कामराज योजना एक योजना है[1], जिसमें के. कामराज ने एक सिंडीकेट सिस्टम शुरु किया था जिसमें छः कांग्रेस के केबिनेट मंत्री व छः मुख्यमंत्री ने सता छोड़कर पार्टी के लिए काम किया कामराज 1963 मैं कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने।

मूल उदेश्य संपादित करें

कामराज ने साठ के दशक की शुरुआत में महसूस किया कि कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती जा रही है। उन्होंने सुझाया कि पार्टी के बड़े नेता सरकार में अपने पदों से इस्तीफा दे दें और अपनी ऊर्जा कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए लगाएं। उनकी इस योजना के तहत उन्होंने खुद भी इस्तीफा दिया और लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई तथा एसके पाटिल जैसे नेताओं ने भी सरकारी पद त्याग दिए। यही योजना कामराज प्लान के नाम से विख्यात हुई। कहा जाता है कि कामराज प्लान की बदौलत वह केंद्र की राजनीति में इतने मजबूत हो गए कि नेहरू के निधन के बाद शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने में उनकी भूमिका किंगमेकर की रही। वह तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे।

विस्तार संपादित करें

उस योजना के अंतर्गत करीब आधे दर्जन केंद्रीय मंत्री और करीब इतने ही मुख्यमंत्रियों ने इस्तीफा दिया था। उस योजना का उद्देश्य था, बतौर पार्टी कांग्रेस को मजबूत करना। पर वास्तव में उसने नेहरू को अपनी नई टीम बनाने के लिए स्वतंत्र कर दिया था, जिसकी छवि 1962 के चीनी युद्ध के कारण धूमिल हुई थी। दक्षिण भारत की राजनीति में कामराज एक ऐसे नेता भी रहे जिन्हें शिक्षा जैसे क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। आजादी मिलने के बाद 13 अप्रैल 1954 को कामराज ने अनिच्छा में तमिलनाडु का मुख्यमंत्री पद स्वीकार किया लेकिन प्रदेश को एक ऐसा नेता मिल गया जो उनके लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाने वाला था। कामराज लगातार तीन बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने प्रदेश की साक्षरता दर, जो कभी सात फीसद हुआ करती थी, को बढ़ाकर 37 फीसद तक पहुंचा दिया।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "कामराज योजना विस्तार". जी न्यूज. मूल से 10 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जून 2017.