तमिल

द्रविड़ जातीय-भाषाई समूह

तमिल (तमिळ)एक मानव प्रजातीय मूल है, जिनका मुख्य निवास भारत के तमिलनाडु तथा उत्तरी श्रीलंका में है। तमिल समुदाय से जुड़ी चीजों को भी तमिल कहते हैं जैसे, तमिल तथा तमिलनाडु के वासियों को भी तमिल कहा जाता है। तामिल, द्रविड़ जाति की ही एक शाखा है।

तमिळ लोग
தமிழர்
कुल जनसंख्या
7 करोड़ 60 लाख[1]
विशेष निवासक्षेत्र
 भारत69,026,881 (2011)[2]
 श्री लंका3,135,770 (2012)[3]
 मलेशिया1,800,000[1]
 सिंगापुर192,665+ (2015)[4][5][note 1]
othersee तमिल प्रवासी
भाषाएँ
तमिल, मलयालम, अंग्रेज़ी
धर्म
हिन्दू धर्म
बहुमत
शैव
अल्पसंख्यकों:
सम्बन्धित सजातीय समूह
द्रविड़, सिंहली[6]
एक तमिल परिवार
श्रीलंका में तमिल बच्चे
भरतनाट्यम्

मनुसंहिता, महाभारत आदि प्राचीन ग्रन्थों में द्रविड देश और द्रविड जाति का उल्लेख है। मागधी प्राकृत या पाली में इसी 'द्राविड' शब्द का रूप 'दामिलो' हो गया। तामिल वर्णमाला में त, ष, द आदि के एक ही उच्चारण के कारण 'दामिलो' का 'तामिलो' या 'तामिल' हो गया। शंकराचार्य के शारीरक भाष्य में 'द्रमिल' शब्द आया है। हुएनसांग नामक चीनी यात्री ने भी द्रविड देश को 'चि—मो—लो' करके लिखा है। तमिल व्याकरण के अनुसार द्रमिल शब्द का रूप 'तिरमिड़' होता है। आजकल कुछ विद्वानों की राय हो रही है कि यह 'तिरमिड़' शब्द ही प्राचीन है जिससे संस्कृतवालों ने 'द्रविड' शब्द बना लिया। जैनों के 'शत्रुंजय माहात्म्य' नामक एक ग्रन्थ में 'द्रविड' शब्द पर एक विलक्षण कल्पना की गई है। उक्त पुस्तक के मत से आदि तीर्थकर ऋषभदेव को 'द्रविड' नामक एक पुत्र जिस भूभाग में हुआ, उसका नाम 'द्रविड' पड़ गया। पर भारत, मनुसंहिता आदि प्राचीन ग्रन्थों से विदित होता है कि द्रविड जाति के निवास के ही कारण देश का नाम द्रविड पड़ा।

तामिल जाति अत्यन्त प्राचीन हे। पुरातत्वविदों का मत है कि यह जाति अनार्य है और आर्यों के आगमन से पूर्व ही भारत के अनेक भागों में निवास करती थी। रामचन्द्र ने दक्षिण में जाकर जिन लोगों की सहायता से लंका पर चढ़ाई की थी और जिन्हें वाल्मीकि ने बन्दर लिखा है, वे इसी जाति के थे। उनके काले वर्ण, भिन्न आकृति तथा विकट भाषा आदि के कारण ही आर्यों ने उन्हें बन्दर कहा होगा। पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है कि तामिल जाति आर्यों के संसर्ग के पूर्व ही बहुत कुछ सभ्यता प्राप्त कर चुकी थी। तामिल लोगों के राजा होते थे जो किले बनाकर रहते थे। वे हजार तक गिन लेते थे। वे नाव, छोटे मोटे जहाज, धनुष, बाण, तलवार इत्यादि बना लेते थे और एक प्रकार का कपड़ा बुनना भी जानते थे। राँगे, सीसे और जस्ते को छोड़ और सब धातुओं का ज्ञान भी उन्हें था। आर्यों के संसर्ग के उपरान्त उन्होंने आर्यों की सभ्यता पूर्ण रूप से ग्रहण की। दक्षिण देश में ऐसी जनश्रुति है कि अगस्त्य ऋषि ने दक्षिण में जाकर वहाँ के निवासियों को बहुत सी विद्याएँ सिखाई। बारह-तेरह सौ वर्ष पहले दक्षिण में जैन धर्म का बड़ा प्रचार था। चीनी यात्री हुएनसांग जिस समय दक्षिण में गया था, उसने वहाँ दिगम्बर जैनों की प्रधानता देखी थी।

