गुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा (मृत्यु 16 नवम्बर 1985) हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार तथा लेखक थे। जिनका जन्म सन 1929 ई. को गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में हुआ था। विभाजन से पूर्व ही उनका परिवार दिल्ली (भारत) में आ गया था। गुलशन नन्दा का आरम्भिक जीवन बड़े कष्टों में व्यतीत हुआ। वह दिल्ली के बल्लीमारान बाज़ार में एक चश्मे की दुकान पर मामूली वेतन पर काम करते थे। गुलशन नंदा की अद्भुत कल्पनाशीलता से प्रभावित पड़ोस के एक बुजुर्ग ने उन्हें उपन्यास लेखन की सलाह दी। जिसे गुलशन नंदा ने गम्भीरता से लिया और वे पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से लेखन की तरफ अग्रसर हुए। उन्हें एन.डी. सहगल नामक प्रकाशक ने पहली बार छपने का मौक़ा दिया। उस वक़्त उन्हें एक उपन्यास के 100 से 200 रुपए मिला करते थे। फिर रफ़्ता-रफ़्ता उनकी कामयाबी बढ़ने लगी और मिलने वाली रकम भी। आगे चलकर एक वक़्त ऐसा आया कि वो जो भी रकम मांगते, उन्हें मिल जाती। बाद में उनकी कहानियों को आधार बनाकर 1960 तथा 1970 के दशकों में कई हिन्दी फ़िल्में बनाई गईं और ज़्यादातर यह फ़िल्में बॉक्स ऑफ़िस में सफल भी रहीं। उन्होंने अपने द्वारा लिखी गई कुछ कहानियों की फ़िल्मों में पटकथा भी लिखी।[1]
गुलशन नंदा के उपन्यासों की विशेषता (Featuring Novels by Gulshan Nanda)
संपादित करेंगुलशन नंदा के अधिकांश उपन्यासों में प्रेम, मिलन-विरह, धोखा-कपट, मज़बूरियाँ और इनसे उत्पन्न हुए मानवीय भावों-मूल्यों की अभिव्यक्ति ही प्रमुख थी। आंतरिक पारिवारिक रिश्ते, वर्गभेद का मायाजाल, न्याय-अन्याय का अन्तहीन द्वंद्व इनके उपन्यास के कथानक में सर्वत्र दृष्टिगोचर होता था। हिन्दी-उर्दू के शब्दों की चाश्नी में शायराना ढंग से रचे गए लंबे-लंबे संवाद इन उपन्यासों के प्राणबिन्दु हैं। संवादों में जो भावनात्मक अभियक्ति है, वो समस्त पाठकों की संवेदनशील आत्माओं को रुलाने व झकझोरने का माद्दा रखती थी। इन्हीं खूबियों के चलते गुलशन नन्दा जी ने लोकप्रियता के शिखर को छुआ। उन्होंने लेखन से वो रास्ता बनाया, जो फ़िल्मी दुनिया में उनके होने का मज़बूत आधार बना। उनकी कहानियों और उपन्यासों के अनेक भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी हुए और दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी फ़िल्में बनी—जैसे तमिल में "इंगेरिन्धो वंधल" (1970); "एयर होस्टेस" (1980) तथा मलयालम में "अमरुधा वाहिनी" (1976) आदि।
गुलशन नन्दा के प्रसिद्ध उपन्यासों में ‘नीलकंठ’, ‘लरज़ते आंसू’, ‘कलंकिनी’, ‘जलती चट्टान’, ‘घाट का पत्थर’, ‘गेलॉर्ड’ आदि उनकी प्रमुख कृतियां रहीं। हिंदी प्रकाशन के इतिहास में ‘झील के उस पार’ (उपन्यास) अद्भुत घटना थी। इस किताब का ‘न भूतो न भविष्यति’ प्रचार हुआ। भारतभर के अखबारों, पत्रिकाओं के साथ-साथ टी.