कानपुर प्राणी उद्यान

(एलेन फोरस्ट जू से अनुप्रेषित)

1971 में बनना शुरू हुआ यह चिड़ियाघर भारत के सर्वोत्तम चिड़ियाघरों में एक है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा चिड़ियाघर है। यह कानपुर शहर में स्थित है। यहाँ पर लगभग 1497 जीव-जंतु है। पिकनिक के तौर पर समय बिताने और जीव-जंतुओं को देखने के लिए यह एक बेहतरीन जगह है।

कानपुर प्राणी उद्यान
चित्र:Zoo near mandhana

डायनासोर की वास्तविक आकार की मूर्ति
खुलने की तिथि 4 फ़रवरी 1974
स्थान कानपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
निर्देशांक 26°30′10″N 80°18′13″E / 26.502886°N 80.303643°E / 26.502886; 80.303643निर्देशांक: 26°30′10″N 80°18′13″E / 26.502886°N 80.303643°E / 26.502886; 80.303643
क्षेत्रफल 77 हेक्टेयर
जालस्थल www.kanpurzoo.org

ब्रिटिश इंडियन सिविल सर्विस के सदस्य सर एलेन की जमीन पर यह प्राकृतिक जंगल है। 4 फरवरी 1974 में जब यहां चिड़ियाघर खोला गया तो इसका नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया।

घना जंगल होने की वजह से साल 1970 के दिनों में एलन फाॅरेस्ट अपराधियों के गढ़ के रूप में कुख्यात था। जुआड़ी, कच्ची शराब बनाने वाले, चोर, डकैत एवं झील से मछली चुराने वालों ने इसे अपना अड्डा बना लिया था। यह जंगल पुलिस के लिये सिरदर्द बन गया तो तत्कालीन मेयर रतनलाल शर्मा ने इसे कटवाकर आवासीय कालोनी बनाने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री के सामने रखा। वन मंत्री चौधरी चरण सिंह ने आप​त्ति की और यहां प्राणी उद्यान बनाने का प्रस्ताव दिया। इसे सभी ने पसंद किया। वर्ष 1971 में कानुपर प्राणि उद्यान बनाने का शासनादेश हुआ।

उन दिनों आर एस भदौरिया चमौली में डीएफओ​​ थे। सात अप्रैल 1971 को उन्हें प्राणि उद्यान का निदेशक बनाकर कानपुर भेजा गया। चिड़ियाघर बनाना उनके लिए नई चुनाैती थी, क्योंकि इसका उन्हें अनुभव नहीं था। निर्माण में करीब 42.5 लाख रुपये खर्च होने का अनुमान था। बजट की जुगाड़ को रास्ता निकाला गया। विभाग के पास किदवईनगर में काफी जमीन थी। इसमें से करीब 25 एकड़ नगरपालिका को बेची और मिली धनरा​शि से मई 1971 में 76.56 हेक्टेयर में (क्षेत्रफल की दृ​ष्टि से) देश के तीसरे बड़े चिड़ियाघर का निर्माण शुरू हुआ। चा​हरदिवारी बनने तक अपरा​धियों और मछली चोरों को भगाने के लिए दो दर्जन लठैत रखने पड़े।

उन दिनों नारायण दत्त बछकेती वन संरक्षक थे। वह दिल्ली चिड़ियाघर के निर्माण के दौरान वहां से जुड़े रहे थे। उन्होंने दिल्ली चिड़ियाघर की परिकल्पना बनाने वाले जर्मन विशेषज्ञ कार्ल हेगलबैक से संपर्क किया। उन्हाेंने खुले बाड़े और मोठ बनाने की सलाह दी। कौन सा बाड़ा कहां बनाया जाए। यह तय करना मु​श्किल भरा काम था। ऐसे में बच्चों की पसंद को देखते हुए सबसे पहले बंदर का बाड़ा बनाया गया। इसे टापू की तरह बनाकर आसपास जाली लगाई गई। जंगल से पकड़कर बंदर इसमें रखे जाने थे। बंदरों के बाद प​क्षियाें के बाड़े बनाए गए। व्यापारियों से खरीदकर इसमें सामान्य और सफेद मोर, तोते, रंगीन चिड़ियों को रखने की योजना बनी। उसके बाद भालू आदि जानवरों के बाड़े बनाए गए। अंदर की तरफ अफ्रीक्रन सफारी बनाई गई। जिसमें अफ्रीकन वन्य जीवों को रखा जाना था। चिड़ियाघर में 18 हेक्टेअर की प्राकृतिक झील भी है।

चिड़ियाघर का पहला सदस्य ऊदबिलाव

बाड़े बनकर तैयार थे, इटावा की चंबल नदी में मछुआरों ने ऊदबिलाव देखा तो इसे पकड़कर वन विभाग को सौंप दिया। यह चिड़ियाघर में आने वाला पहला जानवर था। इसका नाम उदय रखा गया जो शब्द "ऊद" से मिलता जुलता था। ज्योतिषों से शुभ महूर्त दिखवाकर इसे बाड़े में छोड़ा गया।

