ऋत्विक घटक
ऋत्विक घटक (बंगाली: ঋত্বিক (কুমার) ঘটক, ऋतिक (कुमार) घोटोक ; 4 नवम्बर 1925 – से 6 फ़रवरी 1976) एक बंगाली भारतीय फिल्म निर्माता और पटकथा लेखक थे। भारतीय फिल्म निर्देशकों के बीच घटक का स्थान सत्यजीत रे और मृणाल सेन के समान है।
ঋত্বিক ঘটক ऋत्विक घटक | |
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![]() ऋत्विक घटक के युवा कल के तस्वीर | |
जन्म | 4 नवम्बर 1925 ढाका, पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) |
मृत्यु | 6 फ़रवरी 1976 कोलकाता, भारत | (उम्र 50 वर्ष)
पेशा | फ़िल्म लेखक एवं निर्माता |
प्रारंभिक जीवन
संपादित करेंऋत्विक घटक का जन्म पूर्वी बंगाल में ढाका में हुआ था (अब बांग्लादेश)। [1] वे और उनका परिवार पश्चिम बंगाल में कलकत्ता में स्थानांतरित हो गये (अब कोलकाता) जिसके तुरंत बाद पूर्वी बंगाल से लाखों शरणार्थियों का इस शहर में आगमन शुरू हो गया, वे लोग विनाशकारी 1943 के बंगाल के अकाल और 1947 में बंगाल के विभाजन के कारण वहां से पलायन करने लगे थे। शरणार्थी जीवन का उनका यह अनुभव उनके काम में बखूबी नज़र आता है, जिसने सांस्कृतिक विच्छेदन और निर्वासन के लिए एक अधिभावी रूपक का काम किया और उनके बाद के रचनात्मक कार्यों को एक सूत्र में पिरोया. 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध ने भी, जिसके कारण और अधिक शरणार्थी भारत आये, उनके कार्यों को समान रूप से प्रभावित किया।
रचनात्मक कैरियर
संपादित करें1948 में, घटक ने अपना पहला नाटक कालो सायार (द डार्क लेक) लिखा और ऐतिहासिक नाटक नाबन्ना के पुनरुद्धार में हिस्सा लिया। 1951 में, घटक, इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (IPTA) के साथ जुड़े. उन्होंने नाटकों का लेखन, निर्देशन और उनमें अभिनय किया और बेर्टोल्ट ब्रेश्ट और गोगोल को बंगला में अनुवादित किया। 1957 में, उन्होंने अपने अंतिम नाटक ज्वाला (द बर्निंग) को लिखा और निर्देशित किया।
घटक ने फिल्म जगत में निमाई घोष के चिन्नामूल (1950) के साथ अभिनेता और सहायक निर्देशक के रूप में प्रवेश किया। चिन्नामूल के दो वर्ष बाद घटक की पहली पूर्ण फिल्म नागरिक (1952) आई, दोनों ही फ़िल्में भारतीय सिनेमा के लिए मील का पत्थर थीं।[2][3] घटक ने शुरूआती कार्यों में नाटकीय और साहित्यिक प्रधानता पर ज़ोर दिया और एक वृत्तचित्रीय यथार्थवाद, जो लोक रंग मंचों से ली गयी शैली के प्रदर्शन से युक्त होता था, उसे ब्रेश्टीयन फिल्म निर्माण के उपकरणो के उपयोग के साथ संयोजित किया।
अजांत्रिक (1958) घटक की पहली व्यावसायिक रिलीज़ थी, यह एक विज्ञान कथा विषय वाली कॉमेडी-ड्रामा फिल्म थी। निर्जीव वस्तु को दर्शाने वाली यह भारत की कुछ प्रारंभिक फिल्मों में से एक थी, जिसमें एक ऑटोमोबाइल को कहानी में एक चरित्र के रूप में पेश किया गया था।
फिल्म मधुमती (1958), पटकथा लेखक के रूप में घटक की सबसे बड़ी व्यावसायिक सफलता थी, यह पुनर्जन्म के विषय पर बनी सबसे पहली फिल्मों में से एक थी। यह एक हिंदी फिल्म थी जो एक अन्य बंगाली निर्देशक बिमल राय द्वारा निर्देशित थी। इस फिल्म के लिए घटक ने सर्वष्ठश्रे कहानी के फिल्मफेयर पुरस्कार का अपना पहला नामांकन अर्जित किया।
