधिक हो।
  • सॉफ्ट लोन (Soft loan) : कम ब्याज एवं लंबी अवधि जैसी आसान शर्तों वाले ऋण।
  • सस्ती मुद्रा (Cheap money) : कम ब्याज दर पर प्राप्त की जाने वाली मुद्रा।
  • सरकारी प्रतिभूतियां (Government securities) : सरकारी प्रतिज्ञापत्र, राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र तथा राष्ट्रीय बचत योजना आदि सरकारी प्रतिभूतियां हैं।
  • सेमी बोम्बाला (Semi Bomble) : काला धन मुद्रा प्रसार कीमतों में वृद्धि जैसी समस्याओं को सुलझाने के लिए अर्थशास्त्रियों द्वारा तैयार किया गया किया गया प्रपत्र।
  • हवाला (Hawala) : इसके तहत अपने देश में घरेलू मुद्रा में जमा की गई राशि को दूसरे देश में विदेशी मुद्रा में कुछ शुल्क अदा करके प्राप्त किया जा सकता है।
  • हार्ड करेंसी (Hard currency) : विकसित देशों की मुद्राएं जिनकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में पूर्ति की तुलना में मां अधिक होती है।
  • हॉट मनी (Hot money) : शीघ्र पलायन की प्रवृत्ति रखने वाली विदेशी मुद्रा।
  • हीनार्थ प्रबंधन (Deficit finance) : बजट घाटे को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक से ऋण लेना अथवा अतिरिक्त पत्र मुद्रा जारी करना अर्थव्यवस्था में लंबी अवधि तक इस नीति को अपनाना उचित नहीं माना जाता है।
  • एर्गोनोमिक्स (Ergonomics) : ये किसी श्रमिक की कार्य क्षमता एवं उसके द्वारा किए जाने वाले वास्तविक कार्य के मध्य संबंध का अध्ययन करता है।
  • स्टैगफ्लेशन (Stagflation) : अर्थव्यवस्था की वह अवस्था जिसमें मुद्रास्फीति के साथ-साथ मंदी एवं बेरोजगारी की स्थिति होती है।
  • रिफ्लेक्शन (Reflection) : आर्थिक मंदी की अवस्था में सरकार द्वारा कुछ ऐसे कदम उठाए जाते हैं, जिससे लोगों की क्रय शक्ति में वृद्धि हो ताकि वस्तुओं की मांग बड़े इसके परिणाम स्वरुप मूल्य स्तर में जो वृद्धि होती है उसे रिफ्लेक्शन कहा जाता है।
  • तरलता जाल (Liquidity trap) : बहुत न्यूज़ ब्याज दरों पर लोग बांडों में निवेश करने की बजाय मुद्रा को लगती रखने का अधिमान देते हैं क्योंकि दोनों को खरीदने का अर्थ होगा निश्चित हानि जिसके कारण इस बिंदु पर मुद्रा की सट्टा मांग अनंत लोच की होती है अर्थव्यवस्था में बिंदु के इस भाग को ही तरलता जाल कहा जाता है।
  • मंदी (Depression) : जब बाजार में वस्तुओं की पूर्ति की तुलना में मांग कम हो जाती है तो कंपनियां अपनी वस्तुओं का उत्पादन कम कर देती है और अपने यहां कर्मचारियों की छटाई करती है परिणाम स्वरुप बेरोजगारी में वृद्धि होती है जिससे लोगों की क्रय शक्ति में कमी आती है जो कुल मांग को हटा देते हैं 1930 की विश्वव्यापी मंदी के दौरान कीन्स ने इसकी व्याख्या की थी।  
  • गरीबी रेखा (Poverty line) : आय का वह न्यूनतम स्तर जिसमें जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक वस्तुओं का क्रय किया जा सके उसको गरीबी रेखा के रूप में जाना जाता है। भारत में योजना आयोग ने गरीबी रेखा को परिभाषित करने के लिए न्यूनतम आवश्यकता एवं प्रभावी उपभोग मांग को आधार बनाया, जिसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्र में 200 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन निर्धारित किया गया।
  • जनांकिकी (Demography) : किसी देश की जनसंख्या वृद्धि जनसंख्या का भौगोलिक वितरण जन्म दर मृत्यु दर प्रबंधन शिक्षा स्तर आय स्तर इत्यादि का सांख्यिकी माध्यम से अर्थशास्त्र के अंतर्गत अध्ययन करना ही जनांकिकी कहलाता है।
  • व्यापार चक्र (Trade cycle) : व्यापार चक्र पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का अंग है यह अर्थव्यवस्था के चक्रीय तेज हो तथा मंदियों से संबंधित है व्यापार चक्र में कुल रोजगार उत्पादन तथा कीमत स्तर में तरंग की तरह उतार चढ़ाव आते रहते हैं।
  • बुल तथा बियर (Bull and beer) : शेयर बाजार में भाग लेने वाले ऐसे लोग जो उम्मीद करते हैं कि भविष्य में बाजार मूल्य बढ़ेगा तथा उन्हें लाभ होगा बुल कहलाते हैं तथा वे लोग जो बाजार का मूल्य गिरने की उम्मीद करते हैं वह बियर कहलाते हैं।
