तंत्रसंग्रह नीलकण्ठ सोमयाजि द्वारा संस्कृत में रचित खगोलशास्त्रीय ग्रंथ है। यह ग्रंथ 1501 ई में पूर्ण हुआ। इसमें 432 श्लोक हैं जो आठ अध्यायों में विभक्त हैं। इस ग्रन्थ में ग्रहों की गति के पारम्परिक मॉडल के स्थान पर परिस्कृत मॉडल प्रस्तुत किया गया है।

इसकी दो टीकाएँ ज्ञात हैं- पहली तंत्रसंग्रहव्याख्या (रचनाकार अज्ञात) तथा युक्तिभाषा (ज्येष्ठदेव द्वारा लगभग १५५० ई में रचित)। तंत्रसंग्रह में नीलकण्ठ सोमयाजि ने बुध और शुक्र ग्रहों की गति का आर्यभट द्वारा प्रस्तुत मॉडल को पुनः सामने रखा। इस ग्रन्थ में दिया हुआ इन दो ग्रहों के केन्द्र का समीकरण १७वीं शताब्दी में केप्लर के पहले तक सबसे शुद्ध मान देता था।

इस ग्रन्थ में आठ अध्याय हैं-

  • (१) मध्यमप्रकरण
  • (२) स्फुटप्रकरण
  • (३) छायाप्रकरण
  • (४) चन्द्रग्रहणप्रकरण
  • (५) रविग्रहणप्रकरण
  • (६) व्यतीपादप्रकरण
  • (७) दृक्कर्मप्रकरण
  • (८) शृंगोन्नतिप्रकरण

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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