मृणाल सेन

भारतीय फिल्म निर्देशक

मृणाल सेन (बांग्ला: মৃণাল সেন मृणाल् शेन्) भारतीय फ़िल्मों के प्रसिद्ध निर्माता व निर्देशक थे। इनकी अधिकतर फ़िल्में बांग्ला भाषा में रही हैं। उनका जन्म फरीदपुर नामक शहर में (जो अब बंगला देश में है) में १४ मई १९२३ में हुआ था। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने बाद उन्होंने शहर छोड़ दिया और कोलकाता में पढ़ने के लिये आ गये। वह भौतिक शास्त्र के विद्यार्थी थे और उन्होंने अपनी शिक्षा स्कोटिश चर्च कॉलेज़ एवं कलकत्ता यूनिवर्सिटी से पूरी की। अपने विद्यार्थी जीवन में ही वे वह कम्युनिस्ट पार्टी के सांस्कृतिक विभाग से जुड़ गये। यद्यपि वे कभी इस पार्टी के सदस्य नहीं रहे पर इप्टा से जुड़े होने के कारण वे अनेक समान विचारों वाले सांस्कृतिक रुचि के लोगों के परिचय में आ गए। उन्हें अक्सर वैश्विक मंच पर बंगाली समानांतर सिनेमा के सबसे बड़े राजदूतों में से एक माना जाता है।[1]

मृणाल सेन
মৃনাল সেন

मृणाल सेन
जन्म 14 मई 1923
फरीदपुर, पूर्वी बंगाल, ब्रिटिश भारत
मौत दिसम्बर 30, 2018(2018-12-30) (उम्र 95 वर्ष)
कोलकाता, भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
पेशा फिल्म निर्माता
कार्यकाल 1955–2002
जीवनसाथी गीता सेन (वि॰ 1952; her death 2017)
पुरस्कार पद्म विभूषण (1983)
ऑर्डर ऑफ फ्रैन्डशिप (2000)

प्रारम्भिक जीवन

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संयोग से एक दिन फिल्म के सौंदर्यशास्त्र पर आधारित एक पुस्तक उनके हाथ लग गई। जिसके कारण उनकी रुचि फिल्मों की ओर बढ़ी। इसके बावजूद उनका रुझान बुद्धिजीवी रहा और मेडिकल रिप्रेजन्टेटिव की नौकरी के कारण कलकत्ता से दूर होना पड़ा। यह बहुत ज्यादा समय तक नहीं चला। वे वापस आए और कलकत्ता फिल्म स्टूडियो में ध्वनि टेक्नीशीयन के पद पर कार्य करने लगे जो आगे चलकर फिल्म जगत में उनके प्रवेश का कारण बना।

निर्देशन का प्रारंभ

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१९५५ में मृणाल सेन ने अपनी पहली फिल्म रातभोर बनाई। उनकी अगली फिल्म नील आकाशेर नीचे ने उनको स्थानीय पहचान दी और उनकी तीसरी फिल्म बाइशे श्रावण ने उनको अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलाई।

भारत में समांतर सिनेमा

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पांच और फिल्में बनाने के बाद मृणाल सेन ने भारत सरकार की छोटी सी सहायता राशि से भुवन शोम बनाई, जिसने उनको बड़े फिल्मकारों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया और उनको राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्रदान की। भुवन शोम ने भारतीय फिल्म जगत में क्रांति ला दी और कम बजट की यथार्थपरक फ़िल्मों का 'नया सिनेमा' या 'समांतर सिनेमा' नाम से एक नया युग शुरू हुआ।[2]

सामाजिक संदर्भ और उनका राजनैतिक प्रभाव

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इसके उपरान्त उन्होंने जो भी फिल्में बनायीं वह राजनीति से प्रेरित थीं जिसके कारण वे मार्क्सवादी कलाकार के रूप में जाने गए।[3] वह समय पूरे भारत में राजनीतिक उतार चढ़ाव का समय था। विशेषकर कलकत्ता और उसके आसपास के क्षेत्र इससे ज्यादा प्रभावित थे, जिसने नक्सलवादी विचारधारा को जन्म दिया। उस समय लगातार कई ऐसी फिल्में आयीं जिसमें उन्होंने मध्यमवर्गीय समाज में पनपते असंतोष को आवाज़ दी। यह निर्विवाद रूप से उनका सबसे रचनात्मक समय था।