  • मांग की लोच (Elasticity of demand) : कीमत में होने वाले आनुपातिक परिवर्तन के कारण मांगी गई वस्तु की मात्रा में हुए आनुपातिक परिवर्तन के अनुपात को ही मांग की कीमत लोच कहते हैं अर्थात् कीमत में परिवर्तन से वस्तुओं की मांग में होने वाले विभिन्न परिवर्तनों की मांग को मांग की लोच कहा जाता है।
  • शून्य आधारित बजट (Zero based budget) : इसका निर्माण पीटर ए पायर ने सन 1959 में किया था इसके अंतर्गत बजट में पहले से शामिल किए जाने वाले प्रत्येक कार्यक्रम की आलोचनात्मक समीक्षा की जाती है और पुन: शून्य से प्रारंभ कर उपयोगिता के आधार पर धन का आवंटन किया जाता है, इस को ‘सूर्यास्त बजट प्रणाली’ भी कहा जाता है।
  • लिंग आधारित बजट (Gender based budget) : इस बजट के माध्यम से सरकार लिंगभेद समाप्त करते हुए महिलाओं तथा शिशुओं के विकास कल्याण सशक्तिकरण से संबंधित योजना एवं कार्यक्रमों के लिए प्रतिवर्ष बजट में एक निर्धारित राशि की व्यवस्था सुनिश्चित करती है।
  • विनिमय विपत्र (Exchange Order) – यह लेनदार द्वारा देनदार पर लिखा गया एक शर्त रहित पत्र आदेश है जो एक निश्चिय समय के पश्चात मांग पर विपत्र में लिखित राशि लेनदार या उसके आदेशित व्यक्ति को देय होता है।
  • पूर्ण प्रतियोगिता बाजार (Total competition market) : बाजार की ऐसी स्थिति जिसमें क्रेताओं तथा विक्रेताओं की संख्या इतनी अधिक हो कि कोई अपने व्यवहार से कीमत को प्रभावित न कर सके तथा इस बाजार में क्रेता एवम विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान हो और बाजार में बिकने वाली वस्तु की सभी कार्य पूर्ण रुप से सजातीय हो तो इस स्थिति में प्रत्येक विक्रेता एक ही मूल्य प्राप्त करता है जिसका निर्धारण मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है ऐसे बाजार को पूर्ण प्रतियोगी कहते हैं।
  • पेटेंट (Patent) : किसी शोध के परिणाम स्वरुप जब किसी नई वस्तु, मशीन इत्यादि का आविष्कार होता है तो सरकार इस आविष्कार पर शोधार्थी को पेटेंट प्रदान करती है जिससे शोधकर्ता अपने अधिकार के निषेध उपयोग का अधिकारी हो जाता है।
  • पोर्टफोलियो (Portfolio) : किसी निवेशकर्ता के पास उपलब्ध विभिन्न प्रकार की वित्तीय परिसंपत्तियों का संपूर्ण समूहों पोर्टफोलियो कहलाता है जैसे शेयर पत्र, सरकारी बॉन्ड तथा अन्य वित्तीय परिसंपत्तियां इत्यादि।
  • भागीदारी नोट्स (Partnership notes) : यह नोट विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा उन निवेशकों को निर्गत किए जाते हैं जो भारतीय पूंजी बाजार में निवेश करना चाहते हैं किंतु अपना रजिस्ट्रेशन सेबी के साथ नहीं करना चाहते।
  • जुड़वा घाटा (JOint deficit) : किसी भी अर्थव्यवस्था में बजटीय घाटा और भुगतान संतुलन के चालू खाते के साथ-साथ उपलब्ध होते हैं तो उसे जुड़वा घाटा कहते हैं।
  • IFC कोड : ‘इंडियन फाइनेंसियल सिस्टम कोड’ जो सामान्यतः 11 अंकों का प्रत्येक व्यक्ति के चेक पर छपा होता है इसमें पहले के चार अक्षरों में बैंक का नाम 10 तथा अंतिम 6 अंकों में बैंक ब्रांच से संबंधित विवरण रहता है।
  • NEFT प्रणाली : इंटरनेट के माध्यम से नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर के द्वारा एक लाख तक की धनराशि को एक बैंक से उसे तथा अन्य बैंक के खाते में खाताधारक द्वारा स्वयं ही हस्तांतरित किया जा सकता है।
  • RTGS प्रणाली : सामान्यतः एक लाख रुपए से अधिक की धनराशि को खाताधारक द्वारा इंटरनेट के माध्यम से रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट विधि से किसी भी खाता धारक के किसी भी बैंक के खाते में त्वरित रुप में भेजा जाता है।
  • नेट बैंकिंग : यह बैंकिंग की ऐसी प्रणाली है जिसमें आप घर बैठे बैठे इंटरनेट के माध्यम से अपने सभी बैंकिंग कार्यों का संचालन कर सकते हैं इसमें किसी तरह का भुगतान अपने अकाउंट में ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं तथा दूसरों को भुगतान भी कर सकते हैं जैसे बिजली और मोबाइल का बिल इत्यादि का भुगतान होता है।
