गणित में, गणनीय समुच्चय (countable set) वह समुच्चय है जिसमें प्राकृत संख्याओं के समुच्चय के किसी उपसमुच्चय के समान गणनांक (अवयवों की संख्या) है। गणनीय समुच्चय या तो परिमित समुच्चय होता है अथवा गणनीय अनन्त समुच्चय होता है। या तो अपरिमित या फिर अनन्त, अर्थात किसी गणनीय समुच्चय के अवयव या तो एक बार में गिने जा सकते हैं अथवा गणना कभी भी समाप्त न हो जिसमें समुच्चय का प्रत्येक अवयव किसी एक प्राकृत संख्या से सम्बद्ध हो।

कुछ लेखकों के अनुसार गणनीय समुच्चय का अर्थ केवल अनन्त गणनीय होता है।[1] इस अस्पष्टता से बचने के लिए, परिमित समुच्चयों के लिए अधिक से अधिक गणनीय शब्द का प्रयोग किया जा सकता है और अन्य स्थितियों में अनन्त गणनीय, संख्येय अथवा प्रगणनीय शब्द प्रयुक्त किये जाते हैं।[2]

इस अवधारणा का श्रेय जॉर्ज कैंटर को दिया जाता है, जिन्होंने अनगिनत सेटों के अस्तित्व को साबित किया, यानी ऐसे सेट जो गिनने योग्य नहीं हैं; उदाहरण के लिए वास्तविक संख्याओं का समुच्चय

अधिक तकनीकी शब्दों में, गणनीय विकल्प के सिद्धांत को मानते हुए , एक सेट गणनीय है यदि इसकी कार्डिनैलिटी (सेट के तत्वों की संख्या) प्राकृतिक संख्याओं से अधिक नहीं है। एक गणनीय समुच्चय जो परिमित नहीं है , गणनीय रूप से अनंत कहा जाता है । संपादित करें

एक समुच्चय S गणनीय कहलाता है यदि S से प्राकृत संख्याओं N = {0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10,...} में एकैकी फलन f उपलब्ध हो।[3]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. उदाहरण के लिए (Rudin 1976, Chapter 2) देखें।
  2. See (Lang 1993, §2 of Chapter I).
  3. चूँकि N और N* = {0, 1, 2, 3,4,5,6,7,8,9, ...} में प्रत्येक्ष एकैकी-आच्छादक सम्बन्ध परिभाषित किया जा सकता है अतः यह महत्त्व नहीं रखता कि इसमें शून्य को प्राकृत संख्याओं में शामिल किया जाता है अथवा नहीं। अन्य स्थितियों में लेख में ISO 31-11 और मानक गणितीय तर्कशास्त्र की परिपाटी का अनुसरण किया गया है जिसके अनुसार 0 प्राकृत संख्या है।