बिम्बिसार
बिम्बिसार (558 ईसापूर्व – 491 ईसापूर्व) मगध साम्राज्य का सम्राट था (542 ईपू से 492 ईपू तक)। वह हर्यक वंश का था। उसने अंग राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। यही विस्तार आगे चलकर मौर्य साम्राज्य के विस्तार का भी आधार बना।
परिचयसंपादित करें
पुराणों के अनुसार बिम्बिसार को 'श्रेणिक' कहा गया है। बिम्बिसार ने मगध के यश और सम्मान को वैवाहिक संधियों और विजयों के माध्यम से काफी बढाया। उसकी एक रानी कोसल के राजा 'प्रसेनजित'की बहन थी और उसे दहेज स्वरूप काशी का १ लाख राजस्व वाला गांव मिला था। उस्कि दूसरी रानी 'चेल्लना' थी, जो कि वैशाली के राजा चेतक की पुत्री थी। इन के अलावा बिम्बिसार की दो और रानियों का जिक्र भी मिलता है। एक और गणिका आम्रपाली का नाम जैन साहित्यों में मिलता है। बिम्बिसार ने ब्रह्मदत्त को परास्त कर अंग राज्य पर विजय प्राप्त की थी। बिम्बिसार के राज्य में ८०,००० गांव थे।
प्रशासन:संपादित करें
उसका प्रशासन बहुत ही उत्तम था, उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। वह अपने कर्मचारियों पर कड़ी नजर रखता था। उसके उच्चाधिकारी 'राजभट्ट'कहलाते थे और उन्हें चार क्ष्रेणियों में रखा गया था - 'सम्बन्थक'सामान्य कार्यों को देखते थे, 'सेनानायक'सेना का कार्य देखते थे, 'वोहारिक'न्यायिक कार्य व 'महामात्त'उत्पादन कर इकट्ठा करते थे।
धर्मसंपादित करें
बिम्बिसार गौतम बुद्ध का समकालिन तथा बुद्ध से कई बार इसकी भेंट हुई थी, बुद्ध से प्रभावित होकर उसने बौद्ध धर्म अपना लिया। वह अक्सर भगवान महावीर के समवसरण का दौरा करते थे और उनके प्रश्नों के उत्तर मांगते थे। जबकी जैन व बौद्ध दोनों साहित्यों में बिम्बिसार को उनके धर्म का अनुयायी बताया गया है।
मृत्युसंपादित करें
बौद्ध ग्रन्थ 'विनयपिटक' के अनुसार, बिम्बिसार ने अपने पुत्र अजातशत्रु को युवराज घोषित कर दिया था परन्तु अजातशत्रु ने जल्द राज्य पाने की कामना में बिम्बिसार का वध कर दिया। उसे ऐसा कृत्य करने के लिये बुद्ध के चचेरे भाई 'देवदत्त' ने उकसाया था और कई षड्यन्त्र रचा था।
जैन ग्रन्थ 'आवश्यक सूत्र' के अनुसार, जल्द राज्य पाने की चाह में अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार को कैद कर लिया, जहां रानी चेल्लना ने बिम्बिसार की देखरेख की। बाद में जब अजातशत्रु को पता चला कि उसके पिता उसे बहुत चाहतें हैं और वे उसे युवराज नियुक्त कर चुकें हैं, तो अजातशत्रु ने लोहे की डन्डा ले कर बिम्बिसार की बेडियां काटने चला पर बिम्बिसार ने किसी अनिष्ठ की आशंका में जहर खा लिया।
कुरु वंश - महाभारत पर्यान्त वंशावलीसंपादित करें
- परीक्षित २ |हर्णदेव | रामदेव | व्यासदेव * द्रौनदेव
ब्रहाद्रथ वंशसंपादित करें
यह वंश मगध में स्थापित था।
मगध वंशसंपादित करें
नन्द वंशसंपादित करें
- उग्रसेन ४२४-४०४
- पण्डुक ४०४-३९४
- पण्डुगति ३९४-३८४
- भूतपाल ३८४-३७२
- राष्ट्रपाल ३७२-३६०
- देवानन्द ३६०-३४८
- यज्ञभङ्ग ३४८-३४२
- मौर्यानन्द ३४२-३३६
- महानन्द ३३६-३२४
बाहरी कड़ियाँसंपादित करें
- इसापूर्व छठी से चौथी सदी के घटनाक्रम
- बिम्बिसार (भारत खोज)