अर्थशास्त्र में आर्थिक अधिशेष (economic surplus) दो मात्राओं का नाम है:[1][2][3]

ग्राफ जिसमें उपभोक्ता अधिशेष (लाल) और उत्पादक अधिशेष (नीला) एक आपूर्ति और माँग वक्र पर दिखाया गया है।

कुल आर्थिक अधिशेष इन दोनों का जोड़ होता है:

  • आर्थिक अधिशेष = उपभोक्ता अधिशेष + उत्पादक अधिशेष

किसी बाज़ार में स्वेटर बिकते हैं। इसमें पाँच उत्पादक स्वेटर बेचने आए हैं और पाँच उपभोक्ता स्वेटर खरीदने आए हैं। बाज़ार की स्थिति इस प्रकार हैं:

  • हर उत्पादक का एक स्वीकृत प्राप्त मूल्य है - वह कम-से-कम कीमत जो उत्पादक को स्वीकार्य है। हर उत्पादक इस न्यूनतम कीमत का निर्णय ऊन, सिलाई, अन्य मज़दूरी, बिजली, दुकान का किराया, माल परिवहन के लिए वाहन व पेट्रोल का खर्चा, ग्राहकों के लिए चाय-पानी, इत्यादि सभी खर्चे मिलाकर और फिर उसपर अपनी जीवनी चलाने के लिए छोटा-सा मुनाफा डालकर करेगा। हर उत्पादक की परिस्थितियाँ अलग हैं, इसलिए हर उत्पादक का स्वीकृत प्राप्त मूल्य भी अलग है। हर उत्पादक के पास बेचने को उपलब्ध स्वेटरों की मात्रा भी अलग है।
  • मान लीजिए कि इन पाँच उत्पादकों की स्थिति इस प्रकार हैं:
बाज़ार में सभी स्वेटर उत्पादकों की स्थिति
उत्पादक1 उत्पादक2 उत्पादक3 उत्पादक4 उत्पादक5
स्वीकृत प्राप्त मूल्य ₹100 ₹150 ₹200 ₹350 ₹450
उपलब्ध स्वेटरों की मात्रा 10 20 30 20 30
  • हर उपभोक्ता का एक स्वीकृत भुगतान मूल्य है- वह अधिक-से-अधिक कीमत जो उपभोक्ता को स्वीकार्य है। हर उपभोक्ता इस अधिकतम कीमत का निर्णय अपनी आर्थिक परिस्थिति, अन्य ज़रूरतों, स्वेटर के अन्य विकल्पों, इत्यादि के आधार पर करता है। हर उपभोक्ता की परिस्थितियाँ अलग हैं, इसलिए हर उपभोक्ता का स्वीकृत भुगतान मूल्य भी अलग है। हर उपभोक्ता अलग मात्रा में स्वेटर खरीदना चाहता है, जो उसके परिवार के सदस्यों की संख्या, पहले से उस के पास उपलब्ध विकल्पों, इत्यादि पर निर्भर है।
  • मान लीजिए कि इन पाँच उपभोक्ताओं की स्थिति इस प्रकार है:
बाज़ार में सभी स्वेटर उपभोक्ताओं की स्थिति
उपभोक्ता1 उपभोक्ता2 उपभोक्ता3 उपभोक्ता4 उपभोक्ता5
स्वीकृत भुगतान मूल्य ₹400 ₹300 ₹200 ₹75 ₹50
स्वेटर आवश्यकता की मात्रा 15 15 10 10 5

इस स्थिति में आपूर्ति और माँग के आधार पर में अब बाज़ार में आर्थिक संतुलन बनेगा, जिस से स्वेटरों की कीमत उत्पन्न होगी। यह इस प्रकार होगा:

  • उपभोक्ता4 और उपभोक्ता5 जिन अधिकतम कीमतों पर स्वेटर खरीदना चाहते हैं, उस कीमत पर कोई उत्पादक बेचने को तैयार नहीं है, इसलिए यह दो उपभोक्ता बाज़ार से बिना कुछ खरीदे निकल जाते हैं।
  • बाज़ार में अब केवल उपभोक्ता1, उपभोक्ता2, उपभोक्ता3, जो मिलाकर केवल 15 +15 + 10 = 40 स्वेटर खरीदना चाहते हैं। यह पूरी माँग बाज़ार में सबसे सस्ते दाम पर बेचने वालों के पास पहले जाएगी। उत्पादक1, उत्पादक2, उत्पादक3 के पास मिलाकर 10 + 20 +30 = 60 स्वेटर उपलब्ध हैं और यह बाज़ार में बचे उपभोक्ताओं की पूरी माँग पूर्ण करने के लिए पर्याप्त हैं। इस से उत्पादक4 और उत्पादक5 भी बाज़ार की प्रक्रिया से निकाले जाते हैं।
  • बचे उपभोक्ताओं की माँग पूरी करने के लिए उस में से कुछ को तो बचे उत्पादकों में से सबसे महंगे उत्पादक3 के पास जाकर उसका दाम ₹200 देना ही होगा। उत्पादक1 वैसे तो ₹100 पर और उत्पादक2 ₹150 पर बेचने को तैयार थे लेकिन अब वे भी उत्पादक3 की तरह ₹200 की माँग करते हैं, क्योंकि वे देख सकते हैं कि कुछ ग्राहकों को तो उस दाम पर लेना ही होगा ("हम कम क्यों लें?")।
  • ₹200 की कीमत ही अब बाज़ार में स्वेटरों की कीमत बन के उभरती है। यही आर्थिक संतुलन की प्राकृतिक प्रक्रिया है।