  • GNP गेप : सकल राष्ट्रीय उत्पाद जो पूर्ण रोजगार स्तर से संबंधित हो तथा वास्तव में प्राप्त हो तो उन दोनों के अंतर को ही जीएनपी गैप कहते हैं।
  • स्टैग (Stag) : वे लोग जो प्राथमिक बाजार में ही विनियोग करते हैं द्वितीय बाजार में नहीं स्टैग कहलाते हैं।
  • ब्रिज ऋण (Bridge loan) : किसी परियोजना या प्रोजेक्ट की अस्थाई वित्त व्यवस्था को ब्रिज ऋण कहते हैं।
  • प्रबल धक्का सिद्धांत (Strong push theory) : इस सिध्दांत का प्रतिपादन रोजेस्टिन रॉडन ने किया इसके अनुसार अल्पविकसित देशों को गरीबी तथा पिछड़ेपन से बाहर निकालने के लिए यह आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था में एक बार एक बड़ा निवेश अवश्य किया जाए।
  • न्यूनतम क्रांतिक प्रयास (Minimal revolutionary effort) : न्यूनतम संतुलन प्रयास से बाहर निकालने के लिए लेबिस्टन ने न्यूनतम क्रांतिक प्रयास की अवधारणा दी जिसमें ऐसी अर्थव्यवस्थाओं में एक साथ बहुत अधिक मात्रा में निवेश संतुलित रुप से अनेक क्षेत्रों में किया जाए जिससे क्षेत्र दूसरे क्षेत्र के पूरा क्षेत्र के रूप में विकसित होगा तथा एक क्षेत्र दूसरे क्षेत्र के लिए बाजार का कार्य करेगा इससे अर्थव्यवस्था विकसित होती जाएगी।
  • ब्लूचिप शेयर (Bluechip share) : ऐसी कंपनियों के शेयर होते हैं जिनकी उद्योग जगत में बहुत अधिक ख्याति होती है यह स्थिर होते हैं और इनका बाजार पूंजीकरण बहुत अधिक होता है।
  • मूल्यनुसार कर (Valuable tax) : यह कर किसी वस्तु या सेवा के मूल्य के एक निश्चित भाग के रूप में लगाया जाता है, इस में जिस अनुपात में सेवा के मूल्य में वृद्धि होती है कर में उसी अनुपात में वृद्धि होती है।
  • प्रगामी कर (Progressive tax) : क्रमबद्ध कर व्यवस्था जिसमें अधिक आय श्रेणी वाले उचित दर पर कर अदा करते हैं अर्थात् आय में वृद्धि के साथ साथ कर में भी समानुपातिक वृद्धि होती रहती है।
  • कठोर मुद्रा (Hard money) : किसी भी देश की वह मुद्रा जो स्वर्ण या अन्य किसी देश की मुद्रा में आसानी से परिवर्तनीय है हार्ड करेंसी कहलाती है।
  • पूरक वस्तु (Complementary Goods) – यह भी वस्तुएं है जिनका आपस में संबंध इस प्रकार होता है कि वह एक वस्तु की कीमत में वृद्धि से दूसरी की मांग में कमी होती है तथा पहली वस्तु की कीमत में कमी से दूसरी वस्तु की मांग में वृद्धि होती है अर्थात् एक वस्तु की मांग में वृद्धि दूसरी वस्तु की मांग में वृद्धि लाती है तो कमी दूसरी वस्तु की मांग में कमी लाती है उदाहरण स्वरूप पेन और स्याही डबल रोटी और मक्खन इत्यादि।
  • गिफिन वस्तु (Giffin Goods) : ऐसी वस्तु की सर्वप्रथम पहचान रॉबर्ट गिफेन ने की  इसमें ऋणात्मक आय प्रभाव धनात्मक प्रतिस्थापन प्रभाव से अधिक शक्तिशाली होता है जिससे उनकी कीमतें घटने पर इनकी मांग में कमी तथा कीमत में वृद्धि पर मांग में वृद्धि होती है अतः इस प्रकार की वस्तुओं पर मांग का नियम लागू नहीं होता है यह इस नियम के अपवाद है।
  • संरचनात्मक स्फीति (Structural inflation) : पूर्ति की लोच हीनता कीमतों के न घटने की प्रवृत्ति और आएगी व्रतियों के परिणाम स्वरुप संरचनात्मक स्फीति आती है।
  • मुद्रास्फीति (Inflation Pwvey) : अर्थव्यवस्था में जब मुद्रा की पूर्ति बढ़ती है तो वह वस्तुओं की मांग को बढ़ाती है लेकिन संसाधन सीमित एवं पूर्ण रूप से रोजगार युक्त होने के कारण वस्तुओं की पूर्ति मुद्रा की पूर्ति के अनुपात में नहीं बढ़ पाती परिणाम स्वरुप वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती है संक्षेप में मुद्रा स्फीति में मुद्रा का वास्तविक मूल्य कम हो जाता है।
  • खुली स्फीति (Open inflation) : जब खुले बाजार के प्राणों से जिस में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है वस्तुओं तथा साधनों के बाजार को स्वतंत्र रूप से कार्य करने दिया जाने के परिणाम स्वरुप जो स्फीति आती है उसे खुली स्फीति कहते हैं।
  • सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम (Low of Declining Marginal utility) : अन्य बातों के समान रहने पर उपभोक्ता जैसे जैसे किसी वस्तु की इकाइयों में उत्तरोत्तर वृद्धि करता है, वैसे वैसे उस वस्तु से मिलने वाली कीमत उपयोगिता घटती जाती है।
  • ‘से’ का बाजार नियम (Market’s low of say) – सभी उत्पादनों की मात्रा के परिणाम स्वरुप देश के परिचालन में उतनी ही मात्रा में क्रय शक्ति प्रविष्ट हो जाती है फलत: जितना उत्पादन होता है सारा का सारा स्वत: ही बिक जाता है अत: पूर्ति स्वयं अपनी मांग उत्पन्न करती है यही ‘से’ का बाजार नियम है।
  • अवसर लागत (Opportunity cost) : जब कोई व्यक्ति जब किसी एक वस्तु का उत्पादन करने के लिए दूसरी वस्तु का त्याग करता है तो पहली वस्तु की प्रति इकाई उत्पादन के लिए दूसरी वस्तु की त्यागी गयी मात्रा पुरानी वस्तु  की अवसर लागत है।
  • मौडवैट (Modvat) – वर्ष 1986 के प्रारंभ में किया गया संशोधित मूल्य संवर्धन पर लगाया गया केंद्रीय उत्पाद वह शुल्क है जिसके फलस्वरूप निजी वस्तुओं का उत्पादक प्रयोग आगतों पर बार-बार उत्पादन कर देने के भार से मुक्त हो जाता है।
  • भुगतान संतुलन (Balance of payment) – किसी देश द्वारा या अन्य देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ होने वाले लेन-देन में आगत : निर्यात का वह लेखा-जोखा जो दो खंडों चालू खाता और पूंजी खाता में विभाजित होता है भुगतान संतुलन की होता है।
  • बफर स्टॉक (Buffer stock) : आपात स्थिति में किसी वस्तु की कमी की पूर्ति के लिए वस्तु का स्टॉक तैयार करना बफर स्टॉक कहता है।
  • कराघात (Impact of tax) : जिस व्यक्ति पर सर्वप्रथम कर लगाया जाता है और जिस पर कर प्रत्यक्ष मौद्रिक भाग पड़ता है तथा सरकार  जिससे कर वसूल करती है उसे करघात का कहते हैं।
  • कर अपवंचन (Tax evasion) : छुपाने की वह प्रक्रिया जिसमें कर अदायगी को अवैध रूप से बचा लिया जाता है अर्थात् आयकर की चोरी की जाती है तो इसे हम कर अपवंचन कहते हैं तथा इसके माध्यम से संचित किए गए धन को काला धन कहते हैं।
  • प्लास्टिक मनी (plastic money) : विभिन्न संस्थानों वित्तीय संस्थानों एवं कंपनियों द्वारा जारी किए गए क्रेडिट कार्ड डेबिट कार्ड इत्यादि वाले प्रकार के प्लास्टिक कार्ड जिनका प्रयोग मुद्रा के कार्यों के रूप में हो सके प्लास्टिक मनी कहलाती है।
  • गैर निष्पादन कारी परिसंपत्तियां (Non performance assets) : बैंकों द्वारा वितरण ऐसे सभी देय ब्याज जिनका किसी वित्तीय वर्ष में मूलधन का भुगतान 90 दिनों तक रोक लिया जाता है।
  • ले ऑफ (Lay off) : जब किसी वस्तु की मांग में कमी होने से औद्योगिक संस्थान द्वारा उत्पादन कम किए जाने के कारण कर्मचारियों की नौकरी से छटनी की जाती है तो इसे ही ले लॉक कहा जाता है।
  • राजस्व घाटा (Revenue deficit) : कुल राजस्व प्राप्तियों की तुलना में जब कुल राजस्व व्यय अधिक होता है तो इसे राजस्व घाटा कहा जाता है।
  • प्राथमिक घाटा (Primary deficit) : जब राजकोषीय घाटे में से ब्याज भुगतान को घटा दिया जाता है तो बचे अवशेष को प्राथमिक घाटा कहते हैं प्राथमिक घाटा वर्तमान वर्ष के घाटे की माप करता है इसे शुद्ध राजकीय घाटा भी कहा जाता है।
  • रैचेड प्रभाव (Rechelt effect) : आय में जब वृद्धि होती है तो उपभोग स्तर में तीव्र वृद्धि होती है परंतु जब आय में कमी होती है तो आय में कमी के अनुपात में उपयोग में कमी नहीं होती इसे ड्यूजेनरी की सापेक्ष आय परिकल्पना भी कहा जाता है।
  • लोरेंज वक्र (Lawrense Curve) : इस वक्र द्वारा लोगों के बीच आय विषमता को ज्ञात करते हैं इसे 1992 में मैक्सओ लॉरेंस ने विकसित किया लोरेंज वक्र का प्रतिबिंब उन व्यक्तियों को प्रदर्शित करता है जो एक निश्चित आय के प्रतिशत के नीचे होते हैं।
  • मांग का नियम (law of demand) : अन्य बातों के समान रहने पर वस्तु की कीमत तथा मांग के बीच विपरीत संबंध होते हैं अर्थात् वस्तु की कीमत में कमी वस्तु की मांग में वृद्धि करेगी तथा इसके विपरीत कीमत में वृद्धि वस्तु की मांग में कमी करेगी यही मांग का नियम है।


