ग्वालियर

मध्य प्रदेश का एक शहर

ग्वालियर भारत के मध्य प्रदेश राज्य के ग्वालियर ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर और राज्य का का एक प्रमुख शहर है।[1][2]

"ग्वालियर"
Gwalior
गुजरी महल के साथ ग्वालियर का विहंगम दृश्य
गुजरी महल के साथ ग्वालियर का विहंगम दृश्य
ग्वालियर is located in मध्य प्रदेश
ग्वालियर
ग्वालियर
मध्य प्रदेश में स्थिति
निर्देशांक: 26°13′19″N 78°10′41″E / 26.222°N 78.178°E / 26.222; 78.178निर्देशांक: 26°13′19″N 78°10′41″E / 26.222°N 78.178°E / 26.222; 78.178
देश भारत
प्रान्तमध्य प्रदेश
ज़िलाग्वालियर ज़िला
जनसंख्या (2011)
 • कुल10,69,276
भाषाएँ
 • प्रचलितहिन्दी
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)

भौगोलिक दृष्टि से ग्वालियर म.प्र. राज्य के उत्तर में स्थित है। यह शहर और इसका प्रसिद्ध दुर्ग उत्तर भारत के प्राचीन शहरों के केन्द्र रहे हैं। यह शहर गुर्जर-प्रतिहार राजवंश, तोमर तथा कछवाहा की राजधानी रही है ।

ग्वालियर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रमुख स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित होने वाले सौ भारतीय शहरों में से एक के रूप में चुना गया है। [3]

ग्वालियर शहर के नाम के पीछे एक इतिहास छिपा है। छठी शताब्दी में एक राजा हुए सूरजसेन, एक बार वे एक अज्ञात बीमारी से ग्रस्त हो मृत्युशैया पर थे, तब ग्वालिपा नामक सन्त ने उन्हें ठीक कर जीवनदान दिया। उन्हीं के सम्मान में इस शहर की नींव पड़ी और इसे नाम दिया ग्वालियर। कहते है, सूरजसेन पाल के 83 वंशजों ने किले पर राज्य किया, लेकिन 84 वें, जिसका नाम तेज करण था, इसे हार गया।[4]

 
राजा मिहिरकुल का सिक्का, जो लगभग सन 520 में ग्वालियर पर राज करते थे।

 
ग्वालियर शिलालेख में शून्य, जैसा कि दो संख्याओं (50 और 270) में देखा जा सकता है। अनुमान लगाया जाता है कि ये अंक 9वी शताब्दी में अंकित किए गए थे।[5][6]

ग्वालियर किले में चतुर्भुज मंदिर एक लिखित संख्या के रूप में शून्य की दुनिया की पहली घटना का दावा करता है।[7] हालाँकि पाकिस्तान में भकशाली शिलालेख की खोज होने के बाद यह दूसरे स्थान पर आ गया।[8] ग्वालियर का सबसे पुराना शिलालेख हूण शासक मिहिरकुल की देन है, जो छठी सदी में यहाँ राज किया करते थे। इस प्रशस्ति में उन्होंने अपने पिता तोरमाण (493-515) की प्रशंसा की है।

 
ग्वालियर किले के अंदर सिद्धांचल गुफाओँ में जैन प्रतिमाएँ।

1231 में इल्तुतमिश ने 11 महीने के लंबे प्रयास के बाद ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और तब से 13 वीं शताब्दी तक यह मुस्लिम शासन के अधीन रहा। 1375 में राजा वीर सिंह को ग्वालियर का शासक बनाया गया और उन्होंने तोमरवंश की स्थापना की। उन वर्षों के दौरान, ग्वालियर ने अपना स्वर्णिम काल देखा। इसी तोमर वंश के शासन के दौरान ग्वालियर किले में जैन मूर्तियां बनाई गई थीं।

