क़ुतुब मीनार

भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित विश्व की सबसे ऊंची मीनार
(कुतुबमीनार से अनुप्रेषित)
क़ुतुब समूह के अन्य उल्लेखनीय स्थलों एवं निर्माणों हेतु देखें मुख्य लेख

क़ुतुब मीनार[3] भारत में दक्षिण दिल्ली शहर के महरौली भाग में स्थित, ईंट से बनी विश्व की सबसे ऊँची मीनार है। यह दिल्ली का एक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है। इसकी ऊँचाई 73 मीटर (239.5 फीट) और व्यास १४.३ मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर (9.02 फीट) हो जाता है। इसमें ३७९ सीढियाँ हैं।[4] मीनार के चारों ओर बने अहाते में भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं, जिनमें से अनेक इसके निर्माण काल सन 1192 के हैं। यह परिसर युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत किया गया है। कहा जाता है कि ये मीनार पास के 27 किला को तोड़कर और दिल्ली विजय के उपलक्ष्य मे किला के मलबे से बनाई गयी थी। इसका प्रमाण मीनार के अंदर कुतुब के चित्र से मिलता है। एक स्थान के अनुसार ये मीनार वराहमिहिर का खगोल शास्त्र वेधशाला थी। कुतुब मीनार परिसर में एक कुतुब स्तंभ भी है जिसपर जंग नही लगती है। इसे आप नीचे फोटो मे देख सकते है।

क़ुतुब मीनार
भारत में क़ुतुब मीनार, दिल्ली
निर्देशांक28°31′28″N 77°11′07″E / 28.524355°N 77.185248°E / 28.524355; 77.185248निर्देशांक: 28°31′28″N 77°11′07″E / 28.524355°N 77.185248°E / 28.524355; 77.185248
बुलंदी72.5 मीटर (238 फीट)
वास्तुशैलीइस्लामी वास्तुकला
प्रकार सांस्कृतिक
मानदंड iv
मनोनीत 1993 (17वां सत्र)
संदर्भ सं. 233
देश  भारत
महाद्वीप एशिया
निर्माण 1199 में कुतुब-उद-दीन ऐबक द्वारा शुरू किया गया / ल. 1220 में उनके दामाद इल्तुतमिश द्वारा पूरा किया गया।[1][2]
क़ुतुब मीनार is located in नई दिल्ली
क़ुतुब मीनार
नई दिल्ली में क़ुतुब मीनार का स्थान
क़ुतुब मीनार is located in भारत
क़ुतुब मीनार
क़ुतुब मीनार (भारत)
क़ुतुब परिसर युनेस्को विश्व धरोहर घोषित है।

Use scrollbar to see the full image

72.5 मीटर (237.86 फीट) मीटर चौडी़ कुतुब मीनार, विश्व की सर्वोच्च ईंट निर्मित अट्टालिका (मीनार) है।

अफ़गानिस्तान में स्थित, जाम की मीनार से प्रेरित एवं उससे आगे निकलने की इच्छा से, दिल्ली के प्रथम मुस्लिम शासक क़ुतुबुद्दीन ऐबक, ने सन ११९३ में आरंभ करवाया, परंतु केवल इसका आधार ही बनवा पाया। उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसमें तीन मंजिलों को बढ़ाया और सन १३६८ में फीरोजशाह तुगलक ने पाँचवीं और अंतिम मंजिल बनवाई । मीनार को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है, जिस पर कुरान की आयतों की एवं फूल बेलों की महीन नक्काशी की गई है।

कुतुब मीनार का निर्माण ढिल्लिका के गढ़ लाल कोट के खंडहरों पर किया गया था।[5]

क़ुतुब मीनार लाल और बफ सेंड स्टोन से बनी भारत की सबसे ऊंची मीनार है।

13वीं शताब्‍दी में निर्मित यह भव्‍य मीनार राजधानी, दिल्‍ली में खड़ी है। इसका व्‍यास आधार पर 14.32 मीटर और 72.5 मीटर की ऊंचाई पर शीर्ष के पास लगभग 2.75 मीटर है।

इस संकुल में अन्‍य महत्‍वपूर्ण स्‍मारक हैं जैसे कि 1310 में निर्मित एक द्वार, अलाई दरवाजा, कुव्वत उल इस्‍लाम मस्जिद; इल्तुतमिश, अलाउद्दीन खिलजी तथा इमाम जामिन के मकबरे; अलाई, मीनार सात मीटर ऊंचा लोहे का स्‍तंभ आदि।

