इलोजी एक ग्राम देवता (लोकदेवता) हैं। इनकी प्रतिमाएं पश्चिमी राजस्थान (मुुख्यतः मारवाड़) के लगभग हर गांव में पाई जाती हैं। माना जाता है कि ये हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के प्रेमी थे।[1]इन्हें किसी भी चौक या किसी ढाणी के मध्य में मूछों वाले एक बलवान पुरुष के रूप में गुप्तांग के साथ, चेहरे पर अभिमान के साथ बैठे हुए दिखाया जाता है। किसी पवित्र अवसर पर ग्रामवासी गैर नृत्य करते हुए और चंग बजाते हुए, इलोजी की यौन शक्ति की प्रशंसा में गीत गाते हैं।[2]

इलोजी की मूर्ति

इलोजी की पूजा पौरुष, पुत्र और कामुख देवता के रूप में की जाती है। पुरुष तथा महिलाएं दोनों ही इनकी पूजा करते हैं। पुरुष अपना पौरुष और यौन शक्तियां बढ़ाने के लिए तथा महिलाएं पुत्र की चाह में इनकी पूजा करते हैं। बांझ महिलाएं संतान की चाह में इनसे प्रार्थना करती हैं। होली के दिन जब पुरुष होली के गीत, जिन्हें फाग कहा जाता है, जिनमें वे अपनी यौन उपलब्धियों का बखान करते हैं, तब विवाहित महिलाएं एकत्र होकर इलोजी के दर्शन करने जाती हैं। वे वहां पहुंचकर उन्हें नमन करती हैं तथा उनके लंबे शिश्न को छूती हैं और एक दूसरे को छेड़ते हुए हंसी-ठिठोली करती हैं। यह एक आनंदपूर्ण और उमंग देने वाली प्रथा है।

नवविवाहित जोड़े भी इलोजी के दर्शनार्थ आते हैं। नववधू इलोजी को गले लगाती हैं क्योंकि हर स्त्री पर उनका पहला अधिकार है। वे हर नवविवाहिता के सहायक के रूप में रहते हैं। barmer main enki savari nikali jati hai

भारतीय परंपरा में स्थान

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होली हमारे पशु वृत्ति के परित्याग और स्वीकार का त्योहार है। भारतीय समाज में, सामान्यतः संभोग की वर्जना की जाती है; प्रेम या यौन इच्छाओं की सार्वजनिक अभिव्यक्ति की निंदा की जाती है। फिर भी, खजुराहो और तंत्र जैसी परंपराएं मौजूद हैं, जो किसी व्यक्ति की आध्यात्मिक यात्रा में संभोग को आत्म-साक्षात्कार के लिए उपकरण के रूप में स्थापित करती हैं।

  1. "इलोजी-होलिका की प्रेम कहानी". वेबदुनिया.
  2. "जालोर में निकली इलोजी की बारात, शहरवासियों ने किया स्वागत, भीनमाल की घोटा गेर में दिखा उत्साह". दैनिक भास्कर. १२ मार्च २०२०. मूल से 12 मार्च 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 मार्च 2020.