 
ग्वालियर किले में मान मंदिर महल।
 
उरवई घाटी से गुज़रते हुए बाबर (बाबरनामा से लिया गया दृश्य)।

राजा मान सिंह तोमर ने अपने सपनों का महल, मैन मंदिर पैलेस बनाया जो अब ग्वालियर किले में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। [9] बाबर ने इसे " भारत के किलों के हार में मोती" और "हवा भी इसके मस्तक को नहीं छू सकती" के रूप में वर्णित किया था। बाद में 1730 के दशक में, सिंधियों ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया| फिर सन 1740 मे गोहद के जाट राजा भीम सिंह राणा ने ग्वालियर को जीत लिया और कई वर्षों तक यहां शासन किया|[10] फिर दुबारा सिंधियों ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और ब्रिटिश शासन के दौरान यह एक रियासत बना रहा।

15 वीं शताब्दी तक, शहर में एक प्रसिद्ध गायन स्कूल था जिसमें तानसेन ने भाग लिया था। ग्वालियर पर मुगलों ने सबसे लंबे समय तक शासन किया और फिर मराठों ने

क़िले पर आयोजित दैनिक लाइट एंड साउंड शो ग्वालियर किले और मान मंदिर पैलेस के इतिहास के बारे में बताता है।

1857 का स्वाधीनता संग्राम

संपादित करें

1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ग्वालियर ने भाग नहीं लिया था। बल्कि यहाँ के सिंधिया शासक ने अंग्रेज़ों का साथ दिया था। झाँसी के अंग्रेज़ों के हाथ में पड़ने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर भागकर आ पहुँचीं और वहाँ के शासक से उन्होंने पनाह माँगी। अंग्रेज़ों के सहयोगी होने के कारण सिंधिया ने पनाह देने से इंकार कर दिया, किंतु उनके सैनिकों ने बग़ावत कर दी और क़िले को अपने क़ब्ज़े में ले लिया। कुछ ही समय में अंग्रेज़ भी वहाँ पहुँच गए और भीषण युद्ध हुआ। महाराजा सिंधिया के समर्थन के साथ अंग्रेज़ 1,600 थे, जबकि हिंदुस्तानी 20,000। फिर भी बेहतर तकनीक और प्रशिक्षण के चलते अंग्रेज़ हिन्दुस्तानियों पर हावी हो गए। जून 1858 में रानी लक्ष्मीबाई भी अंग्रेज़ों से लड़ते हुए ग्वालियर में वीरगति को प्राप्त हो गईं। वहीं तात्या टोपे और नाना साहिब वहाँ से फ़रार होने में कामयाब रहे। रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान आज भी पूरे भारत में याद किया जाता है।

ग्वालियर रियासत

संपादित करें

मुख्य आलेख- ग्वालियर रियासत

 
शहर का नक्शा, 1914

ग्वालियर पर आज़ादी से पहले सिंधिया वंश का राज था, जो मराठा समूहों में से एक थे। इसमें 18वीं और 19वीं शताब्दी में ग्वालियर राज्य शासक, 19वीं और 20वीं शताब्दी के दौरान औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार के सहयोगी और स्वतंत्र भारत में राजनेता शामिल थे।

ग्वालियर के ऐतिहासिक स्थल

संपादित करें

मुरार: पहले यह सैन्य क्षेत्र हुआ करता था, जिसे मिलिट्री ऑफिसर्स रेजिडेंशियल एरिया रिजर्व्ड (M.O.R.A.R.) कहा जाता था और संक्षेप में मोरार। मोरार शब्द का लोप होकर मुरार हो गया।

थाटीपुर: रियासत काल में यहाँ सेना के सरकारी आवास थे, जिस का नाम थर्टी फोर लांसर था। आज़ादी के बाद यह आवास मध्य प्रदेश शासन के अधीन आ गए, जिसे थर्टी फोर की जगह थाटीपुर कहा गया।

सहस्त्रबाहु मंदिर या सासबहू का मंदिर : ग्वालियर दुर्ग पर इस मंदिर के बारे में मान्यता है की यह सहत्रबाहु अर्थात हजार भुजाओं वाले भगवन विष्णु को समर्पित है। बाद में धीरे-धीरे सासबहू का मंदिर कहा जाने लगा।