गुलाम राजवंश के क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने ए. डी. 1199 में मीनार की नींव रखी थी और यह नमाज़ अदा करने की पुकार लगाने के लिए बनाई गई थी तथा इसकी पहली मंजिल बनाई गई थी, जिसके बाद उसके उत्तरवर्ती तथा दामाद शम्‍स उद्दीन इतुतमिश (ए डी 1211-36) ने तीन और मंजिलें इस पर जोड़ी। इसकी सभी मंजिलों के चारों ओर आगे बढ़े हुए छज्‍जे हैं जो मीनार को घेरते हैं तथा इन्‍हें पत्‍थर के ब्रेकेट से सहारा दिया गया है, जिन पर मधुमक्‍खी के छत्ते के समान सजावट है और यह सजावट पहली मंजिल पर अधिक स्‍पष्‍ट है।

कुवत उल इस्‍लाम मस्जिद मीनार के उत्तर - पूर्व ने स्थित है, जिसका निर्माण क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने ए डी 1198 के दौरान कराया था। यह दिल्‍ली के सुल्‍तानों द्वारा निर्मित सबसे पुरानी ढह चुकी मस्जिद है। इसमें नक्‍काशी वाले खम्‍भों पर उठे आकार से घिरा हुआ एक आयातकार आंगन है और ये 27 हिन्‍दु तथा जैन मंदिरों के वास्‍तुकलात्‍मक सदस्‍य हैं, जिन्‍हें क़ुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा नष्‍ट कर दिया गया था, जिसका विवरण मुख्‍य पूर्वी प्रवेश पर खोदे गए शिला लेख में मिलता है। आगे चलकर एक बड़ा अर्ध गोलाकार पर्दा खड़ा किया गया था और मस्जिद को बड़ा बनाया गया था। यह कार्य शम्‍स उद्दीन इतुतमिश ( ए डी 1210-35) द्वारा और अला उद्दीन खिलजी द्वारा किया गया था।

इतुतमिश (1211-36 ए डी) का मकबरा ए डी 1235 में बनाया गया था। यह लाल सेंड स्‍टोन का बना हुआ सादा चौकोर कक्ष है, जिसमें ढेर सारे शिला लेख, ज्‍यामिति आकृतियां और अरबी पै इसमें से कुछ नमूने इस प्रकार हैं: पहिए, झब्‍बे आदि |

अलाइ दरवाजा, कुवात उल्‍ल इस्‍माल मस्जिद के दक्षिण द्वार का निर्माण अला उद्ददीन खिलजी द्वारा ए एच 710 ( ए डी 1311) में कराया गया था, जैसा कि इस पर तराशे गए शिला लेख में दर्ज किया गया है। यह निर्माण और सजावट के इस्‍लामी सिद्धांतों के लागू करने वाली पहली इमारत है।

अलाइ मीनार, जो क़ुतुब मीनार के उत्तर में खड़ी हैं, का निर्माण अला उद्दीन खिलजी द्वारा इसे क़ुतुब मीनार से दुगने आकार का बनाने के इरादे से शुरू किया गया था। वह केवल पहली मंजिल पूरी करा सका, जो अब 25 मीटर की ऊंचाई की है। क़ुतुब के इस संकुल के अन्‍य अवशेषों में मदरसे, कब्रगाहें, मकबरें, मस्जिद और वास्‍तुकलात्‍मक सदस्‍य हैं।

यूनेस्‍को को भारत की इस सबसे ऊंची पत्‍थर की मीनार को विश्‍व विरासत घोषित किया है।[6]

ग़ोरी राजवंश

संपादित करें
 
ऊपरी स्तरों पर सजावटी रूपांकन

कुतुब मीनार के निर्माण की योजना और वित्त पोषण ग़ोरी राजवंश द्वारा किया गया था, जो भारत में आकर बस गए और अपने साथ इस्लाम लाए। ग़ोरी, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से शनसबानी के नाम से जाना जाता है, ताजिक मूल का एक कबीला था जो आधुनिक पश्चिमी अफगानिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र घूर से आया था।[7] ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर बारहवीं शताब्दी के प्रारंभ तक, इस खानाबदोश कबीले के विभिन्न संप्रदाय एकजुट हो गए और अपनी खानाबदोश संस्कृति खो दी। इस दौरान उन्होंने इस्लाम धर्म भी अपना लिया।[7]