ऋत्विक घटक ने पूर्ण-लंबाई वाली आठ फिल्मों का निर्देशन किया। उनकी सबसे प्रसिद्ध फ़िल्में, मेघे ढाका तारा (बादलों से छाया हुआ सितारा) (1960), कोमल गंधार (ई-फ्लैट) (1961) और सुवर्णरिखा (स्वर्ण रेखा) (1962), कलकत्ता पर आधारित एक त्रयी थी जिसमें शरणार्थी-जीवन की हालत को संबोधित किया गया जो विवादास्पद साबित हुई और कोमल गंधार (ई-फ्लैट) और सुवर्णरिखा के वाणिज्यिक विफलता के बाद उन्होंने 1960 के दशक की यादों पर फ़िल्में बनाना छोड़ दिया। तीनों फिल्मों में, उन्होंने एक बुनियादी कहानी और कभी-कभी एक परस्पर विरोधी यथार्थवादी कहानी का इस्तेमाल किया, जिसपर उन्होंने कई मिथक संदर्भों को दर्ज किया था, विशेष रूप से मदर डीलिवर्र का जिसे उन्होंने दृश्यों और ध्वनी के घने उपरिशायी के माध्यम से प्रस्तुत किया।
1966 में घटक संक्षिप्त रूप से पुणे में स्थानांतरित हो गये, जहां उन्होंने भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (FTII) में शिक्षण किया। एफटीआईआई (FTII) में बिताए गये वर्षों के दौरान उन्होंने दो छात्र फिल्मों फीयर और रॉन्डेवू के निर्माण में योगदान किया।
1970 के दशक में घटक फिल्म निर्माण में तब वापस लौटे, जब 1973 में एक बांग्लादेशी निर्माता ने महाकाव्य तिताश एक्टि नोदीर नाम (तितास एक नदी का नाम है) को वित्तपोषित किया। अत्यधिक शराब के सेवन और उसके फलस्वरूप होने वाले रोगों के कारण उनके खराब स्वास्थ्य की वजह से उनके लिए फ़िल्में बनाना मुश्किल हो गया। उनकी आखिरी फिल्म आत्मकथात्मक थी जिसका नाम था जुक्ति तोक्को आर गोप्पो (युक्ति, बहस और कहानी) (1974), जिसमें उन्होंने मुख्य चरित्र नील्कंठो (नीलकंठ) की भूमिका निभाई.[4] उनके नाम पर कई अधूरी फीचर और लघु फ़िल्में थीं।
घटक के पिता सुरेश चंद्र घटक एक जिला मजिस्ट्रेट और साथ ही साथ एक कवि और नाटककार थे और उसकी मां का नाम इंदुबाला देवी था। वे उनके 11 वीं और सबसे छोटी सन्तान थे। उनके बड़े भाई मनीष घटक अपने समय के एक कट्टरपंथी लेखक, अंग्रेजी के प्रोफेसर और एक सामाजिक कार्यकर्ता थे, जो IPTA रंगमंच आंदोलन में उसके सुनहरे दिनों के दौरान गहरे रूप से शामिल थे और बाद में उन्होंने उत्तर बंगाल के तेभागा आंदोलन का नेतृत्व किया। लेखिका और कार्यकर्ता महाश्वेता देवी मनीष घटक की बेटी हैं। घटक की पत्नी सुरमा एक स्कूल शिक्षिका थीं और उनके पुत्र रित्बान एक फिल्म निर्माता है।
असर और प्रभाव
संपादित करेंउनकी मृत्यु के समय (फरवरी 1976), घटक का प्राथमिक प्रभाव, पूर्व छात्रों के माध्यम से होता हुआ प्रतीत हुआ। हालांकि एफटीआईआई में उनका फिल्म शिक्षण कार्यकाल संक्षिप्त था, कभी उनके छात्र रहे मणि कौल, जॉन अब्राहम और विशेष रूप से कुमार शाहनी ने घटक के विचारों और सिद्धांतों को भारतीय कलात्मक सिनेमा की मुख्य धारा में आगे बढ़ाया, जिनका विस्तृत वर्णन उनकी किताब सिनेमा एंड आई में मिलता है। एफटीआईआई में उनके अन्य छात्रों में शामिल है बहुप्रशंसित फिल्म निर्माता सईद अख्तर मिर्जा और अदूर गोपालकृष्णन.[5]
