कर्नाटक युद्ध
कर्नाटक युद्ध (Karnatic Wars) भारत में इंग्लैंड औ्र फ्रांस के बीच १८वीं शताब्दी के मध्य में अपने बर्चस्व स्थापना की कोशिशों को लेकर हुआ युद्ध है। ब्रिटेन औ्र फ्रांस ने चार बार युद्ध किया। युद्ध का केंद्र कर्नाटक के भूभाग रहे इसलिए इसे कर्नाटक का युद्ध कहते हैं।
कर्नाटक युद्ध | ||||||||
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योद्धा | ||||||||
Mughal Empire[1] | Kingdom of France | Kingdom of Great Britain | ||||||
सेनानायक | ||||||||
Alamgir II Anwaruddin † Nasir Jung † Muzaffar Jung † Chanda Sahib † Raza Sahib Wala-Jah Murtaza Ali Abdul Wahab Hyder Ali Dalwai Nanjaraja Salabat Jung |
Dupleix De Bussy Comte de Lally d'Auteil (युद्ध-बन्दी) Law (युद्ध-बन्दी) De la Touche |
Robert Clive Stringer Lawrence |
पृष्ठभूमि
संपादित करें१७०७ ई। में औरंगजे़ब के निधन के बाद मुगलों का भारत के विभिन्न भागों से नियंत्रण कमज़ोर होता गया। निजाम-उल-मुल्क ने ने स्वतंत्र हैदराबाद रियासत की स्थापना की। उसकी मृत्यु के बाद उसके बेटे नसीर जंग, और उसके पोते मुजफ्फर जंग में उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष शुरु हुआ। इसने ब्रिटेनी और फ्रांसीसी कंपनियों को भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करने का सुनहरा मौका दे दिया। निज़ाम-उल-मुल्क की ही तरह नबाब दोस्त अली खान ने कर्नाटक को मुग़लों और हैदराबाद से स्वतंत्र कर लिया था। दोस्त अली के निधन के बाद उसके दामाद चंदा साहिब और मुहम्मद अली में उत्तराधिकार का विवाद शुरु हुआ। फ्रांस और इंग्लैंड ने यहाँ भी हस्तक्षेप किया। फ्रांस ने चंदा साहिब का और इंग्लैंड ने मुहम्मद अली का समर्थन किया। [2]
पहला कर्नाटक युद्ध (1746-1748)
संपादित करेंउत्तराधिकार के इस संघर्ष में पांडिचेरी के गवर्नर डूप्ले के नेतृत्व में फ्रांसीसियों की जीत हुई। और अपने दावेदारों को गद्दी पर बिठाने के बदले में उन्हें उत्तरी सरकार का क्षेत्र प्राप्त हुआ जिसे फ्रांसीसी अफसर बुस्सी ने सात सालों तक नियंत्रित किया। यह एक्स-ला-चैपल संधि के तहत समाप्त हुआ।
दूसरा कर्नाटक युद्ध (1749 - 1754)
संपादित करेंलेकिन फ्रांसीसियों की यह जीत बहुत कम समय की थी क्योकि 1751 ई. में रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ब्रिटिश शक्ति ने युद्ध की परिस्थितियाँ बदल दी थी। रोबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ब्रिटिश शक्ति ने एक साल बाद ही उत्तराधिकार हेतु फ्रांसीसी समर्थित दावेदारों को पराजित कर दिया।अंततः फ्रांसीसियों को ब्रिटिशों के साथ पान्डिचेरी की संधि करनी पड़ी।
तीसरा कर्नाटक युद्ध ( 1756 - 1763 )
संपादित करेंसातवर्षीय युद्ध (1756-1763 ई.।) अर्थात तृतीय कर्नाटक युद्ध में दोनों यूरोपीय शक्तियों की शत्रुता फिर से सामने आ गयी। इस युद्ध की शुरुआत फ्रांसीसी सेनापति काउंट दे लाली द्वारा मद्रास पर आक्रमण के साथ हुई। लाली को ब्रिटिश सेनापति सर आयरकूट द्वारा हरा दिया गया। 1761 ई. में ब्रिटिशों ने पोंडिचेरी पर कब्ज़ा कर लिया और लाली को जिंजी और कराइकल के समर्पण हेतु बाध्य कर दिया। अतः फ्रांसीसी बांडीवाश में लडे गये तीसरे कर्नाटक युद्ध (1760 ई.) में हार गए और बाद में यूरोप में उन्हें ब्रिटेन के साथ पेरिस की संधि करनी पड़ी।[3]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ The Cambridge History of the British Empire. 1929. पृ॰ 126. मूल से 29 नवंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 December 2014.
- ↑ Naravane, M.S. (2014). Battles of the Honorourable East India Company. A.P.H. Publishing Corporation. पपृ॰ 150–159. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788131300343.
- ↑ [कर्नाटक युद्ध- माइ सिविल पुस्तक कॉम http://www.mycivilpustak.com/history/carnatic-wars-1746-1763/ Archived 2016-09-23 at the वेबैक मशीन आंग्ल-फ्रांसीसी युद्ध][]
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