सी.आर.आर.(नकद आरक्षण अनुपात) -- सी.आर.आर. वह धन है जो बैंकों को रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के पास गारंटी के रूप में रखना होता है।

बैंक दर -- जिस दर पर रिज़र्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को उधार देता है बैंक दर कहलाती है।

वैधानिक तरलता अनुपात (एस.एल.आर.) -- किसी आपात देनदारी को पूरा करने के लिए वाणिज्यिक बैंक अपने प्रतिदिन कारोबार नकद सोना और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के रूप में एक खास रकम रिज़र्व बैंक के पास जमा कराते है जिस एस.एल.आर. कहते हैं।

रेपो रेट -- रेपो दर वह है जिस दर पर बैंकों को कम अवधि के लिए रिज़र्व बैंक से कर्ज मिलता है। रेपो रेट कम करने से बैंको को कर्ज मिलना आसान हो जाता है।

लीड बैंक योजना -- जिलों की अर्थव्यवस्था को सुधारने के उद्देश्य से इस योजना का प्रारंभ १९६९ में किया गया। जिसके तहत प्रत्येक जिले में एक लीड बैंक होगा जो कि अन्य बैंकों कि सहायता के साथ साथ कार्यक्रमों के माध्यम से वित्तीय संस्थाओ के बीच समन्वय स्थापित करेगा।