हॉलैंड के व्यापारी ने सप्लाई किए जानवर ::::

उन दिनों विदेशी जानवरों के व्यापारी होते थे। आर एस भदौरिया को लखनऊ चिड़ियाघर से बाराबंकी के व्यापारी जैन साहब के बारे में पता चला। उन्होंने जो कीमतें बताईं वो काफी ज्यादा थीं। बातचीत में पता चला की वह इन जानवरों के बदले हा​थी के बच्चे विदेश भेजते थे। ऐसे में उन्होंने कोशिश करके हॉलैंड के व्यापारी से संपर्क किया। उससे बब्बर शेर, जेब्रा मांगे। इन जानवरों के बदले उसे देने के लिए बिहार के सोनपुर में लगने वाले हाथी मेले से चार बच्चे खरीदे। चार फीट से कम ऊंचे इन बच्चों को हवाई मार्ग से भेजने के लिए इन्हें दिल्ली भेजा गया। विदेश से जेब्रा, जिराफ जैसे ऊंचे जानवर समुद्री मार्ग से आए। जिन्हें मुंबई से कानपुर लाया गया। बच्चों के आकर्षण का केंद्र इस चिड़ियाघर का उद्घाटन (4 फरवरी 1974) भी एक बच्चे आशुतोष ने ही किया है।

      • यह जानकारी पहले डायरेक्टर से हुई बातचीत के आधार पर पुनीत द्विवेदी,कानपुर ने इसे आपके लिए पेश की है। ****
 
गैंडा
 
बाघ

यहाँ पर बाघ,शेर,तेंदुआ, विभिन्न प्रकार के भालू,लकड़बग्घा,nगैंडा,लंगूर,वनमानुष,चिम्पान्ज़ी,हिरण समेत कई जानवर है। यहाँ पर अति दुर्लभ घड़ियाल भी है। हाल ही में यहाँ पर हिरण सफारी भी खोली गयी है।

चिम्पान्ज़ी यहाँ का सबसे पुराना जानवर है जिसका नाम छज्जू (उम्र 26) है। इसकी पैदाईश भी यही की है।

इनके आलवा विभिन्न देशी-विदेशी पक्षी भी यहाँ की शोभा बढ़ाते है। अफ्रीका का शुतुरमुर्ग और न्यूजीलैंड का ऐमू, तोता,सारस समेत कई भारतीय और विदेशी पक्षी है।

हाल ही में हैदराबाद से एक शेर भी आया है।

 
तेंदुआ
 
छज्जू चिम्पान्ज़ी

वनस्पति उद्यान

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यहाँ पर विभिन्न प्रकार दुर्लभ वनस्पतियाँ मौजूद है।

यहाँ प्रवेश करते ही एक बड़ी प्राकृतिक झील है। हालाकि रखरखाव की कमी के कारण यह सिकुड़ कर बहुत छोटे इलाके में रह गयी है।

रात्रिचर जीव गृह

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यह मुख्यतः रात में देख पाने वाले जीवों के लिए है।

ट्राम ट्रेन

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यहाँ पर जून 2014 के बाद से अखिलेश यादव सरकार ने एक ट्राम ट्रेन का भी शुभारम्भ किया जो कि पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन चुकी है ! [1]

अन्य आकर्षण

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  • मछलीघर
  • वास्तविक आकार का डायनासोर का ढाचा

यहाँ पर जानवरों का ख्याल रखने के लिए एक अस्पताल भी है जहाँ पर हमेशा पशुचिकित्सक मौजूद रहते है।

पॉलिथिन चिड़ियाघर के अंदर ले जाना सख्त मना है। वाहन भी ले जाए जा सकते है परन्तु इसका अतिरिक्त किराया देना पड़ता है।


यहां हुई है फिल्म अनोखा अस्पताल की शूटिंग

23 जून 1989 को रिलीज फिल्म अनोखा अस्पताल की शूटिंग कानपुर चिड़ियाघर में हुई है। सरोज मुखर्जी की लिखी कहानी अनोखा अस्पताल के नाम पर बनी इस फिल्म का निर्देशन मुकेश शर्मा ने किया है। अभिनेता कंवरजीत पेंटल, शम्मी,विजय बनर्जी और सुभाषिनी बनर्जी के अभिनय से सजी इस फिल्म ने राष्ट्रीय पुस्कार जीता है। फिल्म में अम्माजी का किरदार निभाने वाली शम्मी घायल जानवरों और पक्षियों के लिए अस्पताल चलाती हैं। वे वफादार नौकर रामदीन की मदद से घायलों की देखभाल करती है। हाथी के अपहरण और बचाव की कहानी और प्राकृतिक नजारे दर्शकों को काफी पसंद आए थे।