वी., रेडियो, बिल बोर्ड्स का इस्तेमाल हुआ, इस उपन्यास के प्रमोशन में। चौक-चौराहों पर, बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों पर बड़े-बड़े पोस्टर चिपकाए गए। इस बात पर ख़ास ज़ोर दिया गया कि पहली बार हिंदी किताब 'झील के उस पार' (Jheel ke us Paar) का प्रथम संस्करण (1st Edition) ही पांच लाख (Five Million) का है। ‘झील के उस पार’ (1973) उपन्यास के साथ ही, इसी नाम से एक फ़िल्म भी आई थी। फिल्मों में उनकी कलम ने और धमाल मचाया। कितनी ही हिट फिल्मों के क्रेडिट में बतौर कहानीकार उनका नाम दर्ज है। ‘काजल’(1965), सावन की घटा’ (1966), ‘पत्थर के सनम’ (1967), ‘नील कमल’ (1968), ‘खिलौना’ (1970), ‘कटी पतंग’ (1970), ‘शर्मीली’ (1970), ‘नया ज़माना’ (1971), ‘दाग़’ (1973), ‘झील के उस पार’ (1973), ‘जुगनू’ (1973), ‘जोशीला’ (1973), ‘अजनबी’ (1974), ‘भंवर’ (1976), ‘महबूबा’ (1976) वगैहरा-वगैहरा। इनमें से ज़्यादातर फ़िल्में बंपर हिट रहीं। नज़राना (1987) उनकी आख़िरी फ़िल्म थी, जो उनकी मौत के बाद रिलीज़ हुई और हिट रही। कुल मिलाके ये कह सकते हैं कि, गुलशन नंदा हिन्दी के वो कामयाब लेखक थे—जिनके दर पर प्रकाशकों की कतारें लगी रहती थी और जिनके आगे फ़िल्म इंडस्ट्री के दिग्गज हाथ जोड़े खड़े रहते थे।
चुनिन्दा उपन्यासों की सूची (List of Selected Novels)
संपादित करें- काली घटा
- तीन इक्के
- गुनाह के फूल
- शर्मीली
- माधवी
- डरपोक
- एक नदी दो पाट
- नीलकमल
- पत्थर के होंठ
- सूखे पेड़ सब्ज पत्ते
- काँच की चुड़ियाँ
- मैं अकेली
- नीलकंठ
- लरज़ते आंसू
- कलंकिनी
- जलती चट्टान
- घाट का पत्थर
- गेलॉर्ड
- झील के उस पार
- सोने की लंका
- आवारा बादल
- सगुन
- अजनबी
- चन्दन
- वापसी
चुनिन्दा फ़िल्मोग्राफ़ी (Selected Filmography)
संपादित करें- 1963 पुनर्जन्म (कहानी)
- 1965 काजल (कहानी)
- 1966 सावन की घटा (पटकथा)/(कहानी)
- 1967 पत्थर के सनम (कहानी)
- 1968 नील कमल (कहानी)
- 1968 वासना (कहानी और पटकथा)
- 1970 खिलौना (पटकथा) / (कहानी)
- 1970 इंगेरिन्धो वंधल [लेखक: गुलशन नंदा (कहानी), ए. एल. नारायणन (पटकथा, संवाद) /तमिल फिल्म थी]
- 1970 कटी पतंग (कहानी और पटकथा)
- 1971 शर्मीली (कहानी)
- 1971 नया ज़माना (कहानी)
- 1973 दाग़: प्रेम की एक कविता (कहानी)
- 1973 झील के उस पार (उपन्यास)/(परिदृश्य) / (कहानी)
- 1973 जुगनू (कहानी)
- 1973 जोशीला (कहानी)
- 1974 अजनबी (पटकथा)/(कहानी)
- 1976 भंवर (कहानी)
- 1976 महबूबा (पटकथा)/(कहानी)
- 1976 अमरुधा वाहिनी [लेखक: गुलशन नंदा (कहानी); पप्पनमकोडु लक्ष्मणन (पटकथा, संवाद) मलयालम फ़िल्म थी। ]
- 1977 डार्लिंग डार्लिंग (कहानी)
- 1978 आज़ाद (कहानी)
- 1979 दिल का हीरा (कहानी)
- 1980 दो प्रेमी (कहानी)
- 1980 एयर होस्टेस [लेखक: गुलशन नंदा (कहानी), एस.एल. पुरम सदानंदन (पटकथा, संवाद) /तमिल फिल्म थी]
- 1983 बड़े दिल वाला (कहानी)
- 1983 मैं आवारा हूं [गुलशन नंदा (कहानी), राही मासूम रज़ा (संवाद)]
- 1984 बिंदिया चमकेगी (कहानी)
- 1985 बादल (स्क्रीनप्ले)
- 1985 सलमा (कहानी)
- 1987 नज़राना (कहानी)
- 1993 कलंकनी (गुलशन नंदा द्वारा उपन्यास पर आधारित)
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "The life and death of Hindi pulp fiction". Mint (newspaper). Oct 20, 2008. मूल से 16 जून 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 दिसंबर 2016.