के॰ एल॰ गाबा
के॰ एल॰ गाबा: (उर्दू: کے ایل گابا, 1899-1981), जिन्हें कन्हैया लाल गौबा या खालिद लतीफ गौबा के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और लाला हरकिशन लाल के पुत्र थे। एक हिंदू परिवार में जन्मे, गाबा ने बाद में इस्लाम धर्म अपना लिया और एक मुस्लिम निर्वाचन क्षेत्र द्वारा पंजाब विधान सभा के लिए चुने गए। विभाजन के बाद वह भारत आ गए थे।
के॰ एल॰ गाबा | |
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जन्म |
1899 |
मौत |
1981 |
उपनाम | खालिद लतीफ गाबा |
पेशा | वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ |
परिचय
संपादित करेंके एल गाबा एक प्रसिद्ध न्यायविद, राजनीतिज्ञ और लेखक थे, जिनका जन्म 1899 में लाहौर के एक हिंदू उद्योगपति लाला हरकिशन लाल गाबा के यहाँ हुआ था। बार एट लॉ के बाद लाहौर में प्रैक्टिस शुरू की। 1923 में, उन्हें अखिल भारतीय व्यापार संघ सम्मेलन लाहौर के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। समाचार पत्रों के लिए लेख लिखे और अपना साप्ताहिक "द संडे टाइम्स" भी प्रकाशित किया। 1926 में, उन्होंने लाहौर के औद्योगिक निर्वाचन क्षेत्र से राय बहादुर धनपत राय के खिलाफ पंजाब विधान परिषद का चुनाव लड़ा। अल्लामा इकबाल के आंदोलन के तहत के॰ एल॰ गाबा ने 1933 में इस्लाम कबूल किया और कन्हैया लाल गाबा (के॰ एल॰ गाबा) से खालिद लतीफ गाबा (के॰ एल॰ गाबा) बन गए। [1] इस प्रकार उनके नाम का अंग्रेजी संक्षिप्त नाम और ध्वन्यात्मक प्रभाव बना रहा।[2]
राजनीतिक परिस्थितियाँ
संपादित करें1934 में, केएल गाबा मजलिस अहरार की मजलिस आमिला के सदस्य बने, 1935 में उन्हें मध्य पंजाब की मुस्लिम सीट से भारतीय विधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया। 1945 में, वे अखिल भारतीय खाकसार संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष थे। केएल गाबा कई किताबों के लेखक भी थे, जिनमें से कई उस समय बेस्टसेलर बन गईं। 1973 में लिखी गई 'पैसिव वॉइसेस' नामक पुस्तक में भारत में हिन्दू बहुसंख्यकों द्वारा मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार का उल्लेख है,[3] जिसका उर्दू में अनुवाद सैयद कासिम महमूद ने हरकशन लाल द्वारा "मजबूर आवाजें " के नाम से किया था।
बैरिस्टर के एल गाबा के पिता लाला हरकिशन लाल गाबा मुल्तान के उपायुक्त के कार्यालय में क्लर्क थे, लेकिन वे इतनी तरक्की के साथ पंजाब सरकार के शिक्षा मंत्री बने। वे करोड़पति पूंजीपति थे, उनका दिल और दस्तरखान चौड़ा था। उनके बेटे ने 1932 में इस्लाम कबूल कर लिया। उन पर हिंदू धर्म अपनाने का बहुत दबाव था, लेकिन वे अपने आखिरी दिनों तक इस्लाम के प्रति प्रतिबद्ध रहे, जिसके बाद उन्होंने पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की जीवनी पर एक किताब लिखी।[3] उस पुस्तक के कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
गाबा ने अपनी आत्मकथा, फ्रैंड एंड फोएस में लिखा है कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सर डगलस यंग मुझसे नाराज हो गए कुछ और मुझे झूठे मामले में फंसा दिया। मुझे दैनिक ज़मींदार ने कैद कर लिया और समाचार पत्र 'अहसान' ने इस नव-मुस्लिम को रिहा करने की अपील की, लेकिन पूरे भारत में एक भी मुसलमान जमानत नहीं दे सका, जिसके कारण जेल में रहे।
अल्हाजी मलिक सरदार अली, एक ठेकेदार सियालकोट के जो जेल में रहे। मुहम्मद ने सपने में सरदार अली को लाहौर जाने का आदेश दिया और एक नव-मुस्लिम कैदी को जमानत देने को कहा। कि उन्होंने मेरी जीवनी पर एक किताब लिखी, जो मुझे बहुत पसंद है। जज ने रोका मगर उन्होंने कहा , "जिसने मुझे हुक्म दिया है, अगर उसके लिए मेरी जान कुर्बान हो जाए तो ख़ुशी होगी 1.5 लाख रुपये क्या है मुझे नहीं पता कि खालिद लतीफ गाबा कौन है मैंने उसे कभी नहीं देखा मुझे उसका नाम सपने में बताया गया है इस तरह मुझे 1.5 लाख रुपये की गारंटी मिली।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसंदर्भ
संपादित करें- ↑ "اے قائد اعظم تیرا". Nawaiwaqt. 17 مئی، 2017.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ Singh, Khushwant; Singh, Rohini (1992). Sex, scotch & scholarship (अंग्रेज़ी में). UBS Publishers' Distributors Ltd. पपृ॰ 79–81. OCLC 1031154009. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8185674507.
- ↑ अ आ "K.L. Gauba Quotes (Author of The Prophet of The Desert)". www.goodreads.com. अभिगमन तिथि 2023-03-13.