गिरिव्रज महाभारतकाल और बिंबिसार तक के परवर्ती काल की मगध की राजधानी थी।

समझा जाता है कि यह आधुनिक राजगिर से दस किलोमीटर पूर्व और गया से प्राय: ५० किमी पूर्व-उत्तर पंचना नदी के तीर स्थित था। बार्हद्रथ राजकुल की राजधानी होने के कारण महाभारत के अनुसार इसका दूसरा नाम 'बार्हद्रथपुर' था। महाभारत ने गिरिब्रज और बार्हद्रथ के अतिरिक्त उसका एक तीसरा नाम 'मागधपुर' दिया है। 'महावग्ग' में उसी को 'गिरिब्बज' कहा गया है। रामायण में गिरिव्रज को 'वसुमति' नाम से अभिहित किया गया है और बौद्धग्रथों में कहीं कहीं उसका नाम 'कुशाग्रपुरी' भी मिलता है।

गिरिव्रज, जैसा नाम से ही प्रकट है, पहाड़ों से घिरा था और वैहार, वराल (विपुल), वृषभ, ऋषिगिरि और सोमगिरि की पाँच पहाड़ियों के परकोटे से सुरक्षित था। बाद में हर्यक कुल के राजा बिंबिसार ने गिरिव्रज को छोड़ नगर के बाहर अपने राजप्रासाद बनवाए जिससे गिरिव्रज उजड़ गया और मगध की नई राजधानी बिंबिसार के प्रासाद के चतुर्दिक् बसी जो राजगृह कहलाई। राजगृह का परकोटा अब भी राजगिर की पहाड़ियों पर खड़ा है।