एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (भारत)

एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (अंग्रेज़ी: Integrated coastal zone management) या एकीकृत तटीय प्रबंधन तटीय क्षेत्रों के प्रबंधन की एक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया धारणीयता की प्राप्ति के लिए तटीय क्षेत्रों के सभी पहलुओं, भौगोलिक और राजनीतिक सीमाओं को समाविष्ट करते हुए, पर एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। यह अवधारणा पहली बार १९९२ में रियो डि जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन के दौरान अस्तित्व में आयी।

तटीय क्षेत्र की परिभाषा संपादित करें

एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन के लिए तटीय क्षेत्रों को परिभाषित करना महत्त्वपूर्ण है। हालांकि अपनी गत्यात्मक प्रकृति के कारण सीमाओं की अस्पष्टता तटीय क्षेत्रों की किसी भी स्पष्ट परिभाषा निर्धारित करने में बड़ी बाधा उत्पन्न करती है। अगर आसान शब्दों में समझना हो तो तट एक ऐसे क्षेत्र को कह सकते हैं जहाँ थल और समुद्रीय सीमाओं का आपसी मिलान हो। केचम (१९७२) ने तटीय क्षेत्र को थल और निकटवर्ती सागरीय क्षेत्र (जल और जलमग्न भूमि) के रूप में परिभाषित किया है जिसमें भूमध्यरेखीय प्रक्रियाएँ और स्थलीय उपयोग के साथ महासागरीय प्रक्रियाएँ और उपयोग सीधे-सीधे एक दूसरे को प्रभावित करती हैं।[1]

एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन अधिनियम २०११ संपादित करें

एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन की संकल्पना को क्रियान्वित करने के लिए भारत सरकार ने एम॰ एस॰ स्वामीनाथन समिति[2] की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना, १९९१[3] में संशोधन कर एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन अधिनियम २०११ को अधिसूचित किया है। नये अधिनियम के तहत तटीय रेखा को ५ जोख़िम रेखाओं में विभाजित किया गया है। पहली बार द्वीपों को तटीय क्षेत्र से अलग दर्ज़ा देते हुए द्वीपीय सुरक्षा क्षेत्र, २०११ की अधिसूचना जारी की गयी है।[4] विश्व बैंक द्वारा इस परियोजना हेतु १५०० करोड़ रुपये, जो कुल व्यय का ७७ प्रतिशत अनुमानित है, की वित्तीय सहायता दी जाएगी। विश्व बैंक, केंद्र तथा राज्य का वित्तीय सहभागिता अनुपात क्रमशः ७७: १५: ८ रहने का प्रावधान है। एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन हेतु तकनीकी शीर्ष संस्था चेन्नई स्थित अन्ना विश्वविद्यालय को बनाया गया है। प्रशासनिक संचालन हेतु शीर्षस्थ संस्था के रूप में एस.आई.सी.ओ.एम.(एकीकृत क्षेत्रीय प्रबंधन सोसायटी) को नियुक्त किया गया है। एस.आई.सी.ओ.एम. द्वारा भारत के अलग-अलग स्थानों के लिए एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना को अपनाया गया है। ये स्थान है- कच्छ की खाड़ी(गुजरात), पारादीप(धामरा, उड़ीसा), गोपालपुर (चिल्का क्षेत्र, उड़ीसा), सागरद्वीप (पश्चिम बंगाल, गंगा के मुहाने पर) तथा दीघा शंकरपुर (पश्चिम बंगाल)।[5] २०११ में दो और स्थानों, दाण्डी(गुजरात) तथा वेदारण्यम(तमिलनाडु) को शामिल किया गया है। हालांकि एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन अधिनियम वर्तमान में केवल तीन राज्यों- गुजरात, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में पायलट परियोजना के रूप में प्रारंभ की गयी है। पायलट परियोजना के सफलतापूर्वक पूरा होने पर इसे पूरे देश में राष्ट्रीय तटीय प्रबंधन कार्यक्रम के नाम से लागू किया जायगा।

सागरीय तट तथा किनारा संपादित करें

सामान्यतया तट तथा किनारे को प्रायः पर्यावाची के तौर पर लिया जाता है, परंतु इन दोनों में पर्याप्त अंतर है। सागरीय किनारा सागर के उस भाग को कहते हैं, जो कि सबसे अधिक ज्वारीय जल की सीमा के मध्य होता है। सागरीय किनारे की रेखा (shore line) उसे कहते हैं, जो कि किसी भी समय जल तल की सीमा निर्धारित करती है। आशय कि किनारे की रेखा उच्च तथा निम्न ज्वार के मध्य सागरीय जल की स्थल की ओर अन्तिम सीमा को प्रदर्शित करती है। इस तरह उच्च तथा निम्न ज्वार के समय किनारे की रेखा बदलती रहती है। हालांकि व्यावहारिक तौर पर इस सामान्य अन्तर को महत्व न देकर सागरीय तट तथा किनारे की रेखा को समानार्थी ही समझा जाता है। सागरीय किनारे के तीन भाग होते हैं :

  • पहला- जहाँ पर सागरीय तरंगे आगे बढ़कर पहुँचती हैं, उसे पृष्ठ किनारा (back shore) कहते हैं। किनारे का यह भाग स्थल की ओर की अन्तिम सीमा है।
  • दूसरा- सागरीय जल जहाँ पर सदैव विद्यमान रहता है, उसे अग्रिम किनारा (foreshore) कहते हैं।
  • तीसरा- महाद्वीपीय ढाल का शेष उथला भाग जो कि सागरीय जल द्वारा आवृत्त रहता है, बाहरी किनारा या सुदूर किनारा (offshore) कहा जाता है। पृष्ठ किनारे पर सागरीय जल सदैव नहीं पहुँच पाता है। सागरीय किनारे से स्थल की ओर का भाग तट कहा जाता है।[6]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. KETCHUM, B. H. 1972. The water's edge: critical problems of the coastal zone. In: Coastal Zone Workshop, 22 May-3 जून 1972 Woods Hole, Massachusetts. Cambridge: MIT Press.
  2. Report of Draft Coastal Management Zone submitted to Moef today Archived 2013-10-16 at the वेबैक मशीन पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार के आधिकारिक जालघर पर
  3. "Coastal Regulation Zone Notification, 1991". मूल से 16 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अक्तूबर 2013.
  4. LAPSING OF THE COASTAL MANAGEMENT ZONE (CMZ) NOTIFICATION, 2008 Archived 2013-10-16 at the वेबैक मशीन MINISTRY OF ENVIRONMENT & FORESTS, GOVERNMENT OF INDIA
  5. http://www.iczmpodisha.org/news_and_events.htm%20www.iczmpodisha.org/news_and_events.htm[मृत कड़ियाँ]
  6. भौतिक भूगोल का स्वरूप, सविन्द्र सिंह, प्रयाग पुस्तक भवन, इलाहाबाद, २०१२, ISBN: 81-86539-74-3, पृष्ठ- २९३

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें