कोहिमा का युद्ध

युद्ध

कोहिमा का युद्ध (४ अप्रैल १९४४ से २२ जून १९४४ तक) द्वितीय विश्वयुद्ध के समय १९४४ में ब्रितानी भारतीय सेना तथा सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज एवं जापान की संयुक्त सेना के बीच कोहिमा के आसपास में लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यह एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ। [1] यह युद्ध ४ अप्रैल १९४४ से २२ जून १९४४ तक तीन चरणों में लड़ा गया था। इस युद्ध को ब्रिटिश सेना से जुड़ी अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई घोषित किया गया है।

कोहिमा के निकट जापानी चौकी
मुतागुची रेन्या - कोहिमा युद्ध में जापानी सेना का कमाण्डर
कोहिमा के युद्ध में आज़ाद हिन्द फौज़ द्वारा मारे गये सैनिकों की स्मृति में ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा स्थापित युद्ध स्मारक (अंग्रेजी में सीमेट्री)

आश्चर्य की बात ये है कि युद्ध में दोनों तरफ से भारतीय सैनिक थे। विश्वयुद्ध के दौरान नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने भारत को आजाद करवाने के लिए सही अवसर माना और जापान सरकार की मदद से अंग्रेजों को खदेड़ने की योजना बनाई। इधर नेताजी की आजाद हिंद फौज थी तो दूसरी ओर ब्रिटिश आर्मी में भी भारतीय थे।

विश्व युद्ध के दौरान 4 अप्रेल 1944 को जापानी सैनिकों ने वर्तमान नागालैंड की राजधानी कोहिमा पर हमला कर दिया। इधर ब्रिटिश भारतीय सेना की कमान विलियम स्लिम के पास थी। तीन महीने चले इस युद्ध में जापान को हार का सामना करना पड़ा। युद्ध में जापान के करीब 53 हजार सैनिक मारे गए थे। जबकि १६ हजार से ज्याद ब्रिटिश आर्मी सैनिक और काफी संख्या में नागा मारे गए थे। इसमें ब्रिटेन के अलावा भारत, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका के सैनिक भी थे।

जून के अन्त में मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने भयंकर युद्ध के जरिए जापानियों को यहां से खदेड़ दिया। इसके बाद जापानियों ने इम्फाल में पड़ाव डाल दिया। करीब ढाई महीने तीन चरणों में चले कोहिमा-इम्फाल युद्ध में जापानी सेना को मुंह की खानी पड़ी। ब्रिटिश इंडियन आर्मी ने जापानियों को हर मोर्चे पर मात दी। जापान की हार के साथ ये सपना पूरा नहीं हो सका। इतिहासकारों का मानना है कि जापान की मंशा विश्वयुद्ध में कोहिमा से इम्फाल तक सैन्य दीवार खड़ी करना था। लेकिन इस हार ने उसे दक्षिण एशिया में आगे बढ़ने से रोक दिया। इस युद्ध के बाद जापान को बर्मा से निकलने के लिए मजबूर होना पड़ा।

इस निर्णायक युद्ध में आज़ाद हिन्द फौज़ द्वारा मारे गये सैनिकों की स्मृति में ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा एक युद्ध स्मारक (अं: सीमेट्री) बना दिया गया है जिसकी देखरेख कॉमनवेल्थ करता है।

इस युद्ध के दौरान जापानियों ने नागालैंड पर भयंकर हमला किया था जिसमें बहुत बड़ी संख्या में सैनिक और अधिकारी मारे गये थे। हमले में मारे गये इन सभी सैनिकों को गैरीसन पहाड़ी पर दफना दिया गया था। बाद में उनकी स्मृति में 1421 समाधियों का निर्माण कर दिया गया। स्थानीय निवासी उन शहीद सैनिकों को अपनी श्रद्धांजलि देने आते हैं। कोहिमा आने वाले पर्यटकों को भी ये समाधियाँ दिखायी जाती हैं।

युद्ध स्मारक पर लगी पट्टिका पर जॉन मैक्सवेल एडमण्ड के ये शब्द अंग्रेजी में अंकित हैं-

"When you go home, tell them of us and say-For their tomorrow, we gave our today"
"जब तुम घर जाओ तो हमारे बारे में सबको बताना और यह कहना कि उनके भविष्य के लिये हमने अपना वर्तमान बलिदान कर दिया।"[2]


नागालैंड में यदि सुभाष जी की सेना जीत जाती तो तस्वीर ही कुछ और होती । इसके अनेक कयास लगाए जा सकते है , जैसे भारत , जर्मनी - जापान जैसे हारे हुए देशों के गुट में शामिल होता या लोकतंत्र को वर्तमान परिस्थिति कुछ अलग होती ।

इन्हें भी देखें

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