ऊदा देवी

1857 के संग्राम की पासी वीरांगना (1830-1857)

ऊदा देवी पासी, एक भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी थीं जिन्होने 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय सिपाहियों की ओर से युद्ध में भाग लिया था। ये अवध के छठे नवाब वाजिद अली शाह के महिला दस्ते की सदस्य थीं।[1] इस विद्रोह के समय हुई लखनऊ की घेराबंदी के समय लगभग 2000 भारतीय सिपाहियों के शरणस्थल सिकन्दर बाग़ पर ब्रिटिश फौजों द्वारा चढ़ाई की गयी थी और 16 नवंबर 1857 को बाग़ में शरण लिये इन 2000 भारतीय सिपाहियों का ब्रिटिश फौजों द्वारा संहार कर दिया गया था।[2][3]

उदा देवी पासी
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स्थानीय लोगों के अनुसार ऊदा देवी पासी का चित्र
जन्म - तिथि: 30 जून 1829
मृत्यु - तिथि: 16 नवंबर 1857
मृत्यु - स्थान: सिकंदर बाग, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
आंदोलन: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

इस लड़ाई के दौरान ऊदा देवी पासी ने पुरुषों के वस्त्र धारण कर स्वयं को एक पुरुष के रूप में तैयार किया था। लड़ाई के समय वो अपने साथ एक बंदूक और कुछ गोला बारूद लेकर एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गयी थीं। उन्होने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों को सिकंदर बाग़ में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया था जब तक कि उनका गोला बारूद खत्म नहीं हो गया।

 
सिकंदर बाग, जहां उदा देवी पासी ने 32 ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराया और वीरगति को प्राप्त हुईं

ऊदा देवी पासी के पति श्री मक्का पासी नवाब वाजिद अली शाह की सेना के एक सैनिक थे। वाजिद अली शाह दौरे वली अहदी में परीख़ाना की स्थापना के कारण लगातार विवाद का कारण बने रहे। फरवरी, 1847 में नवाब बनने के बाद अपनी संगीत प्रियता और भोग-विलास आदि के कारण बार-बार ब्रिटिश रेजीडेंट द्वारा चेताये जाते रहे। उन्होंने बड़ी मात्रा में अपनी सेना में सैनिकों की भर्ती की जिसमें लखनऊ के सभी वर्गों के गरीब लोगों को नौकरी पाने का अच्छा अवसर मिला। ऊदा देवी पासी के पति भी काफी साहसी व पराक्रमी थे, इनकी सेना में भर्ती हुए।

वाजिद अली शाह ने इमारतों, बाग़ों, संगीत, नृत्य व अन्य कला माध्यमों की तरह अपनी सेना को भी बहुरंगी विविधता तथा आकर्षक वैभव दिया। उन्होंने अपनी पलटनों को तिरछा रिसाला, गुलाबी, दाऊदी, अब्बासी, जाफरी जैसे फूलों के नाम दिये और फूलों के रंग के अनुरूप ही उस पल्टन की वर्दी का रंग निर्धारित किया। परी से महल बनी उनकी मुंहलगी बेगम सिकन्दर महल को ख़ातून दस्ते का रिसालदार बनाया गया। स्पष्ट है वाजिद अली शाह ने अपनी कुछ बेगमों को सैनिक योग्यता भी दिलायी थी। उन्होंने बली अहदी के समय में अपने तथा परियों की रक्षा के उद्देश्य से तीस फुर्तीली स्त्रियों का एक सुरक्षा दस्ता भी बनाया था। जिसे अपेक्षानुरूप सैनिक प्रशिक्षण भी दिया गया। संभव है ऊदा देवी पहले इसी दस्ते की सदस्य रही हों क्योंकि बादशाह बनने के बाद नवाब ने इस दस्ते को भंग करके बाकायदा स्त्री पलटन खड़ी की थी। इस पलटन की वर्दी काली रखी गयी थी।[1]

ऊदा देवी, १६ नवम्बर १८५७ को 36 अंग्रेज़ सैनिकों को मौत के घाट उतारकर वीरगति को प्राप्त हुई थीं।[2][3] ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें जब वो पेड़ से उतर रही थीं तब गोली मार दी थी। उसके बाद जब ब्रिटिश लोगों ने जब बाग़ में प्रवेश किया, तो उन्होने ऊदा देवी पासी का पूरा शरीर गोलियों से छलनी कर दिया। इस लड़ाई का स्मरण कराती ऊदा देवी पासी की एक मूर्ति सिकन्दर बाग़ परिसर में कुछ ही वर्ष पूर्व स्थापित की गयी है।

सार्जेण्ट फ़ॉर्ब्स मिशेल ने सिकंदर बाग के उद्यान में स्थित पीपल के एक बड़े पेड़ की ऊपरी शाखा पर बैठी एक ऐसी स्त्री का विशेष उल्लेख किया है, जिसने अंग्रेजी सेना के लगभग बत्तीस सिपाही और अफसर मारे थे। लंदन टाइम्स के संवाददाता विलियम हावर्ड रसेल ने लड़ाई के समाचारों का जो डिस्पैच लंदन भेजा उसमें पुरुष वेशभूषा में एक स्त्री द्वारा पीपल के पेड़ से फायरिंग करके तथा अंग्रेजी सेना को भारी क्षति पहुँचाने का उल्लेख प्रमुखता से किया। संभवतः लंदन टाइम्स में छपी खबरों के आधार पर ही कार्ल मार्क्स ने भी अपनी टिप्पणी में इस घटना को समुचित स्थान दिया।[1] इन्हें इसकी प्रेरणा अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पति मक्का पासी से प्राप्त हुई थी। 10 जून 1857 को लखनऊ के चिनहट कस्बे के निकट इस्माईलगंज में हेनरी लॉरेंस के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कम्पनी की फौज के साथ मौलवी अहमद उल्लाह शाह की अगुवाई में संगठित, विद्रोही सेना की ऐतिहासिक लड़ाई में मक्का पासी वीरगति को प्राप्त हुए थे। इसके प्रतिशोध स्वरूप उन्होंने कानपुर से आयी काल्विन कैम्बेल सेना के 32 सिपाहियों को मृत्युलोक पहुँचाया। इस लड़ाई में वे खुद भी वीरगति को प्राप्त हुईं। कहा जाता है इस स्तब्ध कर देने वाली वीरता से अभिभूत होकर काल्विन कैम्बेल ने हैट उतारकर शहीद ऊदा देवी को श्रद्धांजलि दी।

  1. उदा देवी:२[मृत कड़ियाँ]। बिग अड्डा। २४ अक्टूबर २००९। शकील सिद्दीकी
  2. वीरांगना ऊदा देवी पासी को याद करने पर भी माया सरकार का प्रतिबंध Archived 2010-11-28 at the वेबैक मशीन। स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम।
  3. बलिदान दिवस पर शिद्दत से याद की गई वीरांगना ऊदादेवी[मृत कड़ियाँ]। याहू जागरण। १६ नवम्बर २००९

बाहरी कड़ियाँ

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  • हिब्बर्ट, क्रिस्टोफर. ग्रेट म्यूटिनी :इण्डिया १८५७ (हार्ड बाउण्ड) (अंग्रेज़ी में). पपृ॰ ४७२. डीओआइ:ISBN 978-0-14-004752-3 |doi= के मान की जाँच करें (मदद).