काव्यप्रकाश

आचार्य मम्मट द्वारा रचित ग्रंथ

काव्यप्रकाश (संस्कृत में काव्यप्रकाशः), आचार्य मम्मट द्वारा रचित काव्य की परख कैसे की जाय इस विषय पर उदाहरण सहित लिखा गया एक विस्तृत एवं अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है।[1] इस ग्रंथ का अध्ययन आज भी विश्वविद्यालयों के संस्कृत विभाग में पढ़ने वाले साहित्य के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण समझा जाता है।[2]

ग्रंथ के अध्याय

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आचार्य मम्मट या मम्मटाचार्य ने काव्य प्रकाश को १० भागों में बांटा है जिसको उन्होंने प्रथम उल्लास, द्वितीय उल्लास आदि नाम दिए हैं।
प्रथम उल्लास में मंगलाचरण के बाद कविसृष्टि की विशेषताएँ, अनुबंध, काव्य के प्रयोजन, उपदेश की त्रिविध शैली के विषय में बात करते हुए वे मयूरभट्ट, वामन, भामह तथा कुंतक के प्रयोजनों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करते हैं, कवि तथा पाठक या श्रोता की दृष्टि से काव्य का प्रयोजन के विषय में चर्चा करते हैं तथा भरतमुनि के काव्य प्रयोजन स्पष्ट करते हैं। प्रयोजन के पश्यात प्रथम अध्याय को उन्होंने विभिन्न आचार्यों के काव्य हेतुओं का विश्लेषण किया है, काव्य के लक्षण बताए हैं और आचार्य विश्वनाथ के उदाहरण की आलोचना करते हुए प्रथम अध्याय की समाप्ति की है। इसका नाम उन्होंने रखा है- काव्य-प्रयोजन-कारण-स्वरूप निर्णय।
द्वितीय उल्लास में शब्द क्या है; और उसकी शक्ति क्या है; इस विषय में पूर्ववर्ती आचार्यों के मत का विश्लेषण करते हुए उन्होंने अपनी राय प्रकट की है। उन्होंने शब्द की तीन शक्तियाँ अभिधा, व्यंजना और लक्षणा के विषय में बात की है और व्यंजना को काव्य के लिए सर्वोत्तम गुण सिद्ध किया है। शीर्षक है- शब्दार्थ स्वरूप निर्णय।
तृतीय उल्लास में अर्थ की विशद व्याख्या की गई है। अर्थ क्या है; अर्थ के कितने भेद हो सकते हैं; पूर्ववर्ती आचार्यों ने इस विषय में क्या कहा है; और स्वयं उनका इस विषय में क्या विचार है इसका वर्णन किया गया है। शीर्षक है - अर्थव्यंजकता निर्णय।
चतुर्थ उल्लास में काव्य के प्रथम भेद ध्वनि काव्य के विषय में बताते हुए रस, रस की निषपत्ति, उसके भाव, अनुभावों का विष्लेषण तथा पूर्ववर्ती आचार्यों के साथ उसका समालोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। रस में व्यंजकता किस प्रकार निर्मित होती है वह श्रोता तक कैसे पहुँचती है तथा ध्वनि से उसका क्या तादात्म्य है यह इस अध्याय में बताया गया है। इस अध्याय में रसवदलंकारों (ऐसे अलंकार जिनसे काव्य में रस की उत्पत्ति होती है) का भी वर्णन है और यह भी बताया गया है कि वे अर्थ व्यंजना में किस प्रकार महत्वपूर्ण सिद्ध होते हैं। अध्याय का शीर्षक है-ध्वनि निर्णय।
पंचम उल्लास में काव्य के दूसरे भेद गुणीभूत व्यंग्य काव्य के आठ भेद दिए गए हैं। पूर्ववर्ती आचार्यों के साथ उनकी परिभाषा की विवेचना करते हुए काव्य में व्यंजना शक्ति विषयक अनेक आचार्यों की परिभाषा तथा उदाहरण का खंडन-मंडन करते हुए अपने मत का प्रतिपादन किया है। शीर्षक है ध्वनिगुणीभूतव्यंग्यसंकीर्णभेद निर्णय।
षष्ठ उल्लास में काव्य के तीसरे भेद चित्रकाव्य के दो भेद शब्द चित्र और अर्थ चित्र के विषय में बताते हुए पूर्ववर्ती आचार्यों की परिभाषाओं और उदाहरणों की समालोचना प्रस्तुत की गई है। शीर्ष क है-शब्दार्थचित्र-निरूपण।
सप्तम उल्लास में काव्य के दोषों के विषय में विस्तृत व्याख्या है। श्रुतिकटु आदि १६ दोष गिनाए गए हैं और इनके विषय में विस्तार से चर्चा की गई है। शीर्षक है दोषदर्शन।
अष्टम उल्लास में काव्य के गुण उनके तीन भेद तीनो भैदों की व्याख्या, आचार्य वामन द्वारा बताए गए दस अर्थ गुणों का खंडन तथा गुणानुसारिणी रचना के अपवादों की विवेचना की गई है। शीर्षक है- गुणालंकार भेद निर्णय।
नवम उल्लास में शब्दालंकारों की परिभाषा, उदाहरण, प्रयोग और अपवादों का वर्णन है।
दशम उल्लास में अर्थालंकारों की परिभाषा, उदाहरण, प्रयोग और अपवादों का वर्णन है।[3]

इन्हें भी देखें

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  1. "KSEMENDRA - A PEOPLE'S POET". वितस्ता एनुअल नंबर. Archived from the original (एचटीएमएल) on 9 मई 2008. Retrieved 30 जनवरी 2008.
  2. "Sanskrit Department DR. HARISINGH GOUR VISHWAVIDYALAYA SAGAR (M.P.) INDIA". संस्कृत सागर. Archived from the original on 8 फ़रवरी 2011. Retrieved 30 जनवरी 2008.
  3. आचार्य, विश्वेश्वर (1960). डॉ॰ नगेंद्र (ed.). काव्यप्रकाश टीका. वाराणसी, भारत: ज्ञानमंडल लिमिटेड. p. 64. {{cite book}}: |access-date= requires |url= (help)

बाहरी कड़ियाँ

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