तमिल भाषा का साहित्य भी अत्यन्त प्राचीन है। दो हजार वर्ष पूर्व तक के काव्य तामिल भाषा में विद्यमान हैं। पर वर्णमाला नागरी लिपि की तुलना में अपूर्ण है। अनुनासिक पंचम वर्ण को छोड़ व्यंजन के एक एक वर्ग का उच्चारण एक ही सा है। क, ख, ग, घ, चारों का उच्चारण एक ही है। व्यंजनों के इस अभाव के कारण जो संस्कृत शब्द प्रयुक्त होते हैं, वे विकृत्त हो जाते हैं; जैसे, 'कृष्ण' शब्द तामिल में 'किट्टिनन' हो जाता है। तामिल भाषा का प्रधान ग्रन्थ कवि तिरुवल्लुवर रचित कुराल काव्य है।

प्रागैतिहासिक काल

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कई अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकला कि आम तौर पर प्रोटो-तमिल, और द्रविड़ लोग जुड़े हुए हैं और प्राचीन दक्षिणी ईरान में नियोलिथिक ज़ग्रोस किसानों के साथ एक आम उत्पत्ति साझा करते हैं, जो बाद में इलाम के रूप में जाना जाता है। यह नवपाषाण पश्चिम एशियाई संबंधित वंश सभी दक्षिण एशियाई लोगों का मुख्य पुश्तैनी घटक है। एस्को पारपोला के अनुसार, अधिकांश अन्य द्रविड़ लोगों के रूप में प्रोटो-तमिल, सिंधु घाटी सभ्यता के वंशज हैं, जो संभवतः एलामाइट्स से भी जुड़ा हुआ है।[7][8]

आज के तमिलनाडु में तमिल लोगों की उपस्थिति के प्रमाण महापाषाणकाल के दफनाये गए पात्रों में के रूप में मिलते हैं जो संभवतः 1500 वर्ष ईसा पूर्व के आसपास के हैं, जिन्हें कई जगहों पर, विशेषकर तिरुनेलवेली जिले के आदिकनाल्ल्रूर में, उत्खनन में प्राप्त किया गया है[9][10][11] और इनके द्वारा शास्त्रीय युग के तमिल साहित्य में वर्णित अंतिम संस्कार के वर्णनों की पुष्टि होती है।[12]

दसवीं सदी के बाद से तमिलों की प्राचीनता के विषय में कई प्रकार की कथाएँ प्रचलन में दिखलाई पड़ती हैं। इरइयन्नार अगप्पोरुल के अनुसार, जो संगम साहित्य पर दसवीं/ग्यारहवीं सदी की टीका है, तमिल देश का दक्षिणी विस्तार (कुमारि कंदम अथवा लेमूरिया) भारतीय उपमहादीप के वर्तमान भैतिक सीमाओं से कहीं अधिक दूर तक विस्तृत था और कुल 49 नाडुओं (उपविभागों) से मिलकर बना था। यह भूमि एक भयावह बाढ़ में नष्ट हो गयी मानी जाती है। संगम कथाएँ तमिल प्राचीनता के दावे के रूप में तीन संगमों के दौरान, दस हजार वर्षों के सतत साहित्यक गतिविधियों का उल्लेख करतीं हैं।[13]

प्राचीन युग

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उत्कीर्णित धूसर मृद्भांड, अरिकामेदु, पहली सदी ईसवी

प्राचीन काल में तमिलों की भूमि पर तीन राजसत्ताओं का शासन था, जिनके मुखिया के रूप में राजा को "वेंधार" कहा गया है और कई जनजातीय सरदारों द्वारा नियंत्रित बड़े कबीलों में विभक्त था, सरदारों को "वेळ" अथवा "वेळिर" कहा गया ह।[14] और निचले स्तर के कबीलों के मुखिया को "किझर" अथवा "मन्नार" के नाम से जाना जाता था।[15] तमिल सरदार और राजा हमेशा राज्यक्षेत्रों और संपत्ति को लेकर श्रेष्ठता साबित करने के लिए आपस में लड़ते रहते थे। शाही दरबार एक प्रकार के सामाजिक मेलमिलाप हेतु एकत्रण के स्थल थे न कि सत्ता के नियंत्रण के स्थल थे; वे संसाधनों के वितरण के केन्द्र के रूप में थे। प्राचीन तमिल संगम साहित्य; और व्याकरण सम्बन्धी रचना, तोलकप्पियम; दस काव्यगाथाएँ, पत्तुपट्टु; और आठ महा गाथाएँ, एट्टुत्तोकोइ; सभी प्राचीन तमिल लोगों पर प्रकाश डालते हैं।[16] राजा और सरदार कला के प्रश्रयदाता थे और इस काल का साहित्य पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।[17] इस साहित्यिक रचनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि बहुत से सांस्कृतिक रिवाज जो ख़ासतौर पर तमिलों के माने जाते हैं, इस शास्त्रीय युग जितने पुराने हैं।[17]