गोरखी: पुराने रजिस्ट्रार ऑफिस से गजराराजा स्कूल तक सिंधियावंश ने रहने का स्थान बनाया था। यही उनकी कुल देवी गोराक्षी का मंदिर बनाया गया। बाद में यह गोरखी बन गई।

पिछड़ी ड्योढ़ी: स्टेट टाइम में महल बनने से पहले सफ़ेद झंडा गाड़ा जाता था। जब महल बना तो इसके पीछे की ड्योढ़ी और बाद में पिछड़ी ड्योढ़ी कहलाने लगी।

तेली का मंदिर: ८ वी शताब्दी में राजा के सेनापति तेल्प ने दुर्ग पर दक्षिण और उत्तर भारतीय शैली का मंदिर बनवाया था, जिसे तेल्प का मंदिर कहा जाता था। आज इसे तेली का मंदिर कहा जाता है।

पान पत्ते की गोठ: पूना की मराठा सेना जब पानीपत युद्ध से पराजित होकर लौट रही थी, तब उसने यहीं अपना डेरा डाल लिया। पहले इसे पानीपत की गोठ कहा जाता था। बाद में यह पान पत्ते की गोठ हो गई।

डफरिन सराय: १८ वी शतदि में यहां कचहरी लगाई जाती थी। यहां ग्वालियर अंचल के करीब ८०० लोगों को लॉर्ड डफरिन ने फांसी की सजा सुनाई थी, इसी के चलते इसे डफरिन सराय कहा जाता है।

कोटा की सराय

१७ जून १८५८ को महारानी‌ लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों का अंतिम महा युद्ध हुआ।

लष्कर

१५ जून १८५८ महारानी‌ लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों का अंतिम महा युद्ध हुआ।

मोरार छावणी

१ जून और १६ जून १८५८ को महारानी‌ लक्ष्मीबाई और अंग्रेज और सिंधिया का युद्ध हुआ।

फुलबाग

१७ जून १८५८ की सुर्यास्त के समय महारानी लक्ष्मीबाई का यहा बाबा गंगादास महाराज के मठ में अंतिम संस्कार हुआ। आज यहा स्मारक है।

[11][12]

पर्यटन स्थल

संपादित करें
 
ग्वालियर के किले का सिंहद्वार

महाराजा मान सिंह का क़िला

संपादित करें

सेन्ड स्टोन से बना यह किला शहर की हर दिशा से दिखाई देता और शहर का प्रमुखतम स्मारक है। एक उँचे पठार पर बने इस किले तक पहुंचने के लिये एक बेहद ऊंची चढाई वाली पतली सडक़ से होकर जाना होता है। इस सडक़ के आसपास की बडी-बडी चट्टानों पर जैन तीर्थकंरों की विशाल मूर्तियां बेहद खूबसूरती से और बारीकी से गढी गई हैं। किले की तीन सौ फीट उंचाई इस किले के अविजित होने की गवाह है। इस किले के भीतरी हिस्सों में मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूने स्थित हैं। पन्द्रहवीं शताब्दि में निर्मित गूजरी महल उनमें से एक है जो राजपूत राजा मानसिंह तोमर और गुर्जर रानी मृगनयनी के गहन प्रेम का प्रतीक है। इस महल के बाहरी भाग को उसके मूल स्वरूप में राज्य के पुरातत्व विभाग ने सप्रयास सुरक्षित रखा है किन्तु आन्तरिक हिस्से को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया है जहां दुर्लभ प्राचीन मूर्तियां रखी गई हैं जो कार्बन डेटिंग के अनुसार प्रथम शती ए डी की हैं। ये दुर्लभ मूर्तियां ग्वालियर के आसपास के इलाकों से प्राप्त हुई हैं। ग्वालियर का किला से आगरा 120 कि॰मी॰ दूर स्थित है। इसे 'भारत का जिब्राल्टर' कहा जाता है।

