हंगुल एक उत्तर भारत और पाकिस्तान, ख़ासकर कश्मीर, में पायी जाने वाली लाल हिरण की नस्ल है। यह जम्मू और कश्मीर का राज्य पशु है। हंगुल का वैज्ञानिक नाम "सॅर्वस ऍलाफस हंगलु" (Cervus elaphus hanglu) है।इसकी स्थापना सन 1970 में हुई।।

कश्मीरी हंगुल

हंगुल का रंग ख़ाकी होता है, लेकिन उसके बालों में हल्का छित्तरापन भी दिखता है। उसका पीछे का हिस्सा ज़रा हल्के भूरे रंग का होता है और पिछली टांगों का ऊपरी हिस्सा अन्दर से सफ़ेद से रंग का होता है। उसकी दुम का ऊपरी हिस्सा काले रंग का होता है। हंगुल के दोनों सींगों में पाँच-पाँच कांटे (उपसींग) होते हैं। इनमें से दो कांटे सींग के निचले हिस्से में माथे के पास होते हैं और तीन, सींग के ऊपरी भाग में। सींग बाहर की तरफ जाकर, फिर अन्दर की ओर घूमा हुआ होता है।

हंगुल हिमालय की ऊँची पहाड़ियों, जंगलों और वादियों में मिलता है। इसका वास कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के चम्बा ज़िले में है। यह अक्सर २ से लेकर १८ हिरणों के झुण्ड में रहते हैं। कश्मीर में यह मुख्यतः दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान में मिलते हैं।

हंगुल को ख़तरा

संपादित करें

बीसवीं सदी के आरम्भ में हंगुलों की अनुमानित संख्या ५,००० थी। जिन वनों में इनका वास है, विकास और मानव आबादी में बढ़ौतरी के साथ उनका धीरे-धीरे नाश होता गया। ग़ैर-क़ानूनी शिकार से भी इन्हें बहुत हानि पहुँची है। १९७० तक इनकी संख्या में भारी कमी हुई और केवल १५० जीवित हंगुल बचे थे। जम्मू और कश्मीर की सरकार ने विश्व वन्य-जीव निधि (वर्ल्ड वाइल्डलाइफ़ फण्ड) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर इन्हें बचाने की एक योजना बनाई जो आगे चलकर "प्रोजेक्ट हंगुल" के नाम से मशहूर हुई। १९८० तक इनकी संख्या में थोड़ा इज़ाफ़ा हुआ और यह दुगनी से अधिक बढ़कर ३४० हो गयी। दुर्भाग्य से २००८ तक यह फिर से घट कर १६० हो चुकी थी। कुछ जीव-वैज्ञानिकों का कहना है कि वनों में इनको सुरक्षित करने के साथ-साथ हंगुलों का पोषण, चिड़ियाघरों की क़ैद में भी करना चाहिए ताकि इनकी आबादी जैसे-तैसे बढ़ाई जा सके।[1]

लाल हिरण ज़्यादातर यूरोप और अन्य ठन्डे इलाक़ों में ही मिलने वाले जानवर होते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में हंगुल, लाल हिरण की आख़िरी बची हुई नस्ल है।

इन्हें भी देखें

संपादित करें
  1. "Captive breeding for Hangul". मूल से 11 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अप्रैल 2011.