कालिका माता मंदिर, पावागढ़
कालिका माता मंदिर भारत के पंचमहाल जिले में पावागढ़ पहाड़ी के शिखर पर स्थित एक हिंदू देवी मंदिर परिसर और तीर्थ केंद्र है। 10वीं या 11वीं शताब्दी में निर्मित मंदिर में देवी की तीन प्रतिमाएँ हैं: केंद्रीय प्रतिमा कालिका माता की है, दाईं ओर काली और बाईं ओर बहुचरा माता हैं। चित्रा अष्टमी को मंदिर परिसर में मेला लगता है जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। यह मंदिर पवित्र शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। रज्जुमार्ग द्वारा इस मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
कालिका माता मंदिर, पावागढ़ | |
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धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
देवता | कालिका माता |
त्यौहार | नवरात्रि |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | पावागढ़ पहाड़ी |
ज़िला | पंचमहल |
राज्य | गुजरात |
देश | भारत |
भौगोलिक निर्देशांक | 22°27′40″N 73°30′42″E / 22.46111°N 73.51167°Eनिर्देशांक: 22°27′40″N 73°30′42″E / 22.46111°N 73.51167°E |
वास्तु विवरण | |
प्रकार | नागारा वास्तुकला |
निर्माता | विश्वमाता ऋृषि |
निर्माण पूर्ण | 10-11वीं शताब्दी |
अवस्थिति ऊँचाई | 800 मी॰ (2,625 फीट) |
भौगोलिक स्थिति
संपादित करेंकालिका माता मंदिर भारत के गुजरात राज्य में हालोल[1] के पास, समुद्र तल से 762 मीटर (2,500 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है।[2] मंदिर परिसर चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व उद्यान का हिस्सा है, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।[3] यह घने जंगल के बीच एक चट्टान पर स्थित है।
मंदिर तक जाने के लिए सड़क मार्ग से जंगल के बीच से 5 किलोमीटर की दूरी तक बने रास्ते से पहुंचा जा सकता है।[2] यह रास्ता पतई रावल के महल के खंडहरों से होकर गुजरता है। वैकल्पिक रूप से पावागढ़ रज्जुमार्ग से भी पहुंचा जा सकता है, जिसे 1986 में चालू किया गया था।[4]
इतिहास
संपादित करें10वीं-11वीं शताब्दी का कालिका माता क्षेत्र का सबसे पुराना मंदिर है। इस मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। एक बार नवरात्रि के त्योहार के दौरान मंदिर में गरबा नामक एक पारंपरिक नृत्य का आयोजन किया था, जहां सैकड़ों भक्त एकत्र हुए और देवी की भक्ति में नृत्य किये। ऐसी निस्वार्थ भक्ति को देखकर देवी महाकाली स्वयं एक स्थानीय महिला का वेश बनाकर भक्तों के बीच आईं और उनके साथ नृत्य किया। इस बीच उस राज्य के राजा पतई जयसिंह जो भक्तों के साथ नृत्य कर रहे थे उन्होंने उस महिला को देखा और उसकी सुंदरता पर मोहित हो गए। राजा ने वासना से भरकर उनका हाथ पकड़ लिया और अनुचित प्रस्ताव रखा। देवी ने राजा को तीन बार चेतावनी दी कि वह अपना हाथ छोड़ दे और माफी मांग ले, लेकिन राजा वासना से इतना व्याकुल था कि उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। इस प्रकार देवी ने श्राप दे दिया कि उसका साम्राज्य नष्ट हो जायेगा। शीघ्र ही एक मुस्लिम आक्रमणकारी महमूद बेगड़ा ने राज्य पर आक्रमण कर दिया। पतई जयसिंह युद्ध में हार गए और महमूद बेगड़ा द्वारा मारे गए। पावागढ़ की कालिका माता की पूजा भील और कोली आदिवासी लोग करते हैं। मंदिर का वर्णन 15वीं सदी के नाटक गंगादास प्रताप विलासा नाटकम में किया गया है।[5]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ व्यास, रजनी (2012). गुजरात नी अस्मिता (5th संस्करण). अहमदाबाद: अक्षरा प्रकाशन. पृ॰ 26.
- ↑ अ आ "पावागढ़ पहाड़ी/कालिका माता मंदिर". गुजरात पर्यटन, सरकार की आधिकारिक वेबसाइट। गुजरात का. 22 सितम्बर 2012. मूल से 12 दिसम्बर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 सितम्बर 2012.
- ↑ "चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व पार्क". यूनेस्को. अभिगमन तिथि 29 सितम्बर 2012.
- ↑ "उषा ब्रेको लिमिटेड | माँ कालीदेवी". मूल से 19 दिसम्बर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 सितम्बर 2012.
- ↑ शिवानंद, वी; भार्गव, अतुल (2009). चंपानेर पावागढ़. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण. पृ॰ 33. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-904866-2-0. अभिगमन तिथि 28 सितम्बर 2012.