गुरुचरण सिंह तोहड़ा
गुरुचरण सिंह तोहड़ा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष और सिखों के लोकप्रिय नेता थे।
परिचय
संपादित करेंश्री तोहड़ा का जन्म सितंबर 1924 में पंजाब के पटियाला जिले में हुआ था। शुरू से ही अकाली दल के समर्थक रहे श्री तोहड़ा 1947 में पार्टी की पटियाला इकाई के महासचिव बनाए गए।
किसानों के हितों के लिए आंदोलनरत श्री तोहड़ा को रियासती प्रजामंडल आंदोलन के दौरान 1945 में कैद कर लिया गया। उन्हें 1950 में पटियाला में लोकप्रिय सरकार के गठन करने के लिए एक बार फिर हिरासत में लिया गया। उन्होंने पृथक पंजाब राज्य के गठन के लिए चले आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई और इसके लिए दो बार जेल गए।
श्री तोहड़ा 1972 में एसजीपीसी के अध्यक्ष बनाए गए और 1999 तक लगातार इस पद कायम रहे। इस वर्ष शिरोमणि अकाली दल (सैड़) में फूट और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का विरोध करने के कारण उन्हें एसजीपीसी के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया।
श्री तोहड़ा ने आपातकाल लगाए जाने के भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के फैसले का कड़ा प्रतिवाद किया और इसके विरोध में सक्रिय रहे। इस क्रम में राज्यसभा सांसद होने के बावजूद उन्हें 1975 में आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया गया।
श्री तोहड़ा पहली बार 1977 में लोकसभा चुनाव जीत कर राष्ट्रीय राजनीति में उभरे। वर्ष 1980 में वह राज्यसभा सांसद चुने गए। उन्होंने छह बार संसद के ऊपरी सदन में पंजाब का प्रतिनिधित्व किया। सिख राजनीति में कट्टर नेता के रूप में उभरे श्री तोहड़ा की लोकप्रियता लगातार बढ़ती़ रही। लेकिन जरनैल सिंह भिंडरावले के अति उग्र सिख राजनीति के दौर में वह पिछड़ गए।
उन्होंने 1984 में स्वर्ण मंदिर में चलाए गए आपरेशन ब्लू स्टार का विरोध किया और गिरफ्तार कर लिए गए। श्री तोहड़ा ने 1986 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली नेता हरचरण सिंह लोंगोवाल के बीच हुए समझौते को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
श्री तोहड़ा के खिलाफ 1982 से 1992 के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) और टाडा के तहत मामला दर्ज किया गया। इस दौरान वह कई बार जेल से अंदर बाहर होते रहे। इसके बावजूद एसजीपीसी के अध्यक्ष पद पर वह बने रहे।
संकट के दिनों में अभिन्न मित्र माने जाने वाले श्री प्रकाश सिंह बादल और श्री तोहड़ा के संबंधों में 1999 में दरार पड़ गई। श्री तोहडा ने अकाल तख्त के जत्थेदार रणजीति सिंह की मुख्यमंत्री बादल के खिलाफ बगावत का समर्थन किया। इसके बाद श्री तोहड़ा ने अकाली दल के अध्यक्ष पद से श्री बादल को हटाने की मांग कर दी और परिणामस्वरूप पार्टी में फूट पड़ गई।
एक दूसरे को हाशिए पर लाने के प्रयास के तहत श्री बादल ने एसजीपीसी कार्यकारिणी में अपने समर्थकों के बहुमत का फायदा उठाते हुए श्री तोहड़ा को अध्यक्ष पद से हटा दिया। यही नहीं वह अकाली दल से भी निकाल दिए गए। इसके बाद श्री तोहड़ा ने नई पार्टी सर्वहिंद शिरोमणि अकाली दल (एसएचएसएडी) का गठन किया।
वर्ष 2001 में हुए विधानसभा चुनावों में श्री तोहड़ा ने मुख्यमंत्री बादल का विरोध किया और कांग्रेस सत्ता में आई। लेकिन खुद श्री तोहड़ा की पार्टी एक भी सीट जीतने में असफल रही।
बिखराव से हुई हानि का अंदाजा होने पर पिछले वर्ष चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों से ठीक पहले श्री बादल और श्री तोहड़ा ने एक बार फिर आपस में हाथ मिला लिया। राजनीतिक समीक्षकों की राय में अखिल भारतीय आतंकवाद विरोधी मोर्चा के नेता मनिंदर सिंह बिट्टा पर कातिलाना हमला करने के आरोप में जेल की सजा काट रहे प्रोफेसर देवेंदर पाल सिंह भूल्लर ने दोनों नेताओं को निकट लाने में अहम भूमिका निभाई।
भूल्लर को माफी देने की मांग को लेकर दोनों सिख नेताओं ने पिछले वर्ष कई बार उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी से मुलाकात की।
दोनों गुटों के बीच पिछले वर्ष 13 जून को औपचारिक रूप से एकता हो गई। इसके अगले महीने ही श्री तोहड़ा ने एक बार फिर एसजीपीसी का अध्यक्ष पद संभाल लिया।