उदन्त मार्तण्ड
उदन्त मार्तण्ड (शाब्दिक अर्थ : 'समाचार सूर्य' या '(बिना दाँत का) बाल सूर्य' )[1] हिंदी का प्रथम समाचार पत्र था। इसका प्रकाशन ३० मई, १८२६ ई. में कलकत्ता से एक साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू हुआ था। तत्कालीन कलकत्ता के कोल्हू टोला (आज के कैनिंग स्ट्रीट क्षेत्र कोलकाता के प्रसिद्ध बड़ा बाजार के पास) नामक मोहल्ले की ३७ नंबर अमरतल्ला लेन से जुगलकिशोर शुक्ल ने सन् १८२६ ई. में उदंतमार्तंड नामक एक हिंदी साप्ताहिक पत्र निकालने का आयोजन किया। उस समय अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किन्तु हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए "उदंत मार्तंड" का प्रकाशन प्रारंभ किया गया। इसके संपादक भी श्री जुगुलकिशोर शुक्ल ही थे। वे मूल रूप से कानपुर के निवासी थे।[2]

इस पत्र की प्रारंभिक विज्ञप्ति इस प्रकार थी -
- यह "उदन्त मार्तण्ड" अब पहले-पहल हिंदुस्तानियों के हित के हेतु जो आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंग्रेजी ओ पारसी ओ बंगाल में जो समाचार का कागज छपता है उनका सुख उन बोलियों के जानने और पढ़ने वालों को ही होता है। और सब लोग पराए सुख से सुखी होते हैं। जैसे पराए धन धनी होना और अपनी रहते परायी आंख देखना वैसे ही जिस गुण में जिसकी पैठ न हो उसको उसके रस का मिलना कठिन ही है और हिंदुस्तानियों में बहुतेरे ऐसे हैं। इससे सत्य समाचार हिंदुस्तानी लोग देख आप पढ़ ओ समझ लेयँ ओ पराई अपेक्षा न करें ओ अपने भाषे की उपज न छोड़े। इसलिए दयावान करुणा और गुणनि के निधान सब के कल्यान के विषय गवरनर जेनेरेल बहादुर की आयस से ऐसे साहस में चित्त लगाय के एक प्रकार से यह नया ठाट ठाटा...।[3]
यह पत्र पुस्तकाकार (१२x८) छपता था और हर मंगलवार को निकलता था। इसमें विभिन्न नगरों के सरकारी क्षेत्रों की विभिन्न गतिविधियाँ प्रकाशित होती थीं और उस समय की वैज्ञानिक खोजों तथा आधुनिक जानकारियों को भी महत्त्व दिया जाता था। इस पत्र में ब्रज और खड़ीबोली दोनों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे इस पत्र के संचालक "मध्यदेशीय भाषा" कहते थे। इसके उद्देश्य के सम्बन्ध में बांग्ला साप्ताहिक 'समाचार चंद्रिका' ने लिखा था कि
- अज्ञान तथा रूढ़ियों के अँधेरों में जकड़े हुए हिन्दुस्तानी लोगों की प्रतिभाओं पर प्रकाश डालने और 'उदंत मार्तण्ड' द्वारा ज्ञान के प्रकाशनार्थ' इस पत्र का श्री गणेश हुआ था। और, 'हिन्दुस्तान और नेपाल आदि देशों के लोगों, महाजनों तथा इंगलैंड के साहबों के बीच वितरित हुआ और हो रहा है।[4]
उन दिनों सरकारी सहायता के बिना, किसी भी पत्र का चलना प्रायः असंभव था। कंपनी सरकार ने ईसाई मिशनरियों के पत्र को तो डाक आदि की सुविधा दे रखी थी, परन्तु चेष्टा करने पर भी "उदन्त मार्तंड" को यह सुविधा प्राप्त नहीं हो सकी। इसके कुल ७९ अंक ही प्रकाशित हो पाए थे कि डेढ़ साल बाद दिसंबर, १८२७ ई को इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा।[5] इसके अंतिम अंक में लिखा है- उदन्त मार्तण्ड की यात्रा- मिति पौष बदी १ भौम संवत् १८८४ तारीख दिसम्बर सन् १८२७।
- आज दिवस लौं उग चुक्यौ मार्तण्ड उदन्त
- अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अन्त।
उन्होंने अपने सम्पादकीय के अन्त में ग्राहकों एवं पाठकों से निवेदन किया था कि "हमारे कुछ कहे-सुने का मन में न लाइयो जो दैव और भूधर मेरी अन्तरव्यथा और गुण को विचार सुधि करेंगे तो मेरे ही हैं। शुभमिति ।"
शुक्ल ने इस पत्र के बाद भी 'समदन्त मार्तण्ड' नामक एक और पत्र निकालने की हिम्मत जुटायी, लेकिन दुर्भाग्य से वह भी अल्पायु निकला।
उदन्त मार्तण्ड के प्रथम प्रकाशन की तिथि ३० मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। [6] भारतीय जनसंचार संस्थान ने अपने पुस्तकालय का नाम जुगल किशोर शुक्ल के नाम पर रखा है।[7][8]
सन्दर्भ
- ↑ उदंत
- ↑ "हिंदी पत्रकारिता के उद्भव की पृष्ठभूमि". सृजनगाथा. मूल से (एचटीएम) से 6 जनवरी 2009 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: २३ अप्रैल २००९.
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(help) - ↑ आज ही के दिन प्रकाशित हुआ था पहली हिंदी अखबार ‘उदन्त मार्तण्ड’[मृत कड़ियाँ]
- ↑ हिन्दी पत्रकारिता : रूपक बनाम मिथक, पृष्ठ २१ (लेखक - डॉ अनुशब्द)
- ↑ "भूमण्डलीकरण के दौर में हिन्दी". साहित्यकुंज. मूल से (एचटीएम) से 12 सितंबर 2010 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: २३ अप्रैल २००९.
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(help) - ↑ इसलिए मनाया जाता है हिन्दी पत्रकारिता दिवस
- ↑ भारतीय जनसंचार संस्थान ने अपने पुस्तकालय का नाम पंडित जुगल किशोर शुक्ला के नाम पर रखा है[मृत कड़ियाँ]
- ↑ सम्मान : हिंदी पत्रकारिता के प्रवर्तक के नाम पर होगा आईआईएमसी का पुस्तकालय