करणपद्धति (शाब्दिक अर्थ : 'करने का तरीका') संस्कृत में रचित एक ज्योतिष तथा गणित का ग्रन्थ है। इसकी रचनाकार केरलीय गणित सम्प्रदाय के ज्योतिषी-गणितज्ञ पुदुमन सोम्याजिन् हैं। इस ग्रन्थ की रचना का समय अभी भी अनिश्चित बना हुआ है। यह गन्थ संस्कृत श्लोकों के रूप में रचित है। इसमें दस अध्याय हैं। इस ग्रन्थ के छठे अध्याय में गणितीय नियतांक पाई (π) तथा त्रिकोणमितीय फलनों ज्या, कोज्या तथा व्युस्पर्शज्या (inverse tangent) का श्रेणी के रूप में प्रसार दिया हुआ है।

अनन्त श्रेणीयाँ

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करणपद्धति का ६ठा अध्याय गणितीय दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस अध्याय में π के लिए अनन्त श्रेणी दी गयी है। त्रिकोणमितीय फलनों के लिए भी अनन्त श्रेणियाँ दी गयीं है। ये श्रेणियाँ तन्त्रसंग्रह में भी दी गयीं हैं और युक्तिभाषा में इनकी उपपत्ति भी दी गयी है।

π के लिए श्रेणी

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श्रेणी-१

पहली श्रेणी निम्नलिखित श्लोक में वर्णित है-

व्यासाच्चतुर्घ्नाद् बहुशः पृथक्स्थात् त्रिपञ्चसप्ताद्ययुगाह्र्̥ तानि
व्यासे चतुर्घ्ने क्रमशस्त्वृणम् स्वं कुर्यात् तदा स्यात् परिधिः सुसुक्स्मः॥

इसका गणितीय रूपान्तर निम्नलिखित है-

π/4 = 1 - 1/3 + 1/5 - 1/7 + ...

श्रेणी-२

एक अन्य श्रेणी इस श्लोक में वर्णित है-

व्यासाद् वनसम्गुणितात् पृथगाप्तं त्र्याद्ययुग्-विमुलघनैः।
त्रिगुणव्यासे स्वमृणं क्रमशः कृत्वापि परिधिरानेयः॥

इसको गणित की भाषा में इस प्रकार लिख सकते हैं-

π = 3 + 4 { 1 / ( 33 - 3 ) + 1 / ( 53 - 5 ) + 1 / ( 73 - 7 ) + ... }

श्रेणी-३

निम्नलिखित श्लोक में π के लिए एक तीसरी श्रेणी वर्णित है-

वर्गैर्युजां वा द्विगुणैर्निरेकैर्वर्गीकृतैर्-वर्जितयुग्मवर्गैः
व्यासं च षड्घनं विभजेत् फलं स्वं व्यासे त्रिनीघ्ने परिधिस्तदा स्यात॥

इसका गणितीय रूप यह होगा-

π = 3 + 6 { 1 / ( (2 × 22 - 1 )2 - 22 ) + 1 / ( (2 × 42 - 1 )2 - 42 ) + 1 / ( (2 × 62 - 1 )2 - 62 ) + ... }

त्रिकोणमितीय फलनों के लिए अनन्त श्रेणियाँ

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निम्नलिखित श्लोक में ज्या (Sine) और कोज्या (cosine) फलनों का अनन्त श्रेणी प्रसार दिया गया है।

चापाच्च तत्तत् फलतोऽपि तद्वत् चापाहताद्द्वयादिहतत् त्रिमौर्व्या
लब्धानि युग्मानि फलान्यधोधः चापादयुग्मानि च विस्तरार्धात्
विन्यस्य चोपर्युपरि त्यजेत् तत् शेषौ भूजाकोटिगुणौ भवेतां

इसका गणितीय अनुवाद यह है-

sin x = x - x3 / 3! + x5 / 5! - ...
cos x = 1 - x2 / 2! + x4 / 4! - ...

और अन्ततः, निम्नलिखित श्लोक इन्वर्स टैन्जेन्ट का अननत श्रेणी प्रसार प्रदान करता है-

व्यासार्धेन हतादभिष्टगुणतः कोट्याप्तमआद्यं फलं
ज्यावर्गेण विनिघ्नमादिमफलं तत्तत्फलं चाहरेत् ।
कृत्या कोटिगुणास्य तत्र तु फलेष्वेकत्रिपञ्चादिभिर्-
भक्तेष्वोजयुतैस्तजेत् समजुतिं जीवाधनुशिशषते ॥

इसका गणितीय रूप से लेखन इस प्रकार कर सकते हैं-

tan−1 x = x - x3 / 3 + x5 / 5 - ...

बाहरी कड़ियाँ

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