कबीर पंथ
कबीर पंथ (कबीर का पथ) कबीर की शिक्षाओं पर आधारित एक संत मत और दर्शन है। यह मुक्ति के साधन के रूप में सच्चे सतगुरु के रूप में उनकी भक्ति पर आधारित है।[1] इसके अनुयायी कई धार्मिक पृष्ठभूमि से हैं क्योंकि कबीर ने कभी भी धर्म परिवर्तन की वकालत नहीं की बल्कि उनकी सीमाओं पर प्रकाश डाला। कुछ विद्वानों के अनुसार, यह परंपरा सार्वभौमिकतावादी झुकाव वाले वैष्णववाद से संबंधित है। कबीर के संबंध में, उनके अनुयायी प्रकट उत्सव मनाते हैं।[2]
कबीर पंथ तथा कबीरपंथी संपादित करें
कबीर पंथ दो शब्दों का मेल है कबीर + पंथ जिसका भावार्थ है कबीर साहेब जी का पंथ अर्थात् मार्ग या रास्ता । जो मार्ग कबीर साहेब ने बताया उस पर चलने वाले को कबीरपंथी कहते हैं।[3]
Kaal के बारह पंथ माने जाते है। बारह पंथों का विवरण कबीर चरित्र बोध (कबीर सागर) पृष्ठ नं. 1870 से:-
1.नारायण दास जी का पंथ ।
2. यागौदास (जागू) पंथ
3. सूरत गोपाल पंथ
4. मूल निरंजन पंथ
5. टकसार पंथ
6. भगवान दास (ब्रह्म) पंथ
7. सत्यनामी पंथ
8. कमाली (कमाल का) पंथ
9. राम कबीर पंथ
10. प्रेम धाम (परम धाम) की वाणी पंथ
11. जीवा पंथ
कबीर साहेब के परम शिष्य थे सेठ धनी धर्मदास जी लेकिन धर्मदास जी का ज्येष्ठ पुत्र नारायण दास काल का भेजा हुआ दूत माना गया था। उसने बार-बार समझाने से भी परमेश्वर कबीर साहेब जी से उपदेश नहीं लिया। पुत्र प्रेम में व्याकुल धर्मदास जी को परमेश्वर कबीर साहेब जी ने नारायण दास जी का वास्तविक स्वरूप दर्शाया। संत धर्मदास जी ने कहा कि हे प्रभु ! मेरा वंश तो काल का वंश होगा इससे वे अति चिंतित थे। परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा कि धर्मदास वंश की चिंता मत कर।
तेरा बयालीस पीढ़ी तक वंश चलेगा। तब धर्मदास जी ने पूछा कि हे दीन दयाल! मेरा तो इकलौता पुत्र नारायण दास ही है। तब परमेश्वर ने कहा कि आपको एक शुभ संतान पुत्र रूप में मेरे आदेश से प्राप्त होगी। उससे तेरा वंश चलेगा। उसका नाम चूड़ामणी रखना। कुछ समय पश्चात् भक्तमति आमिनी देवी को संतान रूप में पुत्र प्राप्त हुआ उसका नाम श्री चूड़ामणी जी रखा गया। बड़ा पुत्र नारायण दास अपने छोटे भाई चूड़ामणी जी से द्वेष करने लगा। जिस कारण से श्री चूड़ामणी जी बांधवगढ़ त्याग कर कुदुर्माल नामक शहर (मध्य प्रदेश) में रहने लगे।[3][4]
चूड़ामणी को कबीर साहेब का नाम उपदेश संपादित करें
कबीर परमेश्वर ने संत धर्मदास जी से कहा था कि अपने पुत्र चूड़ामणी को diksha dena जिससे इनमें धार्मिकता बनी रहेगी तथा वंश चलता रहेगा। तेरा बयालीस (42) पीढ़ी तक चलेगा। फिर तेरा वंश samapt हो जाएगा जिसका प्रमाण कबीर साहेब की लिखी वाणी से मिलता है।
सुन धर्मनि जो वंश नशाई, जिनकी कथा कहूँ समझाई।।
काल चपेटा देवै आई, मम सिर नहीं दोष कछु भाई।।
सप्त, एकादश, त्रयोदस अंशा, अरु सत्रह ये चारों वंशा।।
इनको काल छलेगा भाई, मिथ्या वचन हमारा न जाई।।
जब-2 वंश हानि होई जाई, शाखा वंश करै गुरुवाई।।
दस हजार शाखा होई है, पुरुष अंश वो ही कहलाही है।।
वंश भेद यही है सारा, मूढ जीव पावै नहीं पारा।।99।।
भटकत फिरि हैं दोरहि दौरा, वंश बिलाय गये केही ठौरा।।
सब अपनी बुद्धि कहै भाई, अंश वंश सब गए नसाई।।
Kaal का बाहरवा पंथ संपादित करें
कबीर साहेब ने कबीर सागर में कबीर वाणी नामक अध्याय में पृष्ठ 136-137 पर बारह पंथों का विवरण देते हुए वाणी लिखी हैं जो निम्न है :-