कृषि का इस युग में पर्याप्त महत्त्व था और इस बात के सबूत भी मिलते हैं कि सिंचाई के संजाल हेतु कृत्रिम जलमार्गों का निर्माण करने की कला तीसरी सदी ईसापूर्व तक पुरानी है।[18] आन्तरिक और बाह्य वाणिज्य काफी फलाफूला और प्राचीन रोम के साथ संपर्क के पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध होते हैं।[19] करूर और अरिकामेदु में उत्खननों में भारी मात्र में प्राप्त रोमन सिक्के यहाँ रोमन व्यापारियों की उपस्थति का प्रबल प्रमाण हैं।[19] पांड्य राजाओं द्वारा कम से कम दो दूतदल रोम के सम्राट ऑगस्टस के दरबार में भेजे गए थे।[20] तमिल लेखनयुक्त मृद्भांडों के टुकड़े लाल सागर के क्षेत्रों के उत्खनन में प्राप्त हुए हैं जो इस इलाके में तमिल व्यापारियों की उपस्थिति का प्रमाण हैं।[21]

तमिलों का यह प्राचीन स्वर्णयुग लगभग चौथी सदी के आसपास अपने अंत तक आ पहुँचा जब इनपर कालाभ्र द्वारा आक्रमण हुए। इन्हें तमिल साहित्य और शिलालेखों में कलप्पिरार के नाम से संबोधित किया गया है।[22] इन आक्रान्ताओं का विवरण तमिल भूमि के उत्तर से आये बर्बर और दुर्दान्त लोगों के रूप में मिलता है।[23] तमिल अंध युग के नाम से जाना जाने वाला यह दौर पल्लव साम्राज्य के उत्थान के साथ खत्म हुआ।[22][24][25] क्लैरेंस मेलनी के अनुसार, तमिल स्वर्णयुग के दौरान तमिल लोग मालदीव द्वीपसमूह पर भी बसे हुए थे।[26]

आधुनिक काल

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चित्र:MylaiTamizhSangam.jpg
आरंभिक 1900 के दशक के में मलय तमिल संगम के दौरान मा पो सी और राजाजी

ब्रिटिश उपनिवेश स्थापित करने वालों ने तमिल राज्यक्षेत्रों को संगठित रूप देकर मद्रास प्रेसिडेंसी का निर्माण किया, जो ब्रिटिश राज का अभिन्न अंग बना। इसी तरह, श्रीलंका के तमिल भाषी क्षेत्रों को इस द्वीप के अन्य हिस्सों से जोड़ा गया और सीलोन उपनिवेश बनाया गया, 1802 के आसपास। ये लोग भारत और श्रीलंका के क्रमशः 1947 और 1948 में आजाद होने के बाद भी राजनीतिक रूप से सम्बद्ध रहे।

भारत की 1947 स्वतन्त्रता के बाद, मद्रास प्रेसिडेंसी मद्रास राज्य बना, जो वर्तमान में तमिलनाडु राज्य, तटीय आन्ध्र प्रदेश, उत्तरी केरल, और कर्नाटक का दक्षिणी पश्चिमी तटीय इलाका है। बाद में इस राज्य को भाषायी आधार पर विभाजित किया गया। 1953 में उत्तरी जिले आन्ध्र प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आये। 1956 के राज्य पुनर्गठन आयोग के लागू होने के बाद मद्रास राज्य के पश्चिमी तटीय हिस्से छिन गए। बेलारी और दक्षिण कन्नार को मैसूर राज्य में शामिल कर दिया गया। और मालाबार जिले और त्रावणकोर और कोचीन की राजशाहियों से केरल राज्य का निर्माण हुआ।[27] 1968 में मद्रास राज्य का नाम बदल कर तमिलनाडु कर दिया गया।[28] श्रीलंका की कुल जनसंख्या का 15% हिस्सा तमिलों का है।[29]

