ए. आर. कृष्ण शास्त्री

कन्नड़ साहित्यकार

अम्बले रामकृष्ण कृष्णशास्त्री (1890–1968) लेखक, अनुवादक, शोधकर्ता तथा कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार थे। इनके द्वारा रचित बंगाली कादंबरीकार बंकिमचंद्र नामक एक एक आलोचनात्मक अध्ययन के लिये उन्हें सन् 1961 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1] उनके द्वारा रचित "वचन भारत" तथा महाभारत का कन्नड संस्करण आज भी उनकी कीर्ति को अच्क्षुण बनाये हुए है।

ए० आर० कृष्णशास्त्री
चित्र:A. R. Krishnashastry.jpg
पेशासाहित्यकार
भाषाकन्नड़ भाषा
राष्ट्रीयताभारतीय
विषयएक आलोचनात्मक अध्ययन
उल्लेखनीय कामsबंगाली कादंबरीकार बंकिमचंद्र

आरम्भिक जीवन

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कृष्णशास्त्री का जन्म १२ फरवरी १८९० को मैसुरु राज्य के चमराजनगर के आम्बले में एक होयसला ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता रामकृष्ण शास्त्री मैसुरु के संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य एवं एक वैयाकरण थे। उनकी माता का नाम शंकरम्मा था जो गृहिणी थीं। जब वे केवल १० वर्ष के थे तभी उनकी माता का देहान्त हो गया। उन्होंने कन्नड भाषा और संस्कृत से सन १९१४ में बीए किया। इसके पश्चात वे मैसुरु के 'अत्तारा कचहरी' में एक लिपिक के रूप में काम करने लगे। उन्होंने मैसुरु के ओरिएन्टल पुस्तकालय में ट्यूटर और शोधकर्ता के रूप में काम किया। इसके बाद मद्रास विश्वविद्यालय में एम ए में प्रवेश लिया। बाद में उन्होंने मैसुरु विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में कार्य किया और उसी से सेवानिवृत हुए।

उनका विवाह १६ वर्ष की आयु में वेङ्कटलक्षम्मा के साथ हुआ जो उस समय केवल १० वर्ष की थीं।

प्रसिद्ध लेखक और लोककथाकार एच एम नायक श्री शास्त्री को 'कन्नड सेनानी' कहते थे। उन्होंने ही सबसे पहले बंगलुरु के सेन्ट्रल कॉलेज में एक कर्नाटक संघ आरम्भ किया था।

  1. "अकादमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2016.