तेली का मंदिर

संपादित करें

9वीं शताब्दी में निर्मित एक अद्वितीय स्थापत्यकला का नमूना विष्णु जी का तेली का मन्दिर है, जो की 100 फीट की ऊंचाई का है। यह द्रविड स्थापत्य और आर्य स्थापत्य का बेजोड़ संगम है।

मानमन्दिर महल

संपादित करें

इसे 1486 से 1517 के बीच ग्वालियर के प्रतापी राजा मानसिंह द्वारा बनवाया गया था। सुन्दर रंगीन टाइलों से सजे इस किले की समय ने भव्यता छीनी जरूर है किन्तु इसके कुछ आन्तरिक व बाह्य हिस्सों में इन नीली, पीली, हरी, सफेद टाइल्स द्वारा बनाई उत्कृष्ट कलाकृतियों के अवशेष अब भी इस किले के भव्य अतीत का पता देते हैं।राजा मानसिंह पराक्रमी योद्धा होने के साथ ही ललित कला प्रेमी व स्थापत्य शैली के जानकार भी थे।उनके शासनकाल को ग्वालियर का स्वर्ण युग कहा जाता है।इस किले के विशाल कक्षों में अतीत आज भी स्पंदित है। यहां जालीदार दीवारों से बना संगीत कक्ष है, जिनके पीछे बने जनाना कक्षों में राज परिवार की स्त्रियां संगीत सभाओं का आनंद लेतीं और संगीत सीखतीं थीं। इस महल के तहखानों में एक कैदखाना है, इतिहास कहता है कि औरंगज़ेब ने यहां अपने भाई मुराद को कैद रखवाया था और बाद में उसे समाप्त करवा दिया। जौहर कुण्ड भी यहां स्थित है। इसके अतिरिक्त किले में इस शहर के प्रथम शासक के नाम से एक कुण्ड है ' सूरज कुण्ड। विष्णु जी का एक मन्दिर है 'सहस्रबाहु का मन्दिर' जिसे अब सास-बहू का मंदिर नाम से भी जानते हैं। इसके अलावा यहां एक सुन्दर गुरूद्वारा है जो सिखों के छठे गुरू गुरू हरगोबिन्द जी की स्मृति में निर्मित हुआ, जिन्हें जहांगीर ने दो वर्षों तक यहां बन्दी बना कर रखा था।

जयविलास महल और संग्रहालय

संपादित करें
 
ग्वालियर का किला

यह सिंधिया राजपरिवार का वर्तमान निवास स्थल ही नहीं, बल्कि एक भव्य संग्रहालय भी है। इस महल के 35 कमरों को संग्रहालय बना दिया गया है। इस महल का ज्यादातर हिस्सा इटेलियन स्थापत्य से प्रभावित है। इस महल का प्रसिध्द दरबार हॉल इस महल के भव्य अतीत का गवाह है, यहां लगा हुए दो फानूसों का भार दो-दो टन का है, कहते हैं इन्हें तब टांगा गया जब दस हाथियों को छत पर चढा कर छत की मजबूती मापी गई। इस संग्रहालय की एक और प्रसिद्ध चीज है, चांदी की रेल जिसकी पटरियां डाइनिंग टेबल पर लगी हैं और विशिष्ट दावतों में यह रेल पेय परोसती चलती है। और इटली, फ्रान्स, चीन तथा अन्य कई देशों की दुर्लभ कलाकृतियां यहाँ हैं।

 
जयविलास महल

तानसेन स्मारक

संपादित करें

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के स्तंभ महान संगीतकार तानसेन जो कि अकबर के नवरत्नों में से एक थे, उनका स्मारक यहां स्थित है, यह मुगल स्थापत्य का एक नमूना है। तानसेन की स्मृति में ग्वालियर में हर वर्ष नवम्बर में तानसेन समारोह आयोजित होता है।

