कल्लर भूमि तीन प्रकार की होती है-

  1. लवणीय भूमि (रेही)
  2. क्षारीय भूमि (ऊसर)
  3. लवणीय व क्षारीय भूमि

लवणीय भूमि (रेही)

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ऐसी भूमि की विद्युत चालकता 4.0 डेसी सिमेन प्रति मीटर से अधिक होती है जबकि विनियमशील सोडियम 15 प्रतिशत से कम होता है। पीएच मान 8.5 से प्रायः कम होता हैं। इनमें सोडियम, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के क्लोराइड और सल्फेट के नमक की अधिकता होती है। इसमें पानी आसानी से रिस कर नीचे जाता हैं। इन भूमियों पर नमक की परत जमा होने के कारण गद्दे के समान नरम हो जाती है।

क्षारीय भूमि (ऊसर)

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इनमें नमक की मात्रा कम होती है। (संतृप्त निष्कर्ष की विद्युत चालकता 4.0 डेसी सिमेन प्रति मी. से कम) व पी.एच. प्रायः 8.5 से अधिक होता हैं, विनियमशील सोडियम 15 प्रतिशत से अधिक होता है। पानी के रिसने की क्षमता एक दम घट जाती है और भूमि सख्त हो जाती हैं। इनमें सोडियम कार्बोनेट और बाईकार्बोनेट की अधिकता हो जाती है। जैव पदार्थ घुलकर सतह पर आ जाते हैं अतः भूमि की सतह काली दिखाई देती है।

लवणीय व क्षारीय भूमि

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इनमें नमक की मात्रा तो लवणीय भूमि की तरह ही होती है साथ में विनियमशील सोडियम भी क्षारीय भूमि की तरह होता हैं। मृदा का पी.एच. भी 8.5 से अधिक होता हैं। भूमि सख्त होती हैं व इसमें पानी के रिसने की क्षमता घट जाती है।

कल्लर भूमि से नमूना लेने की विधि

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  • यदि बरमा या मृदा टयूब उपलब्घ है तो 0 से 15, 15 से 30,30 से 60 और 60 से 90 सैं.मी. गहराईसे अलग-अलग नमूने लें। एक नमूना ऊपरी सफेद परत का अलग से लें।
  • यदि कस्सी या खुरपा ही उपलब्घ है तो 90 सैं.मी. गहरा गड्डा खोद कर उसके एक तरफ से ऊपर बताई गई गहराइयों से अलग-अलग नमूने लें। इसके लिए 15, 30, 60 और 90 सैं.मी. गहराइयों पर निशान लगा लें। फिर तसले में ऊपर से 15 सैं.मी. की 2 सैं.मी. मोटी परत खुरपी की सहायता से उतार लें। इसी प्रकार अन्य गहराइयों से अलग-अलग नमूने लें।
  • प्रत्येक नमूने के लिए दो लेबल बाल पैन से लिखेंजिन पर किसान का नाम, पूरा पता और कीला नम्बर हो। एक लेबल थैली के अन्दर डाल दें और दूसरा सुतली के साथ बाहर बांघ दें। थैली का मुहं अच्छी तरह बन्द कर दें।
  • यदि इन गहराइयों तक कोई सख्त परत या कंकर की परत हो तो उसकी गहराई और मोटाई भी लिखें।

सुधार की दृष्टि से भूमि को दो श्रेणियों में रखा जाता है। पहली लवणीय, दूसरी क्षारीय। जो तीसरी श्रेणी की भूमि है वह सुधार की दृष्टि से दूसरी श्रेणी में ही आती है।

लवणीय भूमि के सुधार के तरीके

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एक एकड़ खेत को 8 बराबर-बराबर टुकडों में बांट लें। प्रत्येक टुकडे़ के चारों ओर 30 सैं.मी. ऊंची मजबूत मेंड़ बनाएं। भूमि के इन टुकडों को पूरी सावधानी से समतल करें। दो बार करके 30 सैं.मी. अच्छे किस्म का पानी भर दें। इससे भूमि की 30 सैं.मी. की तह में पहले के मुकाबले 10 प्रतिशत से भी कम लवण रह जाएंगे। शुरु में चावल, गेहूँ, जौ जैसी सहनशील व अर्द्धसहनशील फसलें उगाएं। यदि पर्याप्त पानी न हो तो धान न लगाएं। लवण सहनशील व लवण संवेदनशील फसलों का वर्गीकरण नीचे दिखाया गया है।

ऐसी भूमि में सदैव फसलें उगाएं ताकि भूमि में जल-स्तर नीचा रहे और लवण ऊपर न आने पाएं। यदि भूमिगत जल अच्छी किस्म का है और जल-स्तर 2 मी. तक है तो ऐसे खेतों की सिंचाई नियमित रूप से करें।

सहनशील फसलें

ढैंचा, गेहूँ, जौ, चुकन्दर, तारामीरा, कपास, तम्बाकू, पालक, बेर आदि।

संवेदनशील फसलें

सभी दालें, मूंगफली, नींबू जाति के सभी पौधें, आम आदि।

अर्द्धसहनशील फसलें

बरसीम, राया, सरसों, जई, ज्वार, बाजरा, मक्का, प्याज, बैंगन, भिण्डी, अनार, अमरुद आदि।

