कांवड़ यात्रा

हिंदू धर्म की पवित्र परंपरा

कांवड़ यात्रा: हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं इस यात्राको कांवड़ यात्रा बोला जाता है। ऐसे ही बाबा भोले के एक भक्त आशीष उपाध्याय ने 22 जुलाई 2016 को हरिद्वार से जल लेकर बाबा विश्वनाथ वाराणसी में 18 दिनों के पैदल यात्रा के पश्चात लगभग 1032 किलोमीटर यात्रा संपन्न कर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया यह आज तक की सबसे लंबी कांवड़ यात्रा में शामिल है श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है। कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं। कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए हैं। पानी आम आदमी के साथ साथ पेड पौधों, पशु - पक्षियों, धरती में निवास करने वाले हजारो लाखों तरह के कीडे-मकोडों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक वस्तु है। उत्तर भारत की भौगोलिक स्थिति को देखें तो यहां के मैदानी इलाकों में मानव जीवन नदियों पर ही आश्रित है [1]

हरिद्वार में कांवड़ यात्रा

हिंदू पुराणों में कांवड़ यात्रा का संबंध दूध के सागर के मंथन से है। जब अमृत से पहले विष निकला और दुनिया उसकी गर्मी से जलने लगी, तो शिव ने विष को अपने अंदर ले लिया। लेकिन, इसे अंदर लेने के बाद वे विष की नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित होने लगे। त्रेता युग में, शिव के भक्त रावण ने कांवड़ का उपयोग करके गंगा का पवित्र जल लाया और इसे पुरामहादेव में शिव के मंदिर पर डाला। इस प्रकार शिव को विष की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिली। [2][3]

सामाजिक महत्व

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नदियों से दूर-दराज रहने वाले लोगों को पानी का संचय करके रखना पड़ता है।[4] हालांकि मानसून काफी हद तक इनकी आवश्यकता की पूर्ति कर देता है तदापि कई बार मानसून का भी भरोसा नहीं होता है। ऐसे में बारहमासी नदियों का ही आसरा होता है। और इसके लिए सदियों से मानव अपने इंजीनियरिंग कौशल से नदियों का पूर्ण उपयोग करने की चेश्टा करता हुआ कभी बांध तो कभी नहर तो कभी अन्य साधनों से नदियों के पानी को जल विहिन क्षेत्रों में ले जाने की कोशिश करता रहा है। लेकिन आबादी का दबाव और प्रकृति के साथ मानवीय व्यभिचार की बदौलत जल संकट बड़े रूप में उभर कर आया है।

धार्मिक महत्व

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कांवड उठाता कांवडिया (भोला)

धार्मिक संदर्भ में कहें तो इंसान ने अपनी स्वार्थपरक नियति से शिव को रूष्ट किया है। कांवड यात्रा का आयोजन अति सुन्दर बात है। लेकिन शिव को प्रसन्न करने के लिए इन आयोजन में भागीदारी करने वालों को इसकी महत्ता भी समझनी होगी। प्रतीकात्मक तौर पर कांवड यात्रा का संदेश इतना भर है कि आप जीवनदायिनी नदियों के लोटे भर जल से जिस भगवान शिव का अभिषेक कर रहे हें वे शिव वास्तव में सृष्टि का ही दूसरा रूप हैं। धार्मिक आस्थाओं के साथ सामाजिक सरोकारों से रची कांवड यात्रा वास्तव में जल संचय की अहमियत को उजागर करती है। कांवड यात्रा की सार्थकता तभी है जब आप जल बचाकर और नदियों के पानी का उपयोग कर अपने खेत खलिहानों की सिंचाई करें और अपने निवास स्थान पर पशु पक्षियों और पर्यावरण को पानी उपलब्ध कराएं तो प्रकृति की तरह उदार शिव सहज ही प्रसन्न होंगे।

इन्हें भी देखें

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  1. "Kanwar Yatra 2022: दिल्ली पुलिस ने कांवड़ यात्रा के मद्देनजर जारी की एक और एडवायजरी". Dainik Jagran. अभिगमन तिथि 2022-07-16.
  2. History of Kanwar Yatra: https://www.bhaktibharat.com/festival/kanwar-yatra
  3. "Explained: The Kanwar Yatra, the legend of Lord Shiva and the Samudra Manthan". Firstpost (अंग्रेज़ी में). 2022-07-14. अभिगमन तिथि 2024-07-18.
  4. NEWS, SA; NEWS, SA (2021-08-04). "कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) पर सुप्रीम कोर्ट की रोक: क्या कांवड़ यात्रा शास्त्र सम्मत है?". SA News Channel (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-07-16.

बाहरी कड़ियाँ

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