 
तानसेन स्मारक, ग्वालियर

विवस्वान सूर्य मन्दिर

संपादित करें

यह बिरला द्वारा निर्मित करवाया मन्दिर है जिसकी प्रेरणा कोर्णाक के सूर्यमन्दिर से ली गई है।

गोपाचल पर्वत

संपादित करें

गोपाचल पर्वत ग्वालियर के किले के अंचल में, प्राचीन कलात्मक जैन मूर्ति समूह का अद्वितीय स्थान है। यहाँ पर हजारों विशाल दि. जैन मूर्तियाँ सं. 1398 से सं. 1536 के मध्य पर्वत को तराशकर बनाई गई हैं। इन विशाल मूर्तियों का निर्माण तोमरवंशी राजा वीरमदेव, डूँगरसिंह व कीर्तिसिंह के काल में हुआ। अपभ्रंश के महाकवि पं॰ रइधू के सान्निध्य में इनकी प्रतिष्ठा हुई।

 
ग्वालियर दुर्ग के अन्दर स्थित गोपाचल पर्वत पर निर्मित जैन तीर्थंकरों की प्रतिमा

झाँसी महारानी लक्ष्मीबाई समाधी स्थान

संपादित करें

रानी लक्ष्मीबाई स्मारक शहर के पड़ाव क्षैत्र में है। कहते हैं यहां झाँसी की रानी वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की सेना ने अंग्रेजों से लड़ते हुए पड़ाव डाला और यहां के तत्कालीन शासक महाराजा जयाजीराव शिंदे उर्फ सिंधिया से सहायता मांगी किन्तु सदैव से मुगलों और अंग्रेजों के प्रभुत्व में रहे यहां के शासक उनकी मदद न कर सके और वे यहां १७ जून १८५८ को सुर्यास्त के समय कोटा की सराय के फुलबाग में वीरगति को प्राप्त हुईं। बाबा गंगादास महाराज के मठ में महारानी लक्ष्मीबाई का गुप्तरूप से अंतिम संस्कार हुआ। उनकी अंतिम संस्कार में व्यत्यय ना आये इसलिये ७४५ साधूओं ने अंग्रेजों से लोहा लिया और सदा के लिये अमर हुये। उसी स्थान पर उनका भव्य अश्वारूढ पुतला का स्मारक है।

१८ जून १८५८ की शाम को अंग्रेजों ने ग्वालियर में महारानी लक्ष्मीबाई की खोज की रानी लक्ष्मीबाई का कुछ भी पता न चलने पर शाम के समय महारानी लक्ष्मीबाई को अधिकारीक रूप से मृत घोषित किया गया। १९ जून‌ को यह जानकारी फोर्ट विल्यम तथा रानी विक्टोरिया को टेलिग्राफ द्वारा हॅमिल्टन ने दी। २० जून को न्युज पेपर के जरिये पुरे हिंदुस्थान तथा इंग्लैंड और अमरिका में रानी लक्ष्मीबाई के मृत्यु की जानकारी थी गयी।

ग्वालियर मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में 26°13′N 78°11′E / 26.22°N 78.18°E / 26.22; 78.18 पर स्थित है। [13] यह दिल्ली से क़रीब 300 किमी दूर पड़ता है।

Gwalior
जलवायु सारणी (व्याख्या)
माजूजुसिदि
 
 
16.5
 
23
7
 
 
8.0
 
27
10
 
 
7.0
 
33
16
 
 
2.6
 
39
22
 
 
8.9
 
44
27
 
 
77.7
 
41
30
 
 
261.6
 
35
27
 
 
312.9
 
32
25
 
 
146.2
 
33
24
 
 
42.6
 
33
18
 
 
4.2
 
29
12
 
 
7.7
 
24
7
औसत अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान (°से.)
कुल वर्षा (मि.मी)
स्रोत: IMD

