गिजुभाई बधेका (15 नवम्बर 1885 - 23 जून 1939)) गुजराती भाषा के लेखक और बाल शिक्षाशास्त्री थे। उनका पूरा नाम गिरिजाशंकर भगवानजी बधेका था। इन्होंने बाल मंदिर नामक विद्यालय की स्थापना की। अपने प्रयोगों और अनुभव के आधार पर उन्होंने निश्चय किया था कि बच्चों के सही विकास के लिए, उन्हें देश का उत्तम नागरिक बनाने के लिए, किस प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए और किस ढंग से। इसी ध्येय को सामने रखकर उन्होंने बहुत-सी बाल उपयोगी कहानियां लिखीं। ये कहानियां गुजराती दस पुस्तकों में प्रकाशित हुई हैं। इन्हीं कहानियां का हिन्दी अनुवाद सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली ने पांच पुस्तकों में प्रकाशित किया है।

चित्र:Gijubhai Badheka.jpg
गिजुभाई बधेका

बच्चे इन कहानियों को चाव से पढ़ें, उन्हें पढ़ते या सुनते समय, उनमें लीन हो जाएं, इस बात का उन्होंने पूरा ध्यान रखा। संभव-असंभव, स्वाभाविक-अस्वाभाविक, इसकी चिन्ता उन्होंने नहीं की। यही कारण है कि इन कहानियों की बहुत-सी बातें अनहोनी-सी लगती हैं, पर बच्चों के लिए तो कहानियों में रस प्रधान होता है, कुतूहल महत्व रखता है और ये दोनों ही चीजें इन कहानियों में भरपूर हैं।. उनकी रचनाएं आनंदी कौआ, चालाक खरगोश, बुढ़िया और बंदरिया प्रमुख है।

साहित्य सृजन

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गिजुभाई ने २०० से अधिक पुस्तकें लिखीं हैं।

शिक्षण - वार्तानुं शास्त्र (१९२५), माबाप थवुं आकरूं छे, स्वतंत्र बालशिक्षण, मोन्टेसरी पद्धति (१९२७), अक्षरज्ञान योजना, बाल क्रीडांगणो, आ ते शी माथाफोड? (१९३४), शिक्षक हो तो (१९३५), घरमां बाळके शुं करवुं (घर में बालक क्या करे?)

बालसाहित्य - ईसपनां पात्रो, किशोर साहित्य (१-६), बाल साहित्य माला (२५ गुच्छो), बाल साहित्य वाटिका (२८ पुस्तिका), जंगल सम्राट टारझननी अद्भूत कथाओ (१-१०), बाल साहित्य माला (८० पुस्तकें).

चिन्तन - प्रासंगिक मनन (१९३२), शांत पलोमां (१९३४), दिवास्वप्न

बाहरी कड़ियाँ

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