तर्कसंग्रह
तर्कसंग्रह न्याय एवं वैशेषिक दोनो दर्शनों को समाहित करने वाला ग्रंथ है। इसके रचयिता अन्नम्भट्ट हैं जिनका समय १६२५ से १७०० ई माना जाता है।
तर्कसंग्रह का अध्ययन से न्याय एवं वैशेषिक के सभी मूल सिद्धान्तों का ज्ञान मिल जाता है। इस ग्रन्थ में 'पदार्थों' के विषय में जो कुछ है वह पूर्णतः वैशेषिक के अनुसार है जबकि 'प्रमाण' के विषय में जो कुछ है वह पूर्णतः न्याय के अनुसार है। अर्थात् पदार्थों के लिये 'वैशेषिक मत' को स्वीकार किया गया है तथा प्रमाण के लिये 'न्याय मत' को। इस प्रकार इस ग्रन्थ के माध्यम से न्याय और वैशेषिक मत को एक में मिलाया गया है।
(१) द्रव्य, (२) गुण, (३) कर्म, (४) सामान्य, (५) विशेष, (७) समवाय, तथा (७) अभाव - ये सात पदार्थ तर्कसंग्रह के प्रतिपाद्य विषय हैं (द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायाभावाः सप्त पदार्थाः)। तर्कसंग्रह में इनका संक्षिप्त विवेचन किया गया है। तर्कसंग्रहदीपिका में तर्कसंग्रह के प्रतिपाद्य विषय का विश्लेषण करते हुए न्याय तथा वैशेषिक दर्शनों के अन्य उपयोगी विषयों का भी प्रतिपादन किया गया है।
अन्नम्भट्ट ने बालकों को सुखपूर्वक न्यायपदार्थों का ज्ञान कराने के उद्देश्य से तर्कसंग्रह नामक अन्वर्थ लघुग्रंथ की रचना की तथा इसके अतिसंक्षिप्त अर्थ को स्पष्ट करने के अभिप्राय से स्वयं दीपिका नामक व्याख्या ग्रंथ की भी रचना की। इस ग्रन्थ का आरम्भ ही इसी बात पर बल देते हुए हुआ है कि इसमें विषय को बहुत सरल तरीके से प्रस्तुत किया गया है-
- निधाय हृदि विश्वेशं विधाय गुरुवन्दनम्।
- बालानां सुखबोधाय क्रियते तर्कसंग्रह: ॥
- ( हृदय में विश्वनाथ को रखकर गुरुवन्दना करके, बालकों को भी के सुखपूर्वक बोध के लिये (आसानी से द्रव्यादि सात पदार्थों का ज्ञान कराने हेतु) तर्कसंग्रह लिख रहा हूँ।)
तर्कसंग्रह का अर्थ
संपादित करेंतर्कसंग्रह न्याय-वैशेषिक परम्परा का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। यहाँ 'तर्क' शब्द का अर्थ है 'द्रव्यादि सप्त पदार्थ' (तर्क्यन्ते प्रतिपाद्यन्त्त इति तर्काः द्रव्यादिसप्तपदार्थाः।) न्याय में तर्क शब्द के अनेक अर्थ दिये हैं। इस शब्द का उक्त अर्थ जो यहां दिया गया है वह असाधारण है। 'संग्रह' शब्द 'संक्षेप' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। वाक्य-विवृत्ति के अनुसार संग्रह के अन्तर्गत उद्देश, लक्षण और परीक्षा आते हैं। उद्देश का अर्थ है परिगणन। किसी पदार्थ के असाधारण धर्म का कथन उसका लक्षण कहलाता है तथा लक्षित पदार्थ में लक्षण ठीक ठीक बैठता है अथवा नहीं, इस प्रकार का विचार करना परीक्षा कहलाती है।
इस प्रकार तर्क संग्रह का अर्थ है द्रव्यादि सप्त पदार्थों के परिगणन के साथ उनके लक्षण तथा उन लक्षणों की परीक्षा का संक्षिप्त रूप से प्रतिपादन करने वाला ग्रन्थ।
यह ग्रन्थ न्याय वैशेषिक का प्रकरण ग्रन्थ है। प्रकरण की परिभाषा इस प्रकार की गई है :-
- शास्त्रैकदेशसम्बद्धं शास्त्रकार्यान्तरे स्थितम्।
- आहुः प्रकरणं नाम ग्रन्थभेदं विपश्चितः॥
- (अर्थात् ‘शास्त्र के अंश से सम्बद्ध तथा शास्त्र के (विशिष्ट) विषय के अन्दर स्थित (ग्रन्थ) को विद्वान् लोग प्रकरण नामक ग्रन्थ का भेद कहते हैं।’ )
