कृषिवानिकी
फसलों के साथ-साथ पेड़ों एवं झाड़ियों को समुचित प्रकार से लगाकर दोनो के लाभ प्राप्त करने को कृषि वानिकी (Agroforestry) कहा जाता है। इसमें कृषि और वानिकी की तकनीकों का मिश्रण करके विविधतापूर्ण, लाभप्रद, स्वस्थ एवं टिकाऊ भूमि-उपयोग सुनिश्चित किया जाता हैं
वृक्ष : अनेक उपयोग
संपादित करेंईधन के काम में आने वाले वृक्षों का लगाना भी बहुत जरूरी है। ईधन की कमी के कारण ही किसान अपने पशुओं का लगभग आधा गोबर उपले बनाकर जला डालते हैं। यदि ईंधन के लिए पर्याप्त वृक्ष लगा दिए जाएं तो सारा गोबर खाद के काम आएगा। यही नहीं, ये वृक्ष भूमि को वायु और जल के आघात से होने वाली कटन से भी बचाएंगे।
गांव की शामिलात भूमि, जो पशुओँ को चराने के लिए चरागाह के रूप में काम में लाई जाती है, वृक्ष लगाने के लिए सबसे अच्छी है। पुरानी परती भूमि में भी, जो खेती के काम में नहीं लाई जाती, वृक्ष लगाए जा सकते हैं। वृक्ष लगाने और उनकी देखभाल का सारा कार्य पंचायतों की निगरानी में हो सकता है।
गांव में हमें ऐसे वृक्षों की आवश्यकता होती है जो ईंधन के लिए लकड़ी और खाने के लिए फल दे सकें। इनके साथ--साथ खेती के औजारों के लिए बढ़िया लकड़ी भी मिल सके। इसलिए गांवों के लिए ऐसे वृक्षों का चुनाव करना चाहिए, जो शीघ्रता से उगें, सुगमता से बढ़ें और जिनका झाड़ अच्छा बन सके।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित वृक्ष गांवों में लगाए जा सकते हैं--
ईंधन और लकड़ी
संपादित करेंबबूल
संपादित करेंसूखे जलहीन क्षेत्रों में, ऊंचे-नीचे खारों और झीलों के किनारे दलों में कहीं भी बबूल उग सकता है। इससे ईंधन के लिए बढ़िया लकड़ी मिलती है। खेती के औजार और बैलगाड़ी के पहिए तैयार करने के लिए बबूल की लकड़ी अच्छी समझी जाती है। इसकी छाल चमड़ा बकाने के लिए काम में लाई जाती है। विलायती बबूल बालू वाली या पथरीली भूमि मे भी सुगमता पूर्वक लगाए जा सकते हैं।
शीशम
संपादित करेंइससे बहुत बढ़िया इमारती और ईधन के काम की लकड़ी पैदा होती है। यह वृक्ष बहुत शीघ्रता से बढ़ता है। होशियारपुर जिले में बरसाती नदी-नालों के किनारे रेतीले खेतों को ढकने के लिए शीशम के वृक्ष बहुत अधिक संख्या में लगाए गए हैं। इनका अच्छा झाड़ बन जाता है। बकाइ--यह अति शीघ्र उगने वाला वृक्ष है। इससे हल आदि कृषि औजारों के लिए अच्छी लकड़ी मिलती है। इसकी लकड़ी को घुन आदि कीड़ों से हानि पहुंचने का कोई डर नहीं।
ढाक
संपादित करेंढाक के वृक्ष खराब धरती में भी उग सकते हैं। ये साधारण रेह को भी सहन कर सकते हैं। इनका झाड़ बहुत अच्छा बनता है। यह वृक्ष पंजाब के पटीयाला के आसपास के क्षेत्रो मे पाए जाते है।
बांस
संपादित करेंबांस के पेड़ तालाबों और पोखरों के पास लगाए जा सकते हैं। बांस खेती के लिए अनेक प्रकार से काम आता है। इसका उपयोग हथकरघा उपयोग में भी किया जाता है बांस का पौधा 1 से 2 वर्ष में पूर्णता तैयार हो जाता है
शहतूत
संपादित करेंशहतूत के परिवार में से गांवों में केवल देसी शहतूत के वृक्ष ही लगाने चाहिए।
देशी फलों के वृक्ष
संपादित करेंदेशी आमों की बढ़िया रसदार, फल देने वाली उत्तम किस्म उगानी चाहिए। कलमी आमों में अच्छी महक और पतली गुठली वाला सफेदा, दसहरी, लंगड़ा, गुलाब जामुन और चौंसा जैसी किस्मों के पेड़ लगाए जा सकते हैं। जहां ७५ सें। मी। से अधिक वर्षा होती है, कटहल के वृक्षों को वहां प्रधानता मिलनी चाहिए महुआ उत्तर प्रदेश में अवध का एक लोकप्रिय वृक्ष है। इसके फल और लकड़ी दोनों ही अच्छे समझे जाते हैं। महुआ का वृक्ष साधारण ऊसर भूमि में भी उग सकता है। जामुन की बड़े फलों वाली किस्म लगाने चाहिए। यह अक्सर बाढ़ आती रहती है, वहां जामुन के वृक्ष लगाने चाहिए। इमली के वृक्ष से खाने के लिए काम आने वाली फलियां मिलती हैं। इसकी लकड़ी से गैस से चलने वाले इंजनों के लिए बहुत बढ़िया कोयला तैयार किया जाता है।
चारे के लिए वृक्ष लगाएं