अब उत्पादक अधिशेष और उपभोक्ता अधिशेष का हिसाब लगाया जा सकता है:

बाज़ार में आर्थिक संतुलन से उत्पन्न कीमत = ₹200
उत्पादक1 उत्पादक2 उत्पादक3 उत्पादक4 उत्पादक5
बेची गई मात्रा 10 20 10 - -
प्रति स्वेटर अधिशेष
बाज़ार में कीमत - स्वीकृत प्राप्त मूल्य
₹100 ₹50 ₹0 - -
उत्पादक का कुल अधिशेष ₹1000 ₹1000 ₹0 - -
कुल उत्पादक अधिशेष = ₹1000 + ₹1000 + ₹0 = ₹2000
बाज़ार में आर्थिक संतुलन से उत्पन्न कीमत = ₹200
उपभोक्ता1 उपभोक्ता2 उपभोक्ता3 उपभोक्ता4 उपभोक्ता5
बेची गई मात्रा 15 15 10 - -
प्रति स्वेटर अधिशेष
स्वीकृत भुगतान मूल्य - बाज़ार में कीमत
₹200 ₹100 ₹0 - -
उपभोक्ता का कुल अधिशेष ₹3000 ₹1500 ₹0 - -
कुल उपभोक्ता अधिशेष = ₹3000 + ₹1500 + ₹0 = ₹4500

देखा जा सकता है कि इस बाज़ार में उत्पादक अधिशेष ₹2000 और उपभोक्ता अधिशेष ₹4500 है, तथा आर्थिक अधिशेष इनका जोड़, अर्थात् ₹6500 है। ध्यान दें कि इस व्यापार से उत्पादक और उपभोक्ता दोनों का लाभ हो रहा है और मुक्त बाज़ार में ऐसा ही देखा जाता है। लम्बे समय तक इस प्राकर की प्रक्रियाएँ स्वतंत्रता से चलने देने से समाज में सम्पन्नता उत्पन्न होती है।

वक्रों के प्रयोग के साथ उदाहरण

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उपभोक्ता अधिशेष

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किसी चीज़ को खारीदते समय, एक उपभोक्ता एक निर्धारित राशि देने के लिये तैयार रेहता है, और अधिकांश समय वह एक अन्य ही राशि देता है। इन दोनों के अंतर को ही 'उपभोक्ता अधिशेष' कहलाया जाता है।[4] इस परिभाषा को स्पष्ट करने के लिये, एक उदाहरण प्रस्तुत है। मान लीजिए कि अनिल बाजार से एक किताब खरीदना चाहता है, और वह इस किताब के लिए २०० रुपये देने के लिए तैयार है। बाजार पहुँचने पर उसे पता चलता है कि उस पुस्तक की वास्तविक कीमत केवल १५० रुपए है, और इसलिए वह उस पुस्तक को खुशी-खुशी खरीदता है। इस उदाहरण में उपभोक्ता २०० रुपये देने के लिए तैयार था, पर उसे सिर्फ १५० रुपये ही देने पड़ा। अत: इस उदाहरण में अनील को ५० रुपए की उपभोक्ता अधिशेष प्राप्त होती है।

मांग वक्र और उपभोक्ता अधिशेष

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एक मांग वक्र बाजार में सभी उपभोक्ताओं के खर्च करने की इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है। कुल उपभोक्ता अधिशेष मांग वक्र के नीचे और मूल्य से ऊपर का क्षेत्र है।[5]
 
मांग वक्र द्वारा उपभोक्ता अधिशेष का प्रतिनिधित्व

उपभोक्ता अधिशेष पर कीमत का प्रभाव

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उपभोक्ता अधिशेष पर कीमत का प्रभाव बहुत सीधा है। यहाँ दो परिदृश्यों संभव हैं: कीमत में वृद्धि और कीमत में घटाव। जब कीमत बढती है तब उपभोक्ता अधिशेष कम हो जाती है, और जब कीमत कम हो जाती है तब उपभोक्ता अधिशेष बढ़ जाती है। इस प्रकार कीमत और उपभोक्ता अधिशेष के बीच एक उलटा रिश्ता होता है।[6]
 
