गैलिलेयो (अंतरिक्ष यान)

और अमेरिकी कंपनी नासा ने ऐसे बहुत सारे अंतरिक्ष यान को भेज चुका है। जिसमे से काफी अंतरिक्ष यान सफ
(गैलिलियो यान से अनुप्रेषित)

गैलिलेयो ( या गैलिलियो अंग्रेजी:Galileo) एक अमेरिकी अंतरिक्ष यान था जो कि बृहस्पति ग्रह का अन्वेषण करता था।

गैलिलेयो यान निर्मित होते हुए

गैलिलेयो अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था नासा द्वारा अंतरिक्ष शटल अटलांटिस से भेजा गया था। इसे हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति और उसके प्राकृतिक उपग्रहों का अध्ययन करने के लिए भेजा गया था। यह परिक्रमा करने वाले ऑर्बिटर प्रकार का था।

गैलिलेयो ने बृहस्पति पर अमोनिया के बादल देखे, आयो पर ज्वालामुखी देखे, गैनिमीड और कलिस्टो पर सतह के नीचे खारे समुद्रों के मौजूद होने के संकेत पाए और यूरोपा पर भी ऐसे समुद्र के ताज़ा प्रमाण पाए। इस यान के कार्यकाल के दौरान बृहस्पति पर शूमेकर-लेवी ९ नामक धूमकेतु गिरा और इस घटना का आँखों-देखा हाल उसने पृथ्वी को प्रसारित किया। उसने बृहस्पति के इर्द-गिर्द के हलके उपग्रही छल्लों को परख कर वैज्ञानिकों को यह अंदाज़ा लगाने में मदद की कि यह शायद विभिन्न चंद्रमाओं से उभरती हुई धूल से बने हैं।

घटनाक्रम

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अंतरिक्ष में छोड़ा जाना

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१८ अक्टूबर १९८९ को पृथ्वी से यह यान अंतरिक्ष शटल अटलांटिस के ज़रिये छोड़ा गया था। यह ७ दिसम्बर १९९५ को बृहस्पति पहुँच गया। इसने बृहस्पति के वायुमंडल का अध्ययन करने के लिए उसमें एक छोटा यान छोड़ा और बृहस्पति के साथ-साथ उसके चंद्रमाओं का अध्ययन किया। गैलिलेयो का वज़न २,३८० किलोग्राम था।[1] इसके द्वारा वायुमंडल में छोड़ा गया यान पैराशूट के प्रयोग से १५३ किलोमीटर तक उतरा, जहाँ उसने ४५० प्रति-घंटा तक की रफ़्तार की आंधियाँ झेलीं और तस्वीरें भेजीं और फिर निचले वायुमंडल में अत्यंत गर्मी से पिघल कर ख़त्म हो गया।[2]

कार्यकाल और अनुसंधान

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पृथ्वी के फ्लाइ बाय के तुरंत बाद इसका हाई गेन एंटिना खराब हो गया और पूरा नही खुला।

१९९४ में बृहस्पति से शूमेकर-लेवी ९ का टकराव देखा।

कार्यकाल समाप्ति और नष्ट होना

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२१ सितम्बर २००३ को नासा के द्वारा इसका कार्यकाल समाप्त घोषित किया गया। क्योंकि बृहस्पति के चंद्रमाओं में समुद्र और जीवन होने की संभावना है, जिनके लिए इस यान पर मौजूद पृथ्वी से आये कीटाणु ख़तरनाक हो सकते थे, इसलिए इस यान को जान-बूझकर बृहस्पति के वायुमंडल में तेज़ गति से भेजकर, जला कर ध्वस्त कर दिया गया।[3]

इन्हें भी देखें

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  1. Deep Space Propulsion: A Roadmap to Interstellar Flight, K. F. Long, Springer, 2011, ISBN 978-1-4614-0606-8, ... To arrive at the Jupiter system, Galileo conducted two gravity assists around the orbits of Venus and Earth. The spacecraft had a total mass of around 2380 kg. The propulsion on Galileo was a 400 N thrust engine ...
  2. JupiterWorlds beyond, Ron Miller, Ron Miller, Twenty-First Century Books, 2002, ISBN 978-0-7613-2356-3, ... It also launched a probe that plunged into Jupiter's atmosphere, where it descended on a parachute 95 miles (153 km) into the clouds. For nearly an hour it sent back information about weather conditions—measuring wind speeds of up to 450 miles (724 km) an hour, for instance— before it descended deep enough to be melted by the intense heat of the lower atmosphere ...
  3. Introduction to planetary science: the geological perspective, Gunter Faure, Teresa M. Mensing, Springer, 2007, ISBN 978-1-4020-5233-0, ... The Galileo spacecraft continued to orbit Jupiter for a total of eight years until September 21, 2003, when it was directed to plunge into Jupiter's atmosphere ...