भौगोलिक क्षेत्र-विस्तार

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भारत में ज्यादातर तमिल लोग तमिल नाडु राज्य में निवास करते हैं। संघराज्यक्षेत्र पुद्दुचेरी में तमिल लोग बहुसंख्यक हैं। पुद्दुचेरी पहले फ्रांसीसी उपनिवेश रह चुका है और चारों ओर से तमिलनाडु से घिरा हुआ है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह में भी जनसंख्या का कम से कम छठवाँ हिस्सा तमिल है।

इसके अतिरिक्त भारत के अन्य इलाकों में उल्लेखनीय तमिल जनसंख्या निवास करती है। इनमें से ज्यादातर काफी हाल में, औपनिवेशिक काल अथवा आजादी के बाद के दौर में यहाँ पहुँचे हैं, हालाँकि कि कुछ संख्या मध्यकाल के दौरान की भी है। तमिल जनसंख्या की महत्वपूर्ण उपस्थिति कर्नाटक (29 लाख), महाराष्ट्र (14 लाख), आन्ध्र प्रदेश (12 लाख), केरल (6 लाख) और दिल्ली (1 लाख) में है।[30]

श्री लंका

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तमिल बोलने वाले लोगों का भौगोलिक विस्तार (1961)

श्री लंका में दो प्रकार के तमिल लोग हैं, श्री लंकाई तमिल और भारतीय तमिल। श्री लंकाई तमिल, प्राचीन जाफना राजवंश और पूर्वी तटीय कबीलों के वंशज हैं। भारतीय तमिल (अथवा पहाड़ी तमिल) उन बंधुआ मजदूरों के वंशज हैं जिन्हें उन्निस्वीं सदी में चाय बागानों में मजदूरी के लिए भारत से ले जाया गया।[31] श्री लंका में एक महत्वपूर्ण समुदाय मुस्लिम तमिलों का भी है, जो तमिल भाषी है और इस्लाम में आस्था रखते हैं, हालाँकि इनके नृजातीय रूप से तमिल होने के प्रमाण भी कई हैं,[32][33][34] हालाँकि ये लोग विवादास्पद रूप से[32][34][35] श्रीलंका सरकार द्वारा अलग नृजातीय समुदाय के रूप में सूचीबद्ध किये जाते हैं।[36][37]

ज्यादातर श्रीलंकाई तमिल उत्तरी और पूर्वी प्रान्त में और कुछ मात्रा में राजधानी कोलम्बो में रहते हैं, जबकि ज्यादातर भारतीय तमिल मध्य प्रान्त के पहाड़ी इलाकों में बसते हैं।[37] ऐतिहासिक रूप से दोनों समुदाय एक दूसरे को अलग मानते हैं, हालाँकि 1980 के दशक के बाद इनमें एकता की भावना मजबूत हुई है।[38]

1960 के दशक में भारतीय और श्रीलंका सरकार के मध्य हुए कतिपय समझौतों के बाद लगभग 40 भारतीय तमिलों को नागरिकता मिल गयी और बाकियों को भारत भेज दिया गया।[39] 1990 के दशक आते-आते, ज्यादातर भारतीय तमिलों को श्रीलंकाई नागरिकता हासिल हो गयी।[39]

प्रवासी तमिल

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परम्परागत पोशाक में तमिल औरत, c. 1880
 
बातु गुफाएँ, तमिल मलेशियाई लोगों द्वारा निर्मित मंदिर ca.1880s

तमिलों का बाहर की ओर प्रवास महत्वपूर्ण रूप से अठारहवीं सदी में शुरू हुआ जब ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने बहुत से गरीब तमिलों को साम्राज्य के सुदूरवर्ती हिस्सों में मजदूर के रूप में भेजा, विशेषकर मलाया, दक्षिण अफ्रीका, फ़िजी, मॉरिशस, त्रिनिदाद और टोबैगो, गयाना, सूरीनाम, जमैका, फ्रेंच गयाना और मार्टिनीक के लिए। लगभग उसी दौर में, बहुत से तमिल व्यवसायी भी साम्राज्य के बिभिन्न भागों के लिए प्रवास कर गये, विशेषकर बर्मा और पूर्व अफ्रीका के लिए।[40]

