स्वीकृत प्राप्त मूल्य

स्वीकृत प्राप्त मूल्य (willingness to accept) किसी माल या सेवा के उत्पादक के लिए वह न्यूनतम कीमत (मूल्य) होती है जिसपर या जिस से ऊपर वह उस माल या सेवा को बेचने के लिए तैयार होता है। किसी भी चीज़ के अलग-अलग उत्पादक के लिए यह स्वीकृत प्राप्त मूल्य एक-दूसरे से भिन्न हो सकता है। किसी माल या सेवा की बाज़ार में आपूर्ति (supply) समझने के लिए भिन्न उत्पादकों के समूहों में स्वीकृत प्राप्त मूल्यों को समझना आवश्यक होता है।[1][2][3]

ईरान के शीराज़ शहर में वकील बाज़ार। स्वेटर जैसी किसी भी चीज़ के विक्रेता (उत्पादक) उसे चीज़ को बेचना चाहते हैं, लेकिन कोई उत्पादक कम-से-कम कितनी कीमत पर बेचने को राज़ी होगा, यह हर उत्पादक के लिए भिन्न है। किसी भी माल या सेवा के बाज़ार में अलग-अलग उत्पादक का स्वीकृत प्राप्त मूल्य अलग होता है।

उत्पादक अधिशेष संपादित करें

अगर किसी उपभोक्ता को किसी चीज़ को अपने स्वीकृत प्राप्त मूल्य से अधिक मूल्य पर बेच पाता है तो उस अंतर को उत्पादक अधिशेष (supplier surplus) कहा जाता है।

उदाहरण संपादित करें

उदाहरण के लिए मान लीजिए कि:

  • जगदीश एक विशेष प्रकार के स्वेटर का विक्रेता है। वह ऊन, सिलाई, अन्य मज़दूरी, बिजली, दुकान का किराया, माल परिवहन के लिए वाहन व पेट्रोल का खर्चा, ग्राहकों के लिए चाय-पानी, इत्यादि सभी खर्चे मिलाकर और फिर उसपर अपनी जीवनी चलाने के लिए छोटा-सा मुनाफा डालकर प्रत्येक स्वेटर ₹150 या उस से ऊपर बेचने में सक्षम है। यानि ₹150 उसका स्वीकृत प्राप्त मूल्य है और इस से कम में वह स्वेटर नहीं बेचना चाहेगा (अगर बाज़ार में इस से कम भाव के स्वेटर बिकेंगे तो वह उसमें जीवनी नहीं चला सकता और दुकान बंद कर के कोई और व्यवसाय ढूंढने पर विवश होगा, यानी इस बाज़ार से निकल जाएगा)।
  • प्रेमा भी इसी बाज़ार में स्वेटर बेचती है और अपने खर्चे व मुनाफे को ध्यान में रखते हुए वह प्रत्येक स्वेटर कम-से-कम ₹100 में बेचने को तैयार है। यानि उसका स्वीकृत प्राप्त मूल्य ₹100 है।
  • राजेश भी स्वेटर बेचता है और उसका स्वीकृत प्राप्त मूल्य ₹250 है।
  • बाज़ार में स्वेटर की माँग के आधार पर ₹200 कीमत बन जाती है। (नोट: यदि विस्तार में समझा जाए तो यह दाम माँग और आपूर्ति के आर्थिक संतुलन से उभर कर आता है, लेकिन इस संतुलन को समझना स्वीकृत प्राप्त मूल्य और उत्पादक अधिशेष की अवधारणाओं को समझने के लिए आवश्यक नहीं है।)
  • बाज़ार में ₹200 प्रति-स्वेटर के दाम पर दस स्वेटर बिकते हैं। जगदीश चार स्वेटर बेच पाता है और प्रेमा छह। इस दाम पर राजेश कोई स्वेटर नहीं बेचता क्योंकि यह उसकी न्यूनतम कीमत (यानि उसके स्वीकृत प्राप्त मूल्य) से कम है।
  • जगदीश हर बेचे गए स्वेटर पर अपने ₹150 के स्वीकृत प्राप्त मूल्य से ₹200 - ₹150 = ₹50 अधिक बनाता है। क्योंकि उसने चार स्वेटर बेचे हैं, इसलिए उसका उत्पादक अधिशेष ₹50 x 4 = ₹200 है। वह चार स्वेटर मिलाकर ₹150 x 4 = ₹600 पर बेचने को राज़ी था, लेकिन वह उन्हें ₹200 x 4 = ₹800 पर बेच पाया है, यानि अपनी न्यूनतम मात्रा से ₹200 का अधिशेष बना पाया है।
  • इसी तरह प्रेमा ने हर स्वेटर पर अपने ₹100 के स्वीकृत प्राप्त मूल्य से ₹200 - ₹100 = ₹100 अधिक बनाएँ हैं। उसने छह स्वेटर बेचे, इसलिए उसका उत्पादक अधिशेष ₹100 x 6 = ₹600 रहा है।
  • सब मिलाकर पूरे बाज़ार में कुल उत्पादक अधिशेष ₹200 + ₹600 = ₹800 है। बाज़ार में पूरा माल जो बिका, उसमें जितना उत्पादक कम-से-कम चाहते थे, उस से ₹800 अधिक बना पाए हैं।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Varian, Hal R. (1992), Microeconomic Analysis, Vol. 3. New York: W.W. Norton.
  2. Anderson, James C., Dipak Jain, and Pradeep K. Chintagunta (1993), "Understanding Customer Value in Business Markets: Methods of Customer Value Assessment," Journal of Business-to-Business Marketing, 1 (1), 3–30.
  3. Breidert Christoph, Hahsler, Michael, and Reutterer (2006), "A Review of Methods for Measuring Willingness-to-Pay", Innovative Marketing, 2(4), 8–32.[1]