कुमारपाल
कुमारपाल चौलुक्य (सोलंकी) राजवंश के राजा थे। इनके राज्य की राजधानी गुजरात के अनहिलवाडा (आधुनिक काल में सिद्धपुर पाटण) में थी। कुछ विद्वानों के अनुसार इनका जन्म विक्रम संवत ११४९ में, राज्याभिषेक ११९९ में और मृत्यु १२३० में हुई। ईस्वी संवत के अनुसार उनका राज्य ११३० से ११४० माना जाता है। तदनुसार उनके जन्म का समय ईसा के पश्चात ११४२ से ११७२ तक सिद्ध किया गया है। पालवंश के राजा भारतीय संस्कृति, साहित्य और कला के विकास के लिए जाने जाते हैं।[1] इस परंपरा का पालन करते हुए कुमारपाल ने भी शास्त्रों के उद्वार के लिये अनेक पुस्तक भंडारों की स्थापना की, हजारों मंदिरों का जीर्णोद्धार किया और नये मंदिर बनवाकर भूमि को अलंकृत किया। उसको वीरावल के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धारकर्ता भी माना गया है। उसने जिन मंदिरों का निर्माण किया उनमें १२२१ में निर्मित गुजरात का तरंगा मंदिर[2], भगवान शांतिनाथ का मंदिर[3] तथा श्री तलज तीर्थ[4] प्रसिद्ध है।
यही नहीं हथकरघा तथा अन्य हस्तकलाओं का भी कुमारपाल ने बहुत सम्मान और विकास किया। कुमारपाल के प्रयत्नों से पाटण पटोला (रेशम से बुना हुआ विशेष कपड़ा तथा साड़ियाँ) का सबसे बड़ा केन्द्र बना और यह कपड़ा विश्वभर में अपनी रंगीन सुंदरता के कारण जाना गया।[5] अनेक प्रसिद्ध ग्रंथ लिखे गए और गुजरात जैन धर्म, शिक्षा और संस्कृति का प्रमुख केन्द्र बन गया।[6] उसने पशुवध इत्यादि बंद करवा के गुजरात को अहिंसक राज्य घोषित किया। उसकी धर्म परायणता की गाथाएँ आज भी अनेक जैन-मंदिरों की आरती और मंगलदीवो में आदर के साथ गाई जाती हैं।[7] इन्होंने स्वर्गीय महाराजा सिद्धराज जयसिंह जी द्वारा नाराज राजपुत सरदार जो की आबू नरेश महाराजा विक्रमसिंह परमार के राज में सन 1191 से 1199 राजपुत घाँची जाति ग्रहण किये हुए ठहरे थे, उन सभी सरदारों को सन 1199 में उन्होंने सभी 14 जातियों के सरदारो को अहिलनवाड़ा बुलाकर पुनः लौटने का आग्रह किया गया पर उनमें से कुछ सरदार पुनः अहिलनवाड़ा जाकर अपनी मूल पहचान ग्रहण कर ली व बाकी सरदारो ने क्षत्रिय लाठेचा सरदार राजपुत घाँचीजाति के रूप में राजपुताना में ही रहना स्वीकार किया जब कुमरपाल के राज्य की सीमा जैसलमेर तक लगने लगी तो उन्होंने अपने द्वारा स्थापित क्षत्रिय सरदारो के लिए मारवाड़ रियासत के पाली कस्बे में उन क्षत्रिय लाठेचा सरदारो के लिए इष्टदेव सोमनाथ महादेव मंदिर का निर्माण अपने राजकोषीय व्यय से करवाया ताकि सभी 13 जातियों के सरदार अपने इष्टदेव को राजपुताना में रहते हुए याद कर सके ।
कुमारपाल चरित संग्रह[8] नामक ग्रंथ में लिखा गया है कि वह अद्वितीय विजेता और वीर राजा था। उनकी आज्ञा उत्तर में तुर्कस्थान, पूर्व में गंगा नदी, दक्षिण में विंद्याचल और पर्श्विम में समुद्र पर्यत के देशों तक थी। राजस्थान इतिहास के लेखक कर्नल टॉड ने लिखा है- 'महाराजा की आज्ञा पृथ्वी के सब राजाओं ने अपने मस्तक पर चढाई।' (वेस्टर्न इण्डिया - टॉड) वह जैन धर्म के प्रसिद्ध आचार्य हेमचंद्र का शिष्य था[9] वह जैन धर्म के प्रति गहरी आस्था रखता था और जीवों के प्रति दयालु तथा सत्यवादी था। इस परंपरा के अनुसार उसने अपनी धर्मपत्नी महारानी मोपलदेवी की मृत्यु के बाद आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत पालन किया तथा जीवन में कभी भी मद्यपान अथवा मांस का भक्षण नहीं किया। मृत्यु के समय उसकी अवस्था ८० वर्ष थी।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ नाहर, डॉ॰ रतिभानु सिंह (१९७४). प्राचीन भारत का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास. इलाहाबाद, भारत: किताब महल. पृ॰ ५९४. पाठ "editor: " की उपेक्षा की गयी (मदद);
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(मदद) - ↑ "Shri Taranga Teerth" (अंग्रेज़ी में). जैनजगत.ऑर्ग. मूल (पीएचपी) से 13 अगस्त 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ फरवरी २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "Jain Tirth Yatra" (अंग्रेज़ी में). पिलग्रिमेजइंडिया.कॉम. मूल (एचटीएमएल) से 19 फ़रवरी 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ फरवरी २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "Shri Talaja Teerth" (अंग्रेज़ी में). जैनजगत.कॉम. मूल (पीएचपी) से 13 अगस्त 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ फरवरी २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "Adding life to a centuries' old dyeing art-Patan" (अंग्रेज़ी में). निफ़.ऑर्ग.इन. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ फरवरी २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "Jain Tirths" (अंग्रेज़ी में). जैनतीर्थ्स.कॉम. मूल (एचटीएम) से 30 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ फरवरी २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "Ärati & Mangal Deevo" (अंग्रेज़ी में). भावना शाह. मूल से 14 सितंबर 2004 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ फरवरी २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "कुमारपाल चरित संग्रह" (PDF). जैनलाइब्रेरी.ऑर्ग. मूल (पीडीएफ़) से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ फरवरी २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "ACHARYA HEMACHANDRA" (अंग्रेज़ी में). जैनवर्लड.कॉम. मूल (एचटीएम) से 16 दिसंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ फरवरी २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)