घटक पूरी तरह से भारतीय व्यावसायिक फिल्म की दुनिया के बाहर थे। व्यावसायिक सिनेमा की कोई भी विशेषता (गायन और नृत्य, नाटकीयता, सितारे, चकाचौंध) उनके काम में नज़र नहीं आती है।[उद्धरण चाहिए] उनकी फ़िल्में आम जनता के बजाये छात्रों और बुद्धिजीवियों द्वारा देखी जाती थी। उनके छात्रों में भी कलात्मक सिनेमा या स्वतंत्र सिनेमा परंपरा में काम करने की प्रवृत्ति है।
जबकि अन्य यथार्थवादी निर्देशक जैसे सत्यजीत रे अपने जीवन काल में ही भारत से बाहर दर्शक बनाने में सफल रहे, इस मामले में घटक इतने भाग्यशाली नहीं रहे। उनके जीवन काल के दौरान, उनकी फ़िल्में मुख्यतः भारत में ही सराही गई। सत्यजीत रे ने अपने सहयोगी को बढ़ावा देने के लिए यथा संभव प्रयास किये, लेकिन रे की उदार प्रशंसा भी घटक के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्याति जुटा पाने में असमर्थ रही। उदाहरण के लिए, घटक की फिल्म नागोरिक (1952) शायद बंगाली कलात्मक फिल्मों में सबसे पहली थी, जिसके तीन वर्ष बाद रे की पाथेर पांचाली आई, लेकिन घटक की फिल्म 1977 में उनकी मृत्यु के पश्चात ही रिलीज़ हो पाई.[2][3] उनकी पहली व्यावसायिक रिलीज़ अजांत्रिक (1958) भी निर्जीव वस्तुओं को, इस फिल्म में एक ऑटोमोबाइल, कहानी के चरित्र के रूप में चित्रित करने वाली पहली भारतीय फिल्मों में से एक थी, हर्बी फिल्मों के कई वर्ष पहले.[6] घटक की बाड़ी थेके पालिए (1958)) की कहानी फ्रांकोइस त्रुफाउट की बाद की फिल्म दी 400 ब्लोज़ (1959) के समान थी, लेकिन घटक की फिल्म गुमनामी में रही जबकि त्रुफाउट की फिल्म आगे चल कर फ्रेंच न्यू वेव की सर्वाधिक प्रसिद्ध फिल्मों में से एक बनी। घटक की अंतिम फिल्मों में से एक, ए रिवर नेम्ड तितास (1973), एक हाइपरलिंक प्रारूप में कही जाने वाली सबसे पहली फिल्मों में से एक थी, जिसमें परस्पर जुड़ी कहानियों में कई पात्रों का एक संग्रह दिखाया गया और यह रॉबर्ट ऑल्ट्मन की फिल्म नैशविले (1975) से दो वर्ष पहले बनी।
घटक की एकमात्र प्रमुख व्यावसायिक सफलता फिल्म मधुमति (1958) थी, जो एक हिंदी फिल्म है और उन्होंने इसकी पटकथा लिखी थी। पुनर्जन्म के विषय वाली यह सबसे पहली फिल्मों में से एक थी और यह माना जाता है कि यह फिल्म बाद के कई भारतीय सिनेमा, भारतीय टेलीविजन और शायद विश्व सिनेमा में पुनर्जन्म के विषय का स्रोत बनी रही। यह अमेरिकी फिल्म दी रीइंकारनेशन ऑफ़ पीटर प्राउड (1975) और हिंदी फिल्म कर्ज़ (1980) के लिए प्रेरणा स्रोत बनी, जिनमें से दोनों ही फ़िल्में पुनर्जन्म से सम्बंधित थी और अपनी-अपनी संस्कृतियों पर प्रभावशाली रही। [7] विशेष रूप से कर्ज़ को कई बार पुनर्निमित किया गया: कन्नड़ फिल्म युग पुरुष (1989), तमिल फिल्म एनाकुल ओरूवन (1984) और हालिया बॉलीवुड फिल्म कर्ज (Karzzzz) (2008) के रूप में. कर्ज़ और दी रीइंकारनेशन ऑफ़ पीटर प्राउड ने संभवतः अमेरिकी फिल्म चांसेज आर (1989) को प्रेरित किया।[7] सबसे हालिया फिल्म जो सीधे मधुमति से प्रेरित हुई वह है हिट बॉलीवुड फिल्म ओम शांति ओम (2007) है, जिसके कारण बिमल रॉय की बेटी रिंकी भट्टाचार्य ने इस फिल्म पर साहित्यिक चोरी का आरोप लगाया और उसके निर्माता के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की धमकी दी। [8][9]