लवणीय-क्षारीय और केवल क्षारीय भूमि के सुधार के तरीके

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  • एक एकड़ खेत को 8 बराबर-बराबर टुकडों में बांट लें।
  • प्रत्येक टुकडे़ के चारों ओर 30 सैं.मी. ऊंची मजबूत मेंड बनाएं।
  • प्रत्येक टुकडे को पूरी सावधानी से समतल करें।
  • धुलनशील कार्बोनेटकी अधिक मात्रा को कम करने के लिए खेत में 20 सैं.मी. गहरा, अच्छा पानी भरें व रिसने दें।
  • बत्तर आने पर भूमि की ऊपरी 10-15 सैं.मी. परत के लिए कुल सिफारिश के 50 प्रतिशत जिप्सम (30 मेश) के पाउडर को समान रूप से बिखेरें। जिप्सम की सही मात्रा जानने के लिए मिट्टी-परीक्षण प्रयोगशाला से मिट्टी की जाँच करवाएं।
  • जिप्सम को भूमि की सतह पर बिखेरने के बाद 10 सै .मी. गहरी जुताई करें। जिप्सम को इससे अधिक गहरा न मिलाएं वरना इसकी उपयोगिता घट जाती हैं।
  • जिप्सम डाले गए खेत में अच्छे पानी से 15 सै.मी. गहरी सिचाई करें।
  • खरीफ के मौसम में धान की खेती करें। लगभग 30 दिन पुरानी धान की पौध 15 सै.मी. × 15 सै.मी. की दूरी पर रोपनी चाहिए। इस भूमि पर गारा (puddling) न करें। एक स्थान पर 3 या 4 पौध लगाएं और इन्हें 2-3 सै.मी.से गहरा न रोपें।
  • इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कैल्शियम को किसी बाहरी स्रोत से मृदा में मिलाने की आवश्यकता है। ऐसे पदार्थ जो भूमि की रासायनिक और भौतिक गुणों को सुधारने में सहायक होते है उनको भू-सुधारक कहते हैं जैसे कि जिप्सम, गंधक, गंधक का अम्ल, पायराइट, फास्फो-जिप्सम, एल्यूमिनियम सल्फेट आदि। कैल्शियम के घुलनशील लवण जैसे कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम सल्फेट (जिप्सम) इत्यादि इसके लिए सुविधाजनक पदार्थ हैं। कैल्शियम क्लोराइड शायद सबसे प्रभावशील सुधारक है लेकिन इसकी कीमत को देखते हुए इसकी सिफारिश नहीं की जाती। जिप्सम सबसे अधिक प्रयोग में लाया जाने वाला भू-सुधारक हैं। पाइराइट का नम्बर इसके बाद आता हैं।
  • नाइट्रोजन, फास्फोरस (P2O5) व पोटाश की मात्रा प्रति एकड़ क्रमशः 60, 24 और 24 कि.ग्रा. खेत में डालें। प्रति एकड़ 20 कि .ग्रा. जिंक सल्फेट भी प्रयोग करना चाहिए। सारा फास्फेट और जिंक सल्फेट रोपाई से पहले प्रयोग करें जबकि नाइट्रोजन को बाद में थोड़ा-थोड़ा डालकर 3 बार में डालें।
  • यदि पर्याप्त पानी न हो तो धान न लगाएं। वर्षा ऋतु के आरम्भ में ढैंचा बोएं और सितम्बर में हरी खाद बनाएं या बीज के लिए रखें। ढैंचे के बाद जौ या गेहूँ की फसल ली जा सकती हैं।
  • उपर्युक्त प्रक्रिया अगले वर्ष फिर दोहराएं लेकिन जिप्सम का प्रयोग न करें।
  • धान के बाद खेत में गेहूँ, जौ, चुकन्दर, सैंजी, बरसीम आदि की फसल उगाई जा सकती है।

असिंचित क्षत्रों में कल्लर भूमि के सुधार के तरीके

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असिंचित व बारानी क्षत्रों में कल्लर भूमि को सुधारना अत्यन्त कठिन कार्य है। इस प्रकार के क्षेत्रों में वर्षा शुरु होने के साथ ही कल्लर भूमि की प्रक्रिया शुरु हो जाती है। वर्षा आने से पहले खेतों को समतल करके एक एकड़ खेत को 8 बराबर टुकडों में बांट लें। प्रत्येक टुकडे़ के चारों ओर 30 सैं.मी. ऊंची मजबूत मेंड़ बनाएं। मिट्टी-परीक्षण-रिपोर्ट के अनुसार जिप्सम डालकर इसे ऊपर की 10 सै.मी. की मिट्टी की तह में अच्छी प्रकार मिला दें। यह कार्य पहली बरसात आने से पहले पूरा कर लेना चाहिए। बरसात का पानी खेत में रोकें। यदि इस मौसम में कुछ अतिरिक्त अच्छा पानी मिल जाए तो उसे भी खेत में डाल दें। एक डेढ़ महीने बाद बीज के लिए ढैंचा बो दें। फिर इसे काटने के बाद यदि समय हो और मिट्टी में नमी हो तो जौ लगायें। खाद तथा उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच एवं फसलों की जरुरत के आधार पर करें।

बाहरी कड़ियाँ

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