एनोड किरणें

सकारत्मक आयन की किरण जो कुछ प्रकार के गैस मुक्ति ट्यूबों से बनती है

एनोड किरणें, धन किरणें या नालिका किरणें धनात्मक आयनों से निर्मित किरणपुंज है जो कुछ गैस नलियों में उत्पन्न होतीं है। इन्हें सबसे पहले १८८६ में जर्मन भौतिकशास्त्री ऑयगन गोल्डस्टीन ने क्रुक्स-नली में प्रयोग करते समय देखा था। बाद में एनोड किरणों पर विल्हेल्म वीन तथा जे॰ जे॰ थॉम्सन ने कार्य किए जिसके परिणामस्वरूप द्रव्यमान स्पेक्ट्रममिति का विकास हुआ।

एनोड किरण नली छिद्रित कैथोड से गुजरने वाली किरणों को दिखाती है और इसके ऊपर गुलाबी चमक उत्पन्न करती है।

इतिहास संपादित करें

बहुत कम दाब पर किसी गैस नलिका में विद्युता विसर्जन करने पर कैथोड किरणों की उत्पत्ति होती है। ये कैथोड किरणें इलेक्ट्रॉनों की धाराएँ मात्र हैं, यह तथ्य फैराडे और क्रुक्स ने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ही ज्ञात कर लिया था और इसकी भली प्रकार पुष्टि कर ली थी। अत्यंत तीव्र विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में इलेक्ट्रॉन गैसीय परमाणुओं से विलग हो जाते हैं और तत्काल प्रबल वेग से धनाग्र की ओर भागते हैं। तेज पलायन के क्रम में वे गैस के उदासीन परमाणुओं से टकराते हैं और उनके एक एक इलेक्ट्रॉन को भी मुक्त कर देते हैं। इस प्रकार मुक्त होनेवाले इलेक्ट्रॉन भी अपने मुक्तिदाता इलेक्ट्रॉनों की भाँति बड़े वेग से धनाग्र की ओर भागते हैं और इन्हीं के प्रवाह से कैथोड किरणों की सृष्टि होती है।

गैसीय परमाणुओं में से इस प्रकार इलेक्ट्रॉनों के निकल जाने से यह अनुमान करना सर्वथा स्वाभाविक ही है कि अवशिष्ट परमाणु धनावेशिक होंगे, धनायनों (positive ions) की भाँति व्यवहार करेंगे और ये इलेक्ट्रानों की विपरीत दिशा में अर्थात् ऋणाग्र (cathode) की ओर चलेंगे, किंतु इनका वेग, इनकी अपेक्षाकृत बृहत् संहति के कारण, इलेक्ट्रानों की अपेक्षा पर्याप्त कम होगा। ऋणाग्र के सन्निकटवर्ती गैसीय परिवेश में उत्पन्न होनेवाली मंद उदीप्ति (faint glow) संभवत: इन्हीं धनायनों के कारण उत्पन्न होती होगी।

उपर्युक्त तार्किक अनुमानों की सत्यता सर्वप्रथम गोल्डस्टीन (Goldstein) ने १८९५ ई. में प्रयोग द्वारा प्रमाणित की। विसर्जन नलिका के बाहर निकल जाएँ और एक विद्युर्शी, या फोटो प्लेट, पर पड़ें। परिणाम संतोषजनक रहा और अनुमान यथार्थ सिद्ध हुए। फोटो प्लेट और विद्युतदर्शी ने अपने ऊपर पड़नेवाले आयन प्रवाह का धनायनों की धारा ही सिद्ध किया। गोल्डस्टीन ने इन किरणों को "कैनाल किरण" (Kanalstrahlen या Canal rays) की संज्ञा दी। १८९८ ई. में डब्ल्यू. वीन (W. Wien) ने इन आयनों के वेग "v" और संहति "m" एवं विद्युत् आवेश "e" के अनुपात "m/e" का मान ज्ञात किया। उनके प्रयोग के परिणाम निम्नलिखित थे :

वेग "v" = ३.६ x १० सेंमी. प्रति सेकंड

उपर्युक्त मानों का ज्ञात करने के लिए वीन ने संयुक्त चुंबकीय एवं विद्युत् क्षेत्रों की विधि का ही अवलंबन किया था, जो इलेक्ट्रॉनों के लिए प्रयुक्त हुई थी, यद्यपि कैनाल किरणों के लिए चुंबकीय क्षेत्र का प्रयोग कर सकना अपेक्षाकृत अधिक कठिन था। कैथोड किरणों से कैनाल किरणों की तुलना करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि इनका वेग उनके वेग का केवल १/१०० गुना होता है।

कालांतर में रेडियो सक्रिय पदार्थों से ऐल्फा किरणों के उत्सर्जन का ज्ञान हुआ और यह पता चला कि ये किरणें भी ऋणाग्रों की ही ओर आकृष्ट होती हैं। अत: ये भी कैनाल किरणों की ही सदृश गुणसंपन्न प्रतीत हुई। अतएव कैनाल किरणों और ऐल्फा किरणों को एक ही वर्ग में रखा गया और इस वर्ग की किरणों को 'धन किरण' कहा गया।

इन्हें भी देखें संपादित करें