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कहरुवा या तृणमणि (जर्मन: Bernstein, फ्रेंच: ambre, स्पेनिश: ámbar, अंग्रेज़ी: amber, ऐम्बर) वृक्ष की ऐसी गोंद (सम्ख़ या रेज़िन) को कहते हैं जो समय के साथ सख़्त होकर पत्थर बन गई हो। दूसरे शब्दों में, यह जीवाश्म रेजिन है। यह देखने में एक कीमती पत्थर की तरह लगता है और प्राचीनकाल से इसका प्रयोग आभूषणों में किया जाता रहा है। इसका इस्तेमाल सुगन्धित धूपबत्तियों और दवाइयों में भी होता है। क्योंकि यह आरम्भ में एक पेड़ से निकला गोंदनुमा सम्ख़ होता है, इसलिए इसमें अक्सर छोटे से कीट या पत्ते-टहनियों के अंश भी रह जाते हैं। जब कहरुवे ज़मीन से निकाले जाते हैं जो वह हलके पत्थर के डले से लगते हैं। फिर इनको तराशकर इनकी मालिश की जाती है जिस से इनका रंग और चमक उभर आती है और इनके अन्दर झाँककर देखा जा सकता है। क्योंकि कहरुवे किसी भी सम्ख़ की तरह हाइड्रोकार्बन के बने होते हैं, इन्हें जलाया जा सकता है।[1][2]

मालाओं में लगे कहरुवे

यह पदार्थ म्यांमार की खानों से निकलता है। यह रंग में पीला होता है और औषध में काम आता है। चीन देश में इसको पिघलाकर माला की गुरियाँ, मुँहनालइत्यादि वस्तुएँ बनाते हैं। इसकी वारनिश भी बनती है। इसे कपड़े आदि पर रगड़कर यदि घास या तिनके के पास रखें तो उसे चुंबक की तरह पकड़ लेता है।

ऐंबर एक जीवाश्म रेज़िन है। यह एक ऐसे वृक्ष का जीवाश्म रेज़िन है जो आज कहीं नहीं पाया जाता। रगड़ने से इससे बिजली पैदा होती है (यह आवेशित हो जाता है)। यह इसकी विशेषता है और इसी गुण के कारण इसकी ओर लोगों का ध्यान पहले पहल आकर्षित हुआ। आजकल ऐंबर के अनेक उपयोग हैं। इसके मनके और मालाएँ, तंबाकू की नलियाँ (पाइप), सिगार और सिगरेट की धानियाँ (होल्डर) बनती हैं।

ऐंबर बाल्टिक सागर के तटों पर, समुद्रतल के नीचे के स्तर में, पाया जाता है।[3] समुद्र की तरंगों से बहकर यह तटों पर आता है और वहाँ चुन लिया जाता है, अथवा जालों में पकड़ा जाता है। ऐसा ऐंबर डेनमार्क, स्वीडन और बाल्टिक प्रदेशों के अन्य समुद्रतटों पर पाया जाता है। सिसली में भी ऐंबर प्राप्त होता है। यहाँ का ऐंबर कुछ भिन्न प्रकार का और प्रतिदीप्त (फ़्लुओरेसेंट) होता है। ऐंबर के समान ही कई किस्म के अन्य फ़ौसिल रेज़िन अन्य देशों में पाए जाते हैं।

ऐंबर के भीतर लिगनाइट अथवा काठ-फ़ौसिल और कभी कभी मरे हुए कीड़े सुरक्षित पाए जाते हैं। इससे ज्ञात होता है कि इसकी उत्पत्ति कार्बनिक स्रोतों से हुई है।