निष्पादन बजट -- कार्यों के परिणामों या निष्पादन को आधार बनाकर निर्मित होने वाला बजट निष्पादन बजट है इसे कार्यपूर्ति बजट भी कहते हैं।

जीरोबेस बजट -- इस बजट में किसी विभाग या संगठन कि प्रस्तावित व्यय मांग के प्रत्येक मद को शुन्य मानते हुए पुनर्मूल्यांकन किया जाता है. भारत में इसे सर्वप्रथम “काउन्सिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CISR)” में लागू किया गया और 1987-88 से सभी विभागों व मंत्रालयों में लागू हो गया।

आउटकम बजट -- इसके तहत प्रत्येक विभाग/मंत्रालय के भौतिक लक्ष्यों को अल्प अवधि में निरीक्षण एवं मूल्यांकन के लिए रखा जाता है।

जेंडर बजट -- इस बजट के माध्यम से सरकार महिलाओं के कल्याण एवं सशक्तिकरण के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रमों और योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु प्रतिवर्ष एक निश्चित राशि का प्रावधान बजट में करती है।

प्रत्यक्ष कर -- वह कर जिसमें कर स्थापितकर्ता (सरकार) और करदाता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। अर्थात् जिसके ऊपर कर लगाया जा रहा है सीधे वही व्यक्ति भरता है।

अप्रत्यक्ष कर -- वह कर जिसमें कर स्थापितकर्ता (सरकार) और भुगतानकर्ता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है अर्थात् जिस व्यक्ति/संस्था पर कर लगाया जाता है उसे किसी अन्य तरीके से प्राप्त किया जाता है।

राजस्व घाटा -- सरकार को प्राप्त कुल राजस्व एवं सरकार द्वारा व्यय किये गए कुल राजस्व का अंतर ही राजस्व घाटा है।

राजकोषीय घाटा -- सरकार के लिए कुल प्राप्त राजस्व, अनुदान और गैर-पूंजीगत प्राप्तियों कि तुलना होने वाले कुल व्यय का अतिरेक है अर्थात् आय(प्राप्तियों) के सन्दर्भ में व्यय कितना अधिक है।

बॉण्ड अथवा डिबेंचर -- ऐसे ऋण पत्र होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार, राज्य सरकार, अथवा कोई संसथान जारी करता है इन ऋण पत्रों पर एक निश्चित अवधि पर निश्चित दर से ब्याज प्राप्त होता है।

प्रतिभूति -- वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे शेयर, डिबेंचर, व अन्य ऋण पत्रों के लिए संयुन्क्त रूप से प्रतिभूति शब्द का प्रयोग किया जाता है. बैंकिग में भी ऋणों कि जमानत के सन्दर्भ में प्रतिभूति शब्द का प्रयोग होता है।

रिवर्स रेपो रेट -- बैंकों को रिज़र्व बैंक के पास अपना धन जमा करने के उपरांत जिस दर से ब्याज मिलता है वह रिवर्स रेपो रेट है।

