कंबन तमिल रामायण के रचयिता थे।

एक मध्ययुगीन तमिल कवि और कंब रामायण के लेखक थे

कंबन का समय निश्चित नहीं है। जनश्रुति के अनुसार कंबन का जन्म ईसा की नवीं शताब्दी में हुआ था। किंतु अन्नमल विश्वविद्यालय के तमिल विभागाध्यक्ष श्री पी.टी. मीनाक्षिसुंदरम् इनका समय 12वीं श्ताब्दी मानते हैं। कंबन के जीवनवृत्त के विषय में भी ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है। उन्हें लेकर अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं, लेकिन इन्हें प्रामाणिक नहीं माना जाता। कवि ने अपने विषय में कहीं कुछ नहीं लिखा है, परंतु तिरुवेण्णेयनल्लूर गाँव के शडयप्पवल्लर नामक एक लोकप्रिय एवं दानी व्यक्ति का उल्लेख कंब रामायण से एकाधिक स्थलों पर हुआ है। विद्वानों का अनुमान है कि कंबन इस उदार व्यक्ति के आश्रय में कुछ दिन रहे थे। इसीलिए उन्होंने अपने काव्य में शडयप्पवल्लर का आदर एवं कृतज्ञता के साथ स्मरण किया है। पता यह भी चलता है कि कंबन चोल और चेर राजाओं के दरबार में भी गए थे, पर उन्होंने उक्त राजाओं में से किसी को भी अपनी महान कृति समर्पित नहीं की है।

कंबन वैष्णव थे। उनके समय तक बारहों प्रमुख आलवार हो चुके थे और भक्ति तथा प्रपति का शास्त्रीय विवेचन करनेवाले यामुन, रामानुज आदि आचार्यों की परंपरा भी चल पड़ी थी। कंबन के प्रमुख आलवार "नम्मालवार" (पाँचवे आलवार जो शठकोप या परांकुश मुनि के नाम से भी प्रसिद्ध हैं) की प्रशस्ति की है। कहा तो यहाँ तक जाता है कि कंबन की रामायण रंगनाथ जी को तभी स्वीकृत हुई, जब उन्होंने नम्मालवार की स्तुति उक्त ग्रंथ के आरंभ में की। इतना ही नहीं, कंब रामायण में यत्र-तत्र उक्त आलवार की श्रीसूक्तियों की छाया भी दिखाई पड़ती है, तो भी कंबन ने अपने महाकाव्य को केवल सांप्रदायिक नहीं बनाया है, उन्होंने शिव विष्णु के रूप (केवल सृष्टिकर्ता) में भी परमात्मा का स्तवन किया है और रामचंद्र को उस परमात्मा का ही अवतार माना है। ग्रंथारंभ में एवं प्रत्येक कांड के आदि में प्रस्तुत मंगलाचरण के पद्यों से उक्त तथ्य प्रकट होता है। प्रो॰टी.पी. मीनाक्षिसुंदरम् भी कंब रामायण को केवल वैष्णव संप्रदाय का ग्रंथ नहीं मानते। इसीलिए शैवों तथा वैष्णवों में कंब रामायण का समान आदर हुआ और दोनों संप्रदायों के पारस्परिक वैमनस्य के दूर होने में इससे पर्याप्त सहायता मिली।

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Written By ADITYA KUMAR SHAW CLASS 9C ROLL,NO 2 KV 2 KOLKATA ISHAPORE