निर्देशक के रूप में घटक के काम ने भी बाद के कई भारतीय फिल्म निर्माताओं पर प्रभाव डाला, जिनमें बंगाली फिल्म उद्योग और अन्यत्र के लोग भी शामिल थे। उदाहरण के लिए, मीरा नायर ने अपने फिल्म निर्माता बनने के कारण के रूप में घटक और रे का नाम उद्धृत किया।[10] एक निर्देशक के रूप में घटक का प्रभाव भारत के बाहर बहुत देर से फैला; जिसकी शुरुआत 1990 के दशक में हुई, घटक की फिल्मों को पुनर्स्थापित करने की एक परियोजना और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों (और बाद के डीवीडी रिलीज) ने देर से ही सही तेजी से वैश्विक दर्शक उत्पन्न किए। 1998 में एशियाई फिल्म पत्रिका सिनेमाया द्वारा कराए गये सर्वकालिक महान फिल्म के लिए आलोचकों के मतदान में, सुवर्णरेखा को सूची में 11वां स्थान दिया गया।[11] 2002 में सर्वकालिक महान फिल्म के लिए आलोचकों और निर्देशकों की दृष्टि और ध्वनि (साईट एंड साउंड) मतदान में मेघे ढाका तारा को सूची में 231 स्थान पर और गंधार कोमल को 346 स्थान पर रखा गया।[12] 2007 में, ब्रिटिश फिल्म संस्थान द्वारा करवाए गये 10 सर्वश्रेष्ठ बांग्लादेशी फिल्मों के लिए एक दर्शकों और आलोचकों के मतदान में ए रिवर नेम्ड तितास ने सूची में प्रथम स्थान हासिल किया।[13]
कार्य
संपादित करेंफिल्में
संपादित करेंनिर्देशक और पटकथा लेखक
संपादित करें- नागोरिक (नागरिक) (1952)
- अजांत्रिक (अयान्त्रिक, दयनीय भ्रान्ति) (1958)
- बाड़ी थेके पालिए (भगोड़ा) (1958)
- मेघे ढाका तारा (बादलों से छाया हुआ सितारा) (1960)
- कोमोल गंधार (ई-फ्लैट) (1961)
- सुवर्णरेखा (1962/1965)
- तिताश एक्टि नादिर नाम (तिताश एक नदी का नामक) (1973)
- जुक्ति तोक्को आर गोप्पो (कारण, बहस और एक कहानी) (1974)
पटकथा लेखक
संपादित करें- मुसाफिर (1957)
- मधुमती (1958)
- स्वरलिपि (1960)
- कुमारी मोन (1962)
- दीपेर नाम टिया रोंग (1963)
- राजकन्या (1965)
अभिनेता (एक्टर)
संपादित करें- तोथापी (1950)
- चिन्नामूल (1951)
- कुमारी मोन (1962)
- सुवर्णरेखा (1962)
- तितस एक्टि नादिर नाम (1973)
- जुक्ति, तोक्को, आर गोप्पो (1974)
लघु फ़िल्में और वृत्तचित्र
संपादित करें- दी लाइफ ऑफ़ दी आदिवासिज़ (1955)
- प्लेसेज ऑफ़ हिस्टोरिक इंटरेस्ट इन बिहार (1955)
- सीजर (1962)
- फीयर (1965)
- रॉन्डेवूज़ (1965)
- सिविल डिफेन्स (1965)
- कल के वैज्ञानिक (1967)
- ये क्यों (क्यों /एक प्रश्न) (1970)
- आमार लेनिन (मेरा लेनिन) (1970)
- पुरुलियर छाऊ (पुरुलिया का छाऊ नृत्य) (1970)
- दुर्बार गाटी पद्मा (अशांत पद्म) (1971)
अधूरी फ़िल्में और वृत्तचित्र
संपादित करें- बेदेनी (1951)
- कोतो ऑजानारे (1959)