ग्वालियर में मार्च के अंत से लेकर जून की शुरुआत तक गर्म ग्रीष्मकाल के साथ उप-उष्णकटिबंधीय जलवायु होती है, जून के अंत से अक्टूबर की शुरुआत तक आर्द्र मानसून का मौसम होता है, और नवंबर के अंत से फरवरी के अंत तक ठंडी शुष्क सर्दी होती है।कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के तहत शहर में आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय जलवायु है

ग्वालियर (1951-2000) के जलवायु आँकड़ें
माह जनवरी फरवरी मार्च अप्रैल मई जून जुलाई अगस्त सितम्बर अक्टूबर नवम्बर दिसम्बर वर्ष
औसत उच्च तापमान °C (°F) 22.8
(73)
26.4
(79.5)
32.5
(90.5)
38.6
(101.5)
42.0
(107.6)
40.7
(105.3)
34.6
(94.3)
32.4
(90.3)
33.1
(91.6)
33.5
(92.3)
29.4
(84.9)
24.6
(76.3)
32.55
(90.59)
औसत निम्न तापमान °C (°F) 7.0
(44.6)
9.8
(49.6)
15.4
(59.7)
21.5
(70.7)
26.8
(80.2)
29.0
(84.2)
26.4
(79.5)
25.2
(77.4)
23.9
(75)
18.3
(64.9)
11.6
(52.9)
7.3
(45.1)
18.52
(65.32)
औसत वर्षा मिमी (इंच) 14.4
(0.567)
10.0
(0.394)
6.5
(0.256)
4.5
(0.177)
11.2
(0.441)
67.5
(2.657)
248.8
(9.795)
274.4
(10.803)
151.2
(5.953)
40.7
(1.602)
5.8
(0.228)
7.0
(0.276)
842
(33.149)
स्रोत: WMO

लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा विश्वविद्यालय, भारत के बड़े शारीरिक शिक्षा विश्वविद्यालयों में से एक है। ग्वालियर में कृत्रिम टर्फ़ का रेलवे हॉकी स्टेडियम भी है। रूप सिंह स्टेडियम ४५,००० की क्षमता वाला अन्तर्रष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम है, जहाँ १० एक दिवसिय अन्तर्रष्ट्रीय मैचों क आयोजन हो चुका है। यह स्टेडियम दुधिया रोशनी से सुसज्जित है, तथा १९९६ के क्रिकेट विश्व कप का भारत - वेस्ट इन्डीज़ मेच का आयोजन कर चुका है। इस मैदान पर सचिन तेंडुलकर, एक दिवसीय मैच में दोहरा शतक जमाने वाले विश्व के पहले खिलाडी बने थे, जो उन्होंने दक्षिण अफ्रीका टीम के खिलाफ २४ फरवरी २०१० को लगाया था।

ग्वालियर संगीत के शहर के रूप में भी जाना जाता है।राजा मान सिंह तोमर (१४८६ ई.)के शासनकाल में संगीत महाविद्यालय की नींव रखी गई। बैजू बावरा, हरिदास ,तानसेन आदि ने यहीं संगीत साधना की। संगीत सम्राट तानसेन ग्वालियर के बेहट में पैदा हुए।म. प्र. सरकार द्वारा तानसेन समारोह ग्वालियर में हर साल आयोजित किया जाता है। सरोद उस्ताद अमजद अली ख़ान भी ग्वालियर के शाही शहर से है। उनके दादा गुलाम अली खान बंगश ग्वालियर के दरबार में संगीतकार बने। बैजनाथ प्रसाद (बैजू बावरा) ध्रुपद के गायक थे जिन्होने ग्वालियर को अपनी कर्म भूमि बनाई।

ग्वालियर घराना

संपादित करें

यह ख़याल घरानों में सबसे पुराना घराना है, जिससे कई महान संगीतज्ञ निकले है। ग्वालियर घराने का उदय महान मुग़ल बादशाह अकबर के शासनकाल (1542-1605) के साथ शुरू हुआ। तानसेन जैसे इस कला के संरक्षक ग्वालियर से आये।