संपादित करेंजाड़े के महीनों में घास नहीं रहती, तब चारा पैदा करने वाले वृक्षों से पशुओं के लिए कीमती चारा मिल सकता है। विशेषकर, कचनार और शहतूत की पत्तियों के चारे में घास की तुलना में चिकनाई, प्रोटीन, चूना आदि आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा अत्यधिक होती है। वृक्षों की पत्तियों के चारों में नीम, शहतूत और बबूल की पत्तियों के चारे सबसे अच्छे समझे जाते है। गांव में लगाए जाने वाले वृक्षों में चारे के काम आने वाले वृक्षों का उगाना भी बहुत जरूरी है।
बेकार पड़ी हुई भूमि और वनों में बेर और शहतूत जैसे जंगली फलों वाले वृक्ष अधिक से अधिक संख्या में उगाए जा सकते हैं। बेर की अनेक किस्में हैं। उनसे कई प्रकार के स्वादिष्ट फल मिलते हैं जिन्हें ताजा भी खाया जाता है और सुखाकर भी रखा जा सकता है। बेर चारे के लिए भी एक उत्तम पेड़ है। इसकी पत्तियां बकरियों और भैंसों को खिलाई जाती है। यह एक अति सुदृढ़ वृक्ष है। सूखा और तुषारपात से इसको कोई हानि नहीं पहुंचती। ऊजड़ क्षेत्रों के लिए, जहां वर्षा कम होती है, यह एक आदर्श वृक्ष है। कृषि विभाग ने सामाजिक वनारोपण की एक योजना बनाई है। इसके अन्तर्गत प्रति हेक्टेयर एक हजार रुपये की केन्द्रीय सहायता देने की व्यवस्था है। इस काम के लिए राज्य सरकारें भी सहायता करती हैं। सामाजिक वनारोपण की योजना तथा परती भूमि पर वनारोपण अथवा उपेक्षित वनों में फिर से वृक्षरोपण की योजना के अन्तर्गत बबूल या चारे के वृक्ष या अन्य पेड़ लगाने चाहिए। इस समय केन्द्र द्वारा प्रयोजित ९ क्षेत्रिय वन योजनाओं पर काम चल रहा है। इसके अन्तर्गत परती भूमि और जनजातीय भूमि पर वृक्षारोपण किया जा रहा है। उपेक्षित वनों के स्थान पर फिर से वनारोपण और संक्षिप्त पट्टी तैयार करने सहित सामाजिक योजनाओं के अधीन हिमालय प्रदेश में भूमि और जल संरक्षण की योजनाएं चलाई जा रही हैं।
रेगिस्तान की रोकथाम
संपादित करेंरेगिस्तान का बढ़ाव रोकने में वृक्षों की भूमिका कम महत्व की नहीं है। अनुमान है कि रेगिस्तान ८ वर्ग मील प्रतिवर्ष की रफ्तार से बढ़ता आ रहा है। हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जिले में (जो कि राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है) रेगिस्तान को रोकने और रेतीले टीलों को रोकने के लिए सराहनीय कार्य किया गया है। महेन्द्रगढ़ में कमानिया गांव की पंचायती भूमि पर राज्य के वन विभाग ने सरकंडे की घास और इजरायली कीकर काफी संख्या में लगाए हैं। इस तरह की घास और पेड़ लगाने के बाद ५ साल के अरसे में रेतीले टीले रुक जाते हैं। पर इस समय कुछ भी न किया जाए तो रेगिस्तान का असर बढ़ता जाता है। उसका उदाहरण कमानिया के पास ही के अन्य गांव नांगलिया में मिलता है, जहाँ हवा के सहारे उड़ती हुई रेत के ढेर ठेठ गांव तक आ पहुँचे हैं। वहां बालुई टीले इकट्ठे हो गए है। सड़कों व नहरों को अवरूद्ध होने से बचाने के लिए भी घास व विशेष पेड़ लगाए जाने चाहिए।
पशुओं के बाड़ों में वृक्ष लगाएं
संपादित करेंपंजाब और राजस्थान में किसानों के पास अपने पशुओं के लिए सामान्यत:, काफी बड़े-बड़े बाड़े होते हैं। इन बाड़ों में पशुओं को, विशेषकर भैंसों को, धूप की गर्मी से बचाने के लिए छाया का होना जरूरी है। इसके लिए उन बाड़ों के अहातों में शीघ्र उगने और बढ़ने वाले बकाइन जैसे वृक्षों की कतारें लगानी चाहिए। इनके बीच-बीच में शहतूत के वृक्ष उगाने चाहिए। पहले तीन वर्षों में इन वृक्षों की विशेष रूप से देख-भाल करनी पड़ती है। पंजाब में शहतूत की टहनियों से डालियां, टोकरे आदि तैयार किए जाते हैं, जो आमतौर पर घरों और पशुओं के बाड़ों में काम में लाए जाते हैं। बकाइन के वृक्ष से कीमती इमारती लकड़ी मिलती है, जिसको कीड़ों से कोई हानि नहीं पहुंचती। क्या इसमें current update शामिल है
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- राष्ट्रीय कृषिवानिकी अनुसंधान केन्द्र, झांसी
- कृषि वानिकी[मृत कड़ियाँ] (उत्तम कृषि)
- कृषि वानिकी[मृत कड़ियाँ] (आर्गैनिक भाग्योदय)
- कृषिवानिकी[मृत कड़ियाँ] (उत्तरा कृषि प्रभा)
- कृषिवानिकी के बारे में (ग्रामीन सूचना एवं ज्ञान केन्द्र)
- World Agroforestry Centre
- Australian Agroforestry
- The Green Belt Movement
- Plants For A Future
- Trees for the Future
- Free Distance Agroforestry Training Manual (from Trees for the Future)[मृत कड़ियाँ]
- Vi-Agroforestry