- बोगोलार बोंगोदोर्शों (1964-65)
- रोंगेर ग़ोलाम (1968)
- रामकिंकर (1975)
शूटिंग से पहले बंद कर दी गई पटकथाएं
संपादित करें- ओकाल बोसोंतो (1957)
- अमृतोकुम्भेर सोंधाने (1957)
- अर्जन सरदार (1958)
- बोलिदान (1963)
- अरोन्य्क (1963)
- श्याम से नेहा लागी (1964)
- संसार सिमानते (1968)
- पद्दा नादिर माझी
- नोतून फोसोल
- राजा
- सेई बिष्णुप्रिया
- प्रिंसेस कोलाबोती
- लोज्जा
रंगमंच
संपादित करें- चोंद्रोगुप्तो (द्विजेनद्रलाल रे), अभिनेता
- अचलायोतों (टैगोर) (1943), निर्देशक और अभिनेता
- कालो सायोर (घटक) (1947-1948), अभिनेता और निर्देशक
- कोलोंको (भट्टाचार्य) (1951), अभिनेता
- दोलिल (घटक) (1952), अभिनेता और निर्देशक
- कोतो धाने कोतो चाल (घटक) (1952)
- ऑफिसर (गोगोल) (1953), अभिनेता,
- इस्पात (घटक) (1954-1955), अमंचित
- खोरीर गोंडी (बर्टोल्ट ब्रेश्ट)
|ब्रेश्ट)
- गैलिलियो चोरिट (ब्रेश्ट)
- जागोरोन (अतीन्द्र मोज़ुमदार), अभिनेता
- जोलोंतो (घटक)
- जाला (घटक)
- डाकघोर (टैगोर)
- ढेऊ (बीरू मुखोपाध्याय)
- ढेंकी स्वर्गे गेलो धान भोने (घटक/पानू पॉल)
- नातिर पूजा (टैगोर)
- नोबोंनो (भट्टाचार्य)
- नीलदोरपन (दिनोंबोंधू मित्रा), अभिनेता
- निचेर महल (गोर्की), अमंचित
- नेताजीके नीये (घटक)
- पोरित्रान (टैगोर)
- फाल्गुनी (टैगोर)
- बिद्यासागोर (बोनोफूल)
- बिसर्जन (टैगोर)
- वंगाबांदोर (पानू पॉल), अभिनेता
- वोटर वेट (पानू पॉल), अभिनेता
- मुसाफिरों के लिए (गोर्की), अभिनेता
- मैकबेथ (शेक्सपियर), अभिनेता
- राजा (टैगोर)
- सांको (घटक), अभिनेता
- सेई मेये (घटक), निदेशक
- स्त्रीर पत्रो (टैगोर)
- होजोबोराला (सुकुमार राय)
पुस्तकें
संपादित करें- ऋत्विक घोटोकेर गॉलपो (जिसमें लघु कहानियां "गाच्टी", "शिखा", "रूपकोथा", "चोख", "कॉमरेड", "प्रेम", "मार" और "राजा" भी शामिल है)
- गैलिलियो चोरित (ब्रेश्ट द्वारा लिखे लाइफ ऑफ़ गैलीलियो का बंगाली अनुवाद)
- जाला (नाटक)
- दोलिल (नाटक)
- मेघे ढाका तारा (पटकथा)
- चोलोचित्रो, मानुस एबोंग आरो किछु
- सिनेमा एंड आई, ऋत्विक मेमोरियल ट्रस्ट, कोलकाता
- ऑन कल्चरल फ्रंट
- रोज़ एंड रोज़ ऑफ़ फेंसेज़: ऋत्विक घटक ऑन सिनेमा, सीगल पुस्तक प्रा. लिमिटेड, कोलकाता
- ऋत्विक घटक कहानियां, बांगला से रानी रे द्वारा अनुवादित नई दिल्ली, सृष्टि प्रकाशक और वितरक
- ऋत्विक घटक की कहानियाँ, बांग्ला से हिंदी में चंद्रकिरण राठी द्वारा अनूदित, संभावना प्रकाशन
अतिरिक्त पठन
संपादित करें- ऋत्विक: सुरमा घटक, कलकत्ता, आशा प्रोकाशनी
- ऋत्विक और उनकी फिल्में: दो संस्करणों में, रजत रे द्वारा संपादित
- ऋत्विक कुमार घटक: रजत रे द्वारा संपादित, श्रीष्टि प्रोकाशॉन
- ऋत्विकके शेष भालोबाषा: प्रोतिती देवी, बांग्लादेश, साहित्य प्रकाश
- ऋत्विकतोंत्रो: संजय मुखोपाध्याय, कोलकाता ऋत्विक सिने सोसाइटी
- ऋविक कुमार घटक: (एक मोनोग्राफ) हैमोंती बैनर्जी, राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय, पुणे
नोट्स
संपादित करें- ↑ हूड, जे. डब्ल्यू.: दी एसेंशीय्ल मिस्ट्री पृष्ठ 20.