३० दिसम्बर २०१८ को मृणाल सेन का उनके कोलकता स्थित निज निवास में ९५ वर्ष की आयु में हृदयाघात से निधन हो गया। वह लंबे समय से कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे।[4]

सम्मान और पुरस्कार

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मृणाल सेन को भारत सरकार द्वारा १९८१ में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। भारत सरकार ने उनको 'पद्म विभूषण' पुरस्कार एवं २००५ में 'दादा साहब फाल्के' पुरस्कार प्रदान किया। उनको १९९८ से २००० तक मानक संसद सदस्यता भी मिली। फ्रांस सरकार ने उनको "कमान्डर ऑफ द ऑर्ट ऑफ ऑर्ट एंडलेटर्स" उपाधि से एवं रशियन सरकार ने "ऑर्डर ऑफ फ्रेंडशिप" सम्मान प्रदान किये।

मृणाल सेन को अपनी फिल्मों के लिये देश-विदेश से कई सम्मान हासिल हुए है, उनकी कुछ विशेष कृति नीचे दिये गये है:

सर्वश्रेष्ठ फिल्म (आलो.)
1976 मृगया (फिल्म)
सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले
1984 खंडहर

सर्वश्रेष्ठ निर्देशक
1969 भुवन शोमे
1979 एक दिन प्रतिदिन
1980 अकालेर संधाने
1984 खंडहर
सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले
1974 पदातिक
1983 अकालेर संधाने
1984 खारीज़

मास्को फिल्म समारोह - रजत पुरस्कार
1975 सहगान
1979 परशुराम
कार्लोवी वैरी फिल्म फेस्टिवल - विशेष जूरी पुरस्कार
1977 ओका ओरी कथा
बर्लिन फिल्म फेस्टिवल - इंटरफिल्म अवार्ड
1979 परशुराम
1981 अकलेर सांधाने
बर्लिन फिल्म महोत्सव - ग्रैंड ज्यूरी पुरस्कार
1981 अकलेर सांधाने
कान्स फिल्म फेस्टिवल - जूरी प्राइज
1983 खारिज़
वैलाडोलिड फिल्म फेस्टिवल - गोल्डन स्पाइक
1983 खारिज़
शिकागो फिल्म समारोह - सर्वश्रेष्ठ फिल्म
1984 खानधार
मॉन्ट्रियल फिल्म फेस्टिवल - जूरी का विशेष पुरस्कार
1984 खानधार
वेनिस फिल्म फेस्टिवल - माननीय मेंशन
1989 एक दिन अचानक
काहिरा फ़िल्म समारोह - सर्वश्रेष्ठ निर्देशक
2002 आमेर भुवन

वह गेबरियल गार्सिय मार्क्यूज़ के मित्र हैं एवं कई बार अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में जज के रूप में कार्य कर चुके हैं। २००४ में मृणाल सेन ने अपने ऊपर लिखी पुस्तक " ऑलवेज़ बींग बार्न" प्रकाशित की।

प्रसिद्ध फिल्में

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  • रातभोर
  • नील आकाशेर नीचे
  • बाइशे श्रावण
  • पुनश्च
  • अवशेष
  • प्रतिनिधि
  • अकाश कुसुम
  • मतीरा मनीषा
  • भुवन शोम
  • इच्छा पुराण
  • इंटरव्यू
  • एक अधूरी कहानी
  • कलकत्ता १९७१
  • बड़ारिक
  • कोरस
  • मृगया
  • ओका उरी कथा
  • परसुराम
  • एक दिन प्रतिदिन
  • आकालेर सन्धाने
  • चलचित्र
  • खारिज
  • खंडहर
  • जेंनसिस
  • एक दिन अचानक
  • सिटी लाईफ-कलकत्ता भाई एल-डराडो
  • महापृथ्वी
  • अन्तरीन
  • १०० ईयर्स ऑफ सिनेमा
  • आमार भुवन
  1. "Memories from Mrinalda". Rediff. Rediff.com. February 1, 2005. मूल से 18 सितंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि January 27, 2010.
  2. Vasudev, Aruna (1986). The New Indian Cinema. Macmillan India. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-333-90928-3.
  3. Thorval, Yves (2000). Cinemas of India. Macmillan India. पपृ॰ 280–282. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-333-93410-5.
  4. "दादासाहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित दिग्गज फिल्म निर्माता मृणाल सेन का 95 साल की उम्र में निधन". एनडीटीवी इंडिया. मूल से 30 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 दिसम्बर, 2018. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
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