काष्ठा संघ दिगंबर जैन सम्प्रदाय का एक उपसम्प्रदाय था जो उत्तरी एवं पश्चिमी भारत के अनेक भागों में व्याप्त था। काष्ठा संघ मूल संघ की एक शाखा माना जाता है। कहा जाता है कि इस संघ की उत्पत्ति 'काष्ठा' नामक नगर से हुई थी। दिल्ली क्षेत्र के कई ग्रन्थों एवं शिलालेखों में लोहाचार्य को इस संघ का प्रणेता बताया गया है। [1]

काष्ठा संघ के भट्टारकों द्वारा नक्काशी करके बनायी गयीं जैन मूर्तियाँ (ग्वालियर)

सं १५१० वर्षे माघ सुदी ८ सोमे गोपाचल दुर्गे तोमर वंशान्वये राजा श्री डूंगरेन्द्र देव राज्य पवित्रमाने श्री काष्ठासंघ माथुरान्वये भट्टारक श्री गुणकीर्ति देवास्तत्पट्टे श्री मलयकीर्ति देवास्ततो भट्टारक गुणभद्रदेव पंडितवर्य रइघू तदाम्नाये अग्रोतवंशे वासिलगोत्रे सकेलहा भार्या निवारी तयोः पुत्र विजयष्ट शाह ... साधु श्री माल्हा पुत्र संघातिपति देउताय पुत्र संघातिपति करमसीह श्री चन्द्रप्रभु जिनबिंब महाकाय प्रतिष्ठापित प्रणमति ..शुभम् भवतु ..

ग्वालियर दुर्ग का एक शिलालेख (1453 ई)[2]

कई जैन समुदाय काष्ठा संघ से सम्बद्ध थे। अग्रवाल जैन इसके सबसे बड़े समर्थक थे। मुनि सभा सिंह, अपने ग्रन्थ पद्मपुराण में लिखते हैं-[3]

काष्ठा संघी माथुर गच्छ, पहुकर गण में निरमल पछ॥
महा निर्ग्रन्थ आचारज लोह, छांड्या सकल जाति का मोह॥
अग्रोहे निकट प्रभु ठाढे जोग, करैं वन्दना सब ही लोग॥
अग्रवाल श्रावक प्रतिबोध, त्रेपन क्रिया बताई सोध॥

काष्ठासंघ में कई उपपन्थ थे[4]

  • नन्दितात् गच्छ
  • मथुरा संघ
  • लता-बागड़ गच्छ

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "मुनि सभाचन्द्र एवं उनका पद्मपुराण" Archived 2011-07-26 at the वेबैक मशीन (पीडीएफ).
  2. गोपाचल के जिन-मन्दिर
  3. मुनि सभाचन्द्र एवं उनका पद्मपुराण, 1984
  4. काष्ठासंघ तथा इससे संबद्ध संघ एवं गण-गच्छ, शांतिलाल जैन जांगड़ा, अर्हत वचन जुलाई सितम्बर २००६, पृ १७-२२

नोट संपादित करें