बजट शब्दावली

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  • बजट लेखा-जोखा : वित्त वर्ष के दौरान सरकार द्वारा विभिन्न करों से प्राप्त राजस्व और खर्च के आकलन को बजट लेखा-जोखा कहा जाता है।
  • संशोधित लेखा-जोखा : बजट में किए गए आकलनों और मौजूदा आर्थिक परिस्थिति के मद्देनजर इनके वास्तविक आंकड़ों के बीच का अंतर संशोधित लेखा-जोखा कहलाता है। इसका जिक्र आने वाले बजट में किया जाता है।
  • सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी): एक वर्ष के दौरान निर्मित सभी उत्पादों और सेवाओं के सम्मिलित बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। इसमें कृषि, उद्योग और सेवा - तीन क्षेत्र शामिल होते हैं।
  • सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी): एक वर्ष के दौरान तैयार सभी उत्पादों और सेवाओं के सम्मिलित बाजार मूल्य तथा स्थानीय नागरिकों द्वारा विदेशों में किए गए निवेश के जोड़ को, विदेशी नागिरकों द्वारा स्थानीय बाजार से अर्जित लाभ में घटाने से प्राप्त रकम को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।
  • वित्त विधेयक : नए कर लगाने, कर प्रस्तावों में परिवर्तन या मौजूदा कर ढांचे को जारी रखने के लिए संसद में प्रस्तुत विधेयक को वित्त विधेयक कहते हैं।
  • विनियोग विधेयक : सरकार द्वारा संचित निधि से रकम निकासी को मंजूरी दिलाने के लिए संसद में प्रस्तुत विधेयक विनियोग विधेयक कहलाता है।
  • वित्तीय घाटा : सरकार को प्राप्त कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच का अंतर वित्तीय घाटा कहलाता है।
  • राजस्व प्राप्ति : सरकार द्वारा वसूले गए सभी प्रकार के कर और शुल्क, निवेशों पर प्राप्त ब्याज और लाभांश तथा विभिन्न सेवाओं के बदले प्राप्त रकम को राजस्व प्राप्ति कहा जाता है।
  • राजस्व व्यय : विभिन्न सरकारी विभागों और सेवाओं पर खर्च, ऋण पर ब्याज की अदायगी और सब्सिडियों पर होने वाले व्यय को राजस्व व्यय कहते हैं।
  • विनिवेश : सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है।
  • राष्ट्रीय ऋण : केंद्र सरकार के राजकोष में शामिल कुल ऋण को राष्ट्रीय ऋण कहते हैं। वित्तीय बजट घाटों को पूरा करने के लिए सरकार यह ऋण लेती है।
  • संचित निधि (कोष) : सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, बाजार से लिए गए ऋण और स्वीकृत ऋणों पर प्राप्त ब्याज संचित निधि में जमा होते हैं।
  • आकस्मिक निधि (कोष) : इस कोष का निर्माण इसलिए किया जाता है, ताकि जरूरत पड़ने पर आकस्मिक खर्चों के लिए संसद की स्वीकृति के बिना भी राशि निकाली जा सके।
  • पूंजीगत व्यय : सरकार द्वारा अधिग्रहीत विभिन्न संपत्तियों पर हुए खर्च को पूंजीगत व्यय की श्रेणी में रखा जाता है।
  • पूंजीगत प्राप्ति : इसमें सरकार द्वारा बाजार से लिए गए ऋण, भारतीय रिज़र्व बैंक से ली गई उधारी और विनिवेश के जरिये प्राप्त आमदनी को शामिल किया जाता है।
  • प्रत्यक्ष कर (डायरेक्ट टैक्स) : वह टैक्स, जिसे आपसे सीधे तौर पर वसूला जाता है। मसलन, इन्कम टैक्स, व्यवसाय से आय पर कर, शेयर या दूसरी संपत्तियों से आय पर कर, प्रॉपर्टी टैक्स।
  • अप्रत्यक्ष कर (इन्डायरेक्ट टैक्स) : वह टैक्स, जिसे आप सीधा नहीं जमा कराते, लेकिन यह आप ही से किसी और रूप में वसूला जाता है। देश में तैयार, आयात या निर्यात किए गए सभी सामानों पर लगाए जाने वाले अप्रत्यक्ष कर कहलाते हैं। इसमें उत्पाद कर और सीमा शुल्क शामिल किए जाते हैं।
  • नवीन पेंशन योजना (एनपीएस) : सरकार ने इसमें कई बदलाव किए हैं। नई भर्तियों को अब सरकारी पेंशन नहीं मिलेगी। कमर्चारियों को अपनी तन्ख्वाह में से ही अपनी पेंशन की बचत करनी होगी। यह बचत करना अनिवार्य नहीं है, न ही इसमें कोई अपर लिमिट है, लेकिन अगर आप इसे करते हैं, तो कम से कम 500 रुपये आपको इसमें हर महीने डालने होंगे। खास बात यह है कि निजी क्षेत्र में काम कर रहे लोग भी इसे अपना सकते हैं। फायदा यह है कि एनपीएस में जमा रकम की मियाद पूरी हो जाने पर जब कोई पैसा निकालेगा, तो उस पर उसी साल के कानून के मुताबिक टैक्स लगेगा।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई): किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारत स्थित किसी कंपनी में अपनी शाखा, प्रतिनिधि कार्यालय या सहायक कंपनी द्वारा निवेश करने को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहते हैं।