ऐंबर अमणिभीय और भंगुर होता है। इसका भंग शंखाभीय (कनकॉयडल) होता है। इस पर नक्काशी सरलता से हो सकती है। इसका तल चिकना और आकर्षक बनाया जा सकता है। यह साधारणतया अनियमित आकार में पाया जाता है। यह चमकदार होता है। इसकी कठोरता २.२५ से २.५०, विशिष्ट घनता १.०५ से १.१०, रंग हल्का पीला से लेकर कुछ कुछ लाल और भरा तक होता है। वायु के सूक्ष्म बुलबुलों के कारण यह मेघाभ हो सकता है। कुछ ऐंबर प्रतिदीप्त होते हैं। यह पारदर्शक, पारभासक और पारांध हो सकता है तथा ३०० डिग्री-३७५ डिग्री सें. के बीच पिघलता है। इसका वर्तनांक १.५३९ से १.५४४५ तक होता है। ऐंबर में कार्बन ७८ प्रतिशत, आक्सिजन १०.५ प्रतिशत और हाइड्रोजन १०.५ प्रतिशत, C10H16O सूत्र के अनुरूप होता है। गंधक ०.२६ से ०.४२ प्रतिशत और राख लगभग ०.२ प्रतिशत रहती है। एथिल ऐल्कोहल ओर एथिल ईथर सदृश विलायकों में गरम करने से यह घुलता है। डाइक्लोरहाइड्रिन इसके लिए सर्वश्रेष्ठ विलायक है।

ऐंबर में ३ से ४ प्रतिशत तक (मेघाभ नमूने में ८ प्रति शत तक) सकसिनिक अम्ल रहता है। ऐंबर का संगठन जानने के प्रयास में इससे दो अम्ल C20H30O4 सूत्र के, पृथक किए गए हैं, परंतु इन अम्लों के संगठन का अभी ठीक ठीक पता नहीं लगा है।

गरम करने से ऐंबर का लगभग १५० डिग्री सें. ताप पर कोमल होना आरंभ होता है और तब इससे एक विशेष गंध निकलती है। फिर ३०० डिग्री-३७५ डिग्री सें. के ताप पर पिघलता और इससे घना सफेद धुआँ निकलता है जिसमें सौरभ होता है। इससे फिर तेल निकलता है जिसे 'ऐंबर का तेल' कहते हैं।

ऐंबर के बड़े बड़े टुकड़ों से मनका आदि बनता है। छोटे छोटे और अशुद्ध टुकड़ों को पिघलाकर ऐंबर वार्निश बनाते हैं। छोटे छोटे टुकड़ों को तो अब उष्मा और दबाव से 'ऐंब्रायड' में परिणत करते हैं। आजकल प्रति वर्ष लगभग ३०,००० किलोग्राम ऐंब्रायड बनता है। यह ऐंबर से सस्ता बिकता है और ऐंबर के स्थान में बहुधा इसी का उपयोग होता है। ऐंबर के सामान जर्मनी और आस्ट्रिया में अधिक बनते हैं।

अब नकली ऐंबर भी काच और प्लास्टिक (बैकेलाइट, गैलेलिथ और सेल्यूलायड) से बनने लगे हैं। नकली ऐंबर की विशिष्ट घनता ऊँची होती है और परा-बैंगनी किरणों से उसमें प्रतिदीप्ति नहीं आती। ऐंबर के अतिरिक्त अन्य कई प्रकार फ़ौसिल रेज़िन भी अनेक देशों में पाए जाते और विभिन्न कामों में प्रयुक्त होते हैं।

प्रागैतिहासिक काल (सोलुट्रे काल) से ही अंबर का उपयोग गहनों और आलंकरण में किया जाता रहा है, साथ ही यह लोक चिकित्सा में भी उपयोग होता रहा है।[4][5]

अंबर का उपयोग पत्थर युग से आभूषण के रूप में किया जाता रहा है, 13,000 साल पहले से।[6] माइसीनी कब्रों और पूरे यूरोप में अन्य स्थानों पर अंबरी सजावटें पाई गई हैं। आज भी इसका उपयोग धूम्रपान पाइप और ग्लासब्लोइंग माउथपीस बनाने में होता है। संस्कृति और परंपराओं में अंबर का विशेष स्थान इसे पर्यटन मूल्य देता है; पालांगा का अंबर संग्रहालय जीवाश्म रेजिन को समर्पित है।[7][8]

चिकित्सा में ऐतिहासिक उपयोग

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पुरातन काल से ही लोक चिकित्सा में अंबर के कथित औषधीय गुणों के कारण इसका उपयोग होता आया है।[9] प्राचीन ग्रीस में हिप्पोक्रेट्स के समय से ही अंबर और उसके निष्कर्ष का उपयोग विभिन्न उपचार प्रक्रियाओं में होता रहा है, मध्य युग से लेकर बीसवीं सदी की शुरुआत तक। पारंपरिक चीनी चिकित्सा में मन को शांत करने के लिए अंबर का उपयोग होता है।[73]