इस परिभाषा के अनुसार ‘प्रकरण’ सम्पूर्ण शास्त्र के विषय से सम्बद्ध न होकर उसके किसी विशिष्ट विषय से सम्बद्ध होना चाहिए। ‘प्रकरण’ शब्द जब ग्रन्थ के अंग के अर्थ में आता है तब तो सदैव ऐसा ही होता है किन्तु जब यह स्वतन्त्र ग्रन्थ के अर्थ में प्रयुक्त होता है तो हम सदैव उसमें शास्त्र के एक ही विषय का विवेचन प्राप्त नहीं करते। कुछ प्रकरण तो अवश्य ऐसे पाये जाते हैं जहाँ शास्त्र के एक ही विषय का निरूपण है, जैसे शंकराचार्यकृत ‘पचीकरणप्रक्रिया’, किन्तु अधिकांश प्रकरण-गन्थ ऐसे हैं जिनमें शास्त्र के सम्पूर्ण विषयों का संक्षेप में विवेचन है। न्याय-वैशेषिक के सप्तपदार्थी, तर्कभाषा, तर्कसंग्रह आदि ग्रन्थ ऐसे ही हैं।
प्रमुख विवेच्य विषय
संपादित करेंतर्कसंग्रह में निम्नलिखित विषयों की विवेचना की गयी है-
- 1.पदार्थ 2.सृष्टि और संहार 3. ईश्वर की सिद्धि 4. ज्ञान 5. कारण 6. प्रत्यक्ष प्रमाण 7. षड्विध संन्निकर्ष
- 8. अनुमान-प्रमाण 9. हेत्वाभास 10. शब्द-प्रमाण 11. प्रामाण्यवाद 12. अभाव 13. जीवन का चरम लक्ष्य[1]
टीकाएँ
संपादित करेंअन्नम्भट्ट द्वारा रचित तर्कसंग्रह की स्वोपज्ञ टीका 'तर्कसंग्रहदीपिका' है जिसे न्याय-वैशेषिक दर्शन का अग्रिम सोपान माना जा सकता है। तर्कसङ्ग्रह तथा तर्कसङ्ग्रहदीपिका पर अनेक टीकाओं की रचना की गई। संस्कृत भाषा में लिखी गयी महत्त्वपूर्ण टीकाएं ये हैं -
चन्द्रजसिंह द्वारा रचित पदकृत्य तथा गोवर्धनमिश्र की न्यायबोधिनी (तर्कसंग्रह पर), नीलकण्ठ द्वारा रचित तर्कसंग्रहदीपिकाप्रकाश (तर्कसंग्रहदीपिकाप्रकाशिका) तथा वामाचरण भट्टाचार्य की विवृति (तर्कसंग्रहदीपिका पर)। नीलकण्ठ के पुत्र लक्ष्मीनृसिंहशर्मा ने तर्कसंग्रहदीपिकाप्रकाशिका पर 'भास्करोदया' नाम की टीका की रचना की। श्री रामानुज ताताचार्य ने तर्कसंग्रह, तर्कसंग्रहदीपिका तथा तर्कसंग्रहदीपिकाप्रकाशिका पर छात्रहितैषिणी बालप्रिया नामक टीका लिखी।
तर्कसंग्रह पर उपलब्ध टीकाओं तथा पाश्चात्य दर्शन की कतिपय अवधारणाओं को ध्यान में रखकर अथल्ये तथा बोडास ने तर्कसंग्रह पर अंग्रेजी में एक अच्छी व्याख्या की रचना की। इससे अलग हटकर तथा नीलकण्ठ की प्रकाशिका तथा लक्ष्मीनृसिंहशर्मा की भास्करोदया को आधार बनाकर गोपीनाथ भट्टाचार्य ने तर्कसंग्रह तथा तर्कसंग्रहदीपिका पर एक विशद शास्त्रप्रवण प्राञ्जल व्याख्या अंग्रेजी भाषा में ही लिखी।
सन्दर्भ
संपादित करेंइन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- अन्नम्भट्टलिखित तर्कसंग्रह (देवनागरी में मूल पाठ)
- तर्कसंग्रह: (हिन्दी अनुवाद एवं टीका सहित) (गूगल पुस्तक; टीकाकार- केदार नाथ त्रिपाठी)
- अन्नम्भट्टस्य तर्कसङ्ग्रहः Archived 2021-03-04 at the वेबैक मशीन (साररूप में तर्कसंग्रह)
- A study of tarkasamgraha as a compromise between the nyaay and vaisheshik schools of philosophies
- Tarka-sangraha of Annam Bhaṭṭa, with a Hindí paraphrase and English version By Annambhaṭṭa, James Robert Ballantyne
- Lectures on the Nyáya philosophy: embracing the text of the Tarka sangraha By Annambhaṭṭa, James Robert Ballantyne
- तर्क संग्रह - स्वरूप व्याख्या, तर्कदीपिका सहित (गूगल पुस्तक ; व्याख्याकार - दयानन्द भार्गव)