- ↑ अ आ Ghatak, Ritwik (2000), Rows and Rows of Fences: Ritwik Ghatak on Cinema, Ritwik Memorial & Trust Seagull Books, pp. ix & 134–36, ISBN 8170461782
- ↑ अ आ Hood, John (2000), The Essential Mystery: The Major Filmmakers of Indian Art Cinema, Orient Longman Limited, pp. 21–4, ISBN 8125018700
- ↑ हूड, जे. डब्ल्यू.: दी एसेंशीय्ल मिस्ट्री, पृष्ठ 45.
- ↑ Chitra Parayath (8/11/2004). "Summer Viewing - The Brilliance Of Ritwik Ghatak". Lokvani. Archived from the original on 17 जुलाई 2011. Retrieved 30 मई 2009.
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(help) - ↑ Carrigy, Megan (अक्टूबर 2003), "Ritwik Ghatak", Senses of Cinema, archived from the original on 30 अप्रैल 2009, retrieved 3 मई 2009
- ↑ अ आ Doniger, Wendy (2005), "Chapter 6: Reincarnation", The woman who pretended to be who she was: myths of self-imitation, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, pp. 112–136 [135], ISBN 0195160169
- ↑ अशांति नैग्स ओम शांति ओम Archived 2007-10-24 at the वेबैक मशीन मुंबई मिरर, 7 अगस्त 2008.
- ↑ "शाहरुख, फराह पर मुकदमा: लेखक ने दावा किया की शाहरुख खान ने ओम शांति ओम के लिए उसकी स्क्रिप्ट चुराया". Archived from the original on 13 अप्रैल 2009. Retrieved 20 अक्तूबर 2010.
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(help) - ↑ "Why we admire Ray so much". Naachgana. 14 अप्रैल 2009. Archived from the original on 17 अप्रैल 2009. Retrieved 6 जून 2009.
- ↑ Totaro, Donato (31 जनवरी 2003), "The "Sight & Sound" of Canons", Offscreen Journal, Canada Council for the Arts, archived from the original on 26 अगस्त 2012, retrieved 19 अप्रैल 2009
- ↑ "2002 Sight & Sound Top Films Survey of 253 International Critics & Film Directors". Cinemacom. 2002. Archived from the original on 31 मई 2012. Retrieved 19 अप्रैल 2009.
- ↑ "Top 10 Bangladesh Films". British Film Institute. 17 जुलाई 2007. Archived from the original on 27 मई 2009. Retrieved 14 मार्च 2009.
सन्दर्भ
संपादित करें- Carrigy, Megan (अक्टूबर 2003), "Ritwik Ghatak", Senses of Cinema, archived from the original on 30 अप्रैल 2009, retrieved 3 मई 2009
- Hood, John W. (2000), The Essential Mystery: Major Filmmakers of Indian Art Cinema, नई दिल्ली: Orient Longman, ISBN 8125018700
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- इंटरनेट मूवी डेटाबेस पर Ritwik Ghatak
- घटक के साथ साक्षात्कार भारतीय औट्यूर में
- कलकत्तावेब पर घटक
- सिनेमा के सेंसेज़: महान निर्देशकों के क्रिटिकल डेटाबेस
- जीवनी
- फिल्म समीक्षा एक्क्वेरेलो
- मोइनाक बिस्वास द्वारा किंशिप एंड हिस्ट्री इन ऋत्विक घटक
- रेमंड बेलौर द्वारा द फिल्म वी एकम्प्नी
- जोनेथन रोसेनबम द्वारा ऋत्विक घटक-रीइन्वेंटिंग सिनेमा
- ऋत्विक घटक के सिनेमा पर एक विशेष अंक