अंबर की माला - पेट दर्द या दांत उगने में दर्द से राहत पाने का एक पारंपरिक यूरोपीय उपाय[10] है, जिसमें अंबर एसिड के कथित दर्द निवारक गुण होते हैं, हालांकि इसके प्रभावी होने या इसे पहुंचाने के तरीके के कोई प्रमाण नहीं हैं।[11][12]

अंबर की सुगंध और इत्र

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प्राचीन चीन में बड़े उत्सवों के दौरान अंबर जलाने की प्रथा थी। यदि सही परिस्थितियों में अंबर को गर्म किया जाए, तो अंबर का तेल प्राप्त होता है, और प्राचीन काल में इसे नाइट्रिक एसिड के साथ मिलाकर "कृत्रिम कस्तूरी" - एक विशिष्ट कस्तूरी गंध वाली रेजिन बनाई जाती थी।[13][14] यद्यपि जलाए जाने पर अंबर एक विशिष्ट "पाइन" सुगंध प्रदान करता है, आधुनिक उत्पादों जैसे इत्र में असली अंबर का उपयोग दुर्लभ होता है क्योंकि जीवाश्मयुक्त अंबर बहुत हल्की गंध देता है। इत्र में "अंबर" नामक सुगंधें अक्सर निर्मित और पेटेंट की जाती हैं ताकि जीवाश्म का शानदार सुनहरा गर्माहट का अनुकरण किया जा सके।

कहारुवों के चित्र

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इन्हें भी देखें

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  1. Amber and the Ancient World, Faya Causey, Getty Publications, 2012, ISBN 978-1-60606-082-7, ... The burning of amber would not have been considered a destructive act, but rather an elevated use of the material ... Amber burned as incense was of great consequence in rituals involving solar deities ...
  2. हिन्दी शब्दसागर, ९वां खंड Archived 2014-01-03 at the वेबैक मशीन, श्यामसुंदर दास, बालकृष्ण भट्ट, नागरीप्रचारिणी सभा, ... कहरुवा नामक गोद जो बरमा की खानों से ...
  3. Danzig, Ostsee, Masuren: unterwegs im Nordosten Polens, Klaus Klöppel und Peter Hirth, DuMont Reiseverlag, 2010, ISBN 978-3-77019-209-0, ... Noch bis ins 19. Jahrhundert wurde Bernstein vor allem am Strand der Ostsee aufgelesen. Bernsteinfischer suchten mit an langen Stangen befestigten Netzen den Meeresboden nach dem Gold der Ostsee ab ...
  4. "The History Of Amber". powellsowls.com. अभिगमन तिथि 2024-09-28.
  5. "The history of amber, a material that has fascinated humans for hundreds of years". www.pingtipong.com. अभिगमन तिथि 2024-09-28.
  6. "Amber vs Citrine: What Are They, And What's The Difference?". yesdirt.com. अभिगमन तिथि 2024-09-28.
  7. "Palanga Amber museum". welovelithuania.com. अभिगमन तिथि 2024-09-28.
  8. "Palanga Amber Museum housed in a 19th c. palace". www.welcome-to-lithuania.com. अभिगमन तिथि 2024-09-28.
  9. "Amber Medicine, Amber Amulets". www.getty.edu. अभिगमन तिथि 2024-09-28.
  10. "Bernsteinketten: Die Wahrheit dahinter enthüllen". www.bekommenamenskette.com. अभिगमन तिथि 2024-09-28.
  11. "Teething Necklaces and Beads: A Caution for Parents". www.healthychildren.org. अभिगमन तिथि 2024-09-28.
  12. "How are amber teething necklaces supposed to work?". chronicleflask.com. अभिगमन तिथि 2024-09-28.
  13. "How Can You Tell If It Is Real Amber?". beadnova.com. अभिगमन तिथि 2024-09-28.
  14. "What is Amber? How is Amber Formed, Where is it Found and What is it Made of?". eartheclipse.com. अभिगमन तिथि 2024-09-28.