वायु मार्ग

ग्वालियर का राजमाता विजया राजे सिंधिया विमानतल, शहर को दिल्‍ली, मुंबई, इंदौर, भोपाल व जबलपुर से जोड़ता है। यहाँ भारतीय वायु सेना का मिराज़ विमानों का विमान केन्द्र है।

रेल मार्ग

ग्वालियर का रेलवे स्थानक देश के विविध रेलवे स्थानकों से जुड़ा हुआ है। यह रेलवे स्थानक भारतीय रेल के दिल्‍ली-चैन्‍नई मुख्य मार्ग पर पड़ता है। साथ ही यह शहर कानपुर, मुम्‍बई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बंगलूरू, हैदराबाद आदि शहरों से अनेक रेलगाडियों के माध्‍यम से जुड़ा हुआ है।

सडक मार्ग

ग्वालियर शहर राज्य व देश के अन्य भागों से काफ़ी अच्छे से जुड़ा हुआ है। आगरा-मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग NH-३, ग्वालियर से गुजरता है। ग्वालियर झाँसी से NH-७५ से जुड़ा है। नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर भी ग्वालियर से गुजरता है, एवं ग्वालियर भिण्ड से NH-९२ से जुड़ा हुआ है।

ग्वालियर पश्चिमको राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रसे धन सहायता के साथ एक "काउंटर मैग्नेट" परियोजना के रूप में विकसित किया जा रहा है। [14]इसे शिक्षा, उद्योग और रियल एस्टेट में निवेश बढ़ाने के लिए पेश किया गया है।हॉटलाइन, सिमको और ग्रासिम ग्वालियर जैसे निर्माताओं के समापन का मुकाबला करने की उम्मीद है। स्थानीय कलेक्टर और नगर निगम द्वारा शुरू की गई ग्वालियर मास्टर योजना शहर की बढ़ती आबादी को पूरा करने और साथ ही शहर को पर्यटकों के लिए सुंदर बनाने के लिए शहर के बुनियादी नागरिक बुनियादी ढांचे में सुधार करने की पहल करती है।

ग्वालियर के कुम्भकार

संपादित करें

ग्वालियर मृणशिल्पों की दृष्टि से आज उतना समृद्व भले ही न दिखता हो किन्तु लगभग पच्चीस वर्ष पहले तक यहां अनेक सुन्दर खिलौने बनाये जाते थे। दीवाली, दशहरे के समय यहां का जीवाजी चौक जिसे बाड़ा भी कहा जाता है, में खिलौनों की दुकाने बड़ी संख्या में लगती थी। मिट्टी के ठोस एवं जल रंगों से अलंकृत वे खिलौने अधिकांशतः बनना बन्द हो गये हैं। गूजरी, पनिहारिन, सिपाही, हाथी सवार, घोड़ा सवार, गोरस, गुल्लक आदि आज भी बिकते है। अब यहां मिटटी के स्थान पर कागज की लुगदी के खिलौने अधिक बनने लगे हैं जिन पर स्प्रेगन की सहायता से रंग ओर वार्निश किया जाता है।

यहां बनाये जाने वाले मृण शिल्पों में अनुष्ठानिक रूप से महत्वपूर्ण है, महालक्ष्मी का हाथी, हरदौल का धोड़ा, गणगौर, विवाह के कलश, टेसू, गौने के समय वधू को दी जाने वाली चित्रित मटकी आदि।

ग्वालियर, कुंभार (प्रजापति) समुदाय की सामाजिक संरचना के अध्ययन की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां हथेरिया एवं चकरेटिया दोनों ही प्रकार के कुंभार पाये जाते है। हथरेटिया कुंभार चकरेटिया कुंभारों की भांति बर्तन बनाने के लिए चाक का प्रयोग नहीं करते, वे हाथों से ही, एक कूंढे की सहायता से मिटटी को बर्तनों को आकार देते हैं। उनके बनाये बर्तनों की दीवारें मोटी होती हैं। ये लोग खिलौनें बनाने में दक्ष होते है।