इनमें से बहुत से तमिल अब भी इन देशों में निवास करते हैं, और सिंगापुर, रियूनियन, मलेशिया, और दक्षिण अफ्रीका में निवास करने वाले इन तमिल समुदायों ने काफी हद तक अपनी भाषा और मूल संस्कृति को बरकरार रखा है। मलेशिया में बहुत से तमिल बच्चे तमिल स्कूलों में पढ़ते हैं और काफी सारे तमिल बच्चों की परवरिश तमिल मातृभाषी के रूप में होती है। सिंगापुर में, और मॉरिशस और रियूनियन में, तमिल बच्चे तमिल भाषा को दूसरी भाषा के रूप में स्कूलों में पढ़ते हैं जबकि पहली भाषा अंग्रेजी होती है। सिंगापुर में तमिल भाषा के संरक्षण हेतु सरकार ने इसे आधिकारिक भाषा का दर्जा दे रखा है बावजूद इसके कि यहाँ कुल जनसंख्या का मात्र 5% तमिल हैं, और तमिल लोगों को तमिल भाषा में पढ़ाई को अनिवार्य कर रखा है। अन्य तमिल समुदाय, जैसे कि दक्षिण अफ्रीका, फ़िजी, मॉरिशस, त्रिनिदाद और टोबैगो, गयाना, सूरीनाम, जमैका, फ्रेंच गयाना, गुआदेलोप, मार्टिनीक और कैरेबियन देशों में अपनी पहली भाषा के रूप में भले ही तमिल न बोलते हों, मजबूत तमिल पहचान को अक्षुण्ण रखा है यह भाषा आसानी से समझ सकते हैं, जबकि बहुत से बुजुर्ग लोग इसे प्रथम भाषा के रूप में अब भी बोलते हैं।[41] पाकिस्तान में एक छोटी सी संख्या तमिलों की है जो 1947 में भारत विभाजन के बाद यहाँ बसे।[42]

1980 के दशक में भी बड़े पैमाने पर बाहर की ओर प्रवास शुरू हुआ जब श्री लंका के तमिलों ने नृजातीय संघर्षों के चलते बचने के लिए पलायन किया। ये बाद के प्रवासी लोग ऑस्ट्रेलिया, यूरोप उत्तर अमेरिका, और दक्षिण पूर्व एशिया में जा बसे हैं।[43]

आजकल दक्षिण एशिया से बाहर सबसे अधिक तमिल लोगों का संकेन्द्रण कनाडा के टोरंटो में है।[44][45][46][47]

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. साँचा:Ethnologue19
  2. "Statement 1 : Abstract of speakers' strength of languages and mother tongues – 2011" (PDF). मूल से 14 नवंबर 2018 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 30 मार्च 2020.
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  7. "Prehistoric genomes from the world's first farmers in the Zagros mountains reveal different Neolithic ancestry for Europeans and South Asians". ScienceDaily (अंग्रेज़ी में). मूल से 2 फ़रवरी 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-05-14.
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  10. K. De B. Codrington (October 1930), "Indian Cairn- and Urn-Burials", Man, Royal Anthropological Institute of Great Britain and Ireland, 30 (30): 190–196, JSTOR 2790468, डीओआइ:10.2307/2790468, ... at Perambair & Pallavaram a second type of burial exists in legged urns ...
  11. Comparative excavations carried out in Adichanallur in Thirunelveli district and in Northern India have provided evidence of a southward migration of the Megalithic culture – K.A.N. Sastri, A History of South India, pp49–51
  12. K. De B. Codrington (October 1930), "Indian Cairn- and Urn-Burials", Man, 30 (30): 194, JSTOR 2790468, It is necessary to draw attention to certain passages in early Tamil literature which throw a great deal of light upon this strange burial ceremonial ...
  13. Nilakanta Sastri, A history of South India, p 105
  14. K.A.N. Sashtri, A History of South India, pp 109–112
  15. 'There were three levels of redistribution corresponding to the three categories of chieftains, namely: the Ventar, Velir and Kilar in descending order. Ventar were the chieftains of the three major lineages, viz Cera, Cola and Pandya. Velir were mostly hill chieftains, while Kilar were the headmen of settlements ...' —"Perspectives on Kerala History". P.J.Cherian (Ed),. Kerala Council for Historical Research. मूल से 26 August 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 November 2006.सीएस1 रखरखाव: फालतू चिह्न (link)
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  23. 'Kalabhraas were denounced as 'evil kings' (kaliararar) – K.A.N. Sastri, A History of South India, p. 130
  24. K.A.N. Sastri, A History of South India
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