इन्द्रजाल
जादू का खेल ही इन्द्रजाल कहलाता है। कहा जाता है, इसमें दर्शकों को मंत्रमुग्ध करके उनमें भ्रांति उत्पन्न की जाती है। फिर जो ऐंद्रजालिक चाहता है वही दर्शकों को दिखाई देता है। अपनी मंत्रमाया से वह दर्शकों के वास्ते दूसरा ही संसार खड़ा कर देता है। मदारी भी बहुधा ऐसा ही काम दिखाता है, परंतु उसकी क्रियाएँ हाथ की सफाई पर निर्भर रहती हैं और उसका क्रियाक्षेत्र परिमित तथा संकुचित होता है। इन्द्रजाल के दर्शक हजारों होते हैं और दृश्य का आकार प्रकार बहुत बड़ा होता है।
वर्षा का वैभव इन्द्र का जाल मालूम होता है। ऐंद्रजालिक भी छोटे पैमाने पर कुछ क्षण के लिए ऐसे या इनसे मिलते जुलते दृश्य उत्पन्न कर देता है। शायद इसीलिए उसका खेल इन्द्रजाल कहलाता है।
इंद्रजाल के विषय में अनेक विद्वानों ने अपने अपने मत रखे हुए है, जो सम्माननीय है, इंद्रजाल के बहुत से लेखक हुए है लेकिन मूल रूप से ये स्वर्ग की संपत्ति है, देवऋषि बृहस्पति
जी, इंद्रदेवता और रावण भी इंद्रजाल के साधक थे
इंद्रजाल को पढ़ने से मालूम होता है की यह मनुष्यों की कई प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति करता है, और किसी विशेष इच्छा की पूर्ति के लिए विशेष मंत्र का प्रयोग किया जाता है, इंद्रजाल अकल्पनीय है और सत्य है, इस ग्रंथ मे सम्मोहन है
जो पढ़ने वाले को सम्मोहित कर लेता है,
इस ग्रंथ के माध्यम से मुख्य चार प्रकार के
कार्य होते है 1सम्मोहन क्रिया - इस विद्या को सीखने के पश्चात साधक किसी भी मनुष्य को अपने वश मे या अपने अनुकूल करके उनसे अपना काम ले सकते है। 2उच्चाटन क्रिया -इस क्रिया को करके साधक किसी व्यक्ति का ध्यान उनके कार्यों से हटाने मे सफल हो जाता है, इस क्रिया के द्वारा मनुष्य पागल सदृश हो जाता है। 3- विद्वेषड क्रियाः -इस किया के अंर्तगत किसी मनुष्य को उनके स्थान से भगाया जाता है, इस इतिस्थि मे भी मनुष्य पागल सदृश हो जाता है
विद्वान कहते है, और धर्म कहता है,ऐसे क्रिया को अति दुष्ट व्यक्ति के साथ ही करना चाहिए।
4शांति कर्म -इस क्रिया के द्वारा इंद्रजाल का सबसे उत्तम कार्य होता है, शांति कर्म के द्वारा रोगों को ठीक किया जाता है,
लंबी आयु जीने के सैकड़ों तरीके शांति कर्म मे पाए जाते है, अनेक असाध्य रोगों का ईलाज संभव है। कहते है की यह स्वर्ग की संपत्ति है, तो इसमें अवश्य ही सच्चाई होगी। परंतु इंद्रजाल पठन से ये बात मालुम पड़ता है कि, सभी इच्छाओं की पूर्ति हेतु एक मंत्र जप या तंत्र रचना अथवा जड़ी बूटियों का प्रयोग वर्णित है, जड़ी बूटियों का प्रयोग तक तो बात समझ में आ भी जाता है, लेकिन मंत्र जाप से इच्छा पूर्ति अकल्पनीय है,
परंतु सत्य है, हमारे वैज्ञानिक अभी तक प्रकाश की गति को न पा सके हैं किंतु इंद्रजाल के ज्ञान से हम मन की गति से यात्रा कर सकते है।
है न अकल्पनीय, रुकिए जनाब, इंद्रजाल के ज्ञान से हम अदृश्य हो सकते है
और इसे करने के एक दो नही सैकड़ों तरीके लिखे गए है,
मनुष्य शेर, चिता सांप बिच्छू किसी भी रूप को
धारण कर सकते है,
1000वर्ष की आयु प्राप्त कर सकते है। ये है हमारे संस्कृति की महान ग्रंथ की एक छोटी सी झलक।
प्राचीन समय में ऐसे खेल राजाओं के सामने किए जाते थे। बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दिनों तक कुछ लोग ऐसे खेल करना जानते थे, परंतु अब यह विद्या नष्ट सी हो चुकी है। कुछ संस्कृत नाटकों और गाथाओं में इन खेलों का रोचक वर्णन मिलता है। जादूगर दर्शकों के मन और कल्पनाओं को अपने अभीष्ट दृश्य पर केन्द्रीभूत कर देता है। अपनी चेष्टाओं और माया से उनको मुग्ध कर देता है। जब उनकी मनोदशा ओर कल्पना केंद्रित हो जाती है तब यह उपयुक्त ध्वनि करता है। दर्शक प्रतीक्षा करने लगता है कि अमुक दृश्य आनेवाला है या अमुक घटना घटनेवाली है। इसी क्षण वह ध्वनिसंकेत और चेष्टा के योग से सूचना देता है कि दृश्य आ गया या घटना घट रही है। कुछ क्षण लोगों को वैसा ही दिखता है।तदनंतर इंद्रजाल समाप्त हो जाता है।[1]
रावण के दस सिर होने की चर्चा रामायण में आती है। वह कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिये चला था तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते हैं। इस तरह दसवें दिन अर्थात् शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का वध होता है। रामचरितमानस में यह भी वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते हैं पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहाँ पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे - आसुरी माया से बने हुये। मारीच का चाँदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी कृत्रिम माना जा सकता है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- ↑ K.H, Team (2024-07-18). "इंद्रजाल पौधे के अद्भुत फायदे: जानें इसका महत्व और उपयोग" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-08-03.