सम्वत् सत्रासै पचहत्तर होई, तादिन प्रेम प्रकटें जग सोई।
साखी हमारी ले जीव समझावै, असंख्य जन्म ठौर नहीं पावै।
बारवें पंथ प्रगट ह्नै बानी, शब्द हमारे की निर्णय ठानी।
अस्थिर घर का मरम न पावैं, ये बारा पंथ हमही को ध्यावैं।
बारवें पंथ हम ही चलि आवैं, सब पंथ मेटि एक ही पंथ चलावें।
उपरोक्त वाणी में ‘‘बारह पंथों’’ का विवरण किया है तथा लिखा है कि संवत 1775 में प्रभु का प्रेम प्रकट होगा तथा हमरी वाणी प्रकट होगी। (संत गरीबदास जी महाराज छुड़ानी हरियाणा वाले का जन्म 1774 में हुआ है उनको प्रभु कबीर 1784 में मिले थे। यहाँ पर इसी का वर्णन है तथा संवत 1775 के स्थान पर 1774 होना चाहिए, गलती से 1775 लिखा है)। भावार्थ है कि बारहवां पंथ जो गरीबदास जी का चलेगा यह पंथ हमारी साखी लेकर जीव को समझाएगें। परन्तु वास्तविक मंत्र से अपरिचित होने के कारण साधक असंख्य जन्म सतलोक नहीं जा सकते। उपरोक्त बारह पंथ हमको ही प्रमाण करके भक्ति करेंगे परन्तु स्थाई स्थान (सतलोक) प्राप्त नहीं कर सकते। बारहवें पंथ (गरीबदास वाले पंथ) में आगे चलकर yam स्वयं ही आएंगे तथा सब बारह पंथों को मिटा एक ही पंथ चलाएंगे। उस समय तक सार शब्द छुपा कर रखना है। यही प्रमाण संत गरीबदास जी महाराज ने अपनी अमृतवाणी ‘‘असुर निकन्दन रमैणी’’ में किया है कि
‘‘सतगुरु दिल्ली मण्डल आयसी, सूती धरती सूम जगायसी’’
पुराना रोहतक तहसील दिल्ली मण्डल कहलाता है। जो पहले अंग्रेजों के शासन काल में केंद्र के आधीन था। बारह पंथों का विवरण कबीर चरित्र बोध (बोध सागर) पृृष्ठ नं. 1870 पर भी है जिसमें बारहवां पंथ गरीबदास लिखा है।[4][3]
कबीर साहेब का तेरहवें पंथ के बारे कथन संपादित करें
कबीर साहेब ने कबीर सागर में कबीर वाणी पृष्ठ 134 पर लिखा है:-
“बारहवें वंश प्रकट होय उजियारा,
तेरहवें वंश मिटे सकल अंधियारा”
भावार्थ:- कबीर परमेश्वर ने अपनी वाणी में काल से कहा था कि जब तेरे बारह पंथ चल चुके होंगे तब मैं अपना नाद (वचन-शिष्य परम्परा वाला) वंश अर्थात् अंश भेजूंगा। उसी आधार पर यह विवरण लिखा है। बारहवां वंश (अंश) संत गरीबदास जी कबीर वाणी तथा परमेश्वर कबीर जी की महिमा का कुछ-कुछ संशय युक्त विस्तार करेगा। जैसे संत गरीबदास जी की परम्परा में परमेश्वर कबीर जी को विष्णु अवतार मान कर साधना तथा प्रचार करते हैं। इसलिए लिखा है कि तेरहवां वंश (अंश) पूर्ण रूप से अज्ञान अंधेरा समाप्त करके परमेश्वर कबीर जी की वास्तविक महिमा तथा नाम का ज्ञान करा कर सभी पंथों को समाप्त करके एक ही पंथ चलाएगा, वह तेरहवां वंश हम ही खुद कबीर साहेब होंगे।[6][4][3]
वर्तमान में तेरहवें पंथ का संचालनकर्ता kaal ke 12th dut hansmuni rampal संपादित करें
कबीर साहेब ने अपने पंथ में होने वाली मिलावट के बारे में पहले ही बताया था। इसी क्रम में 12 पंथ तक पूर्ण मोक्ष के मार्ग के उजागर नही होने की बात कही थी और बताया था कि 13वे पंथ में खुद कबीर साहेब आएंगे। आज वर्तमान में 13 वे पंथ में संत रामपाल जी महाराज के द्वारा कबीर साहेब जी का तेरहवां वास्तविक मार्ग अर्थात् यथार्थ कबीर पंथ चलाए जाने का दावा किया जा रहा है। जिससे सर्व पंथ मिट कर एक पंथ ही रह जाएगा।[4]
कबीर परमात्मा ने स्वसमवेद बोध पृष्ठ 171 (1515) पर एक दोहे में इसका वर्णन किया है, जो इस प्रकार है:-