उपभोक्ता अधिशेष पर कीमत का प्रभाव का प्रतिनिधित्व

उत्पादक अधिशेष

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उत्पादक को दिया गया शोध और उत्पादक के खुद की खर्च के बीच के अंतर को 'निर्माता अधिशेष' कहा जाता है। निर्माता अधिशेष तभी उतपन्न होती है जब उत्पादक की उम्मीद की कीमत बाजार की कीमत से कम होता है।[7] इस परिभाषा को स्पष्ट करने के लिये, एक उदाहरण प्रस्तुत है। मान लीजिए कि अनिल ने १५० रुपये खर्च करके एक पुस्तक छापा है। अब वह उस पुस्तक को बाजार में बेचना चाहता है। बाजार पहुँचने पर उसे पता चलता है कि उस पुस्तक की वास्तविक कीमत २०० रुपए है, और इसलिए वह उस पुस्तक को खुशी-खुशी बेचता है। इस उदाहरण में उत्पादक की खुद की खर्चा १५० रुपए है, पर बाजार कि कीमत २०० रुपए है। अत: इस उदाहरण में अनील को ५० रुपए की उत्पादक अधिशेष प्राप्त होती है।

आपूर्ति वक्र और उत्पादक अधिशेष

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एक आपूर्ति वक्र बाजार में किसी भी वस्तु उपलब्ध करने में प्रत्येक उत्पादक की सीमांत लागत का प्रतिनिधित्व करता है। कुल उत्पादक अधिशेष मूल्य से नीचे और आपूर्ति वक्र के ऊपर का क्षेत्र है।[8]
 
आपूर्ति वक्र द्वारा उत्पादक अधिशेष का प्रतिनिधित्व

उत्पादक अधिशेष पर कीमत का प्रभाव

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उपभोक्ता अधिशेष की तरह, उत्पादक अधिशेष पर भी कीमत का प्रभाव बहुत सीधा है। यहाँ भी दो परिदृश्यों संभव हैं: कीमत में वृद्धि और कीमत में घटाव। जब कीमत बढती है तब उत्पादक अधिशेष भी बढ़ जाती है, और जब कीमत कम हो जाती है तब उत्पादक अधिशेष भी कम हो जाती है। इस प्रकार कीमत और उत्पादक अधिशेष के बीच एक सीधा रिश्ता होता है।[9]
 
उत्पादक अधिशेष पर कीमत का प्रभाव का प्रतिनिधित्व

आर्थिक अधिशेष का सूत्र और प्रतिनिधित्व

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मांग और आपूर्ति वक्रो द्वारा आर्थिक अधिशेष का प्रतिनिधित्व
  • उपभोक्ता अधिशेष = खरीददारों के लिए मूल्य - खरीदारों द्वारा भुगतान की गई राशि।
  • उत्पादक अधिशेष = उत्पादकों द्वारा प्राप्त राशि - उत्पादकों के लिए लागत।
  • आर्थिक अधिशेष = उपभोक्ता अधिशेष + निर्माता अधिशेष = (खरीददारों के लिए मूल्य - खरीदारों द्वारा भुगतान की गई राशि) + (राशि विक्रेताओं द्वारा प्राप्त - विक्रेताओं के लिए लागत)।

अब, खरीदारों द्वारा भुगतान राशि और विक्रेताओं द्वारा प्राप्त राशि, दोनों बराबर हैं। इसलिए, आर्थिक अधिशेष = खरीददारों के लिए मूल्य - विक्रेताओं के लिए लागत। मांग और आपूर्ति वक्र के ग्राफ में, मांग और आपूर्ति वक्रों के बीच के क्षेत्र (मांगी गयी मात्रा तक) आर्थिक अधिशेष का प्रतिनिधित्व करती है।[10]

इन्हें भी देखें

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बाहरी जोड़

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  1. Varian, Hal R. (1992), Microeconomic Analysis, Vol. 3. New York: W.W. Norton.
  2. Anderson, James C., Dipak Jain, and Pradeep K. Chintagunta (1993), "Understanding Customer Value in Business Markets: Methods of Customer Value Assessment," Journal of Business-to-Business Marketing, 1 (1), 3–30.
  3. Breidert Christoph, Hahsler, Michael, and Reutterer (2006), "A Review of Methods for Measuring Willingness-to-Pay", Innovative Marketing, 2(4), 8–32.[1]
  4. Mankiw, G. (2012). Principles of Microeconomics (Pg 137). Patparganj, Delhi: Cengage Learning India Private Limited
  5. Mankiw, G. (2012). Principles of Microeconomics (Pg 138). Patparganj, Delhi: Cengage Learning India Private Limited
  6. Mankiw, G. (2012). Principles of Microeconomics (Pg 139). Patparganj, Delhi: Cengage Learning India Private Limited
  7. Mankiw, G. (2012). Principles of Microeconomics (Pg 141). Patparganj, Delhi: Cengage Learning India Private Limited
  8. Mankiw, G. (2012). Principles of Microeconomics (Pg 143). Patparganj, Delhi: Cengage Learning India Private Limited
  9. Mankiw, G. (2012). Principles of Microeconomics (Pg 144). Patparganj, Delhi: Cengage Learning India Private Limited
  10. Mankiw, G. (2012). Principles of Microeconomics (Pg 146). Patparganj, Delhi: Cengage Learning India Private Limited