कात्ती झारखण्ड के हो तथा संथाल जनजातियों के बीच प्रचलित एक प्रकार का खेल है।

खेल के नियम संपादित करें

इस खेल में एक बार में एक पक्ष से एक या अधिकतम दो सदस्य भाग ले सकते हैं। इसमें अर्धचन्द्राकार लकड़ी के दो पट्ट होते हैं। समतल मैदान में लगभग 30 फुट की दूरी पर इन दोनों लकड़ी के अर्धचन्द्राकार पट्ट को जमीन पर एक-दूसरे के सामने रखा जाता है। पहले अर्धचन्द्राकार पट्ट के ठीक नीचे और बीचोंबीच जमीन से लट्ठ को लम्बवत टिकते हुए पैर से लट्ठ पर प्रहार किया जाता है। पहला अर्धचन्द्राकार पट्ट तेजी से और एक रेखा में गति करते हुए सामने स्थित दूसरे पट्ट को गिरा देता है और प्रहार करने वाला दल अंक अर्जित कर लेता है। ऐसा न कर पाने पर दूसरे दल के सदस्यों को मौका मिलता है। इस तरह तीन चरण के बाद अधिक अंक अर्जित करने वाला दल विजेता होता है। यह आधुनिक गोल्फ का ही ऐतिहासिक प्रारूप सा लगता है। यह खेल पशुचारण करने वाली जनजातियों के बीच से विकसित हुआ माना जाता है। उबड़ -खाबड़ घास के मैदानों के बीच समतल जमीन तलाशना और इस तरह का मनोरंजक खेल इजाद करना जनजातियों के बीच आम है।