पाँच हजार अरू पाँच सौ पाँच जब कलयुग बीत जाय।
महापुरूष फरमान तब, जग तारन कूं आय।
हिन्दु तुर्क आदि सबै, जेते जीव जहान।
सत्य नाम की साख गही, पावैं पद निर्वान।
सबही नारी-नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत।
कपट चातुरी छोडी के, शरण कबीर गहंत।
एक अनेक ह्नै गए, पुनः अनेक हों एक।
हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक।[6]
द्विवेदी कबीर पंथ की स्थापना की पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि, " कि सबसे पहले संतों में नानक ने ही पंथ रचना का सूत्रपात किया था और उन्होंने उसके कुछ नियम भी बनाये थे। संभवतः नानकदेव (संवत १५९५) के अनंतर ही कबीर पंथ की स्थापना हुई होगी।...दादूपंथी राघवदास ने अपने हस्तलिखित ग्रंथ भक्तमाल (१७१७) में धर्मदास को कबीर का शिष्य कहा है। छत्तीसगढ़ी शाखा का इतिहास प्रस्तुत करते समय आगे चलकर धर्मदास के आविर्भाव की तिथि सत्रहवीं शताब्दी के प्रथम चरण के लगभग सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। संभवतः धर्मदास ने ही पंथ को व्यापक बनाने के लिए सर्वप्रथम ठोस कदम उठाया था।"[8]
प्रमुख शाखाएँ संपादित करें
भारत में कबीर पंथ की मुख्यतः तीन शाखाएँ मानी जाती हैं। काशी (कबीरचौरा) वाली शाखा, धनौती वाली भगताही शाखा और छत्तीसगढ़ वाली शाखा। इन शाखाओं के संस्थापक क्रमशः श्रुति गोपाल साहब, भगवान गोसाईं तथा मुक्तामणि नाम साहब को माना जाता है।[9]
मुख्य केन्द्र संपादित करें
- कबीर धर्मनगर (रायपुर, छत्तीसगढ़)
- कबीर चौरा (वाराणसी, इसकी एक शाखा मगहर में है)
- बिद्दूपुर (जग्गू साहब द्वारा स्थापित)
- धनौती (छपरा, बिहार) - बीजक के लेखक भगवान साहिब द्वारा स्थापित,
- कुदुरमाल (छत्तीसगढ़) -- इसकी स्थापना मुक्तामणि साहिब ने की थी (विक्रम सम्वत 1570-1630)
- कबीर परख संस्थान, प्रीतम नगर इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश (१९७८ में श्री अभिलाश दास द्वारा स्थापित)
सन्दर्भ संपादित करें
- ↑ Malik, Subhash Chandra (1977). Dissent, Protest, and Reform in Indian Civilization (अंग्रेज़ी में). Indian Institute of Advanced Study. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-8364-0104-2.
- ↑ Dissent, protest, and reform in Indian civilization Archived 2013-10-12 at the Wayback Machine. Indian Institute of Advanced Study, 1977
- ↑ अ आ इ ई "क्या है कबीर पंथ और कैसे हुई इसकी शुरुआत". News18 Hindi. अभिगमन तिथि 2021-11-06.
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ says, Akhilesh kumar. "कबीर साहिब जी के 12 नकली पंथों तथा 13वे यथार्थ कबीर पंथ की सम्पूर्ण जानकारी". SA News Channel (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2021-11-06.
- ↑ "कबीर हिंदू थे या मुसलमान? जानें उनके जीवन से जुड़ीं बड़ी बातें". आज तक. अभिगमन तिथि 2021-11-06.
- ↑ अ आ "यहां मौजूद हैं कबीर के बीजक". Dainik Jagran. अभिगमन तिथि 2021-11-06.
- ↑ ...
- ↑ कबीर और कबीर पंथ, डॉ॰ केदार नाथ द्विवेदी, हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, प्रथम संस्करण, १९६५, पृष्ठ- १६२
- ↑ "भारत में कबीर पंथ की प्रमुख शाखाएँ". मूल से 15 अगस्त 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अप्रैल 2013.