  • आयकर (इन्कम टैक्स) : वह टैक्स, जो सरकार आपकी आय पर आय में से लेती है। आपकी आमदनी के पहले डेढ़ लाख रुपये पर कोई कर नहीं लगता। डेढ़ लाख के बाद की कमाई पर टैक्स लगता है। जिनकी तनख्वाह दस लाख रुपये सालाना से ज़्यादा है, वो टैक्स के ऊपर भी टैक्स देते हैं, जिसे सरचार्ज कहा जाता है। इन्कम टैक्स में निजी कमाई और कंपनियों की आमदनी दोनों शामिल हैं।
  • मानक कटौती (स्टैण्डर्ड डिडक्शन) : आप अपनी आमदनी में से इंश्योरेंस, सीपीएफ, जीपीएफ, पीपीएफ, नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (एनएससी), टैक्स बचाने वाले म्यूचुअल फंड, पांच साल से ज़्यादा की एफ़डी, होम लोन के प्रिंसिपल (मूलधन) जैसे निवेशों में लगा सकते हैं और ऐसे ही निवेशों को जोड़कर एक लाख रुपये तक के निवेश पर टैक्स में छूट दी जाती है। इस एक लाख रुपये को आपकी कुल आय में से घटा दिया जाता है और उसके बाद इन्कम टैक्स का हिसाब लगाया जाता है।
  • उत्पाद कर (एक्साइज़ ड्यूटी) : यह देश में बने और यहीं बिकने वाले सामान पर वसूला जाता है। कंपनियों को फैक्ट्री में से सामान निकालने से पहले इसे भरना ज़रूरी है। यह ज़रूरी नहीं कि एक ही तरह की चीज़ों पर बराबर एक्साइज़ ड्यूटी लगाई जाए। यह सरकार की कमाई के सबसे बड़े साधनों में से एक है।
  • औद्योगिक कर : औद्योगिक प्रतिष्ठानों पर लगाए जाने वाले कर। यह उस प्रतिष्ठान के मालिक पर लगाए गए व्यक्तिगत कर से अलग होता है।
  • सेवा कर (सर्विस टैक्स) : वह कर, जो आप सेवाओं पर देते हैं। जम्मू−कश्मीर के अलावा बाकी सभी राज्यों में सर्विस प्रोवाइडर को सर्विस टैक्स देना होता है। पहले यह 12 फीसदी था, लेकिन आर्थिक मंदी के चलते अब इसे घटाकर 10 फीसदी कर दिया गया है। सर्विस टैक्स फोन, रेस्तरां में खाना, ब्यूटी पार्लर या जिम जाने जैसी सेवाओं पर वसूला जाता है।
  • वैट (वैल्यू ऐडेड टैक्स) : वैट वह कर है, जो आप किसी सामान की खरीद पर देते हैं। यह कर सेवाओं पर नहीं होता। जिन राज्यों में वैट लागू है, वहां पर एक्साइज़ ड्यूटी और सर्विस टैक्स अलग से वसूला जाता है। वैट राज्य स्तर पर वसूला जाता है। वैट वसूली की चार दरें हैं - यह शून्य से साढ़े बारह फीसदी तक होती हैं। ज़रुरी सामान - जैसे जीवनरक्षक दवाओं पर कोई वैट नहीं लगता, जबकि तंबाकू, शराब जैसे चीज़ों पर साढ़े बारह फीसदी की दर से वैट वसूला जाता है।
  • विक्री कर (सेल्स टैक्स) : सरकार किसी भी सामान की खरीद-फरोख्त पर कर वसूलती है। देश के ज्यादातर राज्यों में अब सेल्स टैस की जगह वैट ने ले ली है, लेकिन सेल्स टैक्स सेवाओं पर भी वसूला जाता है। एक राज्य से दूसरे राज्य में सामान के जाने पर चार फीसदी केन्द्रीय सेल्स टैक्स (सीएसटी) लगाया जाता है, जिसे अब धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है।
  • फ्रिंज बेनेफिट टैक्स (एफबीटी) : कंपनियां अपने कमर्चारियों को फोन, कार या एलटीए, एलटीसी जैसी यात्राओं के लिए सुविधाएं देती हैं। इनके बदले उन पर जो टैक्स लगाया जाता है, उसे एफबीटी कहते हैं। लेकिन अधिकतर उद्योग संगठन अथवा कंपनियां एफबीटी का बोझ कमर्चारियों पर ही डाल देती हैं और इसे उनकी तनख्वाह में से काटा जाता है। कंपनियां एफबीटी को टैक्स की दोहरी मार मानती हैं, क्योंकि वे आय पर भी टैक्स देती हैं और सहूलियतों पर भी।


नीचे अर्थशास्त्र तथा इससे सम्बन्धित विषयों में प्रयुक्त शब्दावली दी गयी है-


इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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