कृष्णावतार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी द्वारा गुजराती में रचित सात उपन्यासों की एक शृंखला है। आठवें उपन्यास के लेखन के समय उनका देहान्त हो जाने के कारण यह उपन्यास अपूर्ण रह गया। ये उपन्यास कृष्ण के जीवन तथा महाभारत पर आधारित हैं।

मुंशी जी ने प्रस्तावना में इस शृंखला के विषय में यह लिखा था-[1]

Shri Krishna!--what a name to conjure with! Every mother or father of a child, every boy or girl who has a playmate, every lover who has a beloved, every soldier who has an enemy to fight, every king who has a political opponent, every aspirant who has a spiritual goal, every yogi who seeks kaivalya--every one in India--thinks of Shri Krishna as the perfection. Hindu life is woven with the memory of Lord Krishna and with Truth, Love and Beauty he stands for.

शृंखला संपादित करें

कृष्णावतार शृंखला पूर्ण और १ अपूर्ण (कुल ८ ) खण्डों की शृंखला है।[2]

  • कृष्णावतार खंड १: मोहक वांसळी
  • कृष्णावतार खंड २: सम्राट का प्रकोप
  • कृष्णावतार खंड ३: पांच पांडव
  • कृष्णावतार खंड ४: भीम का कथानक
  • कृष्णावतार खंड ५: सत्यभामा का कथानक
  • कृष्णावतार खंड ६: महामुनि व्यास का कथानक
  • कृष्णावतार खंड ७: युधिष्ठिर का कथानक
  • कृष्णावतार खंड ८: कुरुक्षेत्र का कथानक (अपूर्ण)

संदर्भ संपादित करें

  1. कृष्णावतार (भाग १) - मोहक वांसळी (प्रथम संस्करण). भारतीय विद्या भवन. डिसेम्बर १९६२. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. कृष्णावतार (संपूर्ण श्रेणी). भारतीय विद्या भवन.