फिर उन्होंने आधुनिक भारत में विस्तार किया और जल्द ही देश के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने 1175-76 में पश्चिमी पंजाब के मुल्तान और उच, 1177 में पेशावर के आसपास के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों और 1185-86 में सिंध के क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया। 1193 में, कुतुब अल-दीन ऐबक ने दिल्ली पर विजय प्राप्त की और प्रांत में ग़ोरी गवर्नर को स्थापित किया, और एक सामूहिक मस्जिद के रूप में कुतुब मीनार परिसर की स्थापना 1193 में की गई।[7] अतीत में, विद्वानों का मानना ​​था कि इस परिसर का निर्माण ग़ोरी राजवंश के नए प्रजा के बीच इस्लाम में धर्मान्तरण को बढ़ावा देने के साथ-साथ ग़ोरी राजवंश के सामाजिक-धार्मिक व्यवस्था के पालन का प्रतीक था।[7] अब यह सुझाव देने के लिए नई जानकारी है कि इस्लाम में धर्मान्तरण नए शासकों की सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं थी और इसके बजाय ग़ोरी गवर्नरों ने बातचीत के माध्यम से स्थानीय संस्कृति और इस्लाम का संश्लेषण करने की मांग की।[7]

दुर्घटनाएं

संपादित करें
 
मीनार का प्रवेश द्वार
  • 8 दिसंबर 1946 को चेक अभिनेत्री और महाराजा जगतजीत सिंह की छठी पत्नी तारा देवी अपने दो पोमेरेनियन कुत्तों के साथ टॉवर से गिरकर मर गईं।[8][9]
  • 1976 से पहले, आम जनता को आंतरिक सीढ़ी के माध्यम से मीनार की पहली मंजिल तक पहुंचने की अनुमति थी। 2000 के बाद आत्महत्याओं के कारण शीर्ष पर पहुंच बंद कर दी गई।
  • 4 दिसंबर 1981 को, सीढ़ी की रोशनी खराब हो गई। 300 से 400 के बीच आगंतुकों ने बाहर निकलने कोशिश की। 45 लोग मारे गये और कुछ घायल हो गये। इनमें से अधिकतर स्कूली बच्चे थे।[10] तब से, टावर को जनता के लिए बंद कर दिया गया है। इस घटना के बाद से प्रवेश संबंधी नियम कड़े कर दिए गए हैं।[11]
  1. "Qutub Minar". qutubminardelhi.com. Archived from the original on 22 June 2015. Retrieved 15 June 2015.
  2. History And Civics - Page 40. Pearson Education India. ISBN 9788131763193.
  3. "दिल्ली की ऐतिहासिक इमारत कुतुब मीनार का नाम विष्णु स्तंभ". www.bbc.com. Retrieved 2022-05-10.
  4. "कुतुब मीनार परिसर". प्रेसनोट.इन. Archived from the original (पीएचपी) on 2 अप्रैल 2009. Retrieved 23 मार्च 2009.
  5. Ali Javid; ʻAlī Jāvīd; Tabassum Javeed (1 July 2008). World Heritage Monuments and Related Edifices in India. Algora. pp. 14, 105, 107, 130. ISBN 9780875864846.
  6. "संस्‍कृति और विरासत - स्‍मारक - कुतुब मीनार - भारत के बारे में जानें: भारत का राष्ट्रीय पोर्टल". knowindia.gov.in. Archived from the original on 8 जून 2021. Retrieved 2021-06-08.
  7. Patel, A. (2004). "Toward Alternative Receptions of Ghurid Architecture in North India (Late Twelfth-Early Thirtheenth Century CE)". Archives of Asian Art. 54: 35–61. doi:10.1484/aaa.2004.0004. ISSN 0066-6637. JSTOR 20111315.
  8. Sambuy, Livia Manera (2023). "A most Parisian Maharajah". In Search of Amrit Kaur: An Indian Princess in Wartime Paris (in अंग्रेज़ी). Random House. ISBN 978-1-4735-4629-5.
  9. Gaur, Abhilash (2 December 2021). Nina Grosup-Karatsonyi a.k.a. Rani Tara Devi of Kapurthala.
  10. "Around the World; 45 Killed in Stampede at Monument in India". The New York Times. 5 December 1981. Archived from the original on 16 February 2018. Retrieved 13 February 2018.
  11. Khandekar, Nivedita (4 December 2012). "31 yrs after tragedy, Qutub Minar's doors remain shut". Hindustan Times. Archived from the original on 14 February 2018. Retrieved 13 February 2018.