शिक्षा एवं शिक्षण संस्थान

संपादित करें
 
जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर
 
आई आई आई टी एम

ग्वालियर में जीवाजी विश्वविद्यालय (1964) और इससे संबंद्ध कला, विज्ञान, वाणिज्य, चिकित्सा तथा कृषि महाविद्यालय हैं और नगर में साक्षरता की दर काफ़ी ऊंची है। ग्वालियर में संगीत की यशस्वी परंपरा रही है और उसकी अपनी ख़ास शैली रही है। जो ग्वालियर 'घराना' नाम से प्रसिद्ध है।

जनसंख्या, साक्षरता एवं धर्म

संपादित करें

२०११ की जनगणना के मुताबिक ग्वालियर की कुल जनसंख्या २०,३०,५४३ है, जिसमे पुरुष १०,९०,६४७ व महिला ९,३९,८९६ है। साक्षरता ५७.४७% है (पुरुष ७०.८१%, महिला ४१.७२%)। 2024 में ग्वालियर शहर की वर्तमान अनुमानित जनसंख्या 1,517,000 है, जबकि ग्वालियर मेट्रो की जनसंख्या 1,586,000 अनुमानित है।[15]

ग्वालियर में धर्म[16]
धर्म प्रतिशत
हिन्दू धर्म
  
88.84%
इस्लाम
  
8.58%
सिख
  
0.56%
ईसाई
  
0.29%
जैन
  
1.41%
अन्य†
  
0.19%
धर्म का विस्तार

ग्वालियर से प्रसिद्ध हस्तियाँ

संपादित करें

[18]


इन्हें भी देखें

संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें
  1. "Inde du Nord: Madhya Pradesh et Chhattisgarh Archived 2019-07-03 at the वेबैक मशीन," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172
  2. "Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293
  3. "Only 98 cities instead of 100 announced: All questions answered about the smart cities project". Firstpost.com. मूल से 19 जनवरी 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2017-06-13.
  4. Paul E. Schellinger & Robert M. Salkin 1994, पृ॰ 312.
  5. Smith, David Eugene; Karpinski, Louis Charles (1911). The Hindu-Arabic numerals. Boston, London, Ginn and Company. पृ॰ 52.
  6. "For a modern image". मूल से 11 जनवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अक्तूबर 2019.
  7. Amir Aczel. "The Origin of the Number Zero". Smithsonian.com. मूल से 24 September 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 July 2015.
  8. "भक्शाली". मूल से 2 जुलाई 2019 को पुरालेखित.
  9. Empty citation (मदद)
  10. श्रीवास्तव, अभिजीत (2021-09-13). "देश के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है ग्वालियर का किला". आज तक. अभिगमन तिथि 5 जुलाई 2021.
  11. https://www.blogger.com/blogger.g?blogID=6198209010521607314#editor/target=post;postID=7886564301633423005;onPublishedMenu=allposts;onClosedMenu=allposts;postNum=10;src=postname
  12. https://www.youtube.com/watch?v=9UHaBw1EDrk
  13. "Maps, Weather, and Airports for Gwalior, India". Fallingrain.com. मूल से 24 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 July 2015.
  14. "Study on Counter Magnet Areas to Delhi and NCR" (PDF). ncrpb.nic.in/cma_study.php. National Capital Region (India) Planning Board. 2008. मूल (PDF) से 19 मई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 November 2017.
  15. "Gwalior Population 2024".
  16. "Gwalior Population Census 2011". Office of the Registrar General and Census Commissioner, भारत. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2015-11-29.
  17. Kaur, Raminder; Eqbal, Saif (2018-10-11). Adventure Comics and Youth Cultures in India (अंग्रेज़ी में). Taylor & Francis. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-429-78431-6.
  18. General, advice; Priya, Sharma (2023-08-09). प्रसिद्ध काशी बाबा देवस्थान बेहट ग्वालियर (HN में). Latest Discuss Digital Media.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)