कचार
निर्देशांक: 25°11′N 93°02′E / 25.18°N 93.03°E असम में स्थित कचार पहाड़ों, जंगलों और मैदानों का अनोखा संगम है। यह बहुत खूबसूरत पर्यटन स्थल है। कचार उत्तर, पूर्व और दक्षिण दिशा में गुलाबी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इसके जंगल बहुत खूबसूरत हैं और पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। इन जंगलों में पर्यटक वन्य जीवन के खूबसूरत दृश्य देख सकते हैं। यहां का मुख्यालय हाफलांग में स्थित है। कचार की बराक नदी बहुत खूबसूरत है। इस नदी के दोनों किनारों पर छोटी-छोटी पहाड़ियां हैं। इन पहाड़ियों पर पर्यटक रोमांचक यात्राओं का आनंद भी ले सकते हैं। कचार में अनेक गांव भी हैं। इन गांवों में घूमना पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। यहां पर पर्यटक कचार की संस्कृति से रूबरू हो सकते हैं। कचार में बांस भी पाए जाते हैं। स्थानीय निवासी इन बांसों से खूबसूरत वस्तुएं बनाते हैं। यह वस्तुएं पर्यटकों को बहुत पसंद आती हैं।
कछार | |
— क्षेत्र — | |
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |
देश | भारत |
राज्य | असम |
जनसंख्या | 1,725 (1981 के अनुसार [update]) |
क्षेत्रफल • ऊँचाई (AMSL) |
• 53 मीटर (174 फी॰) |
इतिहास
संपादित करेंकचार का इतिहास पुराना है, जिसका पता अनेक शताब्दियों पूर्व से चलता है। यहाँ पर अनेक राजा ऐसे हो चुके हैं जो अपने को भीम, पाँच पाण्डवों में से द्वितीय के वंशज होने का दावा करते थे। ऐतिहासिक काल में यह अधिकतर अहोम राजाओं का अधीनस्थ एवं उनका संरक्षित राज्य रहा है। तत्कालीन शासक राजा गोविन्द चन्द्र की साठगाँठ से 1819 ई. में बर्मियों ने कचार को रौंद डाला था, लेकिन शीघ्र ही अंग्रेज़ों ने बर्मियों को कचार से बाहर निकाल दिया और उन्होंने बदरपुर (मार्च 1824 ई.) की संधि द्वारा गोविन्द चन्द्र को कचार के राजा के रूप में पुन: शासनारूढ़ कर दिया। इसके बदले में गोविन्द चन्द्र ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की सत्ता को स्वीकार कर लिया और दस हज़ार रुपये वार्षिक खिराज के रूप में देने को राजी हो गया। किन्तु गोविन्द चन्द्र प्रशासन की दुर्व्यवस्था के कारण स्थानीय विद्रोहियों को दबा सकने में विफल रहा और प्रजा को भारी करभार से पीड़ित करने लगा। फलत: 1830 ई. में उसकी हत्या कर दी गई। गोविन्द चन्द्र का कोई उत्तराधिकारी नहीं था, अत: अगस्त 1832 ई. में एक घोषणा के द्वारा कचार को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। तब से कचार निरन्तर भारत का एक भाग है।
आकर्षण
संपादित करेंसिद्धेश्वर शिव मन्दिर
संपादित करेंयह मन्दिर बहुत प्राचीन है और भगवान शिव को समर्पित है। सिद्धेश्वर मन्दिर बराक नदी के बदरपुरघाट पर स्थित है। मन्दिर से बदरपुर रेलवे स्टेशन मात्र 200 मी. की दूरी पर है। यह मन्दिर एक पहाड़ी पर बना हुआ है। इस मन्दिर में भगवान शिव के लिंग की स्थापना की गई है। यह लिंग पत्थर का बना हुआ है। वर्षों पहले इस लिंग की स्थापना कपिल मुनि ने की थी। इस लिंग के अलावा पर्यटक यहां पर अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को भी देख सकते हैं। इस मन्दिर की तरह यह प्रतिमाएं भी बहुत खूबसूरत हैं। वर्ष में वरूणी के दिन यहां पर मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस मेले में हजारों श्रद्धालु और पर्यटक भाग लेते हैं।
नरसिंह अखड़ा
संपादित करेंनरसिंह अखड़ा भी काचर का बहुत प्रसिद्ध मन्दिर है। यह सिल्चर के टुलापट्टी शहर में स्थित है। इस मन्दिर का निर्माण 1846 ई. में अयोध्या के ऋषि भगवान दास रामायती ने कराया था। इस मन्दिर के दर्शन के लिए प्रतिदिन यहां पर सैकडों पर्यटक और श्रद्धालुगण आते हैं।
भैरव-बाडी
संपादित करेंसिल्चर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह एक छोटा-सा मन्दिर है। यह एक पहाड़ी पर बना हुआ है। इसकी ऊँचाई लगभग 50 मी. है। इस मन्दिर का निर्माण राजा लक्ष्मी चन्द्र ने कराया था।
खासपुर
संपादित करेंखासपुर कचारी शासकों की आखिरी राजधानी थी। इसकी स्थापना राजा तमरध्वज नारायण ने 1690 ई. में की थी। यह सिल्चर की उत्तर-पूर्वी दिशा में 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पर्यटकों के आवागमन के लिए यहां पर कुंभीग्राम हवाई अड्डे का निर्माण भी किया गया है। यहां पर पर्यटक कई ऐतिहासिक इमारतें देख सकते हैं। इन इमारतों के अलावा यहां पर दो मंजिला मन्दिर भी है। यह मन्दिर रणचंडी को समर्पित है। रणचंडी के मन्दिर के अलावा पर्यटक यहां पर भगवान विष्णु के मन्दिर के दर्शन भी कर सकते हैं।
ब्रह्मबाबा मन्दिर
संपादित करेंयह मन्दिर सिल्चर से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मन्दिर के रास्ते पर हेलाकांडी भी आता है। इस मन्दिर में पर्यटक ब्रह्मा और लक्ष्मी नारायण की प्रतिमाओं के दर्शन कर सकते हैं। हर वर्ष रास पूर्णिमा और माघ पूर्णिमा को यहां पर उत